बैतूल // राम किशोर पंवार (टाइम्स ऑफ क्राइम)
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पत्रिका , जागरण व अन्य के पत्रकार भी शामिल है गोरखधंधे में
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लोगो को ठगने वाली कपंनियों के बारे समाचार छापने वाले अधिकांश समाचार पत्रो के पत्रकार से लेकर ब्यूरो चीफ तक उस गोरखधंधे में शामिल है जिसे कानून की नजर में संगठित अािर्थक अपराध माना जाता है। पूर्व अधिक्षक आरएल पजापति के सिपाहसलाहकार रहे दैनिक जागरण के ब्यूरो चीफ सुनील द्धिवेदी से लेकर दैनिक पत्रिका पाथाखेड़ा सारनी प्रतिनिधि प्रमोद गुप्ता और उसका परिवार भी उस चौतरफा लूट का हिस्सा बने है जो इइस समय सुर्खियों में है।
इसी कड़ी में दीलिप बाबू भी अपनी पत्नि की आड़ में अमरशापर्स के वे कानाफूंसी सिपाहसलाहकार बने है जिनकी कहने पर अमर शापर्स के शटर गिरते और खुलते है। गोरखधंधे में पत्रकारो के द्वारा की जाने वाली लूट से भले ही उनके समाचार पत्र के संपादक अनभिज्ञ हो लेकिन सच कड़वा है कि बैतूल जिले के उपभोक्ताओं और व्यापारियों के लिए कमाऊपूत बनी अमरशापर्स की एक दुकान पाथाखेड़ा सारनी में भोपाल से प्रकाशित दैनिक पत्रिका एवं लोकमत समाचार तथा विदर्भ चंडिका का एजेंट एवं पत्रकार प्रमोद गुप्ता का पूरा परिवार चला रहा है। आज एक बुरी खबर यह भी हैं कि अमर शापर्स अब डूबने के कगार पर पहुंच गया हैं। जिले के व्यापारियों का लाखों रूपए अमर शापर्स पर बकाया हैं। वेतन नही मिलने के कारण बड़ी संख्या में कर्मचारी वेतन नही मिलने के काम पर आना छोड़ चुके हैं। दुकानों में सामन नही हैं। कैश कूपन पर अन्य शापियों से सामान मिलना बंद हो गया हैं। दुकान का किराया, टेलिफोन और बिजली का बिल चुकाने का भी पैसा नही हैं। नेटवर्करों के पास जनता का सामना करने का साहस नही बचा हैं। कंपनी के एमडी की कार को फाईनेनसर खीच कर लेजा चुके हैं। इससे बुरी हालत किसी कारोबार की भला क्या हो सकती हैं? अन्य चिट फण्ड कंपनियों की तरह ही टूलीफ कंपनी के नेटवर्किंग प्लान में दैनिक जागरण के ब्यूरो चीफ सुनील द्धिवेदी एवं उसके पूरे परिवार के अधिकांश सदस्यों के शामिल होने के कारण अभी तक बैतूल एसडीएम संजीव श्रीवास्तव ने सुनील बाबू से कोई पुछताछ नहीं की है और न पूर्व पुलिस अधिक्षक द्वारा इस बारे में कुछ कार्रवाई की गई। सुनील द्धिवेदी एंड कंपनी के संरक्षण में चल रही इस टूलीफ नेटवर्किंग कंपनी का मनी संग्रहण प्लान भी संगठित आर्थिक अपराध की श्रेणी में आता है। एसडीएम संजीव श्रीवास्तव की कार्यप्रणाली अकसर विवादो से परे रही है लेकिन उनका सुनील द्धिवेदी की संरक्षण में चल रही नेटवर्किंग कपंनी टूलीफ को जांच में शामिल न किया जाना समझ के बाहर की बात है। जब फर्जी कंपनियों पर लगाम कसने की बात आती है तब टूलीफ हो या फिर अमर शापर्स एसढीएम साहब उन्हे सलाह देने के बजाय उनके कार्यालयों को सील करके उनके द्वारा की गई धोखाधड़ी के शिकार बने निवेशको को आखिर क्यों तलब नहीं कर रहे है..?
