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नई दिल्ली। भारत छोड़ो आंदोलन को आज यानी की 9 अगस्त 2015 को पूरे 73 साल हो रहे हैं। यह आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था। सन 1942 में गांधी जी के नेतृत्व में शुरु हुआ यह आंदोलन बहुत ही सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था, इसमें पूरा देश शामिल हुआ। इस आंदोलन का तत्कालीन ब्रिटिश सरकार पर बहुत ज्यादा असर हुआ। इतना की इसे खत्म करने के लिए पूरी ब्रिटिश सरकार को एक साल से ज्यादा का समय लग गया।
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यह भारत की आजादी में सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन था। दूसरे विश्व युद्ध में उलझे इंग्लैंड को भारत में ऐसे आंदोलन की उम्मीद नहीं थी। इस आंदोलन में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज को दिल्ली चलो का नारा दिया था। इस आंदोलन की भनक लगते ही गांधी जी सहित कई दिग्गज नेताओं को जेल में डाल दिया गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इसमें तकरीबन 900 से ज्यादा लोग मारे गए जबकि 60 हजार से ज्यादा गिरफ्तार किए गए।
आंदोलन का इतिहास
यह आंदोलन गांधी जी की सोची-समझी रणनीति का ही हिस्सा था। दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध में इंग्लैंड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी से सभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज को 'दिल्ली चलो' का नारा दिया। गांधी जी ने मौके की नजाकत को भांप लिया और 8 अगस्त 1942 की रात में ही बम्बई से अग्रेजों को 'भारत छोड़ो' व भारतीयों को 'करो या मरो' का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे स्थित आगा खान पैलेस में चले गए।
9 अगस्त 1942 के दिन इस आंदोलन को लालबहादुर शास्त्री सरीखे एक छोटे से व्यक्ति ने एक बड़ा रूप दे दिया। 19 अगस्त, 1942 को शास्त्री जी गिरफ्तार हो गए। 6 अगस्त 1925 को ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से 'बिस्मिल' के नेतृत्व में हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ के दस जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी कांड किया था, जिसकी यादगार ताजा रखने के लिए पूरे देश में हर साल 9 अगस्त को काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस मनाने की परंपरा भगत सिंह ने प्रारंभ कर दी थी और इस दिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे। गांधी जी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत 9 अगस्त 1942 का दिन चुना था।
900 से ज्यादा लोग मारे गए, हजारों लोग गिरफ्तार हुए इस आंदोलन की व्यूह रचना बेहद तरीके से बुनी गई। चूंकि अंग्रेजी हुकूमत दूसरे विश्व युद्ध में पहले ही पस्त हो चुकी थी और जनता की चेतना भी आंदोलन की ओर झुक रही थी, लिहाजा 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई सत्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नाम दिया गया था। हालांकि गांधी जी को फौरन गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे।
9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। गांधी जी के साथ भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खान पैलेस में, डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबंद किया गया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 942 लोग मारे गये, 1630 घायल हुए, 18000 डीआईआर में नजरबंद हुए तथा 60229 गिरफ्तार हुए।
क्या उद्देश्य था इस आंदोलन का
आज जबकि भारत छोड़ो आंदोलन को 2015 में पूरे 73 साल हो रहे हैं, ऐसे में भारत का हर नागरिक देश के इस बड़े आंदोलन को समझने के और उसके तकरीबन 5 साल बाद ही यानी की 1947 में देश को मिली आजादी को ध्यान में रखते हुए इस आंदोलन के उद्देश्य और प्रासंगिकता पर भी विचार रखता है। देखा जाए तो यह सही मायने में एक जन आंदोलन था, जिसमें लाखों आम हिंदुस्तानी चाहे वह गरीब हो, अमीर हो, ग्रामीण हो सभी लोग शामिल थे। इस आंदोलन की सबसे बड़ी खास बात यह थी कि इसने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया।
युवा कॉलेज छोड़कर जेल की कैद स्वीकार कर रहे थे। सबसे बड़ी बात यह थी कि इस आंदोलन का प्रभाव ही इतना ज्यादा था कि अंग्रेज हुकूमत पूरी तरह हिल गई और उसे इस आंदोलन को दबाने के लिए ही साल भर से ज्यादा का समय लगा। जून 1944 में जब विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था, तो गांधी जी को रिहा कर दिया गया। इस तरह आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत पर व्यापक प्रभाव डाला और इसके कुछ साल बाद ही भारत आजाद हुआ, लेकिन पाकिस्तान विभाजन के काले इतिहास के साथ।
