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नई दिल्ली/लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने आज उत्तर प्रदेश पुलिस को निर्देश दिया कि वह कथित सामूहिक बलात्कार और महिला तथा उसकी बेटी के साथ बलात्कार के प्रयास के मामले में राज्य के मंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता गायत्री प्रजापति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करे। न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल की पीठ ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह मामले की जांच करे और आठ सप्ताह के भीतर घटनाओं पर की गयी कार्रवाई की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में उसे सौंपे।
प्रजापति और अन्य लोगों द्वारा कथित रूप से बार-बार बलात्कार की शिकार हुई महिला ने जनहित याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि वह इन मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश पुलिस को दे। महिला की ओर से पेश हुए वकील महमूद प्राचा ने कहा कि प्रदेश के पुलिस महानिदेशक से की गयी शिकायत पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की है। उत्तर प्रदेश की ओर से पेश हुए वकील ने कहा, चूंकि फिलहाल उत्तर प्रदेश में चुनाव चल रहे हैं, इसलिए याचिका दायर की गयी है।
आरोप लगाने वाली महिला को नहीं जानता: प्रजापति
उत्तरप्रदेश चुनाव के तीसरे चरण के मतदान के पहले समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्य में कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति पर गैंगरेप का आरोप लगाए जाने के बाद उन्होंने इसे अपने विरूद्ध राजनीतिक साजिश बताया है। उनका कहना था कि वे ऐसे किसी महिला या लड़की को जानते ही नहीं है जिसने उन पर रेप का आरोप लगाया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि वे शीर्ष न्यायालय का सम्मान जरूर करेंगे। प्रजापति को सत्ताधारी समाजवादी पार्टी ने अमेठी से प्रत्याशी बनाया। उनका कहना था कि 5 वें चरण के अंतर्गत 27 फरवरी को वोटिंग की जाना है। सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तरप्रदेश पुलिस को निर्देश देते हुए कहा है कि 8 सप्ताह में वे रिपोर्ट दायर करें। इतना ही नहीं प्रजापति पर 35 वर्ष की महिला ने आरोप लगाया था कि प्रजापति ने पार्टी में अच्छा पद दिलवाने के नाम पर उसके साथ यौन शोषण किया। इतना ही नहीं महिला ने बाद में उन पर बलात्कार का आरोप लगाया। उसने प्रजापति के ही साथ अन्य महिला पर बलात्कार का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने हलफनामे में कहा है कि कथित घटना की पुष्टि नहीं की जा सकती है और शिकायत दर्ज कराने में भी देरी हुई है। प्राचा ने कहा कि याचिका चुनावी प्रक्रिया की घोषणा से पहले दायर की गयी थी और सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष 25 नवंबर को नोटिस जारी किया था। उन्होंने कहा कि चुनावों की घोषणा होने के बाद किसी व्यक्ति की मूल और नागरिक अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकता है और उत्तर प्रदेश पुलिस को इस संबंध में प्राथमिकी दर्ज करनी चाहिए थी।
घटनाक्रम की जानकारी देते हुए, उन्होंने कहा कि कथित घटना पहली बार अक्तूबर 2014 में हुई और जुलाई 2016 तक चली। जब आरोपी ने याचिका दायर करने वाली महिला की नाबालिग बेटी का यौन शोषण करने का प्रयास किया, तब उसने शिकायत दर्ज कराने का फैसला लिया। प्राचा ने कहा कि महिला ने अक्तूबर 2016 में पुलिस महानिदेशक से शिकायत की थी, लेकिन प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई।
उसके बाद न्याय के लिए वह सुप्रीम कोर्ट पहुंची। इसके अलावा राज्य में खनन माफिया से गठजोड़ रखने के भी उनपर आरोप लगते रहे हैं। हाल ही में उन पर आदर्श चुनावी आचारसंहिता के उल्लंघन का भी आरोप लग चुका है। आरोप है कि गायत्रा प्रजापति ने कानपुर से 4000 साडिय़ां अमेठी मंगवाई थीं। पुलिस ने इन साडिय़ों को बरामद किया था। उसके बिल पर गायत्री प्रजापति का नाम था। इस मामले में भी उनपर केस दर्ज हुआ है।
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