सबसे मजेदार बता तो यह है कि बैतूल जिले में करोड़ो - अरबो का कारोबार करने वाली फर्जी कंपनियों ने पत्रकारो और खासकर पुलिस के दलाल बने भड़वो को ही अपना माईबाप बना कर उन्हे कंपनी से एक मुश्त मोटी रकम देकर कंपनी का निवेशक बना कर उन्हे पब्लिसिटी प्रोडेक्ट के रूप में प्रचारित कर उनकी आड़ में करोड़ो का न्याया - व्यारा किया है और कर रहे है। जहां एक ओर दिलीप सिकरवार अपनी श्रीमति के साथ अमर शापर्स को अमर करने में लगे है वहीं दुसरी ओर दुसरी सुनील बाबू भी टूलीफ को रीलिफ दिलाने का काम कर रहे है। प्रमोद गुप्ता को पाथाखेड़ा सारनी में पत्रिका की आड़ में अमर शापर्स की फर्जी दुकान का कारोबार करने का लायसेंस मिल गया है। अब सवाल यह उठता है कि कलैक्टर एसपी और एसडीएम के साथ रात दिन मिलने - जुलने वाले इन पत्रकारो की नाक में नकेल डालने का काम करने के लिए क्या यमराज को ऊपर से बुलवाना पड़ेगा या फिर अधिकारी ऐसे लोगो को भाव देना बंद कर देगें। कानूनी तर्क यह है कि सर्वे प्रिविलेज मार्केटिं पावर प्राईवेट लिमिटेड, जिसका मुख्यालय 103, रेणुका कुंज, भोपाल मप्र में तथा कारपोरेट आफिस, 202, क्लासिक आर्थ, 79, भीम नगर, आनन्द बाजार, कैनरा बैंक के उपर, इन्दौर मप्र बताया गया हैं के दो भाग हैं पहला अमर विजन दूसरा अमर शापर्स। जिले से फरार हो चुकी अन्य चिट फण्ड कंपनियों की तरह यह भी पंजीकृत कंपनी हैं।
सर्वे प्रिविलेज मार्केटिं पावर प्राईवेट लिमिटेड, एसपीएमपी के केवल दो पाटर्नर हैं। जिनमें से एक एमडी, आकाश उर्फ कृपाशंकर सिंग हैं जो कि मूलत: भोपाल निवासी हैं। शिक्षा के नाम पर वे एमबीए तो दूर की बात हैं वे अन्य विषयों से स्नातक भी नही हैं। बैतूल में उन्होने अपना परिचय आकाश नाम से दिया इसलिए उनके कार्यालय की महिला कर्मचारी बड़े ही प्यार से आकाश सर बोलकर सम्बोधित करती रही। अभी उनके पास बैतूल नगर पालिका का राशन कार्ड और अन्य दस्तावेज हैं। आखिर आकाश सिंग उर्फ कृपाशंकर ने कंपनी के दूसरे पाटर्नर को बैतूल की जनता के सामने कभी पेश होने क्यों नही दिया? एसपीएमपी कंपनी की दो शाखाए अमर विजन और अमर शापर्श हैं। चिटफंड कंपनी की तरह ही अमर विजन काम करती हैं जिसकी अपनी वेबसाईट हैं।
अमर विजन का काम नेटवर्किग करना हैं। कंपनी के प्लान में नेटवर्किंग शामिल हैं जिसमें बाईनारी सिस्टम के जरिए सदस्यों की संख्या को बढ़ाया जाता हैं। नेटवर्कर को सदस्यों की संख्या बढऩे के साथ ही आय में लगातार वृद्धि होती हैं। एक कुशल नेटवर्कर एक माह में पचास हजार रूपए से ज्यादा का कमीशन पैदा कर लेता हैं। अन्य कंपनियों के प्लान से थोंडा इस मायने में अलग था कि कंपनी पैसे के बदले में किराना सामान के मासिक कूपन बाटती थी जिसमें केवल 250 रूपए की दर से बारह कूपन हुआ करते थें जिन पर करीब 30 प्रतिशत डिस्काउंट पर सामान उपलब्ध करवाने का दावा था। अमर शापर्स किराने की दुकान हैं जहां पर डिस्काउंट कूपन कैश किए जाते रहे हैं। कंपनी के नेटवर्करो ने एक हजार से ज्याद ग्राहको का नेटवर्क अमर शापर्स के लिए खड़ा किया जिनको बाईनारी सिस्टम के जरिए नियमित आय के साथ ही सस्ता सामान की आस हैं। जैसा अन्य कंपनी में होता आया हैं कि बाईनारी सिस्टम में अंतिम लाईम में खड़ा व्यक्ति को कभी कुछ नही मिलता। कानून के जानकार इसे दण्डनीय अपराध बताते हैं जिसमें कपनी के साथ नेटवर्कर भी आरोपी बनाए जा सकते हैं। यह एक विशुद्ध आर्थिक अपराध हैं। बताया जाता हैं कि कृपाशंकर सिंग जब बैतूल आए तो उनके पास दस हजार रूपए भी नही थें। बैतूल से निवेशको को चूना लगा कर फरार हो चुकी कंपनी के बेरोजगार हो चुके अनुभवी नेवर्करों स कृपाशंकर सिंग ने संपर्क साधकर अपना प्लान बताया। नेटवर्करों के जारिए कंपनी ने लाखों रूपए इकठ्ठा किया।
नेटवर्करों के जरिए अमर शापर्श की दुकाने खोली गई। अमर शापर्स के किराना कारोबार में वह पैसा लगा हैं जो कि नेटवर्किंग के जरिए इकठ्ठा किया गया हैं। निवेशको को पैसे के बदले में क्या मिला यह मुसीबत को बढ़ाने वाला सवाल हैं। अमर शापर्स के एमडी कृपाशंकर सिंग कंपनी के करेंट एकाउंट का इस्तेमाल केवल बैंक चैक बांटने के लिए करते रहे लेकिन पैसा प्राप्त करने का जरिया नेटवर्करों के बैंक खातों को ही बनाया रखा जिसमें कोर बैंकिंग के जारिए वे नगद पैसा प्राप्त करते रहे। एमडी की इस चालाकी से नेटवर्कर बुरी तरह से फस चुके हैं। आने वाले समय में वे जांच ऐजेन्सी को भला क्या जवाब देंगे? अमर शापर्स को बैतूल का बिग बाजार या सुपरबाजार कहा जाता हैं। बिग बाजार में निर्माता कंपनी से सीधा माल खरीदकर उपभोक्ता तक पहुंचाया जाता हैं। इसमें क्षेत्रिय और जिला स्तर पर बटने वाला कमीशन बच जाता हैं जिससे लाभ उपभोक्ता को मिलता हैं। अमर शापर्स जिला स्तर पर ही खरीदारी कर रहे हैं तो वह उपभोक्ता को लाभ कैसे पहुंचा सकते हैं?
