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मल्टी नेशनल ड्रग कंपनियों के प्रलोभनों, उनके द्वारा प्रायोजित हवाई विदेश यात्राओं तथा करोड़ों की कमाई ने डॉक्टरों को हत्यारा बना दिया। किंतु स्वास्थ्य मंत्री के चश्में में पांच हजार रूपए का जुर्माना तथा पंजीयन निरस्तीकरण की सजा पर्याप्त है। इन डॉक्टरों ने नौकरी सरकारी की, तनख्वाह सरकारी ली, काम मल्टीनेशनल ड्रग कंपनियों का किया। करोड़ों उनसे कमाए, मरीजों को ठीक करने के बजाय उनकी हत्या की। उस पर भी जांच ऐजेंसी की नजर में इस पर कोई आपराधिक प्रकरण नहीं बनता। इन डॉक्टरों पर भादवि की धारा 302 के अंतर्गत हत्या का आपराधिक मुकदमा दर्ज करा चाहिए था।
साथ ही मामलें को रफा-दफा करने में शामिल जिम्मेदारों पर भी षडय़ंत्र की धारा 120 बी एवं हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। महाराजा यशवंत राव होल्कर अस्पताल के डॉक्टरों ने वर्ष 2006 से 2010 के बीच मल्टीनेशलन ड्रग कंपनियों द्वारा प्रायोजित ड्रग ट्रायल में लगभग छह करोड़ की काली कमाई की। साथ ही 81 मरीजों की हत्या भी कर दी। डॉ. आनंद सिंह राजे अध्यक्ष स्वास्थ्य समर्पण सेन समिति, 12/4 स्वर्ण विहार कालोनी वंदना नगर, इंदौर महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय से संबंद्ध एमवाय अस्पताल में मल्टीनेशनल ड्रग कंपनियों द्वारा प्रायोजित ड्रग आम गरीब मरीजों पर उनकी जानकारी के बिना संचालित किए जाने की शिकायत राज्य आर्थिक ब्यूरों म.प्र. को 2010 में की थी। ब्यूरो ने शिकायत क्र. 344/10 पंजीबद्ध की और तीन बिन्दुओं पर आरोप तय कर जांच प्रारंभ की। आरोपी के प्रथम बिन्दु मल्टीनेशनल ड्रग कंपनियों से करोड़ों रूपया पारिश्रमिक प्राप्त करना, द्वितीय बिन्दु शासकीय चिकित्सकों द्वारा अपने पद पर रहते हुए बिना शासन की अनुमति के कार्य तथा तृतीय बिन्दु मासूम मरीजों तथा परिजनों के साथ छल कपट करना। उच्च जांच इंडियन मेडिकल कौंसिल एक्ट 1965 एथिकल रेगुलेशन 2002,एमसीआई एमेंडमेंट नोटीफिकेशन तथा म.प्र. शासन सिविल सेवा आचरण नियम 1965 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988, भारतीय दण्ड विधान, ड्रग एण्ड कॉस्मेटिक एक्ट, कुल मिलाकर विभिन्न आठ कानूनों के अंतर्गत ब्यूरो द्वारा जांच की गई। जांच में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह उभर कर सामने आया है कि एथिकल कमेटी में प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर स्वयं ही इस ड्रग ट्रायल में सम्मिलत रहे और इस कमेटी द्वारा स्टैंडर्ड प्रेक्टिस एवं एथिकल गाइड लाइन का पूर्णत: पालन किया जाना नहीं पाया गया।
प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर द्वारा कई बार एथिकल गाइड लाइन का उल्लघंन करना पाया गया। प्रिंसीपल इन्वेस्टिगेटर एवं एथिकल कमेटी ने सीरियस एडबर्स इवेंट की स्थितियों में अपेक्षित कार्यवाहीं करना भी नहीं पाया गया। सीआरओ एथिकल कमेटी एवं पी आई द्वारा मरीजों के हित संरक्षण सिद्धांतों का भी पूर्णत: पालन नहीं किया गया। इन्फार्मड कंसेन्ट की मूल अवधारणा को भी नजर अंदाज किया गया, प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर द्वारा कई प्रकरणों इंडियन मेडिकल कौसिल एक्ट 1965 की धारा 20 ए (प्रोफेशनल कन्डक्ट) का उल्लघंन किया गया। प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर द्वारा ड्रग ट्रायल से स्वयं हेतु धनराशि एवं विभिन्न प्रायोजित विदेश यात्राओं से कान्फिलिक्ट आफ इन्टरेस्ट के तथ्य स्पष्ट परिलक्षित हुए, जिन संस्थानों में ये ट्रायल किए गए उनके उन्नयन/लाभ हेतु निर्धारित मापदण्ड़ों का भी पूर्ण पालन करना नहीं पाया गया। प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर द्वारा किए गए कृत्यों से संस्था का कोई लाभ अथवा उन्नयन होना नहीं पाया गया। जिन पर ड्रग ट्रायल किए गए उन मरीजों के साथ पूर्ण पारदर्शिता भी नहीं रखी गई एवं मरीजों को मिल सकने वाली पात्रता व लाभ तथा सुविधाओं से भी वंचित रखा गया।
