Saturday, July 16, 2016

मप्र: कर्ज में डूबा प्रदेश, आत्महत्या करते किसान और आनंद मंत्रालय...

संजय सक्सेना @ Present by - toc news
भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार सवा लाख करोड़ से अधिक के कर्ज में डूबी हुई है। प्रदेश के किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। रोजगार की तलाश में युवा भटक रहे हैं। और सरकार आनंद मंत्रालय का गठन कर रही है। सवाल उठना लाजिमी है, क्या इन परिस्थितियों में भी कोई खुश रह सकता है? और, इस विभाग के गठन का औचित्य क्या है?

मध्यप्रदेश के ऊर्जावान मुख्यमंत्री ने एक साल  पहले पहले घोषणा की थी कि प्रदेश में सबको खुश रखने के लिए वो एक नया विभाग खोलेंगे। इसे खुशी या आनंद विभाग कहा जाएगा। पहले तो मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई केबिनेट की विशेष बैठक में लिए गए निर्णय पर नजर डालते हैं। मप्र कैबिनेट की शुक्रवार को हुई बैठक में आनंद विभाग बनाने को स्वीकृति दी गई। ये विभाग राज्य के लोगों के जीवन में खुशियां तलाशने का काम करेगा। यह अपनी तरह की एक अनूठी पहल है और मध्यप्रदेश ऐसा विभाग बनाने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा। इसके लिए एक नॉलेज रिसोर्स सेंटर यानि ज्ञान संसाधन केंद्र का गठन   किया जाएगा। इसमें अध्यक्ष सहित कार्यपालक निदेशक और मुख्य कार्यपालन अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी।

नए विभाग को बनाने के लिए 3.80 करोड़ रुपए का बजट तय किया गया है। विभाग पहले यह शोध करेगा कि किस तरह लोगों के जीवन में आनंद लाया जा सकता है। इसमें आम लोगों से ऑनलाइन या सर्वे के माध्यम राय ली जाएगी। सरकार लोगों से सुझाव मांगेगी कि वे खुद बताएं कि इस विभाग में वे और क्या चाहते हैं। विभाग खुशी यानि हैप्पीनेस और एफिशिएंसी को नापने के लिए पैरामीटर्स की पहचान और उनकी परिभाषा देने का काम करेगा। राज्य में खुशियां फैलाने की दिशा में विभिन्न विभागों के बीच समन्वय के लिए गाइडलाइन तैयार करेगा।

खुशी के अहसास के लिए एक्शन-प्लान और इसकी एक्टिविटीज भी तय करेगा। खुशी की स्थिति पर सर्वे रिपोर्ट तैयार कर उसे पब्लिश करने का काम भी करेगा। शिवराज कैबिनेट के किसी एक मंत्री को इस डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी दी जाएगी। दावा किया जा रहा है कि राज्य सरकार ने इस विभाग को बनाने का फैसला करने से पहले पूरी जानकारी जुटाई है। भूटान और अमेरिका में लोगों की आनंद की स्थिति को जानने के लिए जो पैमाने बनाए गए हैं, उनका अध्ययन किया गया है। मध्यप्रदेश के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता जांची जाएगी, फिर पैमाने बनाए जाएंगे।
आनंद अथवा खुशी के पल  कौन नहीं चाहेगा, परंतु सबसे पहला प्रश्न यही है कि क्या सरकार के चाहने से लोग खुश रह पाएंगे या खुशी का अनुभव कर सकेंगे?

सरकार के चाहने के बावजूद न तो लोगों को समय पर सही उपचार मिल पा रहा है। आम आदमी को अच्छी शिक्षा नहीं मिल पा रही है। युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। आंकड़ों में भले ही मध्यप्रदेश को विकसित राज्य घोषित किया गया है, परंतु यहां पिछले दस सालों में साढ़े चार लाख गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोग बढ़े हैं। मध्यप्रदेश पर बाहरी कर्ज का आंकड़ा बारह सालों के दौरान डेढ़ लाख करोड़ के करीब पहुंचने के लिए तैयार है। हालत यह है कि हर तीन महीने में कर्मचारियों को वेतन देने के लिए बाजार से कर्ज लेना पड़ रहा है। लाखों लोग बेघर हैं।

प्रदेश के किसानों की स्थिति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि किसानों की आत्महत्या के मामले  में मध्यप्रदेश देश में दूसरे-तीसरे स्थान पर ही बना हुआ है। महिलाओं की स्थिति यह है कि पिछले एक दशक  से हम बलात्कार के मामले में पहले स्थान पर हैं। नाबालिगों के साथ बलात्कार और अपहरण या अन्य अपराधों की स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है। कोई विभाग ऐसा नहीं है, जहां भ्रष्टाचार न हो रहा हो। बाबू और चपरासी वर्ग तक के कर्मचारियों के यहां छापों में  करोड़ों  रुपए मिल रहे हैं। व्यापमं जैसे घोटाले हो रहे हैं और आरोपी खुले घूम रहे हैं। लाखों युवाओं के  भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। छात्रों की आोमहत्याओं के मामले  बढ़ रहे हैं और रोजगार न  मिलने के चलते अपराध की ओर जाने वाले  युवाओं की संख्या में भी वृद्धि हो  रही है।

एक ही सवाल है, क्या इन परिस्थितियों में भी आनंद या खुशी की अनुभूति हो सकती है। मुख्यमंत्री, मंत्री या सत्ता में बैठे लोगांे को तो होना ही है, आम आदमी की बात कर रहे हैं। सत्ता वालों के लिए तो वैसे भी हर विभाग आनंद मंत्रालय जैसा ही है। हां, एक और विभाग बनाकर सरकार पर और वित्तीय बोझ बढ़ाया जा रहा है....और जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा  रहा है, अपनी समझ में तो यही आ रहा है।

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