भोपाल // अवधेश पुरोहित // toc news
केन्द्र की नरेन्द्र मोदी की सरकार हो या गुजरात की या फिर राजस्थान या छत्तीसगढ़ या मध्यप्रदेश के अति लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मध्यप्रदेश की सरकार हो इन सभी सरकारों की घटती लोकप्रियता से इन दिनों संघ काफी चिंतित है, शायद यही वजह है कि वह इन सभी सरकारों को लेकर मनन, चिंतन और मंथन करने में लगी हुई है संघ इस बात को लेकर भी चिंतित है कि आखिर भाजपा सरकारोंं की अच्छी नीतियों और जनहितैषी कार्यक्रमों के बावजूद भी भाजपा सरकारों की छवि लोगों में क्यों गिर रही है। संघ के द्वारा अपने स्तर पर समय-समय पर इन सरकारों की लोकप्रियता को लेकर सर्वे भी कराये जा रहे हैं। हाल ही में गुजरात की सरकार की लोकप्रियता को लेकर लेकर गुजरात में एक निजी एजेंसी से सर्वे कराया उसमें यदि आज चुनाव हो जाएं तो गुजरात में भाजपा को अधिक से अधिक ५० सीटें ही प्राप्त होंगी, लगभग यही स्थिति मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की है, शायद यही वजह है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हाल ही में हुए मंत्रिमण्डल विस्तार के बाद अपने मंत्रियों पर इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जनता से जुड़ें, गांव में जायें अपने प्रभार वाले जिले में गांव में जाकर रात्रि बितायें, लोगों की समस्या को सुनें और लोगों से अच्छे सम्पर्क बनायें, हालांकि मुख्यमंत्री के इस निर्देश की पहल उनके ही बुंदेलखण्ड के छतरपुर जिले की विधायक ललिता यादव ने जो कि वह इस स्तर से की कि वह पूरे अपने परिवार, पुत्र और परिवार की महिलाओं के साथ-साथ भाजपा के कार्यकर्ताओं और ठेकेदार तक को अपने प्रभार के जिले श्योपुर में जा धमकी, पता नहीं इतने बड़े लाव-लश्कर के साथ उनका अपने जिले में जाने के पीछे क्या मकसद था और अपने साथ ठेकेदार को ले जाने के पीछे उनकी क्या मंशा थी, यह वही जानें लेकिन जहां तक उनके बारे में छतरपुर के लोगों मेें जो धारणा है कि वह त्याग तपस्या और समर्पण के प्रति कुछ ज्यादा ही कच्ची हैं, शायद यही वजह हो सकती है कि जब उनके परिजनों और भाजपा नेताओं और ठेकेदार ने उनके प्रभाव वाले जिले में उनके साथ चलने का जो आग्रह किया वह उसे नकार नहीं सकीं, खैर यह उनका व्यक्तिगत मामला है, यह वही जानें लेकिन अपने साथ ठेकेदार को ले जाने के मुद्दे को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं, लगभग यही स्थिति भाजपा के अधिकांश नेताओं की है कि वह सत्ता में आने के बाद इतने बौरा गए हैं कि कभी कोई टीआई को धमकी देता है तो कभी एसपी को तो कभी किसी बाबू या कलेक्टर को कुल मिलाकर धौंस देना सरकारी अधिकारियों पर दबाव बनाना और विभिन्न आयोजनों नाम आये दिन इन अधिकारियों से राजधानी के एक चंदामामा का अनुसरण करते हुए चंदा वसूली करना एक आम बात हो गई है। शायद यही वजह है कि पार्टी अब अपने मूल चाल, चरित्र और चेहरा के सिद्धांतों को छोड़कर वोट की खातिर अन्य वर्गों के नेताओं को अपना बनाने में लगी हुई है और इसी क्रम में पहले अम्बेडकर फिर चन्द्रशेखर और हाल ही में भाजपा नेताओं ने शहडोल जिले की उमरिया तहसील में आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विरसा मुंडा की जन्मस्थली भी उमरिया में खोज रखी। इस तरह की नई-नई खोजों और शोधों के चलते अब भाजपा के नेता केसरिया जिसके बारे में कहा जाता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में