सिटी चीफ // आनंद कुमार नेमा (अन्नू भैया)
(नरसिंहपुर // टाइम्स ऑफ क्राइम) प्रतिनिधि से संपर्क:- 94246 44958
toc news internet channal
नरसिंहपुर. वैसे तो मानव स्वास्थ्य स्वयं के संयम एवं जागरूकता पर निर्भर होता है, परंतु स्वास्थ्य जब व्यक्ति के नियंत्रण से बाहर होता है तो चिकित्सकों के हवाले हो जाता है। जिला मुख्यालय नरसिंहपुर के संबंध में यह बात बहुचर्चित है कि यदि आप दिन में बीमार पड़ जाये तो ठीक है लेकिन यदि रात को अस्वस्थ होकर किसी डाक्टर की शरण में जायेगें तो यह जबाव चिकित्सकों के कर्मचारियों को मुंह जुबानी रटे हुए है कि डाक्टर साहब नहीं है, जरूरी काम से बाहर गये हुए है। सुबह आना रात को नहीं देखते। हकीकत यह है कि शहर के निजी चिकित्सालयों में रात्रि के समय किसी डाक्टर की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होती। नतीजतन मखमली बिस्तर में गहरी नींद में सोये चिकित्सक अपने आराम में खलल नहीं चाहते भले ही उनकी देहरी में कोई गंभीर किस्म का मरीज मौत की नींद सो जाये। दिन भर मरीजों की जेब काटने के लिए अपने मुख पर मधुर मुस्कान धारण किये हुए चिकित्सक रात को अपना मानवीय मुखौटा उतारकर दीवार पर टांग देते है, और मरीज इलाज के अभाव में दम तोड़ देता है। रात में यदि कोई छोटा बच्चा बीमार पड़ जाये तो उसके माँ-बाप पर क्या गुजरती है यह तो वे ही जानते है। हमने शहर में अपने कलेजे के टुकड़ों को हृदय से लगाये हुए कई माँ-बाप यहां से वहां भटकते हुये देखे है। बड़ों को तो बीमारी हालत में स्वविवेक से थोड़ा बहुत इलाज देकर मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार किया जा सकता है कि डाक्टर साहब कल सुबह देख लेंगे, परंतु छोटे बच्चे जो मानसिक रूप से अपरिपक्व होते है उन्हें समझाना नामुमकिन होता है, क्योंकि वे तो यह भी नहीं बता सकते कि उन्हें क्या तकलीफ है ऐसे में माता-पिता का घबराना स्वाभाविक होता है, परंतु दुविधा यह है कि जिला मुख्यालय में कई शिशु रोग विशेषज्ञ होने के बावजूद रात्रि में बच्चों को इलाज के लिए तरसना पड़ता है। शहर के निजी चिकित्सालय अपने यहां लगे सूचना फलकों में तमाम सुविधाएं होने का डिंडौरा पीटते है परंतु यह जानकारी हकीकत से परे होती है। यदि इन नृसिंग होम संचालकों पर गंभीरता से कार्यवाही हो जाये तो यह निश्चित है कि इन्हें जेल का मुंह देखना होगा। शासकीय जिला चिकित्सालय में डाक्टरों की बेरूखी, नर्सों की अभ्रदता और व्याप्त अव्यवस्थाओं से परेशान मरीज निजी चिकित्सकों की शरण में जाते है परंतु रात्रिकाल में जब कोई निजी चिकित्सक मरीज को देखने राजी नही होता तो मजबूरन सरकारी अस्पताल में लौटकर आना पड़ता है। शासकीय चिकित्सालय में चाहे कितनी ही अव्यवस्थाएं हावी क्यों न हो? परंतु यह अक्षरश: सत्य है कि जब कही इलाज और सलाह नही मिलती तब सरकारी अस्पताल ही माईबाप होता है जहां व्यक्ति अधिकार से चिकित्सा की मांग कर सकता है।च प्रतिनिधि से संपर्क:- 94246 44958
