शेष नारायण सिंह
अमरीका की कोशिश है कि वह भारत के कैंसर के रोगियों से बहुत भारी मुनाफा कमाए और उसके लिए उसे भारत सरकार की मदद चाहिए. अमरीकी कम्पनियां कैंसर की जो दवा भारत में बेचती हैं उनकी कीमत कैंसर के रोगी को करीब ढाई लाख रूपया प्रति महीना पड़ता है. जबकि वही दवा भारत की कंपनियों ने बना लिया है और उसकी कीमत केवल साढ़े सात हज़ार रूपये महीने है. अपने पूंजीपतियों को बेजा लाभ पंहुचाने के लिए अमरीकी प्रशासन भारत पर दबाव डाल रहा है कि वह भारतीय कंपनी को दवा बेचने से रोक दे और अमरीकी दवा पर ही भारत के कैंसर के रोगी निर्भर बने रहें.
अमरीकी सरकार की एक बड़ी अधिकारी ने दावा किया है कि वह भारत सरकार में उच्च पदों पर बैठे कुछ लोगों से इस काम को करवाने के लिए संपर्क में है. ज़रुरत इस बात की है यह पता लगाया जाए कि उच्च पदों पर बैठे यह कौन लोग हैं. पता लगने के बाद उन्हें कानून के हिसाब से दण्डित किया जाना चाहिए. संतोष की बात यह है अभी तो भारत सरकार ने अमरीका को साफ़ मना कर दिया है कि वह अपने देश के कैंसर के मरीजों के खून से अमरीकी व्यापार को फलने फूलने नहीं देगें लेकिन जिस तरह से केंद्र सरकार में अमरीका परस्त लोगों का बोलबाला है, लगता है कि देर सवेर भारत सरकार अमरीकी दबाव के सामने झुक जायेगी.
अमरीका और पाकिस्तान में एक समानता है. दोनों ही देशों में राजनीतिक शमशीर चमकाने के लिए भारत के खिलाफ ज़हर उगलने का फैशन है. अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा वैसे तो भले आदमी माने जाती हैं लेकिन अमरीकी कट्टरपंथियों को साथ लेने के लिए वे भी भारत के खिलाफ गैरजिम्मेदार अभियान चलाने की पूरी कोशिश करते हैं. अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे कमज़ोर देशों में तो वे गोली बारूद से सीधा हमला करते हैं, ड्रोन चलाते हैं और आतंकवादियों के साथ साथ निर्दोष लोगों की भी जान ले लेते हैं लेकिन भारत की बढ़ती आर्थिक ताक़त और हैसियत के मद्दे नज़र भारत से कुछ आर्थिक लाभ झटक लेने के चक्कर में रहते हैं.
ताज़ा मामला कैंसर की दवा की मनमानी कीमत वसूलने का है. जर्मनी की बड़ी दवा कम्पनी बायर कैंसर की दवा बनाती है. इस दवा से कैंसर का इलाज भारत में भी होता है. अभी तक इस दवा के सहारे इलाज कराने में करीब ढाई लाख रूपये प्रति महीने का खर्च आता है. एक भारतीय दवा कंपनी ने वहीं दवा अपने देश में बना दिया और उसकी मदद से कैंसर के इलाज की कीमत करीब साढ़े सात हज़ार रूपये प्रति माह पड़ रही है. यह दवा बनाने वाली कंपनी ने भारत सरकार से बाकायदा अनुमति लेकर इस दवा को बेचना शुरू कर दिया है, सारा काम अन्तरराष्ट्रीय व्यापार के हिसाब से कानूनी है और भारतीय कंपनी जर्मन/अमरीकी कंपनी को साढ़े छः प्रतिशत की रायल्टी दे रही है. लेकिन इस दवा के बन जाने से अमरीका में बहुत बड़े पैमाने पर काम कर रही बायर को भारी घाटा हो रहा है और अब ओबामा अमरीकी/जर्मन कंपनी को लाभ पंहुचाने के लिए कुछ भी करने पर आमादा हैं.
अमरीकी पेटेंट और ट्रेडमार्क आफिस की एक डिप्टी डाइरेक्टर ने अमरीकी सेनेट से अपील की है कि वह भारत सरकार पर दबाव बनाए कि वह अपनी ताकत का इस्तेमाल करके भारत सरकार को मजबूर कर दे कि वह भारतीय कम्पनी को कम कीमत वाली लेकिन बहुत अच्छी दवा बेचने से रोकें. सेनेट से उन्होंने अपनी पेशी के दौरान अपील कि वह भारत सरकार को फटकार लगाए कि उसने क्यों किसी भारतीय कंपनी को दवा बेचने की अनुमति दे दी. उन्होंने यह भी कुबूल किया कि वे निजी तौर पर भी भारत सरकार की एजेंसियों से संपर्क बनाए हुए हैं और पूरी कोशिश कर रही हैं कि अमरीकी/जर्मन दवा कम्पनी को होने वाला मुनाफ़ा कम न होने पाए . ज़रुरत इस बात की है कि भारत सरकार की सी बी आई या अन्य कोई सक्षम संस्था इस बात की जांच करे कि अमरीकी पेटेंट और ट्रेड आफिस भारत सरकार में किन लोगों के साथ संपर्क बनाए हुए है और वे क्यों भारत के राष्ट्रीय और सार्वजनिक हित के खिलाफ काम कर रहे हैं.
