Friday, June 24, 2011

माननीयों का बेनकाब होता चेहरा

द्वारा-रिजवान चंचल
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कुछ माननीय जेल पहुंचे तो कुछ बचने में कामयाब भी रहे
‘‘कातिल ने तो धोई थी आस्तीन बार-बार, लेकिन पता न था कि लहू बोलता भी है’’ माननीयों के खिलाफ एक के बाद एक आये अदालत के फैसलों पर लोगों ने कुछ इस अंदाज में अपनी प्रतिक्रियाये व्यक्त की। वैसे अपने कुकृत्यों पर जेल की सलाखों के पीछे पहुचे माननीयों की फेहरिस्त लंबी है वो अमरमणि हो या आनंदसेन अथवा शेखर तिवारी तात्पर्य यह कि कई राजनेता ऐसे रहे जिन्हें अपनी करतूतों की वजह से सींखचों के पीछे जाना पड़ा है। हर मामले में राजनेताओं ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर मामले को दबाने की कोशिशें भी की,पुलिस और प्रशासन भी उनके साथ ताल ठोंक कर खड़ा हुआ, पर मामले के अधिक तूल पकड़ने ग्रामीणों के उग्र होने या फिर बात बहुत ऊपर तक पहुंचने के बाद पुलिस को मजबूरन कार्रवाई करनी ही पड़ी जिसके चलते कुछ माननीय जेल पहुंचे तो कुछ बचने में कामयाब भी रहे इस बीच अदालतों ने अपने निर्णय सुनाकर कई माननीयों के चेहरे बेनकाब किये ।
हाल ही में आनंद सेन पर लगे इल्जामों को अदालत ने सही मानते हुए दोषी करार दिया ,माननीय को मिली सजा औरों के लिए सबक है, लेकिन इसका कितना असर होगा, इसे लेकर सवाल हो रहे हैं, बताते चलें कि बहुचर्चित शशि हत्याकांड में अदालत से आए फैसले में उम्रकैद की सजा पाए आनंदसेन यादव के पिता पूर्व सांसद मित्रसेन यादव को भी पहले उम्रकैद की सजा हो चुकी है।
यह अलग बात है कि उनकी पत्नी की फरियाद पर तत्कालीन राष्ट्रपति ने उन्हें क्षमादान देकर सजामाफी दे दी थी, यही सजामाफी उनके राजनीतिक कॅरिअर को इतनी दूर तक खींच भी लाई। पिता तो किसी तरह बच गये, लेकिन बेटे आनंद को शशि हत्याकांड में दोहरी उम्रकैद की सजा हुई है अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या उम्र कैद की सजा पाने वाले आनन्दसेन का कैरियर आगे अब बढ़ पायेगा ? हाल ही में बीएसपी विधायक शेखर तिवारी के अलावा विनय तिवारी, रामबाबू, योगेन्द्र दोहरे, मनोज अवस्थी, देवेन्द्र राजपूत, संतोष तिवारी, गजराज सिंह, पाल सिंह और डिबियापुर थाने के पूर्व प्रभारी होशियार सिंह को भी अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई है, विशेष न्यायाधीश वीरेन्द्र कुमार की अदालत ने सभी अभियुक्तों पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
गौरतलब है कि 23 दिसंबर 2008 को ओरैया के इंजिनियर मनोज गुप्ता की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में बीएसपी विधायक शेखर तिवारी पर आरोप था कि उन्होंने बुरी तरह पीटने के बाद मनोज गुप्ता को करंट लगाकर मार डाला। हत्या के पीछे जो वजह बताई गई थी वह थी कि अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाने वाले मनोज गुप्ता तिवारी के गुर्गों को खुश नहीं कर रहे थे। इस मामले में बीएसपी विधायक शेखर तिवारी और उनकी पत्नी समेत 11 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे,शेखर तिवारी और उसके साथियों पर आरोप था कि उन्होंने इंजिनियर मनोज गुप्ता को लाठी डंडों और करंट लगाकर बेहरहमी से मार डाला था। मामला मीडिया में आने के बाद यूपी सरकार की जमकर किरकिरी हुई और विपक्ष ने धन उगाही के इस मामले को मायावती के बर्थडे से जोड़ दिया था। चौतरफा घिरी सरकार ने आनन-फानन में विधायक शेखर तिवारी और उसके गुर्गों को गिरफ्तार करवा लिया,मामला औरेया अदालत में गया, सुनवाई पहले औरैया कोर्ट में शुरू हुई बाद में उसे लखनऊ की स्पेशल कोर्ट भेज दिया गया कमोवेश दो साल तक चली सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने तिवारी के खिलाफ पुख्ता सबूत होने की दलील दी और बसपा विधायक व सहयोगी साथी न्यायालय से बच नही सके।
