Thursday, June 9, 2011

हुसेन की 'सरस्वती' पेंटिंग अश्लील थी, और ये?

नीरेंद्र नागर Thursday June 09, 2011हुसेन भी अपने विवादास्पद चित्रों की वजह से भारत में कई मुकदमे झेल रहे थे और इन मुकदमों के चक्कर में इस शहर से उस शहर भटकने से बचने के लिए वह भारत नहीं आ रहे थे। अपनी जन्मभूमि में रहने और मौत के बाद इसी सरज़मीं में दफनाए जाने की उनकी इच्छा भी उनकी अंतिम सांस के साथ दफन हो कर रह गई।हुसेन पर लगी हमारी खबर पर कई पाठकों के कॉमेंट आ रहे हैं। वे उनकी मौत से खुश हैं। यह खुशी हुसेन के प्रति उनकी नफरत को ही ज़ाहिर करती है। उन्हें नाराज़गी है कि हुसेन ने कुछ हिंदू देवियों की 'अश्लील' तस्वीरें क्यों बनाईं। मैं खुद जन्मना हिंदू हूं लेकिन मुझे हुसेन की उन तस्वीरों में कभी भी अश्लीलता नज़र नहीं आई, उसी तरह जिस तरह मुझे काली की नंगी तस्वीर में कभी अश्लीलता नज़र नहीं आती।

मकबूल फिदा हुसेन नहीं रहे। लंदन में उनकी मौत हो गई और वहीं दफना भी दिए जाएंगे। उनकी मौत पर मुझे बहादुर शाह ज़फर का यह शे’र याद आता है – इतना है बदनसीब ज़फर, दफ्न के लिए, दो गज़ ज़मीन भी न मिली, कूए यार में।


मैं समझ नहीं पाता कि जब हुसेन किसी देवी की निर्वस्त्र तस्वीर बनाते हैं, तभी वह क्यों लोगों को आपत्तिजनक लगती है? जब कोई हिंदू कलाकार दुर्गा की ऐसी ही तस्वीर बनाता है और वह बंगाल की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘देश’ के कवर पर छपती है तो क्यों कोई उस हिंदू चित्रकार के खिलाफ केस नहीं करता? यदि नग्नता ही अश्लीलता है दाहिनी तरह जिस मूर्ति की तस्वीर है (यह मुझे शिव या उन्हीं के किसी रूप की प्रतिमा लगती है), उस मूर्ति को नष्ट क्यों नहीं कर दिया जाता? सारे भारत में स्थित काली के सारे मंदिरों में क्यों नहीं ताले लगा दिए जाते? जिन-जिन घरों में काली की तस्वीरें हैं, उन परिवारों को बहिष्कृत क्यों नहीं किया जाता? बल्कि उस चित्रकार, मूर्तिकार या दार्शनिक कवि को खोज कर उसकी लानत-मलामत क्यों नहीं की जाती जिसने काली का यह रूप रंगों या शब्दों में बनाया?

काली ही क्यों, शिव को भी क्यों नहीं इस सफाई अभियान में शामिल किया जाए? काली तो फिर भी एक निर्वस्त्र देवी का मूर्त रूप है, शिवलिंग की कल्पना तो उससे भी दो कदम आगे है। वैज्ञानिक रूप से ईश्वर का यह भौतिकतम प्रतीक लिंग और योनि का ही प्रतिमांकन है। आरंभ में जब जीवन के रहस्य को ढूंढने की कोशिश हुई तो लिंग की जीवनदायिनी शक्ति को देखते हुए कई आदिम संप्रदायों ने उसे ईश्वर का दर्ज़ा दे दिया और मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करने लगे। यदि अश्लीलता की आंखों से देखा जाए तो ईश्वर का इससे अश्लील चित्रण भला क्या होगा! लेकिन क्या हम उसे अश्लील मानते हैं? क्या हिंदू महिलाएं शिवलिंग पर जल या दूध चढ़ाते समय उसका यह 'अश्लील' रूप दिमाग में लाती हैं?

काली ओर शिव के मंदिर ही क्यों, देश के अनगिनत दूसरे मंदिरों में संभोगरत देवी-देवताओं की मूर्तियां लगी हुई हैं (देखने के लिए आप गूगल सर्च विंडो में Erotic sculptures temples टाइप कर इमेजेज़ को क्लिक कीजिए या यहां क्लिक कीजिए)। तो क्या उन सबको हथोड़ा मारकर नष्ट कर दिया जाए?

पुराणों में शिव सहित हिन्दू देवी-देवताओं पर जाने क्या-क्या लिखा गया है, लेकिन आज तक किसी ने उस पुराणों को जलाने का आह्वान नहीं किया। बिहारी और विद्यापति ने कृष्ण-राधा प्रसंगों का ऐसा श्रृंगारिक वर्णन किया है जिसे आसानी से अश्लील कहा जा सकता है लेकिन उनके साहित्य पर प्रतिबंध की आवाज़ कभी नहीं उठी। फिर हुसेन के चित्रों पर ही शोर क्यों मच रहा है? सिर्फ इसीलिए कि वह मुसलमान हैं... वरना कई हिंदू चित्रकार ऐसे ही चित्र बना रहे हैं और मैगज़ीनों के कवर पर छप रहे हैं, लेकिन उनपर कोई बवाल नहीं मचता। ऊपर काली की यह जो तस्वीर है, वह पापिया घोषाल ने बनाई है जो हिंदू हैं। बताइए, कौन कर रहा है इसका विरोध? किसने किया उनके ऊपर कोई मुकदमा?

