डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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कोई पुरानी पत्नी को मजा रहित बतलाये या कोई किसी की पत्नी को पचास करोड़ गर्लफ्रेंड कहे| चाहे कोई किसी को बन्दर कहे! चाहे कोई राम को अयोग्य पति कहे या कोई राधा को रखैल| चाहे कोई दाऊद और विवेकानंद को एक तराजू में तोले या कोई मंदिरों से शौचालयों को पवित्र बतलाये! इन सब अनर्गल बातों को रोक पाना अब लगभग मुश्किल सा हो गया है! क्योंकि हम ही लोगों ने दुष्टों को महादुष्ट और महादुष्टों को मानव भक्षक बना दिया है और इन सभी के आगे हम और हमारे तथाकथित संरक्षक जनप्रतिनिधी पूंछ हिलाते देखे जा सकते हैं|
बचपन से एक ही बात सुनता आया हूँ कि पढलिखकर इंसान बनों, नहीं तो गंवार के गंवार ही रह जाओगे| इसलिये जीवन की तंग गलियों में से जैसे-तैसे रास्ते बनाकर पढाई की| पढलिखकर जब अधिक पढेलिखे लोगों के बीच उठना-बैठना शुरू किया तो पाया कि इन अधिक पढेलिखे लोगों से अनपढ लोग कई सौ गुने बेहतर हैं| लेकिन दु:ख कि उस वक्त तक और सम्भवत: अभी भी गाँवों के अनपढ, किन्तु सज्जन लोगों को इस बात का पूरा-पूरा ज्ञान नहीं है कि अनपढ लोगों की तुलना में अधिकतर पढेलिखे लोग अधिक क्रूर, अधिक दुष्ट, अधिक मक्कार, अधिक हिंसक, अधिक निर्दयी, अधिक अन्यायी, अधिक बदमाश, अधिक असंवेदनशील, अधिक भ्रष्ट, अधिक लम्पट, अधिक अत्याचारी और अधिक दंभी होते हैं|
जैसे ही मुझे पढे लोगों के उक्त सदगुणों का पता चला, या कहो कि ज्ञान हुआ, मैंने अपने आलेखों और वक्तव्यों में सार्वजनिक रूप से लिखना और कहना शुरू कर दिया कि ‘‘बुजुर्गों की बात मानी, कि शिक्षा सभी सुसंस्कारों की जननी है, लेकिन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार तो केवल शिक्षित लोगों की करनी है|’’ मैं पिछले बीस वर्ष से इस बात को कहता और लिखता आ रहा हूँ| अनेक अधिक पढेलिखे लोग (जो उच्चतम पदों पर आसीन हैं) इस कारण मुझसे नाराज भी होते रहे हैं, लेकिन मैं बिना उनके विरोध या उनकी नाराजी की परवाह किये, आज फिर से इस बात को दोहराना चाहता हूँ कि ‘‘बुजुर्गों की बात मानी, कि शिक्षा सभी सुसंस्कारों की जननी है, लेकिन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार तो केवल शिक्षित लोगों की करनी है|’’ अब तो मैं यहॉं तक कहने को तैयार हूँ कि कुछ फीसदी या कहो मुठ्ठीभर पढेलिखों को छोड़कर अधिकतर पढे लिखे कदम-कदम पर निकृष्टतम व्यवहार करते देखे जा सकते हैं|
उच्च पदों पर बैठे जिन बड़े लोगों (अफसरों और जनप्रतिनिधियों) से हम उच्च आदर्श, नैतिकता या आम जनता के कल्याण या उत्थान की उम्मीद करते हैं, वे इसके ठीक विपरीत आचरण करते देखे जाते हैं| जितना बड़ा पद उतनी बड़े गैर कानूनी और अनैतिक कार्य करने की हिम्मत इन लोगों में देखी जा सकती है| आश्चर्य तो इस बात का है कि हम आम लोग इन दुष्टों के इस प्रकार के दुराचरण को चुपचाप सहते रहते हैं, जिसके चलते ये दुष्ट, दुष्ट से महादुष्ट बनते चले जा रहे हैं|
