अवधेश पुरोहित @ Toc News
भोपाल। शिवराज सिंह जबसे सत्ता पर काबिज हुए तबसे लेकर आज तक चाहे उनकी पार्टी के जनप्रतिनिध हों या उनके मंत्रिमण्डल के सदस्य या फिर राज्य के प्रशासनिक हलके के अधिकारियों को शायद ही ऐसी कोई बैठक हो जब मुख्यमंत्री के द्वारा उन्हें पारदर्शिता की घुट्टी घोंटकर न पिलाई जाने का संदेश न दिया गया हो, लेकिन सवाल यह उठता है कि पर उपदेश कुशल बहुतेरे की तर्ज पर दूसरों को उपदेश देने को हर कोई हमेशा तैयार रहता है लेकिन पहले वह जिन उपदेशों के पालन की शिक्षा जिसे दे रहा हो पहले उसे तो स्वयं उसका पालन और उस रास्ते पर चलने का अनुभव तो प्राप्त कर लेना चाहिए।
लेकिन शिवराज सिंह का सत्ता में आने के बाद शायद ही ऐसा कोई भाषण प्रदेश की जनता को नहीं सुनाई दिया गया हो जिसमें उन्होंने हर काम में पारदर्शिता का ढिंढोरा पीटा, चाहे फिर वह प्रदेश में हुआ सबसे बड़ा घोटाला व्यापमं की जांच का मामला हो या फिर डीमेट का मामला हो, राज्य में जब-जब भी कोई भी महाघोटाल हुआ शिवराज सिंह का एक ही जवाब रहा है कि इस पूरे मामले में पारदर्शिता का पूरी तरह से पालन किया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नजर नहीं आया, शिवराज सिंह की इस पारदर्शिता के ढिंढोरे के बीच मुझे राज्य के तत्कालीन भारतीय जनशक्ति के महामंत्री प्रहलाद पटेल का २८ सितम्बर २००७ के उस पत्र का स्मरण हो आया जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखा था,
मामला था उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधन सिंह द्वारा अपनी पहचान छुपाकर खरीदे गए डम्पर खरीदी का मामला, उसके बाद जो पत्र प्रहलाद पटेल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखा था उसके कुछ अंशों को यहां ज्यों के त्यों देकर यह प्रयास करने की कोशिश कर रहा हूं कि शिवराज सिंह अपने जीवनकाल में कितने पारदर्शी हैं और उन्होंने पारदर्शिता का कितना ध्यान दिया, जो पारदर्शिता का पाठ प्रदेश की जनता और अपने जनप्रतिनिधि व अफसरशाही को देने में लगे हुए हैं, इस पत्र में श्री पटेल ने मुख्यमंत्री को लिखते हुए कहा कि मैं उपवास के चौथे दिन प्रात: समाचार पत्र पढ़ रहा था जिसमें डम्पर मामले पर आपका प्रलाप पढ़ा, दुख इस बात का है कि आप एक जैन मुनि के समक्ष क्षमा-वाणी के पर्व पर सारी शान से झूठ बोल रहे थे। आप पुस्तकीय ज्ञान की कुछ पंक्तियां अपने मुंह से उच्चारित कर रहे थे, जो शायद अखबारों में छपी थीं, आप शायद भूल जाते हैं कि क्षमा वीरों का आभूषण है कायरों, झूठों और चोरों का नहीं।
आपने मुझसे क्षमा मांगी और मैंने उस मर्यादा का पालन किया लेकिन आप मेरे तथ्यात्मक पत्र का उत्तर देने का साहस नहीं जुटा सके। आपको श्रीमती साधना सिंह को पत्नी स्वीकार करने में दस दिन लग गये हैं और क्षमा-वाणी पर यह कह रहे हैं कि यह आपकी मार्जिन मनी से लिये गये ट्रक हैं। यदि आपके थे तो बेचे क्यों? नैतिक रूप से मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हुए व्यक्ति को इस लेन-देन को सार्वजनिक करना चाहिए। मान्यवर, आपके मिथ्याभिमान से मैं जरूर आहत हूं, क्योंकि पदपर बैठक र आप बहरुपिए हो गए हैं, मैं तो मानता था कि आप स्वयं दागदार नहीं हैं। लेकिन आज के बाद मेरी धारणा बदल गई है। आप स्वयं भ्रष्टाचार के जनक हैं। आपकी कमजोरी, आपके नये-नये न कर पाने की प्रवृत्ति और झूठ बोलना, आर्थिक अपराधियों को खुला संरक्षण दे रहा है, आपका विकास का ढोल भूखों की भूख तो भले ही समाप्त न कर पा रहा हो, भ्रष्टाचारियों का संरक्षण जरूर कर रहा है।
मुख्यमंत्री को प्रहलाद पटेल के द्वारा २८ सितम्बर २००७ को लिखे गये इस पत्र के बाद यह सवाल उठता है कि जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने मंत्रीमण्डल के सहयोगी और प्रदेश की जनता के साथ-साथ अफसरशाही को पारदर्शिता का पाठ पढ़ाने में दिन-रात लगे रहते हैं क्या २००७ के बाद से लेकर आज तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के द्वारा खरीदे गये अपनी पहचान छुपाकर डम्पर और उनको बाद में बेचने की बात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने निवास पर बुलाई एक पत्रकार वार्ता के माध्यम से स्वीकार किया था,
