Wednesday, August 31, 2016

भ्रष्टाचार,प्याज के ऑसू भाजपा में सड़ॉन्ध , रिश्ता पुराना है।

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 भोपाल (पं.एस.के.भारद्वाज)पुराने बुद्धिजीवी और राजनेता सब जानते है कि भाजपा और प्याज का जन्म से ही  रिश्ता है। भाजपा के लोगो में एक विशेषगुण विद्यमान है कि ये जब विपक्ष में होते है तो आम जनता का पक्ष सत्ता के सामने तर्क सहित जोरदार तरीके से रखते है ,उसका असर भी होता है और और चहुॅओर प्रशंसा भी मिलती है। परन्तु जैसे ही भाजपा अकेले  अथवा किसी सहयोगी दल के साथ सत्तीन होती है,तो ये वर्षो तक मन और आचरण में से ये बात नही निकाल पाती कि हम विपक्ष की भूमिका में नही है बल्कि सत्ताधारी दल है और हमारी जिम्मेदारी व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त करके लोक कल्याण के लिए काम करना है। अर्थात ये एक ऐसा राजनीतिक दल है जब विपक्ष में रहता है तो जनकल्याण की बातें करता है और सत्ता में होता है तो एक दूसरे की टॉग खीचने और अवैध तरीके से धनसंचय की योजनाओं में लिप्त लोगों और समूहो के साथ परोक्ष रूप से शामिल होकर स्वयं जनता की दृष्टि में दलाली दल और बलशाली भ्रष्टाचारी दल बन कर रह जाता है। पूर्व में कई वार इतिहास अपने आप में ऐसी पुनरावृत्ति कर चुका है। भारतीय जनता पार्टी का प्याज से जन्म का ही नाता रिश्ता है। बात पुरानी है। सत्तर के दशक में जेपी आन्दोलन के बाद भारत में श्रीमती इंदिरा गॉन्धी के इमाजेंसी कानून से क्रुद्ध कुपित होकर जब गैर कॉग्रसी सरकार बनी थी,उस समय एक नया दल बना था। नाम था जनता पार्टी। जनता पार्टी का उदय मतलब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राजनीतिक दल के दीपक को श्री लाल कृष्ण आडवानी और श्री अटल विहारी बाजपेयी एवं उनके सहयोगी साथियों द्वारा बुझाकर सत्ता हासिल करने के लिए नये दल जनता पार्टी के रूप में उदय। इस सत्ताधारी दल में वे सभी लोग शामिल थे जो कांग्रेस के खिलाफ थे । अर्थात सवर्ण मुस्लिम दलित वगैरह वगैरह । स्वाभाविक है जब भिन्न भिन्न वर्ग,धर्म के लोग सत्ता सुख भोगने के उद्देश्य से एकमंच पर सवार होंगे तो ज्यादा दिन तक पटरी नहीं बैठ सकती , हुआ भी ऐसा ही । दिखाने के लिए भले ही एक बने रहे मगर अन्दर खाने अपनी अपनी महत्वाकांक्षाऐं खूब हिलोरे मार रही थी । तत्कालीन समूह में पुराने जनसंघी अपने आप को सवर्ण समाज का अगुवा सिद्ध करने में लगे थे ,तो चौ.चरण सिंह जाट और किसानों के नेता,तो वही बाबू जगजीवनराम जैसे जो स्वयं दलितों  के सौम्यवादी नेता बनकर उभरे तो बीपी सिंह दबंगराजे रजवाड़े, रियासत वाले ठाकुर नेता होकर । उसी भीड़ में दलितवादी मायावती और समाजवादी मुलायम ङ्क्षसंह जैसे नेताओं का उदय भी हुआ। इसी आपस की महत्वाकांक्षी राजनीति में ये  सभी जनता को भूल गये और जनता बेरोजगारी महंगाई प्रशासन की लूट भ्रष्टाचार और अत्याचार से तंग आ गई । परिणामत: मध्यावती चुनाव हुए और श्रीमती इंदिरा गॉधी का चुनावी मुद्दा था खाद्य पदार्थो पर बेहताशा महंगाई और प्याज प्रचार का नमूना। नतीजा श्रीमती इंदिरा गॉधी की प्रभावी तरीके से बिना किसी सहयोगी दल के बिना किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के