Sunday, August 21, 2016

अगर बच्चों में हैं ये लक्षण, तो लाड़प्यार नहीं तुरंत डाक्टर को दिखाएं

Aug 21, 2016, Toc News

क्या आपके बच्चे का पढ़ाई या खेल में आसानी से ध्यान भंग हो जाता है। लंबे समय तक वह एक जगह टिक कर नहीं बैठता है। बैठे होने पर भी बदन या हाथ और पैर को हिलाना या फिर आपकी पूरी बात को सुने बिना उत्तर देता है तो उस पर लाड़प्यार दिखाने के बजाए जल्द से जल्द मनोचिकित्सक को दिखाएं। हो सकता है बच्चा अटेंशन डेफिशिएंट हाइपरएक्टिविटी डिस्आर्डर (एडीएचडी) का शिकार हो। यह बच्चों में पाया जाने वाला एक दिमागी विकार होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय पर इसका इलाज नहीं होता है तो बड़े होने पर बच्चों में मानसिक परेशानी बढ़ जाती हैं और वे अपराधी प्रवृत्ति के भी बन सकते हैं।

क्या होता है एडीएचडी
पीजीआई के साइक्रेट्री डिपार्टमेंट के मुताबिक यह एक न्यूरो डेवलेपमेंटल डिस्आर्डर होता है। इसमें बच्चा अपने व्यवहार को नियंत्रित नहीं कर पाता। इसके तीन साल की उम्र में लक्षण दिखने लगते हैं। लड़कियों की तुलना में लड़कों में यह तीन गुना अधिक पाया जाता है। स्कूल जाने वाले पांच प्रतिशत बच्चे इससे प्रभावित होते हैं। ये बच्चे लगातार शोर मचाते रहते हैं। इनका व्यवहार असंयमित होता है। क्लास में बैठे-बैठे दूसरों बच्चों को छेड़ते रहते हैं।

एडीएचडी होने के कारण

फैमिली से बच्चों में आना (जेनेटिक)
दिमाग में केमिकल का इनबैलेंस होना
प्रेग्नेंसी के दौरान मां का तनाव में होना
प्रीमिच्योर बच्चे का जन्म का देना
प्रेग्नेंसी के दौरान शराब या सिगरेट का सेवना करना
प्रेग्नेंसी के दौरान पौष्टिक खाने का अभाव

ऐसे पहचानें बच्चों में लक्षण
पढ़ते समय या खेल में आसानी से ध्यान भंग हो जाना
सामने-सामने बात करने पर ऐसा प्रतीत होना जैसे आपकी बात नहीं सुन रहा है
समझी हुई बातों या कार्यों में गलती करना
महत्वपूर्ण सामान-कार्यों को भूल जाना
ऐसे कार्यों को करने में आना-कानी करना, जिसमें एकाग्र होकर बैठना
लगातार चलायमान रहना जैसे कि शरीर में मोटर लगी हो
लंबे समय तक टिक कर न बैठ पाना
बैठे होने पर भी बदन का हिलना-डुलना और हाथ-पैरों का चलते रहना।
अत्यधिक दौड़ना, कूदना या फर्नीचर पर चढ़ना, जिसकी इजाजत न हो
अपनी बारी आने का इंतजार न कर पाना
ट्रैफिक का ध्यान ना रखते हुए दौड़ पाना
दूसरों के वार्तालाप में बाधा डालना
बच्चे बनते हैं अपराधी प्रवृत्ति के

पीजीआई में हर हफ्ते 30 नए केस
पीजीआई के मनोचिकित्साडिपार्टमेंट के मुताबिक हर हफ्ते उनके पास 30 नए केस आते हैं। पिछले दस सालों के दौरान केसों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसके पीछे जागरूकता भी एक कारण हो सकता है। दूसरा चाइल्ड साइकोलाजिस्ट की कमी है। इसलिए केस यहां पर आते हों। इसलिए इनकी संख्या इतनी हो सकती है। यूएसए में एक स्टडी के मुताबिक साल 2002 से लेकर 2012 तक एडीएचडी की संख्या में 50 प्रतिशत इजाफा हुआ है।

क्या मेरे बच्चे को एडीएचडी है?
एक सामान्य बच्चा भी ऐसे लक्षणों को दर्शा सकता है। कई बार सामान्य बच्चे व एडीएचडी से पीड़ित बच्चे में अंतर को समझ पाना मुश्किल होता है। कुछ ऐसे सवाल हैं, जो आपकी मदद कर सकते हैं।

बच्चा तेज होने के बावजूद पढ़ाई में ठीक नहीं कर पा रहा हो
क्या वह स्कूल में खुश है
बिना वजह स्कूली बच्चों को मारना-पीटना
किसी अनचाहे व्यवहार की वजह से आप चिंता में रहते हों
स्कूल या घर के काम को पूरा कर पाता हो
इलाज
पीजीआई के विशेषज्ञों के मुताबिक इसका इलाज आसान है। मेडिकेसन, काउंसलिंग और दवाइयों की मदद से बच्चे के दिमागी विकार को ठीक किया जा सकता है। यदि समय पर इसका इलाज किया जाए तो बच्चे का भविष्य को सुरक्षित किया जा सकता है। वरना ऐसे बच्चे न तो जिंदगी में कोई बेहतर कार्य कर पाते हैं और न ही अपने पैरों पर खड़े होते हैं।

बच्चे बनते हैं अपराधी प्रवृत्ति के
पीजीआई के मनोचिकित्सा डिपार्टमेंट के डाक्टर बताते हैं कि यदि समय पर इसका इलाज न करने पर बच्चे अपराधी प्रवृत्ति के बन जाते हैं। नशे का शिकार करने लगते हैं। पैरेंट्स से बदतमीजी करते हैं। उनका अनादर करते हैं। पढ़ाई में कमजोर हो जाते हैं।

कोट
यह बहुत ही कॉमन हो गया है। हर हफ्ते हमें नए केस मिल रहे हैं। यदि समय पर इलाज शुरू कर दिया जाए तो इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है और बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित बनता है।
डा. सुशांता पंधी, एसोसिएट प्रोफेसर , मनोचिकित्सा विभाग पीजीआई

कोट
पीजीआई में एक स्पेशल क्लीनिक बनाया गया है। इसमें बच्चों को कई थैरेपी दी जाती हैं। इससे बच्चों में अच्छा सुधार देखने को मिला है। हम युवा मनोचिकित्सक व ट्रेनी को इसके आइडेंटिफिकेशन व मैनेजमेंट की ट्रेनिंग दे रहे हैं, ताकि ऐसे मरीजों का आसानी से इलाज किया जा सके।
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डा. रुचिता शाह, मनोचिकित्सा विभाग पीजीआई

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