नरसिंहपुर जिले के खुरपा ग्राम के कृषक पुरोहित के जनसुनवाई के दौरान जेल भेजे जाने से चर्चा में आई जनसुनवाई अब जिले में पक्ष और विपक्ष का रूप ले चुकी |
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ब्यूरो चीफ गाडरवारा, जिला नरसिंहपुर // अरुण श्रीवास्तव : 91316 56179
प्रत्येक मंगलवार को होने बाली जनसुनवाई में 21 अगस्त को खुरपा के पी के पुरोहित जब अपने गांव की सड़क बनबाने की अर्जी लेकर कलेक्टर के पास पहुँचे तो कलेक्टर ने उन्हें धारा 151 के तहत जेल भेज दिया जैसा की पी के पुरोहित ने जेल से आने के बाद सोशल मीडिया और मीडिया में बताया और पूरा मामला जिले के साथ ही पूरे देश में सुर्खियों में आ गया क्योंकि इस मामले को सिर्फ प्रदेश स्तर के अखबारों और टी व्ही चैनल ने ही नही बताया बल्कि राष्ट्रीय अखबारों के मुख्य पृष्ठ से लेकर राष्ट्रीय टी व्ही चैनल ने भी इस मामले को अपनी खबरों में जगह दी।
अब चूंकि मामला सुर्खियों में आ चुका था और प्रदेश में शीघ्र ही चुनाव भी हैं ऐसे में कांग्रेस ने अन्य संघठनों के साथ ही खुद भी मामले को लपक लिया और पुरोहित के साथ अपने आप को खड़ा कर लिया और पुरोहित के मीडिया में आने के बाद और मामले की शिकायत जिले के एस पी को करने के बाद कांग्रेस ने भी पूरे जिले में ज्ञापन देने का सिलसिला शुरू कर दिया हालांकि इस मामले में ब्राह्मण महासभा से लेकर पुरोहित के गांव और अन्य लोगों ने भी पुरोहित के पक्ष में ज्ञापन दिये लेकिन इस मामले में चूंकि कांग्रेस पुरोहित के साथ आ चुकी थी
तो भा ज पा की ओर से इस पूरे मामले को पूर्व नियोजित बताते हुये कलेक्टर का पक्ष जाने बिना कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के किये गये ट्वीट पर सवाल खड़े करते हुये इस मामले को राजनैतिक रूप देने का आरोप लगाते हुये मामले में खुद को लगभग कलेक्टर के साथ खड़ा कर लिया हालांकि प्रदेश स्तर पर इस बात की चर्चा चलती रही की प्रदेश के मुखिया ने इस मामले के पूरे तथ्य बुलाये हैं और शीघ्र ही कलेक्टर पर कार्यवाही होगी लेकिन कार्यवाही अभी तक प्रतीक्षित थी के बीच में ही कलेक्टर के पक्ष में कुछ बकीलो के साथ ही जिले के कर्मचारी खड़े हो गये और मामला जहां के तहा रहते हुये पक्ष विपक्ष में हो गया।
अब सवाल यह है की क्या अपने क्षेत्र की समस्या जनसुनवाई में ले जाना गुनाह है जैसा की पुरोहित के साथ हुआ ?क्या जनसुनवाई में समस्या अकेले कागज में लिखकर देना चाहिये उस पर कुछ बोलना या अधिकारी को बताना नही चाहिये?और जनसुनवाई में यदि बोलें तो सिर्फ इतना बोलें जो अधिकारी को नापसंद ना हो क्योंकि अधिकारी प्रशासक है?
सबसे बड़ा सवाल इस मामले का पक्ष विपक्ष में बटने का की कलेक्टर ने जब जनसुनवाई में आये पुरोहित को उनके व्यवहार और उनके नशे में होने के कारण जेल भेजने का फैसला किया तो पुरोहित का मेडिकल परीक्षण क्यों नही कराया और 151 जैसे मामले में पुरोहित को 4 दिन तक जेल में क्यों रखा यहाँ यह बात भी अपने आप विचारणीय है की यह कहा जाये की किसी ने पुरोहित की जमानत नही ली जबकि परस्थितियों से ऐसा नही लगता की पुरोहित की जमानत का प्रयास किसी ने ना किया हो तो शक होना लाजमी है की कुछ तो गड़बड़ हो गई?
और अब कलेक्टर के पक्ष में उनके अधीनस्थों का खड़े हो जाना क्या इस बात की इजाजत प्रशासनिक नियमों में है क्या इस तरह की लड़ाई के बाद जिले का भला हो पायेगा। मामले में होना तो यह चाहिये था की जैसा की प्रदेश के मुखिया कह चुके हैं जांच के बाद फैसला होगा ।फैसले का इंतजार किया जाना चाहिये था बनसप्त इसके की अधीनस्थ अधिकारी और कर्मचारी ज्ञापन देने लगें।
अब यहाँ यह बात भी उल्लेखनीय है की आखिर अब उस सड़क का क्या होगा जिसके बनाने की मांग को लेकर पुरोहित जनसुनवाई में पहुँचे थे।क्योंकि अखबारों में गांव की सड़क की जो फोटो आई थी वह सही में बहुत ही खराब है।
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