Toc News
Comments Homeopathy Medicine in Hindi
परिचय :-
पुरुषों में एक पुरुस्थ ग्रंथि होती है जो मूत्राशय के गर्दन को चारों ओर से घेरे रहती है और उसके बीच से होकर मूत्रनली हो जाती है। मूत्राशय से एक नलिका जुड़ी होती है जो मूत्राशय में एकत्रित मूत्र को लिंग तक लाती है। पुरुषों में पुरुस्थ ग्रंथि से सम्बंधित परेशानियां 50 साल के बाद शुरू होती है। पुरुस्थग्रंथि सम्बंधित परेशानियां इस प्रकार हैं- पुरुस्थग्रंथि का बढ़ जाना, पुरुस्थग्रंथि की सूजन एवं पुरुस्थग्रंथि का कैंसर आदि।
कारण :-
पुरुस्थग्रंथि बढ़ जाने का मुख्य कारण हारमोन्स में असंतुलन पैदा होना है। अधिक उम्र होना, ग्रंथि में सूजन व जलन होना एवं बैक्टीरिया संक्रमण होना आदि कारणों से भी यह रोग होता है। यह रोग मूत्रमार्ग में पथरी बनना, पेशाब का वापस लौट जाना, संभोग के द्वारा प्राप्त संक्रमण, ग्रंथि का कैंसर, अनुवांशीक कारण, हारमोन्स की गड़बड़ी व संभोग से होने वाले रोग आदि कारण से भी हो सकता है।
लक्षण :-
अंडकोष का आकार बढ़ जाना, पेशाब का अपने आप निकल जाना, पेशाब का कुछ देर के लिए रुक जाना और फिर आने लगना, पेशाब का धीरे-धीरे निकलना, जोर लगाने पर भी पूर्ण रूप से पेशाब का निकास न होना, रात को बार-बार पेशाब करने के लिए उठना, पेशाब लाल रंग का होना आदि इस रोग के लक्षण है। मूत्रनली में जलन, बुखार, कंपकंपी, दर्द पूर्ण पुरुस्थग्रंथि, कमर के निम्न भाग में हल्का-हल्का दर्द,
पेशाब करते समय दर्द होना, जननांगों पोतो और लिंग में दर्द होना, पेशाब लाल व बदबूदार आना आदि लक्षण भी रोगी में दिखाई पड़ते हैं। कैंसर होना, पेट के नीचे एक कठोर गांठ का अनुभव होना, रुक-रुक का आने वाला पेशाब, बार-बार पेशाब आना, मूत्रमार्ग का संक्रमण, शारीरिक वजन का कम होना, खून की कमी, मूत्राशय की सूजन आदि अधिकतर इस रोग में दिखाई पड़ते हैं।
लिंग में जलन, खुजली एवं दाने:-
1. कोका अथवा कोकेन :- रोगी को ऐसा अनुभव होता है जैसेकि उसका लिंग ही नहीं है। ऐसे अनुभव होने पर कोका औषधि की 3 शक्ति या कोकेन औषधि का सेवन करना हितकारी होता है।
2. क्रियोसोट :- मैथुन के समय लिंग में जलन होना और अगले दिन लिंग पर सूजन आ जाना इस प्रकार के लक्षणों में क्रियोसोट औषधि की 3 से 30 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
3. मैग्नेशिया म्यूर :- लिंग में जलन और सुबह के समय लिंग बार-बार उत्तेजित होने के लक्षणों से पीड़ित रोगी को मैग्नेशिया म्यूर औषधि की 30 या 200 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
4. पैरियारा :- यह औषधि मूत्र संस्थान पर विशेष क्रिया करती है। लिंग का अगला भाग अर्थात सुपारी में दर्द होता है, जननेन्द्रिय के पास खुजली होती है एवं मूत्रनली में सूजन आ जाती है। इस तरह के लक्षणों से पीड़ित रोगी को पैरियारा औषधि की 3 शक्ति का सेवन कराना चाहिए।
5. ऐगनस कैस्टस या लाइकोपोडियम :- रोगी को यदि ऐसा अनुभव होता है कि काम शक्ति नष्ट हो गई है या संभोग के समय लिंग उत्तेजित नहीं होता। ऐसे लक्षणों में ऐगनस कैस्टस औषधि की 6 शक्ति या लाइकोपोडियम औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
6. ग्रैफाइटिस :- जननेन्द्रिय पर हर्पीज जैसे दाने होने पर रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि की 30 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
