Sunday, September 18, 2016

शहाबुद्दीन बाहर नहीं आया है, सिवान का काल वापस आया है

Present by - toc news
जिला सिवान, साल 1996, एक इंसान चंदा बाबु, गल्ला पट्टी बड़ा बाजार इलाके में एक किराना दुकान थी, वहीं बगल में चंदा बाबु का घर भी था, अच्छा-खासा बड़ा परिवार, पति-पत्नी, चार बेटे-दो बेटियां। काफी मेहनती आदमी थे चंदा बाबु, इसी मेहनत के दम पे उन्होंने बड़हरिया स्टैंड के पास एक कट्ठा, नौ धुर जमीन रामनाथ गौंड से रजिस्ट्री करायी। यहाँ छ दुकानदारों का कब्ज़ा था, चंदा बाबु के कहने पर पांच ने तो दुकान खाली कर दी मगर छठे शख्स नागेंद्र तिवारी ने खाली नहीं किया। चंदा बाबु ने जमीन पे दुकान खोली और गोदाम भी बनवा दिया, उद्धघाटन समारोह में इलाके के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन और मंत्री अवध बिहारी चौधरी को भी बुला लिया, सब ठीक ही चल रहा था।

2004 में चंदा बाबु ने सोचा की दुकान का निर्माण नए तरीके से करवाना चाहिए लेकिन इसके लिए नागेंद्र का खाली करना जरुरी था। अब चंदा बाबु और नागेंद्र के बीच ठन गयी, नागेंद्र समझ गया कि दुकान तो उसके हाथ से गयी। उसने भी एक आखरी दावँ खेला, नकली कागजात बनवाये और दुकान मदन शर्मा को बेच दी, वैसे तो मदन पेशे से मैकेनिक था लेकिन उसके तालुकात शहर के दबंगों से थे।

चंदा बाबु को जब पूरी कहानी पता चली तो उन्होंने दुकान पर अपना ताला जड़ दिया, उसी रात उन्हें फ़ोन पे धमकी मिली की दुकान छोड़ दो नहीं तो अंजाम बुरा होगा। धमकी का असर भी हुआ और अगले ही दिन लगभग आधा दर्जन लोग उनके घर पहुँचे, गाली-गलौच की और चाभी छीनकर दुकान खोल दी। उन लोगों ने कहा कि अगर दुकान नहीं देना चाहते हो तो दो लाख दे दो हम कुछ नहीं करेंगे, ऐसा साहेब का आदेश है(साहेब यानि शहाबुद्दीन)। चंदा बाबु को लगा की साहेब उनकी दुकान का उद्धघाटन करने आये थे तो अब उनकी समस्या का समाधान भी करेंगे।

12अगस्त 2004, दिन था गुरुवार, चंदा बाबु सिवान जेल पहुंचे, साहेब से कहा कि वे दुकान किराये पे देंगे मगर रजिस्ट्री नहीं करेंगे और दो लाख भी नहीं देंगे इतना सुन के साहेब को गुस्सा आ गया और गुस्से में चंदा बाबु से कहा की सामने से हट जाओ। चंदा बाबु उदास होकर घर आ गए मगर तय किया की दो लाख नहीं देंगे, 14अगस्त को पता चला की उनके भाई की पत्नी को पटना में लड़का हुआ है, चंदा बाबु उसी दिन पटना के लिए निकल गए आगे क्या होने वाला है इस बात से बेखबर।

16 अगस्त की सुबह करीब 10 बजे आफताब, झब्बू मियां, राजकुमार साह, शेख असलम, मोनू उर्फ आरिफ हुसैन, मकसूद मियां समेत एक दर्जन लोग चंदा बाबु की दुकान पहुँचे, वहां उनके दो बेटे राजीव रौशन और सतीश राज मौजूद थे। उनलोगों ने पैसों की मांग की तो राजीव ने जवाब दिया की वे सिर्फ खर्चा-पानी दे सकता है। इतना सुनते ही वे लोग राजीव पे टूट पड़े और उसपे लात-घूंसों की बौछार कर दी, छोटा भाई सतीश अपने भाई को पीटते नहीं देख सका और भागते हुए गोदाम के अंदर गया, वहां उसने शौचालय साफ़ करनेवाला एसिड जोकि उसके दुकान में बिकता था उठाया और मारपीट कर रहे लोगों पर फेंक दिया। राजीव पे भी कुछ छिंटे पड़े मगर वह उनके चंगुल से निकलकर बगलवाले मकान में छुप गया। बदमाशों के हत्थे चढ़ गया सतीश, उसे खींच कर उन्होंने बोलेरो में बैठा लिया और अपने साथ ले गए।

चंदा बाबु के बेटों ने अपने बचाव में शहाबुद्दीन से पंगा ले लिया था। एसिड के छींटे उन दबंगों पर पड़े थे जिनके नाम से पूरा सिवान काँपता था, बात जेल के सलाखों के पीछे कैद साहेब के कानों में भी पहुंची। साहेब की भृकुटि तन गयी, चेहरा गुस्से से लाल, ये तो सीधे-सीधे उनको चुनौती थी, आदेश हुआ, “तेजाब का बदला तेजाब से लिया जायेगा और ये सजा साहेब खुद देंगे।”

