महेश दीक्षित
मध्य प्रदेश सरकार जनता के पैसों को लेकर किस कदर 'फिक्रमंदÓ है, इसका नमूना समय-समय पर मिलता ही रहता है। फिजूलखर्ची को लेकर शिवराज सरकार पर भले ही आरोप लगें, पर उसे इसकी बिल्कुल भी परवाह नहीं है। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ब्रांडिंग को लेकर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। वह भी प्राइवेट कंपनी के जरिए। यह हालत तब है, जब प्रदेश करोड़ों रुपए के कर्ज में डूबा है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ब्रांडिंग ठीक उसी तरह कराई जा रही है, जैसे किसी प्रोडक्ट या नए नवेले स्ट्रगलर नेता की होती है। ब्रांडिंग का ठेका इवेंट कंपनी मेडिसिन के पास है। इसके बदले मेडिसिन हर साल सरकार से दो करोड़ रुपए वसूल रही है। ब्रांडिंग का जिम्मा वरिष्ठ पत्रकार अमित जैन देख रहे हैं। अमित जैन एक समय न्यूज चैनल आज तक में हुआ करते थे। मेडिसिन का काम है फेसबुक, ट्विटर और वाट्सएप यानी सोशल मीडिया पर शिवराजजी की जनता के बीच ब्रांडिंग करना। दो साल में शिवराज जी की ब्रांडिंग क्या हुई, यह तो खुद सरकार के जिम्मेदारों को पता नहीं है, लेकिन मेडिसिन तो ब्रांडिंग कर रही है। हाल के महीनों में शिवराज सरकार द्वारा ग्लोबल समिट, सिंहस्थ और वैचारिक कुंभ पर एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्चा किया गया। इनका प्रचार-प्रसार भी मेडिसिन ने ही किया था, पर क्या हुआ? इन बड़े इंवेट्स को नेशनल मीडिया में जो कवरेज मिलना चाहिए था, नहीं मिला। प्रादेशिक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में जो स्थान मिलना था, नहीं मिला। नतीजन मुख्यमंत्री के प्रदेश विकास के यत्न-प्रयत्न और नवाचार जनमानस पर उल्लेखनीय छाप नहीं छोड़ पाए। इसके उलट, शिवराज सरकार की सोशल मीडिया और अखबारों में जमकर किरकिरी जरूर हुई, जबकि मीडिया में शिवराज सरकार के इन आयोजनों का बेहतर प्रचार हो, यह मैनेज करने का जिम्मा मेडिसिन का था।
मुख्यमंत्री का प्रोटोकॉल है कि जनसंपर्क विभाग या सरकारी सेवक के अलावा कोई भी निजी कंपनी का व्यक्ति किसी भी मकसद से मुख्यमंत्री के साथ नहीं रह सकता है, लेकिन मुख्यमंत्री जहां भी जाते हैं, मेडिसिन का एक कर्मचारी हेलीकाप्टर में उनके साथ चलता है। इसी तरह सरकार के नियमों को ताक पर रखकर जनसंपर्क संचालनालय के भवन में एज-फैक्टर नामक कंपनी को अलग से दफ्तर भी उपलब्ध कराया गया है, जो सिर्फ ट्विटर पर शिवराज जी की ब्रांडिंग कर रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मेडिसिन और एज-फैक्टर पर इतनी मेहरबानी किसी की कृपा से और क्यों हो रही है?
सवाल यह भी है कि क्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद देश के दूसरे सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं और पूरे मप्र में मामा के नाम से विख्यात, उन्हें किसी निजी कंपनी से अपनी ब्रांडिंग कराने की जरूरत है? बिल्कुल नहीं, फिर भी जनता के पैसों की नुमाइश हो रही है। शिवराज जी प्रोडक्ट नहीं, प्रदेश की सबसे चर्चित और लोकप्रिय शख्यिसत हैं। वे अपने आप में एक ब्रांड हैं। फिर जिसके पास मप्र के जनसंपर्क विभाग, माध्यम और उसके प्रमुख सचिव एसके मिश्रा, आयुक्त अनुपम राजन, आयुक्त अनिल माथुर, ईडी मंगला मिश्रा, अपर संचालक द्वय-सुरेश गुप्ता और एचएल चौधरी जैसे अनुभवी व काबिल अफसर और जनसंपर्क अधिकारियों-कर्मचारियों की फौज हो, क्या उसे अपनी ब्रांडिंग और प्रचार-प्रसार के लिए मेडिसिन की जरूरत है? या फिर ये सारे अफसर नाकाबिल हैं, जिसकी वजह से शिवराज सरकार की ब्रांडिंग के लिए मेडिसिन की आवश्यकता पड़ी?