लेकिन सवाल यह उठता है कि जैन मुनि के समक्ष क्षमा-वाणी के पर्व पर जो मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया था कि वह उनकी मार्जिन मनी से खरीदे गये ट्रक हैं क्या उसका हिसाब किताब उनके द्वारा दिये गये विधानसभा में समय-समय पर सम्पत्ति के ब्यौरे के समय या फिर किसी अन्य अफसर पर इन डम्परों की खरीदी का ब्यौरा सार्वजनिक किया गया, इस सवाल का जवाब २००७ से इस प्रदेश की जनता जानने के लिये उत्सुक है, लेकिन आज भी यह जवाब अनुत्तरित है। इसके बावजूद भी लोगों को पारदर्शिता का पाठ पढ़ाना कहां तक उचित है,
राजनीतिक के जानकार इसे आज भी उचित नहीं मान रहे हैं तो भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में इसको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं कि बहु उपदेश कुशल बहुतेरे का ज्ञान तो सभी देने को तैयार हैं, लेकिन जो ज्ञान किसी दूसरे को दे रहे हैं उसको अपने जीवन और अपनी कार्यशैली पर लागू करता कौन दिखाई दे रहा है, इस उत्तर की खोज में आज सभी लगे हुए हैं, मजे की बात यह है कि यह पत्र का स्मरण मुझे भाजपा के कुछ नेताओं द्वारा ही कराया गया और इन नेताओं का यह कहना भी था कि हमारे प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमण्डल के सदस्यों और अधिकारियों के साथ-साथ जनता को पारदर्शिता का ज्ञान तो देते रहते हैं लेकिन क्या प्रहलाद पटेल के द्वारा लिखे गये २८ सितम्बर २००७ के पत्र के बाद मुख्यमंत्री ने डम्पर जो कि इनकी मार्जिन मनी से खरीदे गए थे उसका विवरण आज तक दिया। इस लाख टके के सवाल की जवाब की प्रतीक्षा में जहां राज्य के सात करोड़ २३ लाख जनता खोजने में लगी हुई है तो वहीं उनकी पार्टी के साथ-साथ मंत्रिमण्डल के कई सदस्य और राज्य की नौकरशाही में इस बात को लेकर तरह-तरह चर्चाएं लोग चटकारे लेते नजर आ रहे हैं.
भोपाल। शिवराज सिंह जबसे सत्ता पर काबिज हुए तबसे लेकर आज तक चाहे उनकी पार्टी के जनप्रतिनिध हों या उनके मंत्रिमण्डल के सदस्य या फिर राज्य के प्रशासनिक हलके के अधिकारियों को शायद ही ऐसी कोई बैठक हो जब मुख्यमंत्री के द्वारा उन्हें पारदर्शिता की घुट्टी घोंटकर न पिलाई जाने का संदेश न दिया गया हो, लेकिन सवाल यह उठता है कि पर उपदेश कुशल बहुतेरे की तर्ज पर दूसरों को उपदेश देने को हर कोई हमेशा तैयार रहता है लेकिन पहले वह जिन उपदेशों के पालन की शिक्षा जिसे दे रहा हो पहले उसे तो स्वयं उसका पालन और उस रास्ते पर चलने का अनुभव तो प्राप्त कर लेना चाहिए।
लेकिन शिवराज सिंह का सत्ता में आने के बाद शायद ही ऐसा कोई भाषण प्रदेश की जनता को नहीं सुनाई दिया गया हो जिसमें उन्होंने हर काम में पारदर्शिता का ढिंढोरा पीटा, चाहे फिर वह प्रदेश में हुआ सबसे बड़ा घोटाला व्यापमं की जांच का मामला हो या फिर डीमेट का मामला हो, राज्य में जब-जब भी कोई भी महाघोटाल हुआ शिवराज सिंह का एक ही जवाब रहा है कि इस पूरे मामले में पारदर्शिता का पूरी तरह से पालन किया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नजर नहीं आया, शिवराज सिंह की इस पारदर्शिता के ढिंढोरे के बीच मुझे राज्य के तत्कालीन भारतीय जनशक्ति के महामंत्री प्रहलाद पटेल का २८ सितम्बर २००७ के उस पत्र का स्मरण हो आया जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखा था,
मामला था उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधन सिंह द्वारा अपनी पहचान छुपाकर खरीदे गए डम्पर खरीदी का मामला, उसके बाद जो पत्र प्रहलाद पटेल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखा था उसके कुछ अंशों को यहां ज्यों के त्यों देकर यह प्रयास करने की कोशिश कर रहा हूं कि शिवराज सिंह अपने जीवनकाल में कितने पारदर्शी हैं और उन्होंने पारदर्शिता का कितना ध्यान दिया, जो पारदर्शिता का पाठ प्रदेश की जनता और अपने जनप्रतिनिधि व अफसरशाही को देने में लगे हुए हैं, इस पत्र में श्री पटेल ने मुख्यमंत्री को लिखते हुए कहा कि मैं उपवास के चौथे दिन प्रात: समाचार पत्र पढ़ रहा था जिसमें डम्पर मामले पर आपका प्रलाप पढ़ा, दुख इस बात का है कि आप एक जैन मुनि के समक्ष क्षमा-वाणी के पर्व पर सारी शान से झूठ बोल रहे थे। आप पुस्तकीय ज्ञान की कुछ पंक्तियां अपने मुंह से उच्चारित कर रहे थे, जो शायद अखबारों में छपी थीं, आप शायद भूल जाते हैं कि क्षमा वीरों का आभूषण है कायरों, झूठों और चोरों का नहीं।
