म.प्र. की विधानसभा में हमारे सूत्रों के अनुसार सिंहस्थ घोटाले से सम्बन्धित प्रश्न ज्यादा थे, सरकार की छीछालेदर निश्चित थी,सरकार ने उपनेता को साधा और गुरूपूर्णिमा की छुट्टी का प्रस्ताव दिलवा दिया,सारी समस्या हल,,,,इसके पहले कभी भी यह अवकाश नहीं हुआ, लोकसभा चालू थी, पर,,,,,
आश्चर्य तो इस बात का है कि विपक्ष जो ज्यादा से ज्यादा सदन चलवाना चाहता है उसके ही नेता ने ही छुट्टी करवा दी।
कांग्रेस को सरकार के ऐसे किसी भी प्रयास का विरोध करना तो दूर उल्टा अपने तरफ से प्रस्ताव ही दे डाला। अगर मेरी जानकारी सही है तो। वैसे अगर प्रस्ताव सरकार का था तो कांग्रेस को तैयार ही नहीं होना था।
इसको सरल शब्दों में "मिली-भगत" या नूरा-कुश्ती कहते हैं ।
इन सब घटनाओं को देखकर ठीक ही लगता है कि कांग्रेस सरकार में नहीं है। विपक्ष जब इस तरह से जनता के सवालों से सरकार को बचाने के लिए षडयंत्र करेगा तब भगवान् ही मालिक है, मध्य प्रदेश में लोकतंत्र का !!
जब तक कांग्रेसियों के सरकार में बैठे नेताओं के साथ पार्टनरशिप में धंधे चल रहे हैं, तब तक ऐसा ही होगा।
कांग्रेस विधायकदल में जिस तरह से फूट और अहंकार मिश्रित महत्वकाक्षांओं का टकराव है तब तक बीजेपी को चिंतित होने की ज़रूरत नहीं हैं। सत्र प्रारंभ होने पर विधायकदल में पहुंचे गिने-चुने नेता इसका प्रमाण हैं।
जब नेता अपनी पार्टी से बड़े हो जाते हैं तो मध्यप्रदेश कांग्रेस कहलाते हैं।
शिवराज जी आप चिंता मत करो बस चंद कुछ कांग्रेसी नेताओं को यह भ्रम मीडिया और उनके समर्थकों के माध्यम से दिलाते रहो की वे अगले कांग्रेसी मुख्यमंत्री होंगे, बाकी काम ये नेता खुद ब खुद कर देंगे। और आपका चौथी बार cm बनना तय।
रस्सी जल गयी मगर ऐंठ नहीं गयी। कांग्रेसी नेताओं की इसी आपसे ऐंठ को प्रणाम।
आश्चर्य तो इस बात का है कि विपक्ष जो ज्यादा से ज्यादा सदन चलवाना चाहता है उसके ही नेता ने ही छुट्टी करवा दी।
कांग्रेस को सरकार के ऐसे किसी भी प्रयास का विरोध करना तो दूर उल्टा अपने तरफ से प्रस्ताव ही दे डाला। अगर मेरी जानकारी सही है तो। वैसे अगर प्रस्ताव सरकार का था तो कांग्रेस को तैयार ही नहीं होना था।
इसको सरल शब्दों में "मिली-भगत" या नूरा-कुश्ती कहते हैं ।
इन सब घटनाओं को देखकर ठीक ही लगता है कि कांग्रेस सरकार में नहीं है। विपक्ष जब इस तरह से जनता के सवालों से सरकार को बचाने के लिए षडयंत्र करेगा तब भगवान् ही मालिक है, मध्य प्रदेश में लोकतंत्र का !!
जब तक कांग्रेसियों के सरकार में बैठे नेताओं के साथ पार्टनरशिप में धंधे चल रहे हैं, तब तक ऐसा ही होगा।
कांग्रेस विधायकदल में जिस तरह से फूट और अहंकार मिश्रित महत्वकाक्षांओं का टकराव है तब तक बीजेपी को चिंतित होने की ज़रूरत नहीं हैं। सत्र प्रारंभ होने पर विधायकदल में पहुंचे गिने-चुने नेता इसका प्रमाण हैं।
जब नेता अपनी पार्टी से बड़े हो जाते हैं तो मध्यप्रदेश कांग्रेस कहलाते हैं।
शिवराज जी आप चिंता मत करो बस चंद कुछ कांग्रेसी नेताओं को यह भ्रम मीडिया और उनके समर्थकों के माध्यम से दिलाते रहो की वे अगले कांग्रेसी मुख्यमंत्री होंगे, बाकी काम ये नेता खुद ब खुद कर देंगे। और आपका चौथी बार cm बनना तय।
रस्सी जल गयी मगर ऐंठ नहीं गयी। कांग्रेसी नेताओं की इसी आपसे ऐंठ को प्रणाम।
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