उत्तर प्रदेश में मायावी राज कायम करनेवाली मायावती के इशारे पर अब उन पत्रकारों पर हमले शुरू हो गये हैं जो राज्य में स्थापित जंगलराज से लड़ने का जोखिम ले रहे हैं. पहले मायावती सरकार ने डॉ योगेन्द्र सचान का जबरन अंतिम संस्कार करवा दिया और अब उन पत्रकारों पर हमले कर रही है जिन्होंने इसके पीछे सचान की आत्महत्या की कहानी के सच को जनता के सामने लाया था.
रविवार की देर रात ऐसे ही एक न्यूज चैनल के ब्यूरोचीफ को दबोच लिया. देर शाम पत्रकार शलभमणि त्रिपाठी को उनके दफ्तर से उठा लिया गया. देश शाम हजरतगंज के सीओ अनूप कुमार और एडिशनल एसपी बीपी अशोक चैनल के दफ्तर पर धावा बोल दिया. पुलिस के निशाने पर शलभमणि त्रिपाठी और मनोज राजन थे. जिस वक्त पुलिस वहां पहुंची दोनों पत्रकार सड़क पर ही खड़े थे. रोड पर जाम लगा था. तभी दो अफसर उनके पास पहुंचे और उनका कॉलर पकड़ लिया और कहा गुंडा गर्दी करता है. उल्टी खबरें दिखाता है और जिप्सी में डाल दिया और थाने ले गई. मनोज राजन तो बच निकले लेकिन शलभमणि त्रिपाठी को पुलिस ने पकड़ लिया और हजरतगंज थाने ले गयी.
इस बात की खबर जैसे ही पत्रकारों को लगी पत्रकारों ने कोतवाली घेर लिया. हालांकि पत्रकारों के दबाव में पुलिस ने देर रात शलभमणि त्रिपाठी को छोड़ दिया लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई. इसके बाद पत्रकारों ने मायावती के घर पर प्रदर्शन करने का निश्चय किया और देर रात मायावती के घर पहुंचकर दोनों पुलिस अधिकारियों को निलंबित करने की मांग की. मायावती के विश्वसनीय अधिकारी नवनीत सहगल ने पत्रकारों से बात की और मौखिक आदेश भी दे दिया कि दोनों अधिकारियों को निलंबित कर दिया जाएगा.
अपनी गिरफ्तारी पर शलभमणि त्रिपाठी का कहना है कि पुलिस के इन दोनों अधिकारियों ने गाली-गलौज करते हुए कहा कि किसी महिला को पकड़कर लाओ और इसे गलत केस में फंसाते हैं तब इन लोगों को होश ठिकाने में आएगा। शलभमणि ने कहा कि इन दोनों अधिकारियों ने अपने जूनियर पुलिस वालों से कहा कि इसे पीटो और लाकऑप में बंद करो, जब पुलिस वालों ने पीटने से इनकार किया तो उन जूनियर पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड करने की धमकी दी गई।
लेकिन इस घटनाक्रम से एक बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि क्या मायावती सरकार में पत्रकार ईमानदारी से काम करने के लिए स्वतंत्र रह गये हैं? अक्सर पत्रकारों पर यह आरोप लगता है कि वे मायावती के खिलाफ कुछ लिखते या बोलते नहीं है. लेकिन जो पत्रकार माया सरकार के खिलाफ बोलने की जुर्रत करते हैं उन्हें मायावती सरकार पुलिस बल का इस्तेमाल करके उनका हर तरह से उत्पीड़न करती है. माया सरकार के ही एक मंत्री सुभाष पाण्डेय की गुण्डागर्दी और भ्रष्टाचार के खिलाफ मैंने खुद लिखकर सच बताने की शुरूआत की तो पूरा प्रशासन हमारे खिलाफ खड़ा हो गया और हमें हर तरह से तोड़ने की कोशिश की गयी. उस वक्त हालांकि खुद मीडिया ने इस घटना को संज्ञान नहीं लिया लेकिन ताजा घटनाक्रम ने साबित कर दिया है कि मायावती सरकार सच्चाई लिखनेवाले पत्रकारों को बर्दाश्त नहीं कर पाती है.
इस समय पूरा प्रदेश बसपा विधायकों और नेताओं की गुण्डागर्दी का शिकार है. महिलाओं से बलात्कार रोजमर्रा की बातें हो गयी हैं. सरकार को जैसे भ्रष्टाचार का लाइसेन्स मिल गया है लेकिन मायावती सरकार प्रदेश में अपराध रोकने के लिए पुलिस का इस्तेमाल करने की बजाय पत्रकारों का दमन करने कि लिए पत्रकारों का इस्तेमाल कर रही है. अब भले ही मायावती के विश्वस्त अधिकारी पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त करके खुद को घटना से अंजान होने की दलील दे रहे हों लेकिन क्या यही अधिकारी महोदय ये बताएंगे कि बिना मायावती की मर्जी के पुलिस इतना बड़ा कदम उठा सकती है? मेरठ में हाल में ही एक पत्रकार मेहरुद्दीन खान को पुलिस ने बिलावजह गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था. उनका दोष क्या था? सिर्फ यही कि बसपा का एक विधायक उनसे दुश्मनी कर चुका था?
No comments:
Post a Comment