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शहडोल। जिले में संचालित संस्कृत बोर्ड स्कू लों के न कहीं भवन है और न उनका पृथक से कोई स्टाफ है । विद्यार्थी भी नहीं पाए गए। ऐसे सभी विद्यालय कागजों पर अंकित हैं। इस बात का खुलासा तब हुआ, जब केन्द्र सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ने हाई स्कूल व हजार सेकेण्डरी स्तर की निजी व सरकारी सभी स्कूलों में एक रूपता स्थापित करने, स्कूलों की मैङ्क्षपग कराई। मजे की बात यह है कि इस वर्ष की बोर्ड परीक्षाओं में नियमित छात्रों के रूप में करीब 15 सौ विद्यार्थी शामिल हुए। आखिर यह विद्यार्थी कहां से आ गए?
रिकार्ड में दर्ज संख्या के हिसाब के करीब दो सौ स्कूलेां की मैंपिग की जानी थी। जब दल ने विद्यालयों का भौतिक सत्यापन शुरू किया तो उसे कुल 176 स्कूलेंं ही संचालित होती मिली । 16 की संख्या में संचालित बताई जा रही संस्कृत स्कूलें कहीं नहीं पाई गई।
सूत्रों ने बताया कि शिक्षा अधिकारी ने मान्यता देने के बाद इन स्कूलों की कभी जांच पड़ताल नहीें की। निजी स्कूलों के संचालक मनमानी करते रहे और शिक्षा देने के नाम पर अपनी दुकानें चलाते ।
संस्कृत स्कूलों के पाठ्यक्रमों में इतिहास, महाभारत रामायण, उपनिषद तथा भारतीय संस्कृत के मौलिक तत्व तथा वेद रीति आदि का भी अध्ययन करना अनिवार्य बताया गया है । संस्कृत पर आधारित इन विषयों का अध्यापन करने जब प्रदेश भर में शिक्षकों का अभाव है तब इस जिले की स्कूलों ने शिक्षकों की व्यवस्था आखिर कहां से की? सह समझ के परे है।
मानव संसाधन मंत्रालय की मंशानुरूप पूरे देश की निजी व शासकीय स्कूलों में ढाचागत एकरूपता स्थापित करने उनकी अधोसंरचना व मूल स्थिति के लिए सर्वे मैंपिग कराई गई थी । इसमें यह पता लगायां गया था कि स्कूल कब से संचालित है, उसका स्टाफ कितना है, भवन की स्थिति और छात्र संख्या कितनी है। पूर्व में विद्यालय की स्थिति क्या थी? विद्यालय में सुविधाए क्या है और उसकी प्रगति कै से हुई । यह रिपोर्ट 25 पृष्ठों के प्रपत्र में भेजी गई है 9वीं से 12 वीं तक के प्रत्येक विद्यालय में कम्पयूटर लैब अनिवार्य किया गया है जिसमें 25-25 कम्प्यूटर सेट होने और उन्हें हाईस्पीड ब्राड बैण्ड सुविधा से जोड़ा जाना अनिवार्य किया गया है। जो विद्यालय यह सुविधा नहीं दे सकेंगें। उनकी मान्यता समाप्त कर सरकार उन्हेें अपनें हाथोंं में ले लेगी।
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