सच तो यह है कि काली की तस्वीर या मूर्ति को देखकर किसे लग सकता है कि वह एक अश्लील है? किसी भक्त को तो कदापि नहीं लगेगी। शिवलिंग को देखकर किसे रतिक्रिया की याद आती है? किसी भक्त को तो नहीं आएगी। यदि मन में धार्मिक भाव हैं तो कभी भी निर्वस्त्रता अश्लीलता का भाव नहीं देगी। और यदि मन में अश्लीलता है तो पूरी तरह ढका हुआ शरीर भी किसी को उत्तेजित कर सकता है।

हुसेन के चित्रों को देखकर मुझे कभी भी नहीं लगा कि वे अश्लील है क्योंकि कभी उन्हें देखकर कामुक भाव नहीं जागा। हिंदू मंदिरों में शिव-पार्वती की मिथुन मूर्ति बनानेवाले कलाकार ने जिस कल्पना, आस्था और श्रम के साथ वह प्रतिमा गढ़ी होगी और जिसे देख मैं चमत्कृत होता हूं, हुसेन की सरस्वती के देखकर भी मुझे वैसा ही लगता है। कुछ लोगों को उन चित्रों में अश्लीलता इसलिए दिख रही है, कि वे चित्र को अकेलेपन में नहीं, कलाकार के नाम से जोड़कर देख रहे हैं...


कई उग्र हिंदू इस मुद्दे को दूसरा ही रूप दे देते हैं। वे कहते हैं कि हुसेन पैगंबर साहब की ऐसी तस्वीर बनाकर दिखाएं। ये सारे लोग भूल जाते हैं कि इस्लाम में तो अल्लाह या मोहम्मद साहब का चित्र या मूर्ति बनाने की ही मनाही है, इसलिए यदि मुस्लिम नाराज़ होते हैं तो उनका एक तर्क है। वे तो पैगंबर की कोई भी तस्वीर बनाने पर नाराज़ हो जाएंगे। लेकिन हिंदू धर्म में ऐसी कोई मनाही नहीं। और तो और, यहां मंदिरों में देवी-देवताओं की काममुद्रा में मूर्तियां हैं (और ऐसा केवल खजुराहो में नहीं हैं। मैं खुद उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ के मंदिरों में ऐसी मूर्तियां देख चुका हूं। ऊपर ऐसी ही एक प्रतिमा की तस्वीर देखें)। तो फिर किस आधार पर कोई हुसेन को कह सकता है कि वह हिंदू धर्म विरोधी काम कर रहे हैं?


एक उदाहरण के तौर पर कहूं तो किसी दफ्तर में मैं केवल अंडरवेयर पहनकर जाऊं तो मैं नियम तोड़ने का दोषी माना जा सकता हूं क्योंकि वहां का ड्रेस कोड अलग है, लेकिन सी-बीच पर मैं अंडरवेयर पहनकर जाऊं तो कोई कैसे कह सकता है कि मैं गलत काम कर रहा हूं? दूसरे शब्दों में जहां न तस्वीरें बनाना जुर्म है न ही नग्न तस्वीरें बनाना अपराध है (कई हिंदू कलाकार आज भी बना रहे हैं, कई मंदिरों में ऐसी मूर्तियां हैं), वहां आप कैसे एक इन्डिविजुअल को उसी काम के लिए फांसी पर लटका देंगे जो कि आपके यहां जुर्म है ही नहीं!


एक बार फिर - कुछ पाठकों ने हुसेन की कुछ पेंटिंग्स में हनुमान की पूंछ पर नग्न सीता को बिठाए जाने पर आपत्ति की है। उनके लिए यह तस्वीर राजा रवि वर्मा की। हनुमान की पूंछ के पास वाली हथेली में एक महिला है। ज़रा देखें, क्या उसने कपड़े पहने हुए हैं? और राजा रवि वर्मा का विरोध किसने किया कि एक बाल ब्रह्मचारी के हाथों में नंगी महिला को दिखला दिया?


मेरा भाइयो, चित्रकार एक कलाकार होता है, वह फोटोग्राफर नहीं होता कि जैसा हो, वैसा ही दिखाए। नहीं तो दुनिया की सारी पेंटिंग्स एक जैसी होतीं। चित्रकारों को आज़ादी मिलनी चाहिए। वह मिलती भी रही है। न कभी राजा रवि वर्मा का विरोध हुआ, न पापिया घोषाल या ऐसे ही अन्य कलाकारों का। भारत इस मामले में बहुत ही सहिष्णु है। और इसीलिए मेरा कहना है कि जैसे आपलोग राजा रवि वर्मा और पापिया घोषाल को बिना किसी शक या शुबहे के स्वीकारते हो, वैसे ही हुसेन को भी स्वीकारें। किसी कलाकृति को देखते समय कलाकार का नाम ज़रूर देखें लेकिन उसका धर्म न देखें।

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