Thursday, September 8, 2016

अपनी पार्टी की कांग्रेस जैसी स्थिति देख भाजपा नेताओं में चिंतन का दौर जारी

अवधेश पुरोहित @ Toc news
भोपाल। एक ओर जहां नरेन्द्र मोदी से लेकर भाजपा का हर नेता इस देश को कांग्रेस मुक्त देश बनाने की रणनीति को अंजाम देने में लगा हुआ है तो वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों व्यवहार पर उपजा आक्रोश भी अब सड़क पर आने लगा है और भाजपा का हर नेता इस समय इस बात को लेकर चिंतित है कि जिस कांग्रेस शासनकाल को जिसके मुखिया दिग्विजय सिंह हुआ करते थे उसे भाजपा के नेता बंटाढार से विभूषित कर लोगों में कांग्रेस के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार को प्रचारित करने में लगे हुए थे, आज लगभग वही स्थिति उनकी ही पार्टी की हो गई है, कांग्रेस शासनकाल में जहां प्रदेश का बंटाढार हुआ तो वहीं भाजपा शासनकाल में भ्रष्टाचार का बोलबाला चरम पर पहुंच गया है और अब यह भ्रष्टाचार भाजपा नेताओं के सिर चढ़कर बोलने लगा है।

इसको लेकर भाजपा में अंतरकलह अब चरम पर पहुंच गया है, एक ओर जहां भाजपा के नेता प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार की गंगोत्री को प्रदेश की नौकरशाही को सूत्रधार मानकर चल रहे हैं तो वहीं भाजपा के नेता यह कहने में भी नहीं हिचक रहे हैं कि वह वर्षों तक विपक्ष के नेता रहे लेकिन इतना भ्रष्टाचार उस समय नहीं था जितना भ्रष्टाचार आज उनकी अपनी सरकार में है। सवाल यह उठता है कि आखिर जिस प्रदेश की नौकरशाही को यह नेता भ्रष्टाचार का सूत्रधार मान रहे हैं तो उस भ्रष्ट नौकरशाही को बढ़ावा भाजपा के किन सत्ताधीशों द्वारा दिया गया और किनके इशारे पर यह भ्रष्टाचार प्रदेश में दिन दूना रात चौगुना पनप रहा है जिसको लेकर आज मुख्यमंत्री से लेकर पार्टी के विधायक तक चिंतित हैं और उसको लेकर अध्ययन, मनन और चिंतन करने में लगे हुए हैं इसी मंथन में इस बात पर भी गहन चिंतन किया जा रहा है कि आखिर अति लोकप्रिय मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य में चल रही सरकार की छवि धीरे-धीरे जनता में क्यों कम होती जा रही है तो लोग इस मुद्दे को लेकर यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि अब भाजपा में पोस्टरों, बैनरों और विज्ञापनों में ही लोकप्रियता दिखाई दे रही है जबकि इसकी जमीनी हकीकत कुछ और है।

जो लोग इस तरह के प्रचार का सहारा लेकर आये दिन विज्ञापनों से अपनी लोकप्रियता जताने में लगे हुए हैं लेकिन सही स्थिति यह है कि उनके निर्वाचन क्षेत्र में उनकी क्या स्थिति है इसका आंकलन तो क्षेत्र में जाकर देखा जा सकता है। भाजपा में इस समय वार्ड पार्षद से लेकर मुख्यंमत्री तक और संगठन में अध्यक्ष से लेकर वार्ड प्रभारी तक जिस तरह से अपने जन्मदिन मनाने में पोस्टरों बैनरों के माध्यम से अपनी लोकप्रियता जताने में लगे रहते हैं उतने लोकप्रिय वह अपने क्षेत्र में नहीं हैं। पार्टी में आपसी द्वंद और एक-दूसरे को टांग खींचने का भी माहौल धीरे-धीरे पनपता जा रहा है, स्थिति यह है कि भाजपा का नेता से लेकर कार्यकर्ता तक यह कहता नजर आ रहा है कि यदि इस स्थिति पर समय रहते बंदिश नहीं लगाई गई तो जो मिशन-१८ को फतह करने का सपना भाजपा नेता देख रहे हैं उसके क्या परिणाम होंगे, इसकी तो कल्पना ही की जा सकती है लेकिन यह जरूर है कि भाजपा के नेता यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि यदि भाजपा में चल रहे अंतरकलह पर लगाम नहीं लगी तो चुनाव के समय कांग्रेस नहीं बल्कि भाजपा के लोग भाजपाईयों से ही टकराएंगे पार्टी में ऊपर से लेकर नीचे तक ऐसी स्थिति क्यों बनी, इसको लेकर भाजपा नेताओं का कहना है कि यह सब द्वंद्व प्रदेश में बह रही भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगाने की प्रतिस्पर्धा को लेकर है, जो इसमें डुबकी लगा रहे है वह अपने आपको सफल नेता मानने में पीछे नहीं रह रहा है,