व्यक्ति को नहीं बल्कि संगठन को प्राथमिकता दी जाती है यही कारण है कि यहां ध्वज को गुरु का मान दिया गया है, संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा ने भी अपने झण्डे को नेतृत्व के बराबर सम्मान दिया गया है, शायद यही वजह थी कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के झण्डे के रंगों से तालमेल खाते तमाम कमल निशान वेज को पूरे समय अपने सीने पर लगाया रखा लेकिन अब वोट की खातिर भाजपा केसरिया छोड़ तिरंगा थामने जा रही है और इसके चलते २३ अगस्त तक पूरी पार्टी की गतिविधियां तिरंगे के इर्द-गिर्द ही नजर आएंगे और इस दौरान इन आयोजनों का संयोजन विधायकों और भाजपा के नेताओं के द्वारा किया जाएगा। इस तिरंगा आयोजन में कोई गड़बड़झाला या गफलत न हो इसके लिए भाजपा ने अपने विधायकों को भोपाल बुलाकर एक गाइउलाइन थमा दी, गांधी और तिरंगा कांग्रेस की पहचान रही है भाजपा ने कांग्रेसमुक्त भारत के नारे के तहत कांग्रेस से उसके प्रतीकों को भी इन दिनों पूरी ताकत झोंक दी है, गांधी के विचारों को मुखाग्र तो आनुशांगिक संगठनों ने जारी रखी है लेकिन संघ और भाजपा ने अपने मूल स्वर में गांधी और उनकी विचारधारा के प्रति इन दिनों कुछ ज्यादा ही सम्मान दिखाई दे रहा है शायद इसी तरह राजनीतिक पेतरा दलितों की राजनीति करने वाले दलों को मात देने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर के प्रति पिछले दिनों अपनाया गया अब तिरंगे की बारी है हालांकि तिरंगा आजादी के मतवालों का अभियान था भाजपा ने इस अभियान को राष्ट्रवाद की अपनी कांसेप्ट से जोड़ दिया है देखना अब यह है कि इस तिरंगा अभियान से भाजपा को क्या फायदा होता है।
केन्द्र की नरेन्द्र मोदी की सरकार हो या गुजरात की या फिर राजस्थान या छत्तीसगढ़ या मध्यप्रदेश के अति लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मध्यप्रदेश की सरकार हो इन सभी सरकारों की घटती लोकप्रियता से इन दिनों संघ काफी चिंतित है, शायद यही वजह है कि वह इन सभी सरकारों को लेकर मनन, चिंतन और मंथन करने में लगी हुई है संघ इस बात को लेकर भी चिंतित है कि आखिर भाजपा सरकारोंं की अच्छी नीतियों और जनहितैषी कार्यक्रमों के बावजूद भी भाजपा सरकारों की छवि लोगों में क्यों गिर रही है। संघ के द्वारा अपने स्तर पर समय-समय पर इन सरकारों की लोकप्रियता को लेकर सर्वे भी कराये जा रहे हैं। हाल ही में गुजरात की सरकार की लोकप्रियता को लेकर लेकर गुजरात में एक निजी एजेंसी से सर्वे कराया उसमें यदि आज चुनाव हो जाएं तो गुजरात में भाजपा को अधिक से अधिक ५० सीटें ही प्राप्त होंगी, लगभग यही स्थिति मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की है, शायद यही वजह है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हाल ही में हुए मंत्रिमण्डल विस्तार के बाद अपने मंत्रियों पर इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जनता से जुड़ें, गांव में जायें अपने प्रभार वाले जिले में गांव में जाकर रात्रि बितायें, लोगों की समस्या को सुनें और लोगों से अच्छे सम्पर्क बनायें, हालांकि मुख्यमंत्री के इस निर्देश की पहल उनके ही बुंदेलखण्ड के छतरपुर जिले की विधायक ललिता यादव ने जो कि वह इस स्तर से की कि वह पूरे अपने परिवार, पुत्र और परिवार की महिलाओं के साथ-साथ भाजपा के कार्यकर्ताओं और ठेकेदार तक को अपने प्रभार के जिले श्योपुर में जा धमकी, पता नहीं