सतीश तो कब्जे में था ही, तलाश शुरू हुई राजीव की, नहीं मिला तो बड़हरिया गाँव में लूटपाट की और दुकानों में आग लगा दी फिर बदमाश पहुंचे गल्ला पट्टी, जहाँ चंदा बाबु की पुरानी दुकान थी। वहां पे चंदा बाबु का दूसरा लड़का गिरीश मौजूद था, दबंगों ने उसे ही जबरदस्ती बाइक पे बैठा लिया। इधर राजीव भी छुपते-छुपाते कचहरी पंहुचा, वहां कुछ लोगों से बात की और दक्षिण टोला के तरफ जा रहा था तभी रामराज रोड के पास वो भी पकड़ा गया। अब तीनों भाई शहाबुद्दीन के कब्जे में थे, उन्हें उसके गांव परतापुर ले जाया गया।

बदले की आग में जल रहा शहाबुद्दीन सलाखों से निकल कर अपने घर पहुंचा और तीनों गुस्ताखों को उसके सामने पेश किया गया, शहाबुद्दीन और उनके लोगों ने गिरीश(22वर्ष) और सतीश(20वर्ष) को जिन्दा तेजाब से नहला दिया। वह दोनों जल कर राख हो गए और राजीव दिल पे पत्थर रख के इस खौफनाक मंजर को देखता रहा, आप उसकी दशा का अंदाजा भर लगा के सिहर उठेंगे, ठीक वैसे ही जैसे मेरे हाथ काँप रहे हैं इस कहानी को लिखते हुए। राजीव को समझ में आ गया कि वे लोग चंदा बाबु को पैसे देने के बहाने बुला के उन दोनों को भी मार डालेंगे, वह मौके की तलाश में था देर रात उसे मौका मिला और वह उनके चंगुल से भाग निकला।

इधर शहर में सुबह से शाम तक घटना की चर्चा होती रही। लोग खुल कर बोल तो नहीं पा रहे थे, लेकिन उनका दिल तड़प रहा था। सिवान के ही मुसाफिर चौधरी ने हिम्मत जुटाई और चौक-चौराहों पर खुलेआम बोल दिया की चंदा बाबु के बेटों को इतनी निर्ममता से नहीं मारना चाहिए था। यह बात साहेब के लोगों को पता चली, चंद मिनटों के अंदर ही उनकी गोली मार कर हत्या कर दी गयी। अब तो सबकी जुबान पर ताला लग गया।

चंदा बाबु का पूरा परिवार तितर-बितर हो गया, चंदा बाबु पटना में छुपे रहे और पत्नी कलावती देवी बाकि बच्चों को लेकर अपने गांव छपरा आ गईं । घटना के बाद कलावती देवी के आवेदन पर पहले अज्ञात लोगों पर अपहरण और हत्या का मामला दर्ज हुआ और बाद में शहाबुद्दीन का नाम डाला गया। आठ महीने तक परिवार के सदस्य आपस में मिल भी ना सके, फिर राजीव किसी तरह अपने घरवालों से मिला और पूरी कहानी सुनाई, कई महीने बाद चंदा बाबु ने बेटों का दाह संस्कार गायत्री परिवार के माध्यम से किया।

2011 में राजीव ने हिम्मत जुटाई और घटना के चश्मदीद गवाह के रूप में पेश हो गया, सुनवाई पे सुनवाई चलती रही। 19 जून 2014 को राजीव को फिर चश्मदीद के रूप में पेश होना था मगर 16जून, 2014 को डीएवी मोड़ के पास अपराधियों ने राजीव की गोली मार कर हत्या कर दी।

कहानी अच्छी थी ना? काश ये कहानी ही होती, लेकिन ये तो मैंने हकीकत बयां की है सीवान जिले की, यह बतलाने की कोशिश की है कि ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर‘ बहुतों के लिए एक कल्ट सिनेमा होगा मगर सिवान के बाशिंदों के लिए तो उनके जीवन जिया आईना था। उन्हें उस समय की याद जरूर आई होगी जब बिहार में दो सरकारें काम करती थी, एक पटना की सरकार और दूसरी सिवान में शहाबुद्दीन की।

80 के दशक में शहाबुद्दीन पे पहली बार मुकदमा दर्ज हुआ था, इसके बाद तो मुकदमों की बाढ़ सी आ गयी। उसके हौसलों को हद से ज्यादा बढ़ते देख पुलिस ने उसे हिस्ट्रीशीटर घोषित कर दिया। राजनीतिक गलियारों में शहाबुद्दीन का उदय तब हुआ जब लालू यादव की छत्रछाया में उसने जनता दल की युवा इकाई में कदम रखा, 1990 में विधानसभा का टिकट मिला, जीत दर्ज की, फिर 1995 का चुनाव भी जीत गया। 1996 में शहाबुद्दीन को लोकसभा का टिकट मिला और उसने जीत का सिलसिला बरकरार रखा। 1997 में राजद के गठन के बाद लालू यादव की सरकार बन जाने से शहाबुद्दीन की ताकत और बढ़ गयी।

