-डॉ. शशि तिवारी-
आज जनता के मास्तिष्क में कुछ यक्ष प्रश्न हमेशा उमड़ते ही रहते हैं मसलन सरकार
क्या है, जनप्रतिनिधि, जनप्रतिनिधि होने का धर्म निभा रहे हैं? जन मुद्दों से क्यों
नहीं है सरोकार जनप्रतिनिधियों को देश एवं जन मुद्दों पर अन्ना या रामदेव ही क्यों?
आखिर जनप्रतिनिधि किस गोरखधंधे में लिप्त हैं आदि।
अन्ना हजारे कहते हैं सरकार धोखे-बाज है, सरकार ने पहले हमें धोख दिया अब रामदेव
को सरकार हमारी सेवक है, मालिक नहीं, मालिक सो गया है सेवक मेवा खा रहा है। आखिर
सरकार ऐसा बदनुमा चरित्र ले जनता को क्या संदेश देना चाहती है? आज जनप्रतिनिधि जनता
के प्रति कम पार्टी के प्रति ज्यादा वफादार दिखते है? आज ना ही सरकार और ना ही
जनप्रतिनिधि जनता की अपेक्षाओं पर खरे उतर रहे हैं, यह दोनों के ही लिये दुर्भाग्य
की बात है।
कालाधन एवं भ्रष्टाचार को ले जो रवैया सरकार को अपनाना चाहिये वो अन्ना हजारे और
बाबा रामदेव उठा रहे हैं, यह नेताओं को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिये कि आंदोलन
चलाना केवल नेताओं का ही अधिकार नहीं, जनता का भी अधिकार है, नेताओं के अधिकांश
आंदोलन विध्वंसकारी ही होते हैं जिससे देश एवं समाज की संपत्ति की क्षति ही होती
है, लेकिन हाल में जनता द्वारा संचालित आंदोलन पूर्णतः शांति एवं अनुशासन लिये था,
नेताओं को यह अच्छी सीख सीखना चाहिये, लेकिन हो रहा है सब कुछ उल्टा-पुल्टा। यदि
बाबा रामदेव की व्यक्तिगत चीजों को छोड़ दें तो उन्होंने काला धन एवं भ्रष्टाचार का
जो मुद्दा उठाया क्या वो गलत था?
इतिहास गवाह है अहंकार तो राजा रावण का भी अहंकार नहीं रहा तो फिर सरकार का अहंकार
किस खेत की मूली है। भारत के साथ आधी रात का गहरा संबंध है हमें आजादी मिली तो रात
में, देश में आपातकाल लगाया तो रात में रामदेव के आंदोलन पर दमन चक्र चलाया तो रात
में। यहां सरकार को जनता को बताना ही होगी आन्दोलनकारियों पर बर्बरतापूर्वक
अत्याचार के लिये क्या सुबह का इंतजार नहंी किया जा सकता था? आखिर जमाना पारदर्शिता
एवं जवाबदेही का है, सरकार ने ऐसा कृत्य कर भारतीय जनता को जता दिया है कि जो भी
भ्रष्टाचार और कालेधन की बात करेगा, इसके विरूद्ध लड़ेगा उसका यही हश्र होगा।
कभी-कभी तो ऐसा लगता है ये चुनी हुई सरकार है या डॉन? स्वतंत्र भारत में अपनों ने
ही अपनों पर जुल्म ढाने में अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया है केन्द्र जनता को जवाब
दे दोषियों को तत्काल जेल भेजें।
आज राजनेता कह रहे है बाबा ठग है? क्या ऐसा कहने मात्र से राजनेता अपने कर्तव्यों
से बच जायेंगे? बाबा का ठग होना तो अच्छा है कम से कम जनता के स्वास्थ्य के लिये
दवा एवं योग के द्वारा कुछ जनता का अच्छा ही हो रहा है, खुशी मिल रही है तो, ऐसा ठग
अच्छा है। आजकल टी.वी. पर एक विज्ञापन चलता है, खुशी मिलती है तो दाग अच्छे हैं,
उसी तर्ज पर ये ठग अच्छा है लेकिन उन नेताओं का क्या जो चुनाव के वक्त बड़ी-बड़ी
घोषणा, योजना जनहित के मुद्दे, जनता की सेवा की कसमें खाते नहीं थकते चुनते ही तोते
की तरह आंखे फेर लेते हैं। हकीकत में ऐसे लोग ही असली ठग हैं।
आज राजनीतिक दल इतने फोकटिये, दिमागी तौर से दिवालिया हो गए हैं कि देश की ज्वलंत
समस्याओं को छोड़ एक भद्र स्त्री के नाच को ले राजनीति कर रहे हैं, हमें नृत्य और
