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संजय सक्सेना
भोपाल में आईएसआई के बड़े नेटवर्क का खुलासा हुआ। दो दिन बाद भी हो सकता था, लेकिन तभी क्यों किया गया, जब संघ प्रमुख मोहन भागवत मध्यप्रदेश प्रवास पर हैं। एक तरफ भागवत हिंदू सम्मेलन कर रहे थे, दूसरी ओर भोपाल में आईएसआई नेटवर्क में शामिल हिंदुओं की सूची जारी की जा रही थी। कहीं न कहीं ऐसा लग रहा है कि इसका खुलासा मजबूरी में किया गया। इस मजबूरी के पीछे मिलेट्री इंटेलिजेंस का दबाव भी हो सकता है।
मध्यप्रदेश में सिमी का नेटवर्क काफी मजबूत रहा है, इसकी पुष्टि तो आए दिन हो जाती है, लेकिन आईएसआई का नेटवर्क भी बहुत तगड़ा है, यह संभवत: पहली बार ही सामने आया है। प्रदेश की खुफिया एजेंसियों को भी इसका अहसास नहीं था कि इस नेटवर्क में हिंदू भी शामिल हो सकते हैं। एटीएस ने जिस तरह से आईएसआई के लिए काम करने वाले संदेहियों को पकड़ा और इसका खुलासा किया, वह अपने आप में चौंकाने वाला घटनाक्रम है।
इस नेटवर्क में शामिल सारे के सारे हिंदू हैं और दो के संबंध तो सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से भी होने के दावे किए जा रहे हैं। ये लोग पाकिस्तान की इस खुफिया एजेंसी के लिए सूचनाएं न केवल एकत्र करते आ रहे थे, अपितु वहां पहुंचाने का काम भी करते आ रहे थे। अचानक इसका भंडाफोड़ हुआ, तो सरकार और सत्तापक्ष का चौंकना स्वाभाविक ही था। ऐसे मौके पर जब केंद्र से लेकर मध्यप्रदेश तक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, और संघ प्रमुख मोहन भागवत हिंदू सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
आईएसआई नेटवर्क तोड़ने का काम प्रशंसनीय कहा जा सकता है, लेकिन इसी नेटवर्क में देशभक्त होने का दावा करने वाली पार्टी के सदस्यों की हिस्सेदारी कहीं न कहीं पार्टी के लिए बदनुमा दाग ही नहीं, बहुत बड़ा झटका है। इस खुलासे से देश में भगवा आतंकवाद का आरोप लगाने वालों को इसके बाद खुलकर बोलने का एक और अवसर मिल गया। यहां केवल एक ही सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर इस नेटवर्क का खुलासा किसी विशेष अवसर पर ही क्यों किया गया? क्या एटीएस के सामने कोई मजबूरी थी या ऐसा करने का दबाव था? यह बात तो सामने आ चुकी है कि यह पूरी कार्रवाई मिलेट्री इंटेलीजेंस की सूचना पर हुई।
इसलिए माना जा रहा है कि खुलासा करने की मजबूरी भी इसी से जुड़ी हुई थी। इसमें कश्मीर की सूचना और आगरा केंट की जानकारी की अहम भूमिका रही। जैसे ही इसका खुलासा हुआ, दूसरे ही दिन सेना प्रमुख विपिन रावत भोपाल पहुंचे। सेना प्रमुख का पहुंचना सामान्य घटनाक्रम का हिस्सा नहीं था। लेकिन अब सावधान रहने की आवश्यकता तो है। सरकार को भी और हमारी खुफिया एजेंसियों को भी। आईएसआई का नेटवर्क समाज के उन हिस्सों में भी पहुंच गया है, जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती।
यह किसी एक पार्टी के लिए चेतावनी नहीं है और न ही सफाई देने का समय है, मुद्दा बहुत गंभीर है। बयानबाजी में उलझने के बजाय आईएसआई के पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करने का लक्ष्य साधना होगा। हम किसी एक वर्ग या संप्रदाय पर निशाना साधने के बजाय अपने गिरेबान में भी झांकने का प्रयास करें। यह वक्त का तकाजा भी है और सबक लेने का अवसर भी।