(नरसिंहपुर // टाइम्स ऑफ क्राइम) प्रतिनिधि से संपर्क:- 94246 44958
toc news internet channal
नरसिंहपुर. वैसे तो मानव स्वास्थ्य स्वयं के संयम एवं जागरूकता पर निर्भर होता है, परंतु स्वास्थ्य जब व्यक्ति के नियंत्रण से बाहर होता है तो चिकित्सकों के हवाले हो जाता है। जिला मुख्यालय नरसिंहपुर के संबंध में यह बात बहुचर्चित है कि यदि आप दिन में बीमार पड़ जाये तो ठीक है लेकिन यदि रात को अस्वस्थ होकर किसी डाक्टर की शरण में जायेगें तो यह जबाव चिकित्सकों के कर्मचारियों को मुंह जुबानी रटे हुए है कि डाक्टर साहब नहीं है, जरूरी काम से बाहर गये हुए है। सुबह आना रात को नहीं देखते। हकीकत यह है कि शहर के निजी चिकित्सालयों में रात्रि के समय किसी डाक्टर की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होती। नतीजतन मखमली बिस्तर में गहरी नींद में सोये चिकित्सक अपने आराम में खलल नहीं चाहते भले ही उनकी देहरी में कोई गंभीर किस्म का मरीज मौत की नींद सो जाये। दिन भर मरीजों की जेब काटने के लिए अपने मुख पर मधुर मुस्कान धारण किये हुए चिकित्सक रात को अपना मानवीय मुखौटा उतारकर दीवार पर टांग देते है, और मरीज इलाज के अभाव में दम तोड़ देता है। रात में यदि कोई छोटा बच्चा बीमार पड़ जाये तो उसके माँ-बाप पर क्या गुजरती है यह तो वे ही जानते है। हमने शहर में अपने कलेजे के टुकड़ों को हृदय से लगाये हुए कई माँ-बाप यहां से वहां भटकते हुये देखे है। बड़ों को तो बीमारी हालत में स्वविवेक से थोड़ा बहुत इलाज देकर मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार किया जा सकता है कि डाक्टर साहब कल सुबह देख लेंगे, परंतु छोटे बच्चे जो मानसिक रूप से अपरिपक्व होते है उन्हें समझाना नामुमकिन होता है, क्योंकि वे तो यह भी नहीं बता सकते कि उन्हें क्या तकलीफ है ऐसे में माता-पिता का घबराना स्वाभाविक होता है, परंतु दुविधा यह है कि जिला मुख्यालय में कई शिशु रोग विशेषज्ञ होने के बावजूद रात्रि में बच्चों को इलाज के लिए तरसना पड़ता है। शहर के निजी चिकित्सालय अपने यहां लगे सूचना फलकों में तमाम सुविधाएं होने का डिंडौरा पीटते है परंतु यह जानकारी हकीकत से परे होती है। यदि इन नृसिंग होम संचालकों पर गंभीरता से कार्यवाही हो जाये तो यह निश्चित है कि इन्हें जेल का मुंह देखना होगा। शासकीय जिला चिकित्सालय में डाक्टरों की बेरूखी, नर्सों की अभ्रदता और व्याप्त अव्यवस्थाओं से परेशान मरीज निजी चिकित्सकों की शरण में जाते है परंतु रात्रिकाल में जब कोई निजी चिकित्सक मरीज को देखने राजी नही होता तो मजबूरन सरकारी अस्पताल में लौटकर आना पड़ता है। शासकीय चिकित्सालय में चाहे कितनी ही अव्यवस्थाएं हावी क्यों न हो? परंतु यह अक्षरश: सत्य है कि जब कही इलाज और सलाह नही मिलती तब सरकारी अस्पताल ही माईबाप होता है जहां व्यक्ति अधिकार से चिकित्सा की मांग कर सकता है।च प्रतिनिधि से संपर्क:- 94246 44958
No comments:
Post a Comment