अमरीकी सरकार की एक बड़ी अधिकारी ने दावा किया है कि वह भारत सरकार में उच्च पदों पर बैठे कुछ लोगों से इस काम को करवाने के लिए संपर्क में है. ज़रुरत इस बात की है यह पता लगाया जाए कि उच्च पदों पर बैठे यह कौन लोग हैं. पता लगने के बाद उन्हें कानून के हिसाब से दण्डित किया जाना चाहिए. संतोष की बात यह है अभी तो भारत सरकार ने अमरीका को साफ़ मना कर दिया है कि वह अपने देश के कैंसर के मरीजों के खून से अमरीकी व्यापार को फलने फूलने नहीं देगें लेकिन जिस तरह से केंद्र सरकार में अमरीका परस्त लोगों का बोलबाला है, लगता है कि देर सवेर भारत सरकार अमरीकी दबाव के सामने झुक जायेगी.
अमरीका और पाकिस्तान में एक समानता है. दोनों ही देशों में राजनीतिक शमशीर चमकाने के लिए भारत के खिलाफ ज़हर उगलने का फैशन है. अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा वैसे तो भले आदमी माने जाती हैं लेकिन अमरीकी कट्टरपंथियों को साथ लेने के लिए वे भी भारत के खिलाफ गैरजिम्मेदार अभियान चलाने की पूरी कोशिश करते हैं. अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे कमज़ोर देशों में तो वे गोली बारूद से सीधा हमला करते हैं, ड्रोन चलाते हैं और आतंकवादियों के साथ साथ निर्दोष लोगों की भी जान ले लेते हैं लेकिन भारत की बढ़ती आर्थिक ताक़त और हैसियत के मद्दे नज़र भारत से कुछ आर्थिक लाभ झटक लेने के चक्कर में रहते हैं.
ताज़ा मामला कैंसर की दवा की मनमानी कीमत वसूलने का है. जर्मनी की बड़ी दवा कम्पनी बायर कैंसर की दवा बनाती है. इस दवा से कैंसर का इलाज भारत में भी होता है. अभी तक इस दवा के सहारे इलाज कराने में करीब ढाई लाख रूपये प्रति महीने का खर्च आता है. एक भारतीय दवा कंपनी ने वहीं दवा अपने देश में बना दिया और उसकी मदद से कैंसर के इलाज की कीमत करीब साढ़े सात हज़ार रूपये प्रति माह पड़ रही है. यह दवा बनाने वाली कंपनी ने भारत सरकार से बाकायदा अनुमति लेकर इस दवा को बेचना शुरू कर दिया है, सारा काम अन्तरराष्ट्रीय व्यापार के हिसाब से कानूनी है और भारतीय कंपनी जर्मन/अमरीकी कंपनी को साढ़े छः प्रतिशत की रायल्टी दे रही है. लेकिन इस दवा के बन जाने से अमरीका में बहुत बड़े पैमाने पर काम कर रही बायर को भारी घाटा हो रहा है और अब ओबामा अमरीकी/जर्मन कंपनी को लाभ पंहुचाने के लिए कुछ भी करने पर आमादा हैं.
अमरीकी पेटेंट और ट्रेडमार्क आफिस की एक डिप्टी डाइरेक्टर ने अमरीकी सेनेट से अपील की है कि वह भारत सरकार पर दबाव बनाए कि वह अपनी ताकत का इस्तेमाल करके भारत सरकार को मजबूर कर दे कि वह भारतीय कम्पनी को कम कीमत वाली लेकिन बहुत अच्छी दवा बेचने से रोकें. सेनेट से उन्होंने अपनी पेशी के दौरान अपील कि वह भारत सरकार को फटकार लगाए कि उसने क्यों किसी भारतीय कंपनी को दवा बेचने की अनुमति दे दी. उन्होंने यह भी कुबूल किया कि वे निजी तौर पर भी भारत सरकार की एजेंसियों से संपर्क बनाए हुए हैं और पूरी कोशिश कर रही हैं कि अमरीकी/जर्मन दवा कम्पनी को होने वाला मुनाफ़ा कम न होने पाए . ज़रुरत इस बात की है कि भारत सरकार की सी बी आई या अन्य कोई सक्षम संस्था इस बात की जांच करे कि अमरीकी पेटेंट और ट्रेड आफिस भारत सरकार में किन लोगों के साथ संपर्क बनाए हुए है और वे क्यों भारत के राष्ट्रीय और सार्वजनिक हित के खिलाफ काम कर रहे हैं.
No comments:
Post a Comment