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मुंबई/पुणे: पुलिस ने ऑल इंडिया स्टूडेंट समिट 2018 का आयोजन करने की अनुमति देने से इनकार करते हुए आयोजन स्थल के बाहर एकत्रित छात्रों को हिरासत में ले लिया. इस कार्यक्रम को दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और जेएनयू के छात्र नेता उमर ख़ालिद को संबोधित करना था.
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि उपनगरीय विले पार्ले में भाईदास हॉल के बाहर से कितने छात्रों और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है इसकी जानकारी अभी मौजूद नहीं है.
हालांकि टाइम्स आॅफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 50 से ज़्यादा छात्र-छात्राओं को हिरासत में लिया गया है.
हिरासत में लिए छात्रों में सम्मेलन के आयोजक छात्र भारती के अध्यक्ष दत्ता दीघे, अन्य आयोजक पार्षद कपिल पाटिल, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र नेता ऋचा सिंह और जेएनयू के छात्र नेता प्रदीप नरवाल भी शामिल हैं.
हिरासत में ली गईं एक छात्र नेता ने पुलिस की इस कार्रवाई को तानाशाही क़रार दिया और कहा कि इस लड़ाई को संसद तक लेकर जाएंगे.
पुलिस द्वारा ऑल इंडिया स्टूडेंट समिट 2018 को इजाज़त देने से इनकार किए जाने के बाद बृहस्पतिवार को यह कार्रवाई की गई. इस कार्यक्रम में गुजरात के नवनिर्वाचित विधायक मेवाणी और ख़ालिद को आमंत्रित किया गया था.
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ से जुड़े कार्यक्रम के बाद भड़की हिंसा के विरोध में बंद और प्रदर्शन के मद्देनज़र पुलिस ने अनुमति देने से इनकार किया है.
हिरासत में लिए जाने से पहले दीघे ने बताया था कि पुलिस ने कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति नहीं दी है.
दीघे ने कहा कि आयोजन स्थल के बाहर भारी संख्या में पुलिसकर्मी मौजूद हैं और छात्रों को अंदर जाने नहीं दिया जा रहा. हिरासत में लिए सभी छात्रों को जुहू पुलिस थाने ले जाया गया है.
हिरासत में लिए जाने से पहले छात्रनेता ऋचा सिंह ने भाईदास हॉल के बाहर पत्रकारों से कहा था कि कार्यक्रम के ख़िलाफ़ पुलिस की कार्रवाई तानाशाही है और यह एक आपातकाल जैसी स्थिति है. उन्होंने कहा, हम इस लड़ाई को संसद तक लेकर जाएंगे.
पुलिस ने भाईदास ऑडिटोरियम के पास बैरिकेडिंग कर रखी है और इलाके में सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं.
एक जनवरी को पुणे ज़िले के भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. इस लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को हराया था.
भीमा-कोरेगांव का यह युद्ध एक जनवरी 1818 को लड़ा गया था. दलित समुदाय इस जीत का जश्न मनाता है क्योंकि यह माना जाता है तब अछूत समझे जाने वाले महार समुदाय के सैनिक ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में थे. पेशवा ब्राह्मण थे और जीत को दलितों की दृढ़ता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है.
भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा ने महाराष्ट्र के कई दूसरे शहरों को भी अपने चपेट में ले लिया था. दलित समुदाय की ओर से महाराष्ट्र बंद के दौरान इन शहरों में हिंसा और आगज़नी की घटनाएं हुईं. बुधवार शाम तक महाराष्ट्र बंद का ऐलान वापस लेने के बाद स्थितियां सामान्य हो सकी थीं.
भीमा-कोरेगांव हिंसा : मेवाणी और ख़ालिद के खिलाफ प्राथमिकी
एक कार्यक्रम में कथित भड़काऊ भाषण देने के लिए दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नेता उमर ख़ालिद के ख़िलाफ़ पुणे में एक प्राथमिकी दर्ज की गई है.
एक अधिकारी ने बृहस्पतिवार को बताया कि दोनों पर मराठा और दलित समुदायों के बीच कथित तौर पर दरार पैदा करने और वैमनस्य फैलाने का आरोप लगाया गया है.
गुजरात से हाल ही में निर्वाचित निर्दलीय विधायक और दलित नेता मेवाणी और ख़ालिद ने 31 दिसंबर को शहर के शनिवारवाड़ा में भीमा-कोरेगांव की लड़ाई के 200 साल होने पर आयोजित एल्गर परिषद में शिरकत की थी.
शहर के निवासी अक्षय बिक्कड़ की ओर से दर्ज कराई गई शिकायत के मुताबिक मेवाणी और ख़ालिद ने आयोजन में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिए और उनकी टिप्पणी का मक़सद समुदायों के बीच रंज़िश और दरार बढ़ाना था. इसके बाद एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव में हिंसा हुई थी.
बिक्कड़ ने डेक्कन जिमखाना पुलिस के पास शिकायत की. इसे विश्रामबाग थाना भेज दिया गया क्योंकि शनिवारवाड़ा उसके न्याय क्षेत्र में आता है. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक मेवाणी और ख़ालिद के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 153 ए, 505 और 117 के तहत पुणे के विश्रामबाग थाने में केस दर्ज किया है.
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