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हाइलाइट्स
30,000 से ज्यादा ट्रांजैक्शन पकड़ में आए जिनके जरिए 262 करोड़ की धोखाधड़ी की गई
डेप्युटी सीएम मनीष सिसोदिया ने बुधवार को बताया कि यह फर्जीवाड़ा 2013 से चल रहा था
डीलर्स ने करीब 13 बैंकों की फर्जी आईडी बनाकर पासवर्ड क्रैक किए, वे अपने खातों के जरिए टैक्स डिपॉजिट दर्ज कराते रहे
नई दिल्ली . पांच साल से हजारों ट्रेडर्स फर्जी तरीके से बैंक खातों में ऑनलाइन टैक्स भुगतान दिखाते रहे, लेकिन असल में वह रकम सरकारी खाते में नहीं आई। पिछले 3 महीने की जांच के बाद ऐसे 30,000 से ज्यादा ट्रांजैक्शन पकड़ में आए हैं। सरकार को करीब 262 करोड़ की चपत लगाई गई है। दिल्ली सरकार के ट्रेड ऐंड टैक्सेज विभाग ने आर्थिक अपराध शाखा में इन सभी व्यापारियों के खिलाफ केस दर्ज कराया है।
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बुधवार को बताया कि अपनी तरह का यह पहला फर्जीवाड़ा 2013 से चला आ रहा था। शुरुआती जांच में पता चला कि 30 सितंबर 2013 से 26 सितंबर 2018 के बीच वैल्यू ऐडेड टैक्स (वैट) और सेंट्रल सेल्स टैक्स (सीएसटी) के तहत रजिस्टर्ड करीब 8,758 डीलर्स ने साइबर फ्रॉड के जरिए टैक्स डिपॉजिट क्लेम किए। यह गतिविधि जीएसटी लागू होने के बाद भी जारी रही।
उन्होंने बताया कि ट्रेड ऐंड टैक्सेज विभाग (जीएसटी और वैट) ने अब तक की छानबीन में पाया है कि इन डीलर्स ने करीब 13 बैंकों की फर्जी आईडी बनाकर पासवर्ड क्रैक किए। वे अपने खातों के जरिए टैक्स डिपॉजिट दर्ज कराते रहे। वे लोग विभाग से यह क्लेम करते थे कि उन्होंने टैक्स जमा करा दिया है, लेकिन वास्तव में रकम सरकारी खाते में क्रेडिट ही नहीं होती थी। यह पूछे जाने पर कि इतना बड़ा फर्जीवाड़ा क्या विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत के बगैर संभव है? सिसोदिया ने कहा कि इस बात की जांच की जा रही है।
दिल्ली के वैट और जीएसटी कमिश्नर एच. राजेश प्रसाद ने बताया कि विभाग के सिस्टम ब्रांच ने पाया कि वित्त वर्ष 2013-14, 2014-15, 2015-16, 2016-17, 2017-18 और 2018-19 में कई ट्रेडर्स ने बैंकिंग चैनल से टैक्स डिपॉजिट तो क्लेम किया है, लेकिन रकम विभाग के खाते में नहीं आई है। इसके बाद बैंकों को इस बारे में शिकायत की। बैंक ने इस बात की पुष्टि की कि रकम क्रेडिट नहीं हुई है और यह साजिशन टैक्स चोरी या व्यक्तिगत लाभ के लिए की गई धोखाधड़ी है। विभाग ने सभी संदिग्ध रजिस्टर्ड डीलर्स और कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराया है।
दिल्ली के वैट और जीएसटी कमिश्नर एच. राजेश प्रसाद ने बताया कि विभाग के सिस्टम ब्रांच ने पाया कि वित्त वर्ष 2013-14, 2014-15, 2015-16, 2016-17, 2017-18 और 2018-19 में कई ट्रेडर्स ने बैंकिंग चैनल से टैक्स डिपॉजिट तो क्लेम किया है, लेकिन रकम विभाग के खाते में नहीं आई है। इसके बाद बैंकों को इस बारे में शिकायत की। बैंक ने इस बात की पुष्टि की कि रकम क्रेडिट नहीं हुई है और यह साजिशन टैक्स चोरी या व्यक्तिगत लाभ के लिए की गई धोखाधड़ी है। विभाग ने सभी संदिग्ध रजिस्टर्ड डीलर्स और कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराया है।
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