Tuesday, November 20, 2012

मध्य प्रदेश जनसंपर्क (न्‍यूज..12 ) सरकारी मीडिया तंत्र ध्वस्त


औंधे घड़ों पर डाल गए शिवराज पानी 

भोपाल से विनय डेविड की जोड़-तोड़ रिपोर्ट...
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मध्य प्रदेश सरकार की दिनों दिन गिरती छवि शिवराज सरकार के लिए मुसीबत बन चुकी है। पिछले दिनों हुई समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री की छवि बनाने वाले जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों पर शिवराज के तीखे तेवर देखने को मिले। मुख्यमंत्री ने साफतौर पर अधिकारियों को चेतावनी देते हुए कहा कि विभाग मेरी छवि से पहले अपनी छवि सुधारे। गौरतलब है कि जनसंपर्क विभाग में भ्रष्टाचार को लेकर बातें मुख्यमंत्री तक समय समय पर पहुंचती रही है। किन्तु इन सबमें असहाय दिखने वाले मुख्यमंत्री ने गुस्से में मीटिंग में मौजूद चपरासी को भी नहीं बक्शा?

जनसंपर्क विभाग करता क्या है?

मेरा जनसंपर्क अधिकारी कौन है? ...दिल्ली में मेरी व सरकार की छवि कौन देखता है?... ये माध्यम क्या है? लग रहा था कि मुख्यमंत्री 20-20 क्रिकेट की भांति आज सारे विभाग की बिन्दुवार गिल्लियां उड़ा देंगें।
मीडिया और मुख्यमंत्री की चाहत?
मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर है ऐसे में अधिकारियों का कहना है कि जनसंपर्क विभाग क्या कर सकता है? सरकार का सच सामने लाना मीडिया की जिम्मेदारी है और मीडिया अपने दायित्व का निर्वहन कर रहा है। सरकार की बदनामी की वजह भी सरकार, मंत्रियों के कार्यकलाप ही है। ऐसे में जनसंपर्क विभाग का क्या दोष है? यह तर्क हैं दबी जबान में अधिकारियों के. आज तक मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल में एक भी अधिकारिक प्रेस कांफ्रेस कर मीडिया से मुखातिब नहीं हुए है? मीडिया से सीधे संवाद न होना भी इसका एक कारण हो सकता है? किन्तु मुख्यमंत्री की चाहत है कि सरकार जो चाहे, मीडिया वही छापे?

बेवसाइट और फीचर एजेन्सी पर रोक?

नयी जनसंपर्क नीति बनाकर चुनाव समय में वाहवाही लूटने का प्रयास करने वाले मुख्यमंत्री ने अपनी जनसंपर्क नीति पर स्वयं ही सवाल खड़े कर दिए है? जहाँ एक ओर भारत सरकार के विभाग वेब जर्नलिस्म को मान्यता दी हैं वहीं मध्यप्रदेश में बेवसाइट और फीचर एजेन्सी के कार्यों में रोक लगाना क्या मुख्यमंत्री की हताशा का परिणाम है? गौरतलब है कि सरकार के भ्रष्टाचार से जुड़े कई मामले समय समय पर विभिन्न समाचार बेवसाइट ने ही उजागर किये है। और कई मीडिया मामलों का पर्दाफाश भी किया है। ऐसे में एक तथाकथित पत्रकारों की गेंग के वशीभूत शिव राज ने सारा गुस्सा वेबसाइट व फीचर एजेंसी की सेवाए बंद कर शांत किया।

बड़ा सवाल- क्या शिवराज का मीडिया तंत्र लडख़ड़ाया?

मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार कुनबे में महेश श्रीवास्तव, गिरिजाशंकर जैसे वरिष्ठ पत्रकारों का साथ है और दिल्ली का मीडिया प्रबंधन नरसिम्हन के हाथों है। ऐसे में सरकार व मुख्यमंत्री की मीडिया में छवि विपरीत क्यूँ? मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकारों के बारे में मीडिया जगत में ओपिनियन किसी से छिपी नहीं है। गिरिजाशंकर पूर्व में कांग्रेस शासन काल में दिग्विजय सिंह व अजित जोगी व छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह के भी मीडिया सलाहकार रह चुके है। सूत्रों की माने तो मीडिया सलाहकारों मे से कोई भी व्यक्ति संघ विचारधारा के समीप नहीं है। भारत का सबसे तेजी से बढ़ता अखबार भी समय समय पर सरकार को आईना दिखता है। दिल्ली में भी लगातार म.प्र. के कुपोषण व मिड डे मिल की विपरीत रिपोर्ट से सरकार की छवि को लेकर मुख्यमंत्री परेशान है ढीली प्रशासनिक पकड़ व मीडिया में सरकार का विपरीत प्रस्तुतिकरण मुख्यमंत्री को तंग किये रहता है। मुख्यमंत्री का मीडिया से सीधा संवाद न होना भी उनकी साख पर बट्टा लगाता है? ऐसे में बढ़ा सवाल है क्या मीडिया में मुख्यमंत्री को चाहने वाला कोई नहीं?

जनसंपर्क बड़ा या माध्यम 

मूलत: जनसंपर्क विभाग की सब्सिडरी के रूप में कार्य करने वाली संस्था मध्य प्रदेश माध्यम की कार्य प्रणाली को मुख्यमंत्री ने आड़े हाथों लिया। 1983 में फर्म्स एवं सोसाइटी एक्ट में रजिस्टर्ड संस्था के वर्तमान अतिरिक्त प्रबंध संचालक प्रकाश गौड़ हैं एमपी एग्रो से शुरू हुआ उनका सफर तत्कालीन जनसंपर्क मंत्री चरण दास महंत की चरण वंदना से होता हुआ यहाँ तक पंहुचा है। माध्यम मूलतरू सरकार के बेहतर कार्यकलापों की डिजाईन, ले आउट, किताब, जिंगल्स, फिल्मों के बेहतर निर्माण का कार्य करता है। किन्तु पिछले कुछ वर्षों से इस संस्था में कॉर्पोरेट कल्चर का माहौल है जिस पर सरकार के करोड़ों रूपये खर्च किये गए हैं। सूत्रों से पता चला है कि माध्यम के इस कार्यालय में हाल ही में एक जिम का निर्माण कार्य भी कराया गया है। जो समझ से परे है?

सरकारी विभागों से 10: कमीशन एवं समाचार पत्रों से 15

कमीशन के रूप में यह संस्था लेती है विभागों से मुख्य सचिव के नाम के आदेश का पत्र दिखाकर विज्ञापन प्रिंटिंग का सारा कार्य दबाव में माध्यम द्वारा किया जाता है। गौरतलब है कि यह सारा कार्य माध्यम द्वारा भी आउट सौर्स ही किया जाता है चूँकि संस्था मे सम्बंधित एक्सपर्ट मौजूद नहीं है। इस संस्था के अपर प्रबंध संचालक प्रकाश गौड़ मुख्यमंत्री के किसी भी प्रश्न का संतोषजनक उत्तर न दे सके। मुख्यमंत्री की तल्ख टिपण्णी दलाली की दुकान सबकुछ बयां करती है। बैठक में लगे हाथ उन्होंने मध्यप्रदेश माध्यम को बंद करने की नसीहत भी दे डाली। जनसंपर्क के अधिकारियों को उनके अधीनस्थ कर्मचारियों के सामने आड़े हाथों लेना अधिकारियों को मुख्यमंत्री के कड़वे प्रवचन ही लगे। जनसंपर्क के मलाईदार विज्ञापन विभाग का जिम्मा संभालने वाले अतिरिक्त अपर संचालक लाजपत आहूजा खींसे निपोरते नजर आये। इस विज्ञापन शाखा को वे सन 1993 से देख रहे है।


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