7. क्रोटन टिग :- जननांग पर दाने निकल आते हैं और उन पर तेज खुजली एवं जलन होती है। इस तरह के दाने युक्त खुजली व जलन को दूर करने के लिए क्रोटन टिग औषधि की 6 या 30 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
8. कॉस्टिकम :- जननेन्द्रिय पर खुजली होने पर कॉस्टिकम औषधि की 3 से 30 शक्ति का सेवन करने से लाभ मिलता है।
जननेन्द्रिय कां दर्द :-
9. इग्नेशिया :- यदि खांसते हुए जननेन्द्रिय में दर्द हो तो इग्नेशिया औषधि की 30 शक्ति या 200 शक्ति का उपयोग करना हितकारी होता है।
10. डिजिटेलिस :- वीर्यपात होने के बाद जननेन्द्रिय में दर्द होने के लक्षणों में डिजिटेलिस औषधि की 3 से 30 शक्ति के बीच की कोई भी औषधि का प्रयोग किया जा सकता है।
11. कैपसिकम :- गोनोरिया के रोग में जननेन्द्रिय में दर्द और उत्तेजना होने के लक्षणों में कैप्सिकम औषधि की 3 से 6 शक्ति का उपयोग किया जाता है।
12. नक्स-वोमिका :- सुबह के समय लिंग उत्तेजित होने के साथ दर्द होने पर नक्स-वोमिका औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना लाभकारी होता है।
13. कैलि-कार्ब :- अधिक समय से वीर्यपात होने के कारण आई अत्यधिक कमजोरी एवं इन्द्रिय में दर्द आदि को दूर करने के लिए कैलि कार्ब औषधि की 6x मात्रा या 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
बच्चों में इन्द्रिय को खींचने की आदत :-
1. मर्क सौल :- जो बच्चे जननेन्द्रिय को खींचते रहते हैं उनके लिए मर्क सौल औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना लाभकारी होता है।
2. कैन्थरिस :- मर्क सौल औषधि का सेवन करने से यदि लाभ न मिले तो कैन्थरिस औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
इन्द्रिय का छोटा पड़ जाना :-
1. नूफर लूटियम :- संभोग करने की इच्छा का समाप्त हो जाना, जननेन्द्रिय का ढीलापन, पाखाने या पेशाब के समय अपने आप वीर्य पात हो जाना, प्रोस्टेट के साथ स्राव होना, अंडकोष में दर्द होना आदि। इस तरह के लक्षणों में रोगी को नूफर लूटियम औषधि की 3 से 6 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
2 इग्नेशिया :- जननेन्द्रिय अधिक छोटा दिखाई देने पर इग्नेशिया औषधि की 30 शक्ति का सेवन करें।
3. लाइकोपोडियम :- हस्तमैथुन के कारण इन्द्रिय (लिंग) छोटा हो गया हो तो लाइकोपोडियम औषधि की 30 शक्ति का सेवन करने से फायदा मिलता है।
4. एगनस कैस्टस :- जननेन्द्रिय का ढीला होने या ठंडा पड़ जाने पर एगनस कैस्टस औषधि की 6 शक्ति का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
सुपारी को ढकने वाली त्वचा का पीछे न हटना :-
5. मर्क आयोडाइड :- जननेन्द्रिय के अगले भाग को ढकने वाली त्वचा का पीछे न हटने के शिकायत में मर्क आयोडाइड औषधि की 2x मात्रा का सेवन करना फायदेमंद होता है।
6. नाइट्रिक ऐसिड :- जननेन्द्रिय का अगला भाग सूज जाने के कारण सुपारी के ऊपर की त्वचा पीछे न हटती हो तो रोगी को नाइट्रिक ऐसिड औषधि की 6 शक्ति का सेवन कराना चाहिए।
7. सल्फर :- जननेन्द्रिय के अगले भाग की त्वचा पीछे न हटने के साथ उसमें पीब बनने के लक्षण दिखाई देने पर सल्फर औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