आज जबकि राजनेताओं के अस्तरीय, घटिया और निंदनीय बयान लगातार सामने आ रहे हैं तो देशभर के लोग हायतौबा मचा रहे हैं, लेकिन पहली बार जब किसी नेता या अफसर ने घटिया भाषा का इस्तेमाल किया था, उस वक्त हम क्यों चुप रहे? आज हम और हमारा व्यावसायिक मीडिया चिल्ला रहा है, लेकिन अब कुछ होने वाला नहीं है| अब तो बात बहुत आगे निकल चुकी है| चाहे कोई पुरानी पत्नी को मजा रहित बतलाये या कोई किसी की पत्नी को पचास करोड़ गर्लफ्रेंड कहे| चाहे कोई किसी को बन्दर कहे! चाहे कोई राम को अयोग्य पति कहे या कोई राधा को रखैल| चाहे कोई दाऊद और विवेकानंद को एक तराजू में तोले या कोई मंदिरों से शौचालयों को पवित्र बतलाये! क्योंकि इन सब अनर्गल बातों को रोक पाना अब लगभग मुश्किल सा हो गया है! हम ही लोगों ने दुष्टों को महादुष्ट और महादुष्टों को मानव भक्षक बना दिया है और इन सभी के आगे हम और हमारे तथाकथित संरक्षक जनप्रतिनिधी पूंछ हिलाते देखे जा सकते हैं|
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के सबसे बड़े वकील रामजेठमलानी द्वारा राम और लक्ष्मण के बारे में असंवेदनशील टिप्पणी करने पर बबेला मचाने से क्या होने वाला है? उन्होंने तो जिस नीरस कानून को गहराई से पढ़ा है, उसी की शैली में तर्क और तथाकथित निष्पक्ष निष्ठुरता की कसौटी पर कसकर वही कड़वा सत्य तो कहने का दुस्साहस किया है, जो मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर मत्था टेककर लालाकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान में जाकर कहा था! इसमें विस्मय या आश्चर्य की कोई बात नहीं है!
दूसरी बात ये भी विचारणीय है कि आज के भारत और भारत के नेताओं का चरित्र भारतीय समाज का ही तो असली दर्पण है| दर्पण कभी झूंठ नहीं बोलता! पिछले साठ-पैंसठ सालों में हमारा समाज कहॉं से कहॉं पहुँच गया है? आजादी के समय एक भारतीय स्त्री पराये मर्द की छाया पड़ने को भी पाप समझती थी, जबकि आज अपनी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट को अच्छी लिखवाने जैसे तुच्छ कार्य के लिये खुद पतिदेव ही अपनी पत्नियों को अपने बॉस को सौंपने में संकोच नहीं करते हैं! केवल एक रात्री के मजे के लिए पत्नियों की अदला-बदली की जाती है! पार्षद, विधायक या सांसद का टिकिट पाने के लिये कितने अनैतिक कुकृत्य पर्दे के पीछे होते हैं? ये बात अब किसी से छिपी नहीं रह गयी है!
गुजरात में गरबा नृत्य जिसे डांडिया रास भी कहा जाता है के दौरान इतनी संख्या में कुंवारी लड़कियां गर्भवती होती हैं कि गरबा रास समाप्त होने के एक दो माह बाद गर्भपात क्लीनिकों पर गर्भपात करवाने वाली स्त्रियों का प्रतिशत कई सौ गुना बढ जाता है! ये तो तब जबकि हर नुक्कड़ पर गर्भनिरोधक साधन आसानी से उपलब्ध हैं! भारत सरकार द्वारा भी आधिकारिक रूप से इस दौरान गर्भ निरोधक गोलियों की विशेष आपूर्ति की जाकर, आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है! इन हालातों में रामजेठमलानी के राम के चरित्र के बारे में दिया गए बयान पर देशभर में मचाये जा रहे हो-हल्ला से महान भारत देश की महान संस्कृति या हिन्दू धर्म की सत्ता को बचा पाना अब असंभव और अप्रासंगिक सा लगने लगा है!
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