Sunday, July 22, 2012

पत्नी को प्रताडि़त और अत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले पति को कारावास


पत्नी को प्रताडि़त और अत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले पति को कारावास

पुलिस और अभियोजन को मिली महत्वपूर्ण सफलता

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बैतूल। भारत सेन। विधि का यह स्थिापित नियम हैं कि यदि अभियोजन साक्षी की न्यायालयीन साक्ष्य में मुख्य घटना के बारे में गंभीर विसंगति और विरोधाभास नहीं आया हैं तो उसकी साक्ष्य में आई मामूली विसंगति और विरोधाभास उपेक्षा किए जाने योग्य होते हैं। गवाहों को पक्षद्रोही घोषित कर दिए जाने मात्र से उनके द्वारा दी गई साक्ष्य अविश्वसनीय नहीं हो जाती हैं बल्कि उनके द्वारा प्रकट किए गये तथ्य विचार में लिये जाने योग्य होते हैं। गवाहों की विश्वसनीयता को परखने और पक्षद्रोही गवाहों की साक्ष्य के मूल्यांकन पर आधारित कानून के इन दो स्थापित सिद्धांतो के आधार पर सत्र न्यायालय बैतूल में विचाराधीन आत्महत्या के दुष्प्रेरण और क्रूरता के आरोपी पति को कारावास की सजा सुनाई गई। पुलिस की विवेचना और अभियोजन की श्रमसाध्य पैरवी को उस समय सफलता मिली जब मृतिका प्रेमलता को आत्महत्या के लिए उकसाने और मजबूर करने वाले पति मोहन को अदालत ने दण्ड के प्रश्र पर बचाव पक्ष की तमाम दलीलो को खारिज करते हुए आरोपी को दया और सहानुभूति के योग्य नही पाकर कारावास और अर्थदण्ड, दोनो से दण्डित किया गया।
क्या हैं मामला
पुलिस थाना बैतूल बाजार के अपराध क्रमांक 75/10 में घटना इस प्रकार हैं कि ग्राम जूनावानी के मोहन के साथ मृतिका प्रेमलता का विवाह 10 वर्ष पूर्व हुआ था। दोनो के दामपत्य जीवन से तीन संतान हैं। पति मोहन कोई कामधंधा नहीं करता था। प्रेमलता मजदूरी करके किसी तरह परिवार चलाती थी। शराबी पति मजदूरी के पैसे को छुड़ा लेता था और मौज मस्ती करने निकल जाता था। शराबी पति से परेशान पत्नी जब मायके ग्राम ग्यारसपुर जाती तो उसे समझा बुझा कर ससुराल भेज दिया जाता था। 24 मई 10 को पति मोहन ने पत्नी प्रेमलता के साथ झगड़ा कर मारपीट की। आस पड़ौस के लोगो ने घर जाकर देखा तो प्रेमलता बिना कपड़ो के बेहोश पड़ी थी। अस्पताल लेकर जाने पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस उपनिरीक्षक बीएल बिसेन ने विवेचना के उपरांत आरोपी के विरूद्ध न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया गया थ।

आरोप से इंकार

विचारण न्यायालय में आरोपी मोहन को अपराध धारा 498(क) एवं 306 भारतीय दण्ड विधान का अपराध सुनाए एवं समझाए जाने पर आरोपी ने अपराध के आरोप से इंकार करते हुए विचारण की मांग की गई। आरोपी ने अपने बचाव में कोई साक्ष्य पेश नहीं करते हुए केवल इतना कहा कि वह निर्दोष हैं और उसे झूठा फॅसाया गया हैं।