8. हिपर सल्फर :- जननेन्द्रिय में पीब बनने के साथ टपकनयुक्त दर्द होने पर हिपर सल्फर औषधि से उपचार करना चाहिए।
सुपारी या लिंग के अगले भाग में सूजन आना :-
1. ग्रैफाइटिस :- लिंग के अगले भाग पर अधिक सूजन आने और जननेन्द्रिय पर छाले पड़ जाने के लक्षणों में ग्रैफाइटिस औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना हितकारी होता है।
2. रस-टॉक्स :- सुपारी का सूजकर लाल हो जाने और उसमें दर्द होना आदि प्रकार के लक्षणों में उपचार करने के लिए रस-टॉक्स औषधि की 30 शक्ति का उपोग करना चाहिए।
3. मर्क-सौल :- लिंग का अगला भाग इतना अधिक सूज जाता है कि लिंग मुण्ड की त्वचा पीछे नहीं हटती। ऐसी स्थिति में त्वचा को पीछे हटने की कोशिश करने पर पीला या नीला पीब निकलती है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को उपचार के लिए मर्क सौल औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
4. सिन्नेबेरिस :- सुपारी को ढकने वाली त्वचा में सूजन आ जाती है, उस पर मस्से हो जाते हैं और मस्से से खून बहता है या अंडकोष का बढ़ जाने के लक्षणों में उपचार करने के लिए सिन्नेबेरिस औषधि की 3x मात्रा का प्रयोग करना हितकारी होता है।
इन्द्रिय एवं लिंग की त्वचा पर खुजली होना :-
1. सिन्नेबेरिस :- इन्द्रिय एवं लिंग को ढकने वाली त्वचा पर खुजली होने के लक्षणों में सिन्नेबेरिस औषधि की 3x मात्रा का उपयोग करने से लाभ मिलता है।
2. रस-टॉक्स :- लिंग के ऊपर की त्वचा में ऐसी खुजली होना जिसे खुजलाने पर लिंग उत्तेजित हो जाता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को रस-टॉक्स औषधि 30 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
Comments Homeopathy Medicine in Hindi
परिचय :-
पुरुषों में एक पुरुस्थ ग्रंथि होती है जो मूत्राशय के गर्दन को चारों ओर से घेरे रहती है और उसके बीच से होकर मूत्रनली हो जाती है। मूत्राशय से एक नलिका जुड़ी होती है जो मूत्राशय में एकत्रित मूत्र को लिंग तक लाती है। पुरुषों में पुरुस्थ ग्रंथि से सम्बंधित परेशानियां 50 साल के बाद शुरू होती है। पुरुस्थग्रंथि सम्बंधित परेशानियां इस प्रकार हैं- पुरुस्थग्रंथि का बढ़ जाना, पुरुस्थग्रंथि की सूजन एवं पुरुस्थग्रंथि का कैंसर आदि।
कारण :-
पुरुस्थग्रंथि बढ़ जाने का मुख्य कारण हारमोन्स में असंतुलन पैदा होना है। अधिक उम्र होना, ग्रंथि में सूजन व जलन होना एवं बैक्टीरिया संक्रमण होना आदि कारणों से भी यह रोग होता है। यह रोग मूत्रमार्ग में पथरी बनना, पेशाब का वापस लौट जाना, संभोग के द्वारा प्राप्त संक्रमण, ग्रंथि का कैंसर, अनुवांशीक कारण, हारमोन्स की गड़बड़ी व संभोग से होने वाले रोग आदि कारण से भी हो सकता है।
लक्षण :-
अंडकोष का आकार बढ़ जाना, पेशाब का अपने आप निकल जाना, पेशाब का कुछ देर के लिए रुक जाना और फिर आने लगना, पेशाब का धीरे-धीरे निकलना, जोर लगाने पर भी पूर्ण रूप से पेशाब का निकास न होना, रात को बार-बार पेशाब करने के लिए उठना, पेशाब लाल रंग का होना आदि इस रोग के लक्षण है। मूत्रनली में जलन, बुखार, कंपकंपी, दर्द पूर्ण पुरुस्थग्रंथि, कमर के निम्न भाग में हल्का-हल्का दर्द,
पेशाब करते समय दर्द होना, जननांगों पोतो और लिंग में दर्द होना, पेशाब लाल व बदबूदार आना आदि लक्षण भी रोगी में दिखाई पड़ते हैं। कैंसर होना, पेट के नीचे एक कठोर गांठ का अनुभव होना, रुक-रुक का आने वाला पेशाब, बार-बार पेशाब आना, मूत्रमार्ग का संक्रमण, शारीरिक वजन का कम होना, खून की कमी, मूत्राशय की सूजन आदि अधिकतर इस रोग में दिखाई पड़ते हैं।