निश्चित तौर पर जनसंपर्क महकमा और माध्यम शिवराज जी और उनकी सरकार की ब्रांडिंग के लिए काफी है। मेडिसिन इंटरनेट और सोशल मीडिया के तौर दक्ष हो सकता है, लेकिन अपनी सरकार की बेहतर ब्रांडिंग और प्रचार कैसे हो, कितना हो और किस स्तर पर हो, जनसंपर्क के काबिल अफसरों से भला बेहतर कौन कर सकता है। फिर जनसंपर्क के अफसरों-पीआरओ को मालूम है कि मीडिया में किसे-कितनी तब्वजो देनी है? किसे अडेंट करना है और किसे निगलेक्ट करना है? कहीं प्राइवेट कंपनियों को शिवराजजी की ब्रांडिंग का ठेका देने के पीछे जनसंपर्क विभाग को खत्म करने की साजिश तो नहीं हो रही है?
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जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा से पांच सवाल
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-ऐसा कौन सा काम था जो जनंसपर्क और माध्यम के अफसर-पीआरओ नहीं कर पा रहे थे? जो मेडिसिन से ब्रांडिंग कराने की आवश्यकता पड़ी?
-मेडिसिन का क्राइट एरिया क्या है?
-मेडिसिन कर्मचारी सीएम के साथ रहता है? क्या इससे सीएम के सुरक्षा प्रोटोकाल की अवज्ञा नहीं होती?
-क्या मेडिसिन शिवराज जी की ब्रांडिंग में सफल रही?
-क्या सरकार जनसंपर्क विभाग को खत्म कराना चाहती है?
मध्य प्रदेश सरकार जनता के पैसों को लेकर किस कदर 'फिक्रमंदÓ है, इसका नमूना समय-समय पर मिलता ही रहता है। फिजूलखर्ची को लेकर शिवराज सरकार पर भले ही आरोप लगें, पर उसे इसकी बिल्कुल भी परवाह नहीं है। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ब्रांडिंग को लेकर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। वह भी प्राइवेट कंपनी के जरिए। यह हालत तब है, जब प्रदेश करोड़ों रुपए के कर्ज में डूबा है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ब्रांडिंग ठीक उसी तरह कराई जा रही है, जैसे किसी प्रोडक्ट या नए नवेले स्ट्रगलर नेता की होती है। ब्रांडिंग का ठेका इवेंट कंपनी मेडिसिन के पास है। इसके बदले मेडिसिन हर साल सरकार से दो करोड़ रुपए वसूल रही है। ब्रांडिंग का जिम्मा वरिष्ठ पत्रकार अमित जैन देख रहे हैं। अमित जैन एक समय न्यूज चैनल आज तक में हुआ करते थे। मेडिसिन का काम है फेसबुक, ट्विटर और वाट्सएप यानी सोशल मीडिया पर शिवराजजी की जनता के बीच ब्रांडिंग करना। दो साल में शिवराज जी की ब्रांडिंग क्या हुई, यह तो खुद सरकार के जिम्मेदारों को पता नहीं है, लेकिन मेडिसिन तो ब्रांडिंग कर रही है। हाल के महीनों में शिवराज सरकार द्वारा ग्लोबल समिट, सिंहस्थ और वैचारिक कुंभ पर एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्चा किया गया। इनका प्रचार-प्रसार भी मेडिसिन ने ही किया था, पर क्या हुआ? इन बड़े इंवेट्स को नेशनल मीडिया में जो कवरेज मिलना चाहिए था, नहीं मिला। प्रादेशिक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में जो स्थान मिलना था, नहीं मिला। नतीजन मुख्यमंत्री के प्रदेश विकास के यत्न-प्रयत्न और नवाचार जनमानस पर उल्लेखनीय छाप नहीं छोड़ पाए। इसके उलट, शिवराज सरकार की सोशल मीडिया और अखबारों में जमकर किरकिरी जरूर हुई, जबकि मीडिया में शिवराज सरकार के इन आयोजनों का बेहतर प्रचार हो, यह मैनेज करने का जिम्मा मेडिसिन का था।