नई दिल्ली। भारत छोड़ो आंदोलन को आज यानी की 9 अगस्त 2015 को पूरे 73 साल हो रहे हैं। यह आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था। सन 1942 में गांधी जी के नेतृत्व में शुरु हुआ यह आंदोलन बहुत ही सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था, इसमें पूरा देश शामिल हुआ। इस आंदोलन का तत्कालीन ब्रिटिश सरकार पर बहुत ज्यादा असर हुआ। इतना की इसे खत्म करने के लिए पूरी ब्रिटिश सरकार को एक साल से ज्यादा का समय लग गया।
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यह भारत की आजादी में सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन था। दूसरे विश्व युद्ध में उलझे इंग्लैंड को भारत में ऐसे आंदोलन की उम्मीद नहीं थी। इस आंदोलन में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज को दिल्ली चलो का नारा दिया था। इस आंदोलन की भनक लगते ही गांधी जी सहित कई दिग्गज नेताओं को जेल में डाल दिया गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इसमें तकरीबन 900 से ज्यादा लोग मारे गए जबकि 60 हजार से ज्यादा गिरफ्तार किए गए।
आंदोलन का इतिहास
यह आंदोलन गांधी जी की सोची-समझी रणनीति का ही हिस्सा था। दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध में इंग्लैंड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी से सभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज को 'दिल्ली चलो' का नारा दिया। गांधी जी ने मौके की नजाकत को भांप लिया और 8 अगस्त 1942 की रात में ही बम्बई से अग्रेजों को 'भारत छोड़ो' व भारतीयों को 'करो या मरो' का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे स्थित आगा खान पैलेस में चले गए।
9 अगस्त 1942 के दिन इस आंदोलन को लालबहादुर शास्त्री सरीखे एक छोटे से व्यक्ति ने एक बड़ा रूप दे दिया। 19 अगस्त, 1942 को शास्त्री जी गिरफ्तार हो गए। 6 अगस्त 1925 को ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से 'बिस्मिल' के नेतृत्व में हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ के दस जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी कांड किया था, जिसकी यादगार ताजा रखने के लिए पूरे देश में हर साल 9 अगस्त को काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस मनाने की परंपरा भगत सिंह ने प्रारंभ कर दी थी और इस दिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे। गांधी जी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत 9 अगस्त 1942 का दिन चुना था।
900 से ज्यादा लोग मारे गए, हजारों लोग गिरफ्तार हुए इस आंदोलन की व्यूह रचना बेहद तरीके से बुनी गई। चूंकि अंग्रेजी हुकूमत दूसरे विश्व युद्ध में पहले ही पस्त हो चुकी थी और जनता की चेतना भी आंदोलन की ओर झुक रही थी, लिहाजा 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई सत्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नाम दिया गया था। हालांकि गांधी जी को फौरन गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे।
9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। गांधी जी के साथ भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खान पैलेस में, डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबंद किया गया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 942 लोग मारे गये, 1630 घायल हुए, 18000 डीआईआर में नजरबंद हुए तथा 60229 गिरफ्तार हुए।
क्या उद्देश्य था इस आंदोलन का
आज जबकि भारत छोड़ो आंदोलन को 2015 में पूरे 73 साल हो रहे हैं, ऐसे में भारत का हर नागरिक देश के इस बड़े आंदोलन को समझने के और उसके तकरीबन 5 साल बाद ही यानी की 1947 में देश को मिली आजादी को ध्यान में रखते हुए इस आंदोलन के उद्देश्य और प्रासंगिकता पर भी विचार रखता है। देखा जाए तो यह सही मायने में एक जन आंदोलन था, जिसमें लाखों आम हिंदुस्तानी चाहे वह गरीब हो, अमीर हो, ग्रामीण हो सभी लोग शामिल थे। इस आंदोलन की सबसे बड़ी खास बात यह थी कि इसने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया।
युवा कॉलेज छोड़कर जेल की कैद स्वीकार कर रहे थे। सबसे बड़ी बात यह थी कि इस आंदोलन का प्रभाव ही इतना ज्यादा था कि अंग्रेज हुकूमत पूरी तरह हिल गई और उसे इस आंदोलन को दबाने के लिए ही साल भर से ज्यादा का समय लगा। जून 1944 में जब विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था, तो गांधी जी को रिहा कर दिया गया। इस तरह आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत पर व्यापक प्रभाव डाला और इसके कुछ साल बाद ही भारत आजाद हुआ, लेकिन पाकिस्तान विभाजन के काले इतिहास के साथ।
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