मध्यप्रदेश जनसंपर्क आरएसएस के रंग में रंगा
भोपाल. मध्यप्रदेश जनसंपर्क पूरी तरह से आरएसएस के रंग में रंगता जा रहा है. न केवल उसके रंग रूप में भगवा भारी हो चला है बल्कि अब अंदरखाने में विज्ञापन के मामले में भी उन्हीं वेबसाइटों को तरजीह दी जा रही है जिनके ऊपर भगवा रंग चढ़ा है. अब विज्ञापन के लिए बाकायदा आरएसएस की सहमति वाला सर्टिफिकेट लाना जरूरी हो गया है.
देश के हिन्दीभाषी राज्यों में फिलहाल मध्य प्रदेश जनसंपर्क ही एकमात्र ऐसा जनसंपर्क है जो वेबसाइटवालों से संपर्क में रहता है. अभी तक जनसंपर्क पर आरोप लगता था कि वहां बैठे श्कमीशनखोरश् अपनी अपनी पसंद की वेबसाइटों को विज्ञापन दिलाते हैं. शिकायतें इतनी बढ़ गई कि मीडिया मामलों में विशेष रूचि रखनेवाले मध्य प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा ने हस्तक्षेप किया. न सिर्फ हस्तक्षेप किया बल्कि अपनी पसंद के एक व्यक्ति लाजपत आहूजा को जनसंपर्क में विज्ञापन और जनसंपर्क का प्रभार भी दिलवा दिया. लाजपत आहूजा अपने आपको आरएसएस का समर्पित वर्कर बताते हैं और मिलनेवालों को आरएसएस के करीबी होने का किस्सा भी सुनाते हैं.
इसके बाद अगले चरण में मध्य प्रदेश और लखनऊ दिल्ली की कुछ वेबसाइटों को मीडिया चौपाल के बहाने भोपाल बुलाया गया. दिनभर की मीटिंग हुई. इस मीटिंग में जो जो वेबसाइट संचालक शामिल हुए थे उन्होंने अपनी आर्थिक बदहाली बताई. हालांकि इस मीटिंग से कुछ महत्वपूर्ण वेबसाइटों के संचालक दूर ही रहे लेकिन जो आये उसमें ज्यादातर आरएसएस के समर्थक थे, या यह भी कह सकते हैं कि उन्हीं को बुलाया गया जो ष्विचारधाराष् के लिए काम करने को प्रतिबद्ध थे.
इस मीटिंग की कहानी तो अलग लेकिन इस मीटिंग के बाद बिना डाक की एक चिट जनसंपर्क पहुंची है. यह चिट कोई सरकारी नोटशीट का हिस्सा तो नहीं है लेकिन इसकी अहमियत किसी सरकारी नोटशीट से ज्यादा है. बताते हैं कि खुद सीपीआर महोदय इस चिट का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. चिट क्या यह एक लिस्ट है जिसमें कुछ वेबसाइटों के नाम भेजे गये हैं. अब खबर है कि यह लिस्ट जनसंपर्क विभाग पहुंचा दी गई है जिसे एक बार फिर प्रभात झा के करीबी व्यक्ति ने तैयार किया है. चिट के साथ मौखिक संदेश यह भेजा गया है कि जो जो वेबसाइटें इसमें शामिल हैं उन्हें एक निश्चित रकम अदा की जाएगी.
इस लिस्ट को तैयार करने के पीछे लंबी अवधि की योजना क्या है यह तो पता नहीं चल पाया है लेकिन इस लिस्ट को लेकर जनसंपर्क में काफी गहमा गहमी है. जिस जनसंपर्क में एकबार को संबंधित मंत्री की चिट्ठी को भी किनारे रख दिया जाता है उस जनसंपर्क में इस चिट को इतना महत्वपूर्ण क्यों मान लिया गया है? वही लाजपत आहूजा इस लिस्ट को प्रभारी मत्री की चिट्ठी से ज्यादा अहमियत दे रहे हैं जिनकी नियुक्ति में प्रभात झा का बहुत बड़ा रोल रहा है. उम्मीद है कि इस लिस्ट के अनुसार ही अगले कुछ दिनों में जनता का पैसा प्रभात झा समर्थक उन वेबसाइटों को बांटना शुरू कर दिया जाएगा जिसमें से एक दो के संचालक खुद प्रभात झा के कर्मचारी रह चुके हैं.
इस तरह, अब मध्य प्रदेश जनसंपर्क की नई अघोषित विज्ञापन नीति यह बन गई है कि उन्हीं वेबसाइटों को विज्ञापन दिया जाएगा जो विचारधारा को आगे बढ़ायेंगी और प्रदेश में बतौर नेता प्रभात झा को प्रोजेक्ट करेंगे.