महंगी दुकानों का प्रबंधन किस तरह से हो सकता हैं? कर्मचारियों का वेतन किस तरह से दिया जा सकता हैं? बाईनरी सिस्टम के जरिए अंतिम निवेशक को लाभ कैसे पहुंचाया जा सकता हैं? अमर शापर्स को विज्ञापनों का लाभ मिल रहा हैं और कारोबार अन्य राज्यों तक पहुंच चुका हैं। मप्र राज्य के अतिरिक्त महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ राज्य में कंपनी की दुकाने खुल चुकी हैं। कानून एसपीएमपी को केवल भोपाल में ही कारोबार करने की अनुमति हैं।अमर शापर्स अपनी दुकाने खोलने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में पाटनर्स की तलाश करता हैं। दुकान में करीब 10 लाख का निवेश दोनो मिलकर करते हैं। दुकानों का किराया करीब 15 हजार रूपए महिना, बिजली बिल, टेलीफोन बिल और दो कर्मचारी का वेतन अमर शापर्स को वहन करना होता हैं। इसके अतिरिक्त 5 लाख की पूंजी का निवेश करने वाले पाटर्नर को आने वाले 6 माह तक 15 हजार रूपए की अर्थिक मदद अमर शापर्स की ओर देने का लिखित अनुबंध होता हैं। कारोबार में पाटनर्स को केवल 30 प्रतिशत की हिस्सेदारी दी जाने का करार होता हैं। पाटनर्स को यह स्वतंत्रता दी जाती हैं कि वह किसी समय दुकान बंद करवाकर अपना 5 लाख रूपए वापस प्राप्त कर सकता हैं। अमर शापर्स के साथ अनुबंध करने वाले ज्यादातर पाटनर्स को यह फायदे का सौदा लगा और कंपनी की माली हालत जाने बिना ही उन्होने निवेश कर दिया और बुरी तरह से फस गए हैं।
अब न तो उगला जाता हैं और न तो निगला जाता हैं। अमर शापर्स गले की हडड्ी बन गया है। अमर शापर्स ने अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए जितने भी कदम उठाए वह सारे कदम बिना किसी कानूनी सलाह के उठाए हैं। इसलिए जब कानून का शिकंजा उन पर कसेगा तो उनको बचा पाना नामुमकीन होगा। अमर शापर्स पर स्थानीय व्यापारियों का लाखों का बकाया हैं जिसके लिए व्यापारिक संघ ने एक समयसीमा तय कर रखी हैं। बैतूल जिले में जितनी भी शापिया खुली हैं उनके पाटनर्स अपना 5-5 लाख रूपए वापस मांग रहे हैं। दुकान मालिक को पिछले कई महिनों से दुकान किराया नही मिला हैं। अमर शापर्स नाम की कोई पंजीकृत व्यापारिक संस्था नहीं हैं और किरायानामा बनाते समय पूरी कोर्ट फीस अदा नही की गई हैं। किरायानामा का जिला पंजीयक से पंजीकरण नही करवाया गया हैं, इसलिए अदालत में सुनवाई के लिए दुकान मालिक को कई कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ेगा। अमर शापर्स के मालिक कृपाशंकर सिंग उर्फ आकाश सिंग वापस नेटवर्किंग के जारिए आम आदमी से पैसा प्राप्त करने के लिए बड़े समाचार पत्रों में विज्ञापन का सहारा लेकर बेरोजगार युवकों को प्रलोभन दे रहे हैं। आकर्षक विज्ञापन से प्रभावित होकर अन्य राज्यों के युवक संपर्क स्थापित कर रहे हैं। अमर शापर्स के नाम पर बैतूल जिले में पैसा पैदा कर पाना कठिन हो गया हैं।
नेटवर्करो को पिछले कई महिने से पैसा मिला नही हैं और अपनी मेहनत का पैसा प्राप्त करने का उनके पास कोई कानूनी जरिया भी नही हैं। अमर शापर्स के मालिक कृपाशंकर सिंग के खिलाफ शिकायतों पर एसडीएम कोर्ट में पेशी चली रही हैं। मामला आम आदमी के पैसो का हैं। आने वाले दिनों में शिकायते और बढ़ेगी।
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