Present by : toc news internet channal
भोपाल। होशंगाबाद रेंज आईजी के पीए की आत्महत्या के मामले में आरोपी बनाए गए दोनों वकील घर पर ताला लगाकर फरार हो गए हैं। वे अग्रिम जमानत कराने की कोशिश में हैं। इस मामले में सुसाइड नोट के आधार पर संदेही बनाए गए सीबीआई के एक आरक्षक से पुलिस ने पूछताछ की है। एक बैंक मैनेजर द्वारा मृतक के जरिए सीबीआई के नाम पर दिए गए 32 लाख रुपये ही मौत का कारण बने थे।
तीन अक्टूबर को बागसेवनिया में रहने वाले अरुण तिवारी ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने सुसाइड नोट में लिखा था कि वकील केटी पंचौली, विनोद पांडे और सीबीआई के मनोज को उसने 32 लाख रुपये दिए थे, जो वापस नहीं मिल रहे थे। ये रुपये सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के निलंबित ब्रांच मैनेजर बसंत पावसे को सीबीआई से बचाने के लिए दिए गए थे। पावसे के खिलाफ सीबीआई ने वर्ष 2010 में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था। उसके खिलाफ तीन मामले सीबीआई में दर्ज हैं। एक फर्जी कागजों पर ऋण देने और गबन का है। इसके बैंक के सीनियर मैनेजर केके चौरसिया और राजधानी के शालीमार कंस्ट्रक्शन और डेवलपर्स भी आरोपी हैं। उसके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला भी दर्ज है।
पुलिस को पता चला कि पावसे ने अरुण तिवारी के जरिए सीबीआई का मामला रफा दफा कराने की कोशिश की थी। इसके लिए अरुण ने सीबीआई के किसी मनोज नामक व्यक्ति और दो वकीलों केटी पंचौली और विनोद पांडे को साढ़े 32 लाख रुपये दिलवाए थे। मामले रफा-दफा नहीं होने पर वह अरुण से ये रुपये मांग रहा था। अरुण ने जब वकीलों और मनोज से रुपये मांगे तो वे लगातार उससे बहाने बनाते रहे। इस बात को लेकर पावसे और दोनों वकील उस पर अलग-अलग दबाव बना रहे थे।
इसी के चलते उसने आत्महत्या कर ली थी।
इस मामले में पुलिस ने दोनों वकीलों के खिलाफ आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का प्रकरण दर्ज किया था। पुलिस ने सीबीआई के मनोज सिंह नामक आरक्षक से भी लंबी पूछताछ की है। हालांकि अफसर इस बारे में सीधे बोलने से बच रहे हैं। मनोज सिंह समेत, पावसे, तिवारी और दोनों वकीलों की कॉल डिटेल भी पुलिस ने निकलवाई है। वकील पंचौली ईदगाह हिल स्थित अपने घर पर ताला लगाकर फरार है, वहीं वकील विनोद पांडे के अयोध्या स्थित घर पर भी पुलिस को ताला मिला है। पांडे के पिता थानेदार हैं और बैतूल में पदस्थ हैं। बताया जाता है कि दोनों वकील अग्रिम जमानत के लिए कोशिश कर रहे हैं।