लिंग में जलन, खुजली एवं दाने:-
1. कोका अथवा कोकेन :- रोगी को ऐसा अनुभव होता है जैसेकि उसका लिंग ही नहीं है। ऐसे अनुभव होने पर कोका औषधि की 3 शक्ति या कोकेन औषधि का सेवन करना हितकारी होता है।
2. क्रियोसोट :- मैथुन के समय लिंग में जलन होना और अगले दिन लिंग पर सूजन आ जाना इस प्रकार के लक्षणों में क्रियोसोट औषधि की 3 से 30 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
3. मैग्नेशिया म्यूर :- लिंग में जलन और सुबह के समय लिंग बार-बार उत्तेजित होने के लक्षणों से पीड़ित रोगी को मैग्नेशिया म्यूर औषधि की 30 या 200 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
4. पैरियारा :- यह औषधि मूत्र संस्थान पर विशेष क्रिया करती है। लिंग का अगला भाग अर्थात सुपारी में दर्द होता है, जननेन्द्रिय के पास खुजली होती है एवं मूत्रनली में सूजन आ जाती है। इस तरह के लक्षणों से पीड़ित रोगी को पैरियारा औषधि की 3 शक्ति का सेवन कराना चाहिए।
5. ऐगनस कैस्टस या लाइकोपोडियम :- रोगी को यदि ऐसा अनुभव होता है कि काम शक्ति नष्ट हो गई है या संभोग के समय लिंग उत्तेजित नहीं होता। ऐसे लक्षणों में ऐगनस कैस्टस औषधि की 6 शक्ति या लाइकोपोडियम औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
6. ग्रैफाइटिस :- जननेन्द्रिय पर हर्पीज जैसे दाने होने पर रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि की 30 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
7. क्रोटन टिग :- जननांग पर दाने निकल आते हैं और उन पर तेज खुजली एवं जलन होती है। इस तरह के दाने युक्त खुजली व जलन को दूर करने के लिए क्रोटन टिग औषधि की 6 या 30 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
8. कॉस्टिकम :- जननेन्द्रिय पर खुजली होने पर कॉस्टिकम औषधि की 3 से 30 शक्ति का सेवन करने से लाभ मिलता है।
जननेन्द्रिय कां दर्द :-
9. इग्नेशिया :- यदि खांसते हुए जननेन्द्रिय में दर्द हो तो इग्नेशिया औषधि की 30 शक्ति या 200 शक्ति का उपयोग करना हितकारी होता है।
10. डिजिटेलिस :- वीर्यपात होने के बाद जननेन्द्रिय में दर्द होने के लक्षणों में डिजिटेलिस औषधि की 3 से 30 शक्ति के बीच की कोई भी औषधि का प्रयोग किया जा सकता है।
11. कैपसिकम :- गोनोरिया के रोग में जननेन्द्रिय में दर्द और उत्तेजना होने के लक्षणों में कैप्सिकम औषधि की 3 से 6 शक्ति का उपयोग किया जाता है।
12. नक्स-वोमिका :- सुबह के समय लिंग उत्तेजित होने के साथ दर्द होने पर नक्स-वोमिका औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना लाभकारी होता है।
13. कैलि-कार्ब :- अधिक समय से वीर्यपात होने के कारण आई अत्यधिक कमजोरी एवं इन्द्रिय में दर्द आदि को दूर करने के लिए कैलि कार्ब औषधि की 6x मात्रा या 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
बच्चों में इन्द्रिय को खींचने की आदत :-
1. मर्क सौल :- जो बच्चे जननेन्द्रिय को खींचते रहते हैं उनके लिए मर्क सौल औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना लाभकारी होता है।
