Saturday, December 3, 2016

प्रदेश के दलितों, आदिवासियों और गरीबों के हक पर डाका डालने में लगे हैं जुलानिया

राधेश्याम जुलानिया के लिए चित्र परिणाम
राधेश्याम जुलानिया

अवधेश पुरोहित @ TOC NEWS


भोपाल । प्रदेश में सरकार भले ही दिग्विजय सिंह की ओर या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राधेश्याम जुलानिया वह अधिकारी हैं, जो हर किसी की सरकार में सत्ताधीशों के चहेते रहे हैं, तो वहीं इसका लाभ उठाकर उन्होंने राज्य के खजाने को अपनी तानाशाहीपूर्वक कार्यप्रणाली के चलते करोड़ों का बट्टा लगाने का काम किया ही है तो वहीं राज्य के  आदिवासियों, दलितों के साथ-साथ गरीबों के अधिकारों पर भी डांका डालने का काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, जुलानिया की कार्यप्रणाली के चलते जहाँ सरकार को इनकी द्वेषपूर्ण कार्यवाही के चलते करोड़ों का नुकसान हुआ है तो वहीं राज्य के इतिहास में यह भी एक प्रशासनिक अधिकारी के कारण यह कलंक भी झेलना पड़ा है जिसमें न्यायालय द्वारा किसी ठेकेदार के साथ मनमानी कार्यवाही के चलते मंत्रालय में कुड़की होने का भी इतिहास रचा है,

तो वहीं जब वह झाबुआ जिले के तत्कालीन कलेक्टर थे तो उस समय श्वेतकारी संगठन के साथ उनके कार्यकाल में हुए दुव्र्यवहार के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा अपने फैसले में जुलानिया को किसी भी जिम्मेदार पद पर न रखने के आदेश की अवहेलना के चलते राज्य सरकार द्वारा उन्हें हमेशा महत्वपूर्ण पद पर रखने का जो काम किया गय उसका खामियाजा आज भी इस प्रदेश की सरकार को तो भोगना ही पड़ रहा है तो वहीं सरकारी खजाने से भी करोड़ों रुपए जुलानिया की कार्यप्रणाली के चलते न्यायालय के आदेश से क्षतिपूर्ति के रूप में तमाम जुलानिया से पीडि़त ठेकेदारों और अन्य लोगों को दिये गये लेकिन मजे की बात यह है

कि इसके बावजूद भी वह सत्ताधीशों के चहेते बने रहने का लाभ उठाकर राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों में वर्ग संघर्ष की स्थिति भी पैदा होती जा रही पता नहीं जुलानिया को प्रदेश के दलित और आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित करने में क्या मजा आता जो काम उन्होंने झाबुआ जिले के तत्कालीन कलेक्टरी के समय वहाँ के अपने हकों के लिये संघर्ष कर रहे आदिवासियों के साथ जो सड़कों पर व्यवहार किया था उसके वर्षों बाद आज भी वह दलित और आदिवासियों को अधिकार से वंचित कर उन्हें अपमानित करने की नीति को त्याग नहीं पा रहे हैं,

शायद यही वजह है कि इससे परेशान होकर राज्य के एक आईएएस अधिकारी रमेश थेटे ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल लिया है और स्थिति अब यहाँ तक आ गई है कि थेटे द्वारा जुलानिया के खिलाफ अब आर-पार की लड़ाई लडऩे की ठान ली है और वह छ: दिसम्बर को हबीबगंज थाने में जुलानिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने जा रहे हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के स्वर्णिम मध्यप्रदेश में जहाँ जुलानिया की कार्यप्रणाली के चलते राज्य के खजाने को चूना तो लगा ही है तो वहीं अब राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों में वर्ग संघर्ष की स्थिति भी निर्मित हो रही है।

हालांकि जुलानिया की इस तरह की कार्यप्रणाली के चलते इसके परिणाम क्या होंगे यह तो भविष्य बताएगा लेकिन इनके पूर्व विभाग जल संसाधन में दबी जुबान से वर्ग संघर्ष की दास्तान वहां के अधिकारी कहते नजर आते हैं कि जहाँ एक ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के दलितों और आदिवासियों में अपनी पैठ बनाने में लगे हुए हैं वहीं दूसरी ओर उनके ही प्रशासन में बैठे अधिकारी द्वारा राज्य की जनता को तो छोड़ो प्रशासनिक स्तर पर वर्ग संघर्ष के बीज बोए जा रहे हैं।

हालांकि राजनीति से जुड़े लोग झाबुआ में सम्पन्न हुए लोकसभा उपचुनाव मेें भाजपा को मिली हार का कारण भी जुलानिया की कार्यप्रणाली को दोषी ठहराने में लगे हुए हैं तो मजे की बात यह है कि जहाँ एक ओर जुलानिया प्रशासनिक स्तर पर वर्ग संघर्ष की स्थिति का इतिहास इस प्रदेश में लिखने जा रहे हैं तो वहीं अपनी कार्यप्रणाली के चलते राज्य में सरकारी योजनाओं के तहत दलितों आदिवासियों और वंचितों को वितरण किये जाने वाले इन्दिरा आवासों में भी वह अपनी इस नीति को क्रियान्वयन करने में लगे हुए हैं,

ऐसी चर्चा राज्य के प्रशासनिक वर्ग में लोग चटकारे लेकर कहते सुनाई दे रहे हैं तो वहीं प्रदेश इंदिरा आवास आवंटन में व्यापक स्तर पर हुई गड़बड़ी को भी जुलानिया की वर्ग संघर्ष की नीति को दोषी मान रहे हैं और यह दावा करते नजर आ रहे हैं कि जुलानिया की जो नीति आदिवासियों और दलितों की उपेक्षा करने की रही है उसी नीति के चलते शायद पंचायत एवं ग्रामीण विकास के सर्वोसर्वा होने का लाभ उठाते हुए उन्होंने अपनी एक नीति की एक झलक आदिवासी बाहुल्य जिलों के कई गांवों में इन्दिरा कुटीर का लाभ आदिवासियों में न पहुंचाना उनकी इस मंशा को उजागर करता ही है। मजे की बात यह है कि जुलानिया जहाँ-जहाँ भी रहे वहाँ वह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ-साथ अपने विभाग के मंत्री पर दबशि बनाने में भी पीछे नहीं रहे।

इसका जीता जागता उदाहरण उनका पूर्व विभाग जल संसाधन है तो वहीं अब वही नीति अपने पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव पर भी आजमाने का काम वह कर रहे हैं, यही नहीं जुलानिया के द्वारा गोपाल भार्गव की उपेक्षा करने के साथ-साथ अब उनके क्षेत्र के मतदाताओं की जड़ों में मठा डालने का काम भी प्रारम्भ कर दिया है तभी तो जहाँ उन्होंने दलित और आदिवासी बाहुल्य जिलों में शासन के द्वारा स्वीकृत इन्दिरा कुटीरों की मनमानी ढंग से आवंटन करने के साथ-साथ मंत्री के जिले में भी इन इन्दिरा आवास के आवंटनों में कलाकारी दिखाने का काम भी शुरू कर दिया है, देखना अब यह है कि अभी तक राज्य के सत्ताधीशों के चहेते रहे जुलानिया की इस तरह की वर्ग विरोधी नीति के परिणाम इस राज्य में क्या गुल खिलायेंगे।

इसका एक रैकेट सक्रिय है जो किसानों की खेती को लाभ का कारोबार न बनाने की जगह उन्हें बर्बादी की ओर ढकेलने में लगा हुआ है।

 


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