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भोपाल । खेती किसानी और पशुपालन के लिए कर्ज लेने वाले किसानों के खेतोंं की अपने लोगों को उपकृत करने के लिए औने-पौने दामों में नीलामी करने वाले भूमि विकास बैंक व सहकारिता विभाग के तत्कालीन अफसर धोखाधड़ी के मकड़झाल में उलझ गए हैं। हालात यह है कि उन्हें अब न्यायालय से जमानत पाने के लाले पड़ गए हैं। इनमें से कुछ अधिकारी तो ऐसे हैं, जिन पर दो-दो दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। इन अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस द्वारा शिकंजा कसा जाता उसके पहले ही पीडि़तों ने न्यायालय में याचिकाएं दायर कर दी थीं।
भूमि विकास बैंक की जिले की विभिन्न शाखाओं से करीब 16 सौ किसानों को जमीन की रजिस्ट्री के आधार पर अलग-अलग मदों में ऋण आवंटित किए थे। कुछ किसान ऋण की राशि की अदाएगी कर चुके थे, लेकिन भूमि विकास बैंक के तत्कालीन अफसरों ने राज्य सहकारी बैंक तथा जिला सहकारिता के अधिकारियों के साथ वर्ष 1998 से 2003 के बीच कई किसानों की जमीन नीलाम करा दी। बैंक अफसरों ने सहकारिता विभाग के अफसरों को विक्रय अधिकारी बनाकर जमीन नीलाम कराई। जमीनों की रजिस्ट्री के बाद क्रेताओं ने नामांतरण के साथ जमीनों पर कब्जा करना चाहा, लेकिन किसानों ने कब्जा नहीं दिया।
इसके बाद क्रेताओं की तरह न्यायालय में अपील की गई। न्यायालय ने प्रथम दृष्टया तो पाया कि क्रेताओं के साथ गलत हुआ है, लेकिन जब किसानों ने याचिकाओं के माध्यम से अपना पक्ष रखा तो न्यायालय ने माना कि किसानों की जमीनों की गलत तरीके से रजिस्ट्री कराई गई है। इस पर न्यायालय द्वारा कुछ मामलों में आदेश दिया गया कि रजिस्ट्री निरस्त कराकर उनका मालिकाना हक किसानों को दिलाया जाए और नीलामी की राशि के्रताओं को वापस कराई जाएगी।
124 मामले किए गए दर्ज
वर्ष 2008 में किसानों द्वारा लोकायुक्त संगठन में जमीन रजिस्ट्री फर्जीवाड़ा की शिकायतें की गईं। करीब पौने दो सौ किसानों द्वारा शिकायतें की गईं। इन शिकायतों की जांच के बाद वर्ष 2013-14 में करीब 124 अलग-अलग धोखाधड़ी के प्रकरण दर्ज किए गए। इनके अनुसंधान के बाद संबंधित विभाग से अभियोजन की स्वीकृति मांगी गई। जिन मामलों में शासन से अभियोजन की स्वीकृति मिली, ऐसे करीब 80 मामलों में अब तक विशेष न्यायालय में चालान पेश किए जा चुके हैं, जबकि कुछ चालान पेंडिंग हैं तो अन्य मामले फिलहाल अनुसंधान में हैं।
इन अफसरों के खिलाफ दर्ज हुए मामले
भूमि विकास बैंक के तत्कालीन अधिकारी विजेन्द्र कौशल, वीके देवल, राज्य सहकारी बैंक के तत्कालीन महाप्रबंधक नंदन ठाकुर, अनीस अहमद अंसारी, सहकारिता के संयुक्त संचालक, उप संचालक आरएस गर्ग, अशोक मिश्रा, बीएस वास्केल, एपीएस कुशवाह, हरिहर प्रसाद मिश्रा आदि अधिकारियों की जमीन नीलामी फर्जीवाड़ा में अहम भूमि जांच में सामने आई हैं। उपरोक्त तत्कालीन अधिकारियों समेत करीब एक दर्जन ऐसे अधिकारी हैं, जिन्हें बीस से तीस मामलों में आरोपी बनाया गया है। तीनों ही विभागों में जमीन नीलामी की समयावधि में पदस्थ अधिकांश अफसर सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सेवानिवृत्त अफसरों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति की शासन से अनुमति की भी आवश्यकता नहीं। न्यायालय में चालान पेश करने के बाद आरोपियों को जमानत कराना पड़ी रही है। एक से अधिक मामलों में जो आरोपी हैं, उन्हें जमानत के लिए जमीन की रजिस्ट्री उपलब्ध कराने के लिए मशक्कत करना है। ऐसे में जमीन नीलामी घोटाले में ये आरोपी बुरी तरह घिर चुके हैं।