2. कैन्थरिस :- मर्क सौल औषधि का सेवन करने से यदि लाभ न मिले तो कैन्थरिस औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
इन्द्रिय का छोटा पड़ जाना :-
1. नूफर लूटियम :- संभोग करने की इच्छा का समाप्त हो जाना, जननेन्द्रिय का ढीलापन, पाखाने या पेशाब के समय अपने आप वीर्य पात हो जाना, प्रोस्टेट के साथ स्राव होना, अंडकोष में दर्द होना आदि। इस तरह के लक्षणों में रोगी को नूफर लूटियम औषधि की 3 से 6 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
2 इग्नेशिया :- जननेन्द्रिय अधिक छोटा दिखाई देने पर इग्नेशिया औषधि की 30 शक्ति का सेवन करें।
3. लाइकोपोडियम :- हस्तमैथुन के कारण इन्द्रिय (लिंग) छोटा हो गया हो तो लाइकोपोडियम औषधि की 30 शक्ति का सेवन करने से फायदा मिलता है।
4. एगनस कैस्टस :- जननेन्द्रिय का ढीला होने या ठंडा पड़ जाने पर एगनस कैस्टस औषधि की 6 शक्ति का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
सुपारी को ढकने वाली त्वचा का पीछे न हटना :-
5. मर्क आयोडाइड :- जननेन्द्रिय के अगले भाग को ढकने वाली त्वचा का पीछे न हटने के शिकायत में मर्क आयोडाइड औषधि की 2x मात्रा का सेवन करना फायदेमंद होता है।
6. नाइट्रिक ऐसिड :- जननेन्द्रिय का अगला भाग सूज जाने के कारण सुपारी के ऊपर की त्वचा पीछे न हटती हो तो रोगी को नाइट्रिक ऐसिड औषधि की 6 शक्ति का सेवन कराना चाहिए।
7. सल्फर :- जननेन्द्रिय के अगले भाग की त्वचा पीछे न हटने के साथ उसमें पीब बनने के लक्षण दिखाई देने पर सल्फर औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
8. हिपर सल्फर :- जननेन्द्रिय में पीब बनने के साथ टपकनयुक्त दर्द होने पर हिपर सल्फर औषधि से उपचार करना चाहिए।
सुपारी या लिंग के अगले भाग में सूजन आना :-
1. ग्रैफाइटिस :- लिंग के अगले भाग पर अधिक सूजन आने और जननेन्द्रिय पर छाले पड़ जाने के लक्षणों में ग्रैफाइटिस औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना हितकारी होता है।
2. रस-टॉक्स :- सुपारी का सूजकर लाल हो जाने और उसमें दर्द होना आदि प्रकार के लक्षणों में उपचार करने के लिए रस-टॉक्स औषधि की 30 शक्ति का उपोग करना चाहिए।
3. मर्क-सौल :- लिंग का अगला भाग इतना अधिक सूज जाता है कि लिंग मुण्ड की त्वचा पीछे नहीं हटती। ऐसी स्थिति में त्वचा को पीछे हटने की कोशिश करने पर पीला या नीला पीब निकलती है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को उपचार के लिए मर्क सौल औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
4. सिन्नेबेरिस :- सुपारी को ढकने वाली त्वचा में सूजन आ जाती है, उस पर मस्से हो जाते हैं और मस्से से खून बहता है या अंडकोष का बढ़ जाने के लक्षणों में उपचार करने के लिए सिन्नेबेरिस औषधि की 3x मात्रा का प्रयोग करना हितकारी होता है।
इन्द्रिय एवं लिंग की त्वचा पर खुजली होना :-
1. सिन्नेबेरिस :- इन्द्रिय एवं लिंग को ढकने वाली त्वचा पर खुजली होने के लक्षणों में सिन्नेबेरिस औषधि की 3x मात्रा का उपयोग करने से लाभ मिलता है।
2. रस-टॉक्स :- लिंग के ऊपर की त्वचा में ऐसी खुजली होना जिसे खुजलाने पर लिंग उत्तेजित हो जाता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को रस-टॉक्स औषधि 30 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
No comments:
Post a Comment