जो लाख कोशिश करने के बावजूद भी भ्रष्टाचार की इस गंगोत्री में डुबकी लगाने से वंचित रह रहे हैं उनमें इस बात को लेकर मलाल है और यही मलाल भाजपा में चल रहे अंतरकलाह की मुख्य वजह है। राज्य में भाजपा के १३ साल के शासनकाल के दौरान भाजपा नेताओं की यह स्थिति हो गई है कि भले ही भाजपा के नेता राजनीति में जनता की सेवा करने का ढिंढोरा पीटते हों लेकिन इसी प्रदेश भाजपा में कुछ ऐसे भी संगठन के पदाधिकारी हैं जो इसी शासनकाला के दौरान आज प्रदेश में उन १०० आयकरदाताओं की सूची में उनका नाम है जो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा आयकर देने वाले माने जाते हैं।

इससे यह साफ जाहिर होता है कि राजनीति भी अब एक व्यवसाय बन गई है और इसी व्यवसाय के चलते अब भाजपा के नेता सबसे ज्यादा आयकर देने वालों की सूची में अपना नाम दर्ज कराने में भी पीछे नहीं हट रहे हैं ऐसे भाजपा नेताओं के नाम को लेकर पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं में चर्चाएं व्याप्त हैं उससे तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह सब खेल भाजपा शासनकाल में बह रही भ्रष्टाचार की गंगोत्री के चलते ही उनकी  बनी है। ऐसे भाजपा नेता जिनकी सर्वश्रेष्ठ आयकरदाता सूची में नाम को लेकर लोग तरह-तरह की चर्चाएं करते नजर आ रहे हैं, कुी मिलाकर भाजपा के शास नकाल में जहां भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन प्रदेश की जनता को देने का वायदा करके यह पार्टी सत्ता में आई है लेकिन इन १३ सालों के शासनकाल के दौरान ऐसा कतई नहीं लगता है कि राज्य की जनता को भाजपा ने भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन दिया हो यदि ऐसा होता तो आज भाजपा के नेता प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर यह कहते नजर नहीं आते कि ऐसा तो कांग्रेस के शासनकाल में नहीं देखा जो उनकी पार्टी के शासनकाल में चल रहा है जहां तक भूख का सवाल है तो इस सरकार के कार्यकाल के दौरान प्रदेश की ८५ फीसदी आबादी को यह सरकार एक रुपये किलो गेहूं और दो रुपये किलो चावल उपलब्ध करा रही है। भय का सवाल है तो भाजपा के सत्ताधीशों द्वारा अधिकारियों को इतना संरक्षण दिया गया कि आज उनके भ्रष्टाचार के भय से वह इतने आतंकित हैं कि नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर बयान जरूर देते नजर आ रहे हैं

 लेकिन उन भ्रष्ट अधिकारियों पर किसी तरह की कोई कार्यवाही करने में इतने भयभीत हैं कि बोल जरूर रहे हैं लेकिन कार्यवाही करने से क्यों हिचक रहे हैं इससे साफ जाहिर हो जाता है कि इन सत्ताधीशों ने अधिकारियों से मिलकर इतना गोरखधंधा किया कि उन्हें इस बात का भय है कि यदि किसी भ्रष्ट अधिकारी पर उन्होंने हाथ डाला तो वह उनके कारनामों की पोल न खोल दे। भ्रष्टाचार को लेकर सवाल यह भी उठता है कि जब उन्हें पता है कि प्रदेश की नौकरशाही भ्रष्ट है तो वह उसपर कार्यवाही करने में क्यों हिचक रहे हैं, इसको लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं, कुल मिलाकर भाजपा में जिस तरह का द्वंद्व चल रहा है उसको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं तो लोग यह भी मानकर चल रहे हैं कि भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आखिर क्यों भाजपाई इतने चिंतित हैं, यही नहीं मिशन २०१८ के पूर्व इस तरह  का अंर्तकलह क्या कहीं कोई पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के इशारे पर तो यह द्वंद्व नहीं चल रही है, जिससे कि अतिलोकप्रिय मुख्यमंत्री की छवि को बट्टा लगाने का काम बखूबी किया जा सके आखिर इसके पीछे भाजपा नेताओं की क्या रणनीति यह वही जानें लेकिन इस अंतरकलाह में नुकसान तो भाजपा का ही हो रहा है।  

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