इतने बड़े लाव-लश्कर के साथ उनका अपने जिले में जाने के पीछे क्या मकसद था और अपने साथ ठेकेदार को ले जाने के पीछे उनकी क्या मंशा थी, यह वही जानें लेकिन जहां तक उनके बारे में छतरपुर के लोगों मेें जो धारणा है कि वह त्याग तपस्या और समर्पण के प्रति कुछ ज्यादा ही कच्ची हैं, शायद यही वजह हो सकती है कि जब उनके परिजनों और भाजपा नेताओं और ठेकेदार ने उनके प्रभाव वाले जिले में उनके साथ चलने का जो आग्रह किया वह उसे नकार नहीं सकीं, खैर यह उनका व्यक्तिगत मामला है, यह वही जानें लेकिन अपने साथ ठेकेदार को ले जाने के मुद्दे को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं, लगभग यही स्थिति भाजपा के अधिकांश नेताओं की है कि वह सत्ता में आने के बाद इतने बौरा गए हैं कि कभी कोई टीआई को धमकी देता है तो कभी एसपी को तो कभी किसी बाबू या कलेक्टर को कुल मिलाकर धौंस देना सरकारी अधिकारियों पर दबाव बनाना और विभिन्न आयोजनों नाम आये दिन इन अधिकारियों से राजधानी के एक चंदामामा का अनुसरण करते हुए चंदा वसूली करना एक आम बात हो गई है। शायद यही वजह है कि पार्टी अब अपने मूल चाल, चरित्र और चेहरा के सिद्धांतों को छोड़कर वोट की खातिर अन्य वर्गों के नेताओं को अपना बनाने में लगी हुई है और इसी क्रम में पहले अम्बेडकर फिर चन्द्रशेखर और हाल ही में भाजपा नेताओं ने शहडोल जिले की उमरिया तहसील में आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विरसा मुंडा की जन्मस्थली भी उमरिया में खोज रखी। इस तरह की नई-नई खोजों और शोधों के चलते अब भाजपा के नेता केसरिया जिसके बारे में कहा जाता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में व्यक्ति को नहीं बल्कि संगठन को प्राथमिकता दी जाती है यही कारण है कि यहां ध्वज को गुरु का मान दिया गया है, संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा ने भी अपने झण्डे को नेतृत्व के बराबर सम्मान दिया गया है, शायद यही वजह थी कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के झण्डे के रंगों से तालमेल खाते तमाम कमल निशान वेज को पूरे समय अपने सीने पर लगाया रखा लेकिन अब वोट की खातिर भाजपा केसरिया छोड़ तिरंगा थामने जा रही है और इसके चलते २३ अगस्त तक पूरी पार्टी की गतिविधियां तिरंगे के इर्द-गिर्द ही नजर आएंगे और इस दौरान इन आयोजनों का संयोजन विधायकों और भाजपा के नेताओं के द्वारा किया जाएगा। इस तिरंगा आयोजन में कोई गड़बड़झाला या गफलत न हो इसके लिए भाजपा ने अपने विधायकों को भोपाल बुलाकर एक गाइउलाइन थमा दी, गांधी और तिरंगा कांग्रेस की पहचान रही है भाजपा ने कांग्रेसमुक्त भारत के नारे के तहत कांग्रेस से उसके प्रतीकों को भी इन दिनों पूरी ताकत झोंक दी है, गांधी के विचारों को मुखाग्र तो आनुशांगिक संगठनों ने जारी रखी है लेकिन संघ और भाजपा ने अपने मूल स्वर में गांधी और उनकी विचारधारा के प्रति इन दिनों कुछ ज्यादा ही सम्मान दिखाई दे रहा है शायद इसी तरह राजनीतिक पेतरा दलितों की राजनीति करने वाले दलों को मात देने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर के प्रति पिछले दिनों अपनाया गया अब तिरंगे की बारी है हालांकि तिरंगा आजादी के मतवालों का अभियान था भाजपा ने इस अभियान को राष्ट्रवाद की अपनी कांसेप्ट से जोड़ दिया है देखना अब यह है कि इस तिरंगा अभियान से भाजपा को क्या फायदा होता है।
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