इसी तरह महाराजगंज से विधायक अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि को कवियत्री मधुमिता की हत्या के आरोप में जेल के सीखचों में कैद होना पड़ा, मधुमिता की जब हत्या की गई तब वह गर्भवती थी और राज्यमंत्री रहे अमरमणि को न सिर्फ कुर्सी छोड़नी पड़ी बल्कि जेल ही उनका ठिकाना बना। हाल ही की बात है बांदा के नरैनी से विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी को जेल की हवा खानी पड़ गई। शीलू निषाद नाम की युवती के साथ सामूहिक दुराचार के आरोपी विधायक को बचाने के लिए पुलिस ने हर पैंतरा आजमाया। यहां तक कि विधायक के इशारे पर पीड़ित युवती को ही चोर बनाकर उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भी भेज दिया गया। मामले के तूल पकड़ने पर जब मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई तब पुलिस ने आरोपी विधायक को गिरफ्तार किया।

राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त मत्स्य विकास निगम के अध्यक्ष राममोहन गर्ग पर जब एक महिला ने उसका अश्लील वीडियो तैयार कर उसे ब्लैकमेल करने व उसका शोषण करने का आरोप लगाया, तब भी पुलिस ने राज्यमंत्री को बचाने की भरसक कोशिश की थी। जनवरी 2009 के इस मामले ने तूल पकड़ा तब पुलिस को मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी करनी पड़ी थी। दिसंबर 2006 में मेरठ विश्वविद्यालय की प्रवक्ता कविता चौधरी का अपहरण कर हत्या कर दी गई थी। शशि की तरह ही कविता की लाश भी आज तक बरामद नहीं हो सकी। मामले में एक-दो नहीं बल्कि तीन मंत्रियों के दामन पर छींटे पड़े थे इस मामले में मंत्री मेराजुद्दीन के साथ ही मंत्री चौधरी बाबूलाल और किरनपाल भी शामिल थे। मामले में बाबूलाल व मेराजुद्दीन को इस्तीफा देना पड़ा था। आरोप प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य न मिलने पर माननीय बच गए। यह बात अलग है कि रवींद्र प्रधान की डासना जेल में 2009 में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी। वैसे शशि काण्ड में भी राजनीतिक दबाव में कई मोड़ आये पिता मित्रसेन यादव की राजनीतिक पूंजी सहेजने उन्हीं के नक्शेकदम पर चले ‘छोटे’ की उर्फियत से मशहूर आनंदसेन यादव ने जिस तरह से बचाव किया, उससे एक बार लगा कि अन्य मामलों की तरह यह भी आखिरी तक ठंडा पड़ जाएगा। साढे तीन साल का सफर तय करने वाले मुकदमे में उतार-चढ़ाव के बीच मिल्कीपुर की जनता ने सेन परिवार को कभी निर्दोष नहीं माना,पिछले लोकसभा चुनाव में निवर्तमान सांसद रहे पिता मित्रसेन यादव को बतौर सपा प्रत्याशी हार का मुंह देखना पड़ा।