आपने मुझसे क्षमा मांगी और मैंने उस मर्यादा का पालन किया लेकिन आप मेरे तथ्यात्मक पत्र का उत्तर देने का साहस नहीं जुटा सके। आपको श्रीमती साधना सिंह को पत्नी स्वीकार करने में दस दिन लग गये हैं और क्षमा-वाणी पर यह कह रहे हैं कि यह आपकी मार्जिन मनी से लिये गये ट्रक हैं। यदि आपके थे तो बेचे क्यों? नैतिक रूप से मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हुए व्यक्ति को इस लेन-देन को सार्वजनिक करना चाहिए। मान्यवर, आपके मिथ्याभिमान से मैं जरूर आहत हूं, क्योंकि पदपर बैठक र आप बहरुपिए हो गए हैं, मैं तो मानता था कि आप स्वयं दागदार नहीं हैं। लेकिन आज के बाद मेरी धारणा बदल गई है। आप स्वयं भ्रष्टाचार के जनक हैं। आपकी कमजोरी, आपके नये-नये न कर पाने की प्रवृत्ति और झूठ बोलना, आर्थिक अपराधियों को खुला संरक्षण दे रहा है, आपका विकास का ढोल भूखों की भूख तो भले ही समाप्त न कर पा रहा हो, भ्रष्टाचारियों का संरक्षण जरूर कर रहा है।
मुख्यमंत्री को प्रहलाद पटेल के द्वारा २८ सितम्बर २००७ को लिखे गये इस पत्र के बाद यह सवाल उठता है कि जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने मंत्रीमण्डल के सहयोगी और प्रदेश की जनता के साथ-साथ अफसरशाही को पारदर्शिता का पाठ पढ़ाने में दिन-रात लगे रहते हैं क्या २००७ के बाद से लेकर आज तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के द्वारा खरीदे गये अपनी पहचान छुपाकर डम्पर और उनको बाद में बेचने की बात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने निवास पर बुलाई एक पत्रकार वार्ता के माध्यम से स्वीकार किया था,
लेकिन सवाल यह उठता है कि जैन मुनि के समक्ष क्षमा-वाणी के पर्व पर जो मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया था कि वह उनकी मार्जिन मनी से खरीदे गये ट्रक हैं क्या उसका हिसाब किताब उनके द्वारा दिये गये विधानसभा में समय-समय पर सम्पत्ति के ब्यौरे के समय या फिर किसी अन्य अफसर पर इन डम्परों की खरीदी का ब्यौरा सार्वजनिक किया गया, इस सवाल का जवाब २००७ से इस प्रदेश की जनता जानने के लिये उत्सुक है, लेकिन आज भी यह जवाब अनुत्तरित है। इसके बावजूद भी लोगों को पारदर्शिता का पाठ पढ़ाना कहां तक उचित है,
राजनीतिक के जानकार इसे आज भी उचित नहीं मान रहे हैं तो भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में इसको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं कि बहु उपदेश कुशल बहुतेरे का ज्ञान तो सभी देने को तैयार हैं, लेकिन जो ज्ञान किसी दूसरे को दे रहे हैं उसको अपने जीवन और अपनी कार्यशैली पर लागू करता कौन दिखाई दे रहा है, इस उत्तर की खोज में आज सभी लगे हुए हैं, मजे की बात यह है कि यह पत्र का स्मरण मुझे भाजपा के कुछ नेताओं द्वारा ही कराया गया और इन नेताओं का यह कहना भी था कि हमारे प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमण्डल के सदस्यों और अधिकारियों के साथ-साथ जनता को पारदर्शिता का ज्ञान तो देते रहते हैं लेकिन क्या प्रहलाद पटेल के द्वारा लिखे गये २८ सितम्बर २००७ के पत्र के बाद मुख्यमंत्री ने डम्पर जो कि इनकी मार्जिन मनी से खरीदे गए थे उसका विवरण आज तक दिया। इस लाख टके के सवाल की जवाब की प्रतीक्षा में जहां राज्य के सात करोड़ २३ लाख जनता खोजने में लगी हुई है तो वहीं उनकी पार्टी के साथ-साथ मंत्रिमण्डल के कई सदस्य और राज्य की नौकरशाही में इस बात को लेकर तरह-तरह चर्चाएं लोग चटकारे लेते नजर आ रहे हैं.
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