मुख्यमंत्री का प्रोटोकॉल है कि जनसंपर्क विभाग या सरकारी सेवक के अलावा कोई भी निजी कंपनी का व्यक्ति किसी भी मकसद से मुख्यमंत्री के साथ नहीं रह सकता है, लेकिन मुख्यमंत्री जहां भी जाते हैं, मेडिसिन का एक कर्मचारी हेलीकाप्टर में उनके साथ चलता है। इसी तरह सरकार के नियमों को ताक पर रखकर जनसंपर्क संचालनालय के भवन में एज-फैक्टर नामक कंपनी को अलग से दफ्तर भी उपलब्ध कराया गया है, जो सिर्फ ट्विटर पर शिवराज जी की ब्रांडिंग कर रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मेडिसिन और एज-फैक्टर पर इतनी मेहरबानी किसी की कृपा से और क्यों हो रही है?
सवाल यह भी है कि क्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद देश के दूसरे सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं और पूरे मप्र में मामा के नाम से विख्यात, उन्हें किसी निजी कंपनी से अपनी ब्रांडिंग कराने की जरूरत है? बिल्कुल नहीं, फिर भी जनता के पैसों की नुमाइश हो रही है। शिवराज जी प्रोडक्ट नहीं, प्रदेश की सबसे चर्चित और लोकप्रिय शख्यिसत हैं। वे अपने आप में एक ब्रांड हैं। फिर जिसके पास मप्र के जनसंपर्क विभाग, माध्यम और उसके प्रमुख सचिव एसके मिश्रा, आयुक्त अनुपम राजन, आयुक्त अनिल माथुर, ईडी मंगला मिश्रा, अपर संचालक द्वय-सुरेश गुप्ता और एचएल चौधरी जैसे अनुभवी व काबिल अफसर और जनसंपर्क अधिकारियों-कर्मचारियों की फौज हो, क्या उसे अपनी ब्रांडिंग और प्रचार-प्रसार के लिए मेडिसिन की जरूरत है? या फिर ये सारे अफसर नाकाबिल हैं, जिसकी वजह से शिवराज सरकार की ब्रांडिंग के लिए मेडिसिन की आवश्यकता पड़ी?
निश्चित तौर पर जनसंपर्क महकमा और माध्यम शिवराज जी और उनकी सरकार की ब्रांडिंग के लिए काफी है। मेडिसिन इंटरनेट और सोशल मीडिया के तौर दक्ष हो सकता है, लेकिन अपनी सरकार की बेहतर ब्रांडिंग और प्रचार कैसे हो, कितना हो और किस स्तर पर हो, जनसंपर्क के काबिल अफसरों से भला बेहतर कौन कर सकता है। फिर जनसंपर्क के अफसरों-पीआरओ को मालूम है कि मीडिया में किसे-कितनी तब्वजो देनी है? किसे अडेंट करना है और किसे निगलेक्ट करना है? कहीं प्राइवेट कंपनियों को शिवराजजी की ब्रांडिंग का ठेका देने के पीछे जनसंपर्क विभाग को खत्म करने की साजिश तो नहीं हो रही है?
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जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा से पांच सवाल
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-ऐसा कौन सा काम था जो जनंसपर्क और माध्यम के अफसर-पीआरओ नहीं कर पा रहे थे? जो मेडिसिन से ब्रांडिंग कराने की आवश्यकता पड़ी?
-मेडिसिन का क्राइट एरिया क्या है?
-मेडिसिन कर्मचारी सीएम के साथ रहता है? क्या इससे सीएम के सुरक्षा प्रोटोकाल की अवज्ञा नहीं होती?
-क्या मेडिसिन शिवराज जी की ब्रांडिंग में सफल रही?
-क्या सरकार जनसंपर्क विभाग को खत्म कराना चाहती है?
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