इसके बाद हुए जिला पंचायत के चुनाव में विधायक आनंदसेन की पत्नी इंदुसेन मौजूदा ब्लाक प्रमुख होने के बावजूद गृहक्षेत्र से चुनाव हार गईं। उपचुनाव में सपा से जिला पंचायत अध्यक्ष की दावेदार बनकर अमानीगंज प्रथम से चुनाव लड़ी इंदुसेन को फिर से हार का मुंह देखना पड़ा। हालांकि आनंदसेन से दूरी बनाकर उनकी भाभी प्रियंकासेन ने ब्लाक प्रमुख का पद हथिया लिया। कुल मिलाकर मित्रसेन का दुर्ग मानी जाने वाली मिल्कीपुर विधानसभा की जनता ने शशि प्रकरण को लेकर सेन परिवार से मुंह मोड़ लिया था जिसके साक्षी चुनावी नतीजे बने सूत्रो के मुताबिक विधायक बनने से पूर्व ही वर्ष 1968 में मवईखुर्द के मथुरा प्रसाद तिवारी के दो पुत्रों की दिनदहाड़े हत्या के मामले में मित्रसेन आरोपी बनाए गए, इस प्रकरण में अदालत ने मित्रसेन को दोष सिद्ध बताते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई ,सियासी पारी की शुरुआत करते ही हुई इस सजा के क्षमादान के लिए मित्रसेन की पत्नी श्यामकली ने तत्कालीन राष्ट्रपति से दयायाचना की उस समय कांग्रेस नेता चंद्रजीत यादव की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने क्षमादान दिया।
इसके बाद भी दरोगा मोहनराय, भवानीफेर यादव तथा ब्लाक प्रमुख रहे कृष्ण कुमार तिवारी की हत्या के मामले में मित्रसेन यादव नामजद हुए इन तमाम प्रकरणों के बाद भी पिता के नक्शेकदम पर ही पुत्र आनंदसेन सियासत के पहले ही पायदान पर पहुचते ही जरायम में फंस गए ये दरोगा मोहनराय व भवानीफेर हत्याकांड में सह अभियुक्त बनाए गए राजनैतिक सफर में आनंदसेन ने पहला चुनाव सुल्तानपुर के इसौली क्षेत्र से लड़ा। वहां से हारने के बाद मिल्कीपुर विधानसभा का चुनाव वर्ष 2002 में लड़ा और जीते। इसके बाद उन्होंने सपा की सदस्यता छोड़ी और बसपा में शामिल हुए, तो उनकी न सिर्फ विधायकी गई, बल्कि उपचुनाव में उन्हें धुरविरोधी रामचंद्र यादव से हार का सामना भी करना पड़ा। 2007 के विधानसभा चुनाव में वह बसपा के टिकट पर दोबारा विधायक बने। सरकार बनने के बाद उन्हें खाद्य एवं प्रसंस्करण राज्य मंत्री भी बनाया गया इसी वर्ष आनंदसेन को प्रेमिका शशि के अपहरण व हत्या के मामले में आरोपित किया गया। सियासी घमासान के बीच पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के मामले को सदन में उठाने के बाद मामला गर्म हुआ और आनंदसेन को मंत्री पद छोड़ना पड़ा। शशि के परिवार के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि वे उसकी लाश भी नहीं देख पाए। हत्यारों ने उसे इस काबिल भी नहीं छोड़ा बताते हैं कि किसी मनहूस घड़ी में सीमा आजाद ने ही शशि का परिचय आनंदसेन से कराया था ,जल्द ही शशि सांसद मित्रसेन यादव के बेटे आनंदसेन के साथ मंच पर दिखने लगी, अपने चुनाव के वक्त तो आनंदसेन सलाखों के पीछे था लेकिन शशि ने उसकी जीत सुनिश्चित करने के लिए खूब मेहनत की थी, जेल की सींखचों में रहते हुए ही 2007 में आनंदसेन ने बसपा केटिकट पर जीत हासिल की बाद में सीएम ने आनंदसेन को प्रदेश में मंत्री बना दिया लेकिन इसकेबाद शशि के लिए मुश्किलें शुरू हुईं और आनंदसेन के साथ उसका तालमेल गड़बड़ाने लगा।
और एक दिन वह लापता हो गई। साकेत महाविद्यालय में कानून की छात्रा शशि के लापता होने को शुरू में पुलिस ने बेहद हल्के तरीके से लिया इसकी एक वजह यह भी थी कि उस पर सत्ता का दबाव था। प्रदेश के एक मंत्री की करीबी छात्रा के गायब होने के मामले में पुलिस की सक्रियता उसे महंगी पड़ सकती थी, लिहाजा वह गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज कर चुप्पी साधने में ही भलाई समझती रही। शशि के पिता योगेंद्र प्रसाद की फरियाद पर भी पुलिस अफसरों की नींद नहीं खुली, केस को गुमशुदगी से अपहरण का मामला बनने में हफ्ता गुजर गया, लेकिन मामले में यू टर्न तब आया जब चार नवंबर को शशि के पिता ने खुले तौर पर इसकेपीछे सूबे के तत्कालीन खाद्य प्रस्संकरण राज्य मंत्री व मिल्कीपुर के बसपा विधायक आनंदसेन की साजिश करार दिया।