गवाहो ने की घटना की पुष्टि

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, बैतूल आरके जोशी की अदालत के सत्र प्रकरण क्रमांक 248/10 में अपराध को साबित करने के लिए अभियोजन की ओर से 17 गवाह पेश किए गए। गवाहों के परीक्षण एवं प्रतिपरीक्षण से यह साबित हुआ कि आरोपी मोहन और मृतिका प्रेमलता का झगड़ा 24 मई 2010 को दोपहर लगभग 3:00 बजे प्रारंभ हुआ था। प्रेम लता के कहने पर मोहन को समझाने आई महिलाओं को दुव्र्यव्हार कर आरोपी ने भगा दिया और प्रेम लता को घर में बंद करके मारपीट करता रहा। प्रेम लता द्वारा तंग आकर जहर खा लेने की जानकारी मिलने पर आस पड़ौस के लोग देखने के लिए पहुंचे तो आरोपी घर के आस पास बाहर घूम रहा था और घर के अंदर बिना कपड़ो के पड़ी प्रेमलता तडफ़ कर छटपटा रही थी और उससे बोलते नहीं बन रहा था। घटना स्थल से जप्त प्रेमलता की टूटी हुई चूड़ी के टुकड़े पेश किए गए। डाक्टर नितिन राठी ने बताया कि शवपरीक्षण के दौरान मृतिका पे्रमाबाई के मुह में दो सिक्के निकले थे। मृत्यु का कारण दमघुटना बताया गया था। विधि विज्ञान प्रयोग शाला से प्राप्त विसरा रिपोर्ट में ट्राई एजोफॉस आर्गेनो फास्फोरस कीट नाशक की पुष्टि हुई जिसके सेवन से आक्सीजन की कमी के कारण दम घुटने से मृत्यु होना स्थिपित हो गया। 

अपराध हुआ साबित

विद्वान न्यायाधीश आरके जोशी ने साक्ष्य का सूक्ष्य विश£ेषण और विवेचन से यह पाया कि कि अभियुक्त मोहन उसकी पत्नी प्रेमलताबाई से अपना विवाह होने के बाद से ही लगातार स्वयं कोई कार्य न करके अपने स्वयं के दुव्र्यसन हेतु प्रेम लता से पैसो की मांगकर उससे झगड़ा करते हुए उसके साथ मारपीट करके उसे प्रताडि़त करते हुए उसके साथ जानबूझकर क्रूरतापूर्ण व्यवहार करता था। पति द्वार मृतिका के साथ जानबूझकर ऐसा व्यवहार किया जाता रहा जिससे प्रेमलता आत्महत्या करने के लिए प्रेरित हुई। विद्वान न्यायिक अधिकारी ने यह पाया कि अभियोजन यह प्रमाणित करने में पूर्णत: सफल रहा कि प्रेमलता की मृत्यु नैसर्गिक कारणों से न होकर आत्महत्या का परिणाम थी और अभियुक्त मोहन के दुष्प्रेरण पर प्रेमलता ने जहरीली वस्तु का सेवन करके आत्महत्या की।

अपराधी पर रहम नही

दण्ड के प्रश्र पर अभियुक्त और बचाव पक्ष के अधिवक्ता द्वारा दलील दी गई कि आरोपी कम उम्र का प्रथम अपराधी हैं इसलिए वह सहानुभूति की अपेक्षा रखता हैं। विद्वान सत्र न्यायाधीश आरके जोशी ने बचाव पक्ष की दलील को खारिज करते हुए अपने फैसले में लिखा हैं कि अभियुक्त जिस पर अपनी ही पत्नी के साथ शारीरिक व मानसिक क्रूरता करके उसे आत्महत्या करने के लिए दुष्प्रिेरित करना और दुष्प्रेरण पर उसकी पत्नी द्वारा आत्महत्या करना प्रमाणित हुआ हैं, उसे देखते हुए अभियुक्त का कृत्य गंभीर प्रकृति का हैं और वह किसी प्रकार की सहानुभूति का पात्र नहीं हैं।

पूरा हुआ कानून और न्याय का लक्ष्य

न्याय के उद्देश्य की पूर्ति हो जावेगी ऐसा मानते हुए विद्वान न्यायाधीश आर के जोशी ने आरोपी मोहन पिता जिराती इवने को अपराध धारा 498(क) भारतीय दण्ड विधान के अंतर्गत दण्डनीय अपराध के आरोप के लिए तीन वर्ष के सश्रम कारावास और 1 हजार रूपए अर्थदण्ड, अर्थदण्ड अदा न करने पर 6 माह का सश्रम कारावास और धारा 306 भादवि के आरोप हेतु पॉच वर्ष के सश्रम कारावास और 15 सौ रूपए के अर्थदण्ड, अर्थदण्ड अदा न करने पर 9 माह के सश्रम कारावास की सजा से दंडित किए जाने का आदेश दिया गया। अभियोजन की ओर से पैरवी पीआर पण्डोले द्वारा की गई।  



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