फंड के सहयोग से सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ पुन:  वापसी। इधर जनता पार्टी में विघटन और भारतीय जनता पार्टी का उदय हो गया। इसके बाद श्रीमती इंदिरा गॉधी के जीवित रहते जनसंघ विचार धारा के लोग अथवा साथी सत्ता में वापसी का सपना भी ही देख पाये। श्रीमती इंदिरा गॉधी की हत्या के बाद एक वार देश की जनता ने अटल विहारी बाजपेयी की अगुवायी में बहुदलीय सत्ता सौपी। इस बार भी यही हुआ ये सत्ता में आते ही इतने मदमस्त हो गये कि इन्होने इन्डिया शाइन का नारा लगाते हुए फील गुड का गाना गाने लगे। जबकि जनता महंगाई भ्रष्टाचार से परेशान थी। नतीजा ये हुआ कि कॉग्रेसियो ंने इसे मुद्दा बनाया और प्याज से बना  हार पहन कर समाज में आ गये परिणामत: देश की जनता ने सत्ताधारी बहुदलीय समूह जिसे एन.डी.ए कहा जाता है उसे नकार कर बाहर का रास्ता दिखा दिया।
   गत चुनावों में भी केन्द्र और राज्य में सरकार भाजपा के जनता के मनमाफिक काग्रेस के खिलाफ विरोध करने के कारण सत्ता सैपी है। जिसमें महंगाई भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा रहे है। मगर यही मुद्दे भाजपा के गले ही हड्डी बनते चले जा रहे है। जनता इनके विरोध से तो खुश थी मगर इनके प्रशासन से तंग आ चुकी है। कोई हल नही है। कोई उपचार नही, कोई समाधान नही है सिवाय असहनीय भ्रष्टाचार ,सरकार पोषित अपराध और माई के लाल मामा के शिष्टाचारी गुन्डई रूपी शासन के आतंक से ।
   आज के परिवेश में भी देखा जाय तो लक्षण कुछ इसी प्रकार के संकेत दे रहे है कि जल्दी ही इतिहास पुन. एक बार पुनर्रावृत्ति करेगा और जनाक्रोश का आधार होगा महंगाई बेरोजगारी भ्रष्टाचार और शासन प्रशासन का अत्याचार। ये भी हो सकता है कि इसका भविष्य का प्रतीक भी प्याज ही बने। बैसे भी म.प्र. में प्याज एक प्रशासन के लिए गले की हड्डी बन चुका है और शासन को संकेत दे चुका है कि तुम्हारे पास कोई की व्यवस्था नही है  न ही आधार भूत नीति। पिछले 10-12 सालों के लम्बे अन्तराल के बाद स्वयं के द्वारा क्रय की गई प्याज के लिए भी राज्य में भंडार गृह /शीतगृह नही है। पूरे म.प्र. में 9.5 लाख टन की क्षमता भर के लिए मात्र 212 शीत गृह है। सरकार के पास इतना भी संरक्षित धन नही है कि आपात काल में किसानों का भुगतान बिना कर्ज लिए अपने राजकोष से कर सके। पूरे म.प्र. में एक भी फूड प्रोसेसिंग फर्म या कंपनी नही है जो 50 हजार कुन्तल प्याज भी खरीद सके। सब कुछ कर्ज और दूसरे राज्यों पर निर्भर है। ब्याज और घाटे की भरपाई जनता कर रही है। वित्त मत्री इस कर्ज को विकास का सिद्धान्त बता रहे है तो स्वयं मुख्यमंत्री किसानों को दी जाने वाली राहत बता रहे है। जून 20016 में खरीदी गई एक लाख चार हजार कुन्टल प्याज में करोंडों की राशि में जो सड़ॅध मार रही है। वह किस राजनीतिक अथवा प्रशासनिक परफ्यूम से कम होगी अथवा कोई तन्त्र साधना करनी पड़ेगी  किसी को कुछ नही सूझ रहा है। जबकि इसके मूल शुद्धिकरण  के लिए चुनावी यज्ञशाला सजने में बहुत समय शेष है। हमतो इसे भाजपा के लिए राजनीतिक भविष्य की सड़ांन्ध मान रहे है। साभार - स्वराज

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