प्रमुख विपक्षी दल सपा ने मामले को लपक लिया और विधानसभा में पुलिस व सत्ताधारी दल पर मंत्री को बचाने का आरोप लगा कर हलचल मचा दी, काॉलेज छात्रा और मंत्री के संबंधों की कहानी से जुड़े इस मामले में सियासी तड़का लगने के बाद प्रकरण हाई प्रोफाइल हो गया और मंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। यह बात इलाके में आम थी कि दलित छात्रा शशि का मंत्री आनंदसेन के साथ करीबी रिश्ता था और उसकेपरिवार केसदस्य भी मंत्री परिवार के करीब माने जाते थे।
घटना के मुताबिक 22 अक्तूबर 2007 को साकेत कालेज में एलएलबी छठवें सेमेस्टर की छात्रा 24 वर्षीय शशि अपने छात्रवृत्ति के खाते से रुपये निकालने इलाहाबाद बैंक आई थी और दोपहर में उसने बैंक शाखा से 700 रुपए निकाले, मगर देर शाम तक वापस घर नहीं पहुंची तो परिवार ने खोजबीन की उसी दौरान रानोपाली निवासी शशि की सहेली ने परिजनों को बताया कि उसे एक सिलेटी कलर की एक वैगन आर कार से फैजाबाद की ओर जाते देखा गया है, कोई सुराग न मिलने पर पिता ने सारी बात आनंदसेन को सर्किट हाउस फोन कर बताई, मगर मंत्री ने स्टाफ मौजूद न होने का हवाला देकर अगले दिन के लिए टाल दिया योगेंद्र प्रसाद खुद जाकर आनंदसेन से मिले। आनंदसेन ने पुलिस को फोन किया तो पुलिस ने योगेंद्र की तहरीर पर गुमशुदगी की रिपोर्ट अयोध्या कोतवाली में 23 नवंबर की शाम आठ बजे दर्ज की ,गुमशुदगी दर्ज होने के बाद योगेंद्र प्रसाद मंत्री आनंदसेन व उसके पिता पूर्व सांसद मित्रसेन यादव से अपनी पुत्री की तलाश के लिए गिड़गिड़ाते रहे, मगर बहानेबाजी की जाती रही, वहीं शशि की छोटी बहन ने फोन पर शशि की ओर से किसी की लालबत्ती उतरवा लेने की धमकी संबंधी बातचीत की जानकारी घरवालों को दी तो परिजनों का माथा ठनका पिता ने अफसरों से मुलाकात कर अपहरण में आनंदसेन के ड्राइवर विजयसेन यादव व सीमा आजाद का हाथ होने का आरोप लगाया। अपनी बहन विमलेश के साथ आरोपी सीमा आजाद जांच अधिकारी और सीओ अयोध्या से मिली और इनायतनगर के तत्कालीन एसओ ने मुख्य आरोपी विजयसेन यादव को लाकर सीओ के हवाले किया, मगर दोनों को ही छोड़ दिया गया।
प्रकरण में फंसता देख विजयसेन ने 31 अक्तूबर को बीकापुर कोतवाली में एक हत्या के मामले में सरेंडर कर जेल की राह पकड़ ली। इसी दिन मंत्री के फोन पर पुलिस में शशि के अपहरण की रिपोर्ट उनके खास विजयसेन व सीमा आजाद के खिलाफ दर्ज हुई। रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने जेल जाकर विजयसेन का बयान लिया, मगर जांच ढीली ढाली ही रही, परिजनों को पूरे मामले में आनंदसेन की भूमिका पर भी संदेह होने लगा, अदालत ने मुख्य आरोपी विजयसेन यादव की नार्को जांच का आदेश दिया और जांच रिपोर्ट आने के बाद पुलिसिया शिकंजा कसते देख विधायक आनंदसेन ने लखनऊ में ही पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। तब से सत्ता सुख से वंचित बसपा विधायक जेल में बंद थे अन्य आरोपी सीमा आजाद को पुलिस ने कानपुर से गिरफ्तार कर जेल भेजाथा वह अदालत से जमानत पर बाहर थी। वहीं, बसपा विधायक आनंदसेन व मुख्य आरोपी विजयसेन को अभी तक जमानत नहीं मिल पाई थी अब तो इन्हे दोहरी उम्रकैद भी सजा भुगतनी है।

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