महत्वपूर्ण मुद्दा तो यह सामने आया कि सीरियस एडवर्स इवेन्ट की स्थिति पूर्ण वितीय संरक्षण या इंश्यारेंस प्रावधानों का घोर उल्लघंन पाया गया। ब्यूरो द्वारा की गई इस व्यापक जांच के बाद दस बिंदु मुख्यत: सिद्ध पाए गए। किंतु आश्चर्य तो इस बात का है कि ड्रग ट्रायल के दौरान ब्यूरो ने पाया कि 81 मरीजों की मृत्यु हो गई है। फिर भी किसी प्रकार की आपराधिक कार्यवाही करने का पर्याप्त आधार न पाने का उल्लेख ब्यूरो ने कर अपने कुछ सुझावों के साथ प्रमुख सचिव मध्यप्रदेश शासन चिकित्सा शिक्षा विभाग को क्र./इंदौर/अप/शि क्र.344(10) 313-4/11 दिनांक 24/6/11 के द्वारा भेज दी जहां कुछ डॉक्टरों पर 5000/- जुर्माना एवं दो का पंजीयन निरस्तीकरण इतिश्री कर ली गई। ब्यूरों द्वारा की गई जांच के एक और पहलू पर नजर डालने पर पता चलता है कि कितने मरीजों पर ड्रग ट्रायल किया गया तथा कितनी रकम कमाई ,कितने मरीज मरे, स्थिति और स्पष्ट हो जाती है। ब्यूरों ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि डॉ. अनिल भरानी, जो एमवाय अस्पताल में पदस्थ थे, ने चार सौ पर ड्रग ट्रायल किया जिसमें से 30 मरीजों की मौत हो गई। उन्होंने प्रायोजक मल्टीनेशनल कंपनी द्वारा कराई गई हवाई विदेश यात्रा बिना विभागीय या शासकीय अनुमति के की। दूसरे डॉक्टर हेमंत जैन, जो चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय इंदौर मे पदस्थ थे, के द्वारा 2500 मासूम बच्चों (मरीजों)पर ड्रग ट्रायल किया।
इस दौरान 18 बच्चों की मौत हो गई तथा इनके द्वारा एक करोड़ सत्तर लाख रूपए अर्जित किए गए। इन्होंने भी प्रायोजक कंपनी की मेजबानी में हवाई विदेश यात्रा की, किन्तु किसी प्रकार की शासकीय या विभागीय अनुमति नही ली। डॉ. सलिल भार्गव जो एमवाय अस्पताल ज्ञानपुष्प रिसर्च सेंटर इंदौर में पदस्थ थे, ने 300 मरीजों पर ड्रग ट्रायल किया, इस दौरान 19 मरीजों की मृत्यु हो गई, इनके द्वारा एक करोड़ पांच लाख रूपए कमाए गए। इन्होंने भी बिना अनुमति के हवाई विदेश यात्रा का मनोरंजक सुख प्राप्त किया। डॉ. अपूर्व पौराणिक, जो एमवाय अस्पताल इंदौर मे पदस्थ थे, ने 40 मरीजों पर ड्रग ट्रायल किया और 26 लाख रूपए अर्जित किए, आठ मरीजो को मौत के मुंह मे धकेला, बिना अनुमति के विदेश यात्रा भी की।
डॉ. अशोक बाजपेयी, जो एमवाय अस्पताल इंदौर मे पदस्थ थे, ने 35 मरीजों पर ड्रग ट्रायल किया, 48 लाख रूपए कमाए, सात मरीजों ने जान गवाई। बिना अनुमति हवाई विदेश यात्रा प्रायोजक मल्टी नेशनल कंपनी की मेजबानी पर की। डॉ. पुष्पा वर्मा, जो एमवाय अस्पताल इंदौर में पदस्थ थी, ने भी 32 मरीजों पर ड्रग ट्रायल किया एवं 8 लाख रूपए कमाए, इनके ट्रायल के दौरान एक भी मरीज नही मरा और इन्होंने विदेश यात्रा भी नहीं की। ब्यूरो द्वारा की गई जांच में यह तथ्य आने के बाद स्वास्थ्य मंत्री कह रहे है कि एक भी मौत ड्रग ट्रायल के दौरान नही हुई। शर्मनाक तो यह है कि इतनी मौत के बाद भी मल्टीनेशनल कंपनी के प्रवक्ता द्वारा दिया बयान जो टाइम्स ऑफ इंडिया में 6 जनवरी को प्रकाशित हुआ कि भारतीय गरीब गंदगी के सुअरों जैसे है इन पर ड्रग ट्रायल जायज है।
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