FB SE sabhar
संजय सक्सेना
भोपाल में आईएसआई के बड़े नेटवर्क का खुलासा हुआ। दो दिन बाद भी हो सकता था, लेकिन तभी क्यों किया गया, जब संघ प्रमुख मोहन भागवत मध्यप्रदेश प्रवास पर हैं। एक तरफ भागवत हिंदू सम्मेलन कर रहे थे, दूसरी ओर भोपाल में आईएसआई नेटवर्क में शामिल हिंदुओं की सूची जारी की जा रही थी। कहीं न कहीं ऐसा लग रहा है कि इसका खुलासा मजबूरी में किया गया। इस मजबूरी के पीछे मिलेट्री इंटेलिजेंस का दबाव भी हो सकता है।
मध्यप्रदेश में सिमी का नेटवर्क काफी मजबूत रहा है, इसकी पुष्टि तो आए दिन हो जाती है, लेकिन आईएसआई का नेटवर्क भी बहुत तगड़ा है, यह संभवत: पहली बार ही सामने आया है। प्रदेश की खुफिया एजेंसियों को भी इसका अहसास नहीं था कि इस नेटवर्क में हिंदू भी शामिल हो सकते हैं। एटीएस ने जिस तरह से आईएसआई के लिए काम करने वाले संदेहियों को पकड़ा और इसका खुलासा किया, वह अपने आप में चौंकाने वाला घटनाक्रम है।
इस नेटवर्क में शामिल सारे के सारे हिंदू हैं और दो के संबंध तो सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से भी होने के दावे किए जा रहे हैं। ये लोग पाकिस्तान की इस खुफिया एजेंसी के लिए सूचनाएं न केवल एकत्र करते आ रहे थे, अपितु वहां पहुंचाने का काम भी करते आ रहे थे। अचानक इसका भंडाफोड़ हुआ, तो सरकार और सत्तापक्ष का चौंकना स्वाभाविक ही था। ऐसे मौके पर जब केंद्र से लेकर मध्यप्रदेश तक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, और संघ प्रमुख मोहन भागवत हिंदू सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
आईएसआई नेटवर्क तोड़ने का काम प्रशंसनीय कहा जा सकता है, लेकिन इसी नेटवर्क में देशभक्त होने का दावा करने वाली पार्टी के सदस्यों की हिस्सेदारी कहीं न कहीं पार्टी के लिए बदनुमा दाग ही नहीं, बहुत बड़ा झटका है। इस खुलासे से देश में भगवा आतंकवाद का आरोप लगाने वालों को इसके बाद खुलकर बोलने का एक और अवसर मिल गया। यहां केवल एक ही सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर इस नेटवर्क का खुलासा किसी विशेष अवसर पर ही क्यों किया गया? क्या एटीएस के सामने कोई मजबूरी थी या ऐसा करने का दबाव था? यह बात तो सामने आ चुकी है कि यह पूरी कार्रवाई मिलेट्री इंटेलीजेंस की सूचना पर हुई।
इसलिए माना जा रहा है कि खुलासा करने की मजबूरी भी इसी से जुड़ी हुई थी। इसमें कश्मीर की सूचना और आगरा केंट की जानकारी की अहम भूमिका रही। जैसे ही इसका खुलासा हुआ, दूसरे ही दिन सेना प्रमुख विपिन रावत भोपाल पहुंचे। सेना प्रमुख का पहुंचना सामान्य घटनाक्रम का हिस्सा नहीं था। लेकिन अब सावधान रहने की आवश्यकता तो है। सरकार को भी और हमारी खुफिया एजेंसियों को भी। आईएसआई का नेटवर्क समाज के उन हिस्सों में भी पहुंच गया है, जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती।
यह किसी एक पार्टी के लिए चेतावनी नहीं है और न ही सफाई देने का समय है, मुद्दा बहुत गंभीर है। बयानबाजी में उलझने के बजाय आईएसआई के पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करने का लक्ष्य साधना होगा। हम किसी एक वर्ग या संप्रदाय पर निशाना साधने के बजाय अपने गिरेबान में भी झांकने का प्रयास करें। यह वक्त का तकाजा भी है और सबक लेने का अवसर भी।
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