शहाबुद्दीन कानून से नहीं डरता था, वह खुद ही कानून बनाता था, सिवान जिले में बगैर उसकी इजाजत के पत्ता तक नहीं हिलता था। पुलिस अधिकारियों पर हाथ उठा देने में भी शहाबुद्दीन को कोई हिचक नहीं होती थी। एक बार तो एक अधिकारी संजीव कुमार और अन्य पुलिसवालों को शहाबुद्दीन और उसके आदमियों ने खूब पीटा, इस घटना से सकते में आया पुलिस प्रशासन तुरंत हरकत में आ गया। बिहार और उत्तर प्रदेश पुलिस की संयुक्त टुकड़ियों ने शहाबुद्दीन को गिरफ्तार करने के मकसद से उसके घर पर छापेमारी की। इस करवाई में 10पुलिसवाले मरे गये और “साहेब” फरार हो गए, मौके पे से 3 ऐके-47 भी बरामद हुई थी।

वक्त बदला, बिहार में बदलाव की दस्तक हुई, नितीश कुमार सत्ता में आये। राजद को बिहार की राजनीति से उखाड़ फेंका और शहाबुद्दीन पे भी शिकंजा कस गया। एक के बाद एक फाइलें खुलने लगी, बिहार पुलिस की स्पेशल टीम ने शहाबुद्दीन को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी था कि प्रतापपुर में उसके घर से छापेमारी के दौरान सेना के नाईट विज़न डिवाइस और पाकिस्तान में बने हुए हथियार भी मिले थे। “कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि शहाबुद्दीन के पाकिस्तान में अच्छे संपर्क थे।” कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई और वर्ष 2009 में उसके चुनाव लड़ने पे भी रोक लगा दी। इसी तरह नितीश कुमार सिवान के लोगों के लिए मसीहा का रूप धरकर आये और शहर के लोगों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई।

लेकिन वक्त ने एक बार फिर करवट ली, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और भाजपा का गठबंधन टूट गया, नीतीश ने लालू के साथ महागठबंधन बनाया और 2015 विधानसभा में शानदार वापसी भी की। वापसी असल में लालू यादव की हुई थी और जब लालू आये तो शहाबुद्दीन का भी बहार निकलना तय माना जा रहा था। वैसे तो ये गठबंधन होते ही शहाबुद्दीन के खौफ सिवान में दोबारा आ गया था , राजीव की हत्या के साथ। शहाबुद्दीन जेल से अपना राज चला ही रहा था लेकिन शनिवार को वह आधिकारिक रूप से बाहर आ गया। उसके बाहर आते ही पटना से दिल्ली तक हलचल मच गई,चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया।

शहाबुद्दीन ने भी बहार निकलते ही नीतीश को धत्ता बतलाते हुए लालू को अपना नेता माना और नितीश पे खूब निशाना साधा। जब मीडियावालों ने नीतीशजी से इस बाबत पूछा तो उन्होंने इन बातों को महत्वहीन करार दे दिया परन्तु कोई भी समझदार व्यक्ति नितीश कुमार के हावभाव से उनकी मज़बूरी समझ सकता है। कभी बिहार में लालू के जंगलराज को खुली चुनौती देने वाला शख्स आज इतना मजबूर हो चुका है कि कोई प्रतिकिर्या भी नहीं दे सकता मगर फिर भी मुझे नितीश कुमार से कोई संवेदना नहीं है। वह खुद की करनी का फल भुगत रहे हैं ।
आज शहाबुद्दीन बाहर नहीं आया है सिवान का काल वापस आया है।

यह बिहार में जंगलराज-2 की आधिकारिक घोषणा ही है, अब उन परिवारों पर पल-पल खतरा मंडरा रहा है जिन्होंने शहाबुद्दीन पे केस दर्ज करवाया है।
नितीश जी आपको हर किसी को हिसाब देना होगा, उन जेडीयू कार्यकर्ताओं को आप भूल गए जो सिवान में मारे गए, उन लोगों की कहानियां भूल गए आप, उन निर्मम हत्याओं को भूल गए?

क्या यही आपकी साफ़ छवि वाली राजनीति है? अगर ऐसा है तो फिर धिक्कार है आपको, नितीश जी आपने बिहारियों की उम्मीद को ताड़-ताड़ कर दिया है। वो उम्मीद जो वो आपसे लगाये बैठे थे की आप हैं तो फिर बिहार तरक्की के रास्ते पे ही चलेगा। शायद आपको वोट देने वाले आपका असली चेहरा नहीं देख पाए, वो चेहरा जो कुर्सी के लिए अपना ईमान बेच देता है, जी हां आपने अपना ईमान बेच दिया है और अब आपके साथ-साथ पूरे बिहार को भुगतना होगा।

डी के  वाजपेयी

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