(मीडिया खबर डॉट काम से साभार)।
भोपाल. मध्यप्रदेश जनसंपर्क पूरी तरह से आरएसएस के रंग में रंगता जा रहा है. न केवल उसके रंग रूप में भगवा भारी हो चला है बल्कि अब अंदरखाने में विज्ञापन के मामले में भी उन्हीं वेबसाइटों को तरजीह दी जा रही है जिनके ऊपर भगवा रंग चढ़ा है. अब विज्ञापन के लिए बाकायदा आरएसएस की सहमति वाला सर्टिफिकेट लाना जरूरी हो गया है.
देश के हिन्दीभाषी राज्यों में फिलहाल मध्य प्रदेश जनसंपर्क ही एकमात्र ऐसा जनसंपर्क है जो वेबसाइटवालों से संपर्क में रहता है. अभी तक जनसंपर्क पर आरोप लगता था कि वहां बैठे श्कमीशनखोरश् अपनी अपनी पसंद की वेबसाइटों को विज्ञापन दिलाते हैं. शिकायतें इतनी बढ़ गई कि मीडिया मामलों में विशेष रूचि रखनेवाले मध्य प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा ने हस्तक्षेप किया. न सिर्फ हस्तक्षेप किया बल्कि अपनी पसंद के एक व्यक्ति लाजपत आहूजा को जनसंपर्क में विज्ञापन और जनसंपर्क का प्रभार भी दिलवा दिया. लाजपत आहूजा अपने आपको आरएसएस का समर्पित वर्कर बताते हैं और मिलनेवालों को आरएसएस के करीबी होने का किस्सा भी सुनाते हैं.
इसके बाद अगले चरण में मध्य प्रदेश और लखनऊ दिल्ली की कुछ वेबसाइटों को मीडिया चौपाल के बहाने भोपाल बुलाया गया. दिनभर की मीटिंग हुई. इस मीटिंग में जो जो वेबसाइट संचालक शामिल हुए थे उन्होंने अपनी आर्थिक बदहाली बताई. हालांकि इस मीटिंग से कुछ महत्वपूर्ण वेबसाइटों के संचालक दूर ही रहे लेकिन जो आये उसमें ज्यादातर आरएसएस के समर्थक थे, या यह भी कह सकते हैं कि उन्हीं को बुलाया गया जो ष्विचारधाराष् के लिए काम करने को प्रतिबद्ध थे.
इस मीटिंग की कहानी तो अलग लेकिन इस मीटिंग के बाद बिना डाक की एक चिट जनसंपर्क पहुंची है. यह चिट कोई सरकारी नोटशीट का हिस्सा तो नहीं है लेकिन इसकी अहमियत किसी सरकारी नोटशीट से ज्यादा है. बताते हैं कि खुद सीपीआर महोदय इस चिट का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. चिट क्या यह एक लिस्ट है जिसमें कुछ वेबसाइटों के नाम भेजे गये हैं. अब खबर है कि यह लिस्ट जनसंपर्क विभाग पहुंचा दी गई है जिसे एक बार फिर प्रभात झा के करीबी व्यक्ति ने तैयार किया है. चिट के साथ मौखिक संदेश यह भेजा गया है कि जो जो वेबसाइटें इसमें शामिल हैं उन्हें एक निश्चित रकम अदा की जाएगी.
इस लिस्ट को तैयार करने के पीछे लंबी अवधि की योजना क्या है यह तो पता नहीं चल पाया है लेकिन इस लिस्ट को लेकर जनसंपर्क में काफी गहमा गहमी है. जिस जनसंपर्क में एकबार को संबंधित मंत्री की चिट्ठी को भी किनारे रख दिया जाता है उस जनसंपर्क में इस चिट को इतना महत्वपूर्ण क्यों मान लिया गया है? वही लाजपत आहूजा इस लिस्ट को प्रभारी मत्री की चिट्ठी से ज्यादा अहमियत दे रहे हैं जिनकी नियुक्ति में प्रभात झा का बहुत बड़ा रोल रहा है. उम्मीद है कि इस लिस्ट के अनुसार ही अगले कुछ दिनों में जनता का पैसा प्रभात झा समर्थक उन वेबसाइटों को बांटना शुरू कर दिया जाएगा जिसमें से एक दो के संचालक खुद प्रभात झा के कर्मचारी रह चुके हैं.
इस तरह, अब मध्य प्रदेश जनसंपर्क की नई अघोषित विज्ञापन नीति यह बन गई है कि उन्हीं वेबसाइटों को विज्ञापन दिया जाएगा जो विचारधारा को आगे बढ़ायेंगी और प्रदेश में बतौर नेता प्रभात झा को प्रोजेक्ट करेंगे.
(मीडिया खबर डॉट काम से साभार)।
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