भोपाल । खेती किसानी और पशुपालन के लिए कर्ज लेने वाले किसानों के खेतोंं की अपने लोगों को उपकृत करने के लिए औने-पौने दामों में नीलामी करने वाले भूमि विकास बैंक व सहकारिता विभाग के तत्कालीन अफसर धोखाधड़ी के मकड़झाल में उलझ गए हैं। हालात यह है कि उन्हें अब न्यायालय से जमानत पाने के लाले पड़ गए हैं। इनमें से कुछ अधिकारी तो ऐसे हैं, जिन पर दो-दो दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। इन अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस द्वारा शिकंजा कसा जाता उसके पहले ही पीडि़तों ने न्यायालय में याचिकाएं दायर कर दी थीं।
भूमि विकास बैंक की जिले की विभिन्न शाखाओं से करीब 16 सौ किसानों को जमीन की रजिस्ट्री के आधार पर अलग-अलग मदों में ऋण आवंटित किए थे। कुछ किसान ऋण की राशि की अदाएगी कर चुके थे, लेकिन भूमि विकास बैंक के तत्कालीन अफसरों ने राज्य सहकारी बैंक तथा जिला सहकारिता के अधिकारियों के साथ वर्ष 1998 से 2003 के बीच कई किसानों की जमीन नीलाम करा दी। बैंक अफसरों ने सहकारिता विभाग के अफसरों को विक्रय अधिकारी बनाकर जमीन नीलाम कराई। जमीनों की रजिस्ट्री के बाद क्रेताओं ने नामांतरण के साथ जमीनों पर कब्जा करना चाहा, लेकिन किसानों ने कब्जा नहीं दिया।
इसके बाद क्रेताओं की तरह न्यायालय में अपील की गई। न्यायालय ने प्रथम दृष्टया तो पाया कि क्रेताओं के साथ गलत हुआ है, लेकिन जब किसानों ने याचिकाओं के माध्यम से अपना पक्ष रखा तो न्यायालय ने माना कि किसानों की जमीनों की गलत तरीके से रजिस्ट्री कराई गई है। इस पर न्यायालय द्वारा कुछ मामलों में आदेश दिया गया कि रजिस्ट्री निरस्त कराकर उनका मालिकाना हक किसानों को दिलाया जाए और नीलामी की राशि के्रताओं को वापस कराई जाएगी।
124 मामले किए गए दर्ज
वर्ष 2008 में किसानों द्वारा लोकायुक्त संगठन में जमीन रजिस्ट्री फर्जीवाड़ा की शिकायतें की गईं। करीब पौने दो सौ किसानों द्वारा शिकायतें की गईं। इन शिकायतों की जांच के बाद वर्ष 2013-14 में करीब 124 अलग-अलग धोखाधड़ी के प्रकरण दर्ज किए गए। इनके अनुसंधान के बाद संबंधित विभाग से अभियोजन की स्वीकृति मांगी गई। जिन मामलों में शासन से अभियोजन की स्वीकृति मिली, ऐसे करीब 80 मामलों में अब तक विशेष न्यायालय में चालान पेश किए जा चुके हैं, जबकि कुछ चालान पेंडिंग हैं तो अन्य मामले फिलहाल अनुसंधान में हैं।
इन अफसरों के खिलाफ दर्ज हुए मामले
भूमि विकास बैंक के तत्कालीन अधिकारी विजेन्द्र कौशल, वीके देवल, राज्य सहकारी बैंक के तत्कालीन महाप्रबंधक नंदन ठाकुर, अनीस अहमद अंसारी, सहकारिता के संयुक्त संचालक, उप संचालक आरएस गर्ग, अशोक मिश्रा, बीएस वास्केल, एपीएस कुशवाह, हरिहर प्रसाद मिश्रा आदि अधिकारियों की जमीन नीलामी फर्जीवाड़ा में अहम भूमि जांच में सामने आई हैं। उपरोक्त तत्कालीन अधिकारियों समेत करीब एक दर्जन ऐसे अधिकारी हैं, जिन्हें बीस से तीस मामलों में आरोपी बनाया गया है। तीनों ही विभागों में जमीन नीलामी की समयावधि में पदस्थ अधिकांश अफसर सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सेवानिवृत्त अफसरों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति की शासन से अनुमति की भी आवश्यकता नहीं। न्यायालय में चालान पेश करने के बाद आरोपियों को जमानत कराना पड़ी रही है। एक से अधिक मामलों में जो आरोपी हैं, उन्हें जमानत के लिए जमीन की रजिस्ट्री उपलब्ध कराने के लिए मशक्कत करना है। ऐसे में जमीन नीलामी घोटाले में ये आरोपी बुरी तरह घिर चुके हैं।
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