राडिया को माफ़ मत करना 'भाइ'(?)यो
जगमोहन फुटेला
देश भर में निकाले गए सभी पत्रकारों को नौकरी वापिस दिलाने और जिन्हें नहीं आती उन सभी मालिकों को तमीज़ सिखाने के बाद महानायक यशवंत की वेब साईट अब एक और महान काम में जुटी है. लोग तो सिर्फ कहते ही थे कि- तीर निकालो, न तलवार निकालो/ जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो.- उन ने अपने मीडिया को हथियार ही बना दिया है. वो रगड़ देगा हर उस आदमी और ताकत को जो अपराधी के रूप में किये गए उनके गैरपत्रकारीय काम को अपराध बताएगी.
यशवंत जब जेल में ही थे तो एक खबर छपी कि ये सब अपनी टेप चलाने के लिए नीरा राडिया ने कराया है. शुकर करो कि साथ ही ये भी नहीं कहा कि कभी सोनिया गाँधी के स्विस खाते का ज़िक्र करने के लिए सोनिया गाँधी ने भी कराया है. मेरे ख्याल से कालेधन पे सरकार का रुख न साफ़ न करने की खबर से भन्नाए प्रणब मुखर्जी का किया धरा बताते तो अब राष्ट्रपति चुनाव के सन्दर्भ में वैसी कोई खबर और भी सटीक होती. मगर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को और वो भी नीरा राडिया जैसी विवादास्पद महिला के ज़िक्र के साथ कोस के देश के सर्वहारा समाज का समर्थन पा लेना ज्यादा आसान लगा होगा, सो ढाल सिर्फ उस तर्क को बनाया गया. हालांकि ज़मानत में फिर भी तर्क वो तो काम नहीं आया होगा. तो सवाल ये है किस ये तर्क फिर दिया ही क्यों होगा?..बताते हैं. पहले एक किस्सा सुन लीजिये. किस्सा ये है कि हर हरामज़दगी से कुछ न कुछ खेल कर ही लेने वाले आदमी को समंदर के किनारे बिठा दिया गया था एक बार और उस ने वहां भी लहरों से पैसे बना लिए थे. अब काफी हाउसों में हो रही शोकसभाओं से और तो कुछ नहीं होना. न केस वापिस, न एस एम एस धुंधले. न दफाएँ बदलेंगी, न अदालत प्रभावित. होगा केस को मजबूती से लड़ने के नाम पर एकता अभियान. होना उस से भी कुछ नहीं. अभियान तो कोई राष्ट्रव्यापी भी हो तो भीड़ एक न एक दिन छंटने लगती है. और किसी की पर्सनल फटी में तो टांग खैर अड़ाता ही कौन है. सो होना है तो इस सब की आड़ में बस चंदा अभियान. और वो आप देख लेना ज़रूर होगा.
उस के साथ एक बात और होगी. वेबसाईट को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाएगा. इस पे भी एक किस्सा है. देश के पांच सब से बड़े अखबारों में से एक के मालिक विधानसभा का चुनाव लड़े एक बार. रोज़ अखबार में दूसरों की ऐसी तैसी होती. लगता कि चुनाव में उम्मीदवार तो वही एक हैं. बाकी सब बेकार, निकम्मे और चुनाव से पहले ज़मानत ज़ब्त हो जाने लायक. दूसरों के खिलाफ चरित्र हनन के अभियान भी चले. मगर जब परिणाम आया तो अपनी ज़मानत तक ज़ब्त निकली.... अनुभव ये है कि खुद अपने लिए इस्तेमाल हुए मीडिया की एक दिन मिट्टी कुट जाती है. चिंता ये है कि वो होने तक कुछ लोग अपने चुतियापे में उस आदमी के नाम पर लामबंद होने दुहाई देते फिरेंगे जो असल में पत्रकारिता का कोई झंडा गाड़ते नहीं, विशुद्ध रूप से वो करता पकड़ा गया है जिसे हिंदी में भी ब्लैकमेलिंग कहते हैं. लेकिन उन्हें ये भी माफ़ करवाने की कोशिश की जायेगी क्योंकि वे पत्रकार हैं.
उन्हें अगर सात खून पत्रकार होने की वजह से माफ़ हैं तो फिर कुछ रहम कापड़ी और साक्षी पर भी नहीं होना चाहिए. क्या वे भी पत्रकार नहीं हैं? घसियारे हैं? चलिए ये तर्क भी माना कि सब से अच्छी और धाकड़ खबरें सिर्फ यशवंत ने छापीं. ये भी कह लेते हैं कि चतुर सुजान और चितेरे तो बस वही,बाकी सब बकवास थे. अलख भी उन्हीं ने जगाया और रगड़ा भी हरेक को उन्हीं ने लगाया. तो भी मित्रो, क्या उन्हें हर गुनाह माफ़ है. खुद पत्रकारों के खिलाफ किया हुआ भी?
और फिर कोसिये नीरा राडिया को. मगर कुछ तारीफ़ उन की भी कीजिये. कितनी इंटेलिजेंट और कलाकार थीं वे कि न सिर्फ अपने खिलाफ खबरें चलाने वालों में से सिर्फ यशवंत को याद रखा. पीछे पड़ी रहीं. मौके की ताड़ में. फिर उन ने यशवंत को एक कापड़ी दिखाया. उन को यशवंत से फोन कराये. एसएमएस भी. कापड़ी को इतना दुखी करा दिया यशवंत से उन ने कि वो रिपोर्ट तक दर्ज कराने को तैयार हो जाएं. और फिर पुलिस भेज के गिरफ्तारी तो कराई ही. चार दिन तक ज़मानत भी नहीं होने दी!....हे यशवंत के चमचो, ऐसी राडिया को कभी माफ़ न करना. इतने पैसे दे देना केस लड़ने के लिए यशवंत को कि जितने कभी राडिया ने देखे तक न हों..!!
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