आनंद की मस्ती में भेद करना ही होगा। राजघाट पर सुषमा का नृत्य नहीं था वह तो आनंद
की, देश भक्ति की, मस्ती थी। जब भी मानव अंदर से आनंदित होता है तब वह एक अजीब से
मस्ती में डूब जाता है। इसका एहसास तो मस्ती में डूबने वाला ही बता सकता है। बाहर
से देखने वालों को तो ढोंग ही लगेगा। क्या हम मीरा की लगन और मगन में झूमने को भूल
गए हैं, क्या हम कृष्ण गोपिकाओं की मस्ती को भूल गए हैं, क्या हम सूरदास की मस्ती
को भूल गए है, आखिर हमारे राजनेता अपना राजधर्म क्यों भूल रहे हैं? बेसिर पैर की
बातों में ये लोग न केवल अपना समय बर्बाद कर रहे हैं बल्कि असली मुद्दों से हट कहीं
न कहीं ये जनता के साथ न केवल धोखा दे रहे हैं बल्कि उन्हें ठग भी रहे हैं। जनता
अपने को ठगा सा महसूस कर रही है। ये नेता है या किसी नाट्य मंडली के सदस्य? पिछले
चार माह से केन्द्र में जिस तरह का घटना क्रम चल रहा है उससे तो कम से कम ऐसा ही
लगता है नेताओं की न भाषा, ना ही मर्यादा है, सिर्फ और सिर्फ धींगा मस्ती और
छिछोरी हरकतों के सिवा कुछ भी नहीं, कहते है आदत मानव के मूल स्वभाव को दबा देती है
और आदमी सिर्फ एक अच्छा नाटककार बन जाता है। आदमी का असली स्वभाव रूक जाता है, असली
आदमी रूक जाता है और नकली आदमी चलता रहता है। अर्थशास्त्र का भी सिद्धांत है नकली
सिक्के, असली सिक्कों को चलन से बाहर कर देते हैं। आज ऐसा ही कुछ समूची राजनीति में
हो रहा है आखिर कब हम अपने होने को, अपने सत्य को, अपनी हकीकत को स्वीकारेंगे? या
सिर्फ एक शोमेन या कलाकार बन कर ही इस दुनिया से रूखसत कर जायेंगे? आज देश
चारित्रीक संकट से गुजर रहा है जितना पहले कभी नहीं था। मसलन नेता सच का सामना करने
को तैयार नहीं, भ्रम ही अच्छा, जनता को नेता पर विश्वास नहीं, नेता को नेता पर
विश्वास नहीं, नेतागिरी भी फर्जी, नेताओं का उनके मूल धंधे नेतागिरी ही से
विश्वासघात? आज चारों और अविश्वास, झूठ, मक्कारी, लूट खुद्दार का हाथ ही पसारा सा
लगता है। असली-नकली की लड़ाई में सब नकली ही जिये जा रहे हैं।
केन्द्र सरकार बार-बार ढिंढोरा पीट रही है कि हम भ्रष्टाचार को ले गंभीर है?
परिणाम स्वरूप हमने अपने मंत्रियों एवं अन्यों को चाहे वो कितना ही प्रभावशाली
क्यांे न हो केा जेल की राह दिखाई है। निःसंदेह यह सत्य है, लेकिन हमें यहां यह भी
नहीं भूलना चाहिये कि ये कार्यवाही सरकार ने अपने मन या स्वतः ही नही की है। बल्कि
सुप्रीम कोर्ट के बार-बार दिये जाने वाले निर्देशों का ही परिणाम है एक भी प्रकरण
केन्द्र सरकार ने स्वतः ना ही लिया है और न ही उजागर किया है। यह भी एक कटु सत्य
है। हकीकत तो यह है आज राजनीति के हमाम में सभी नंगे हैं? आखिर क्या बात है
विकीलीक्स काले धन वाले नामों की सूची जारी कर सकता है सरकार क्यों नहीं? यहीं से
सरकार की रीति-नीति, नियत पर शक एवं अविश्वास की कड़ी शुरू होती है। जो काम चुने
हुये जनप्रतिनिधियों को करना चाहिये था, वो काम अन्ना हजारे या रामदेव कर रहे हैं
आखिर सरकार किस नशे में डूबी है? अब, जब केन्द्र सरकार चारों ओर से घिरती नजर आ रही
है तब कहती हे कि सिविल सोसायटी साथ दे या न दे लोकपाल बिल पास होकर ही रहेगा ये
दृढ़ निश्चिय पहले क्यों नहीं था। ऐसा ही दृढ़ निश्चय महिला आरक्षण पर कब होगा ?
(लेखिका सूचना मंत्र पत्रिका की संपादिका हैं)
मो. 9425677352
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