देश की सुप्रीम कोर्ट तकनीकि तौर पर यही तो नहीं कहना चाहती लेकिन जिस तरह से उसने जस्टिस मजीठिया आयोग की संस्तुतियों पर स्टे आर्डर जारी किया है उसका अर्थ यही है. देश के पत्रकारों और पत्रकारिता का दुर्भाग्य है कि भूखे नंगे पत्रकारों की टोली सुप्रीम कोर्ट में कोई ढंग का वकील भी नहीं खड़ा कर सकती कि वे उनकी ओर से पैरवी कर सकें, शायद इसीलिए भारी माल असबाब जमा करनेवाले अखबारी घराने किसी भी कीमत पर पत्रकारों के वेतन में बढ़ोत्तरी होते नहीं देखना चाहते और सरकार पर दबाव डालने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मजीठिया आयोग की सिफारिशों पर अमर करने पर रोक लगा दिया है. सुप्रीम कोर्ट आनंद बाजार पत्रिका समूह की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दो सप्ताह के लिए मजीठिया आयोग की सिफारिशों पर अमल करने से रोक लगा दिया है. आनंद बाजार पत्रिका का कहना है कि उन्हें रिपोर्ट की कापी नहीं दी गयी है और मजीठिया आयोग की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया गया. ऐसे में दो सप्ताह के लिए अमल पर स्टे आर्डर मिल गया है.
करीब एक दशक बाद मजीठिया आयोग ने सिफारिश की है कि वे अखबारी घराने जिनका कारोबार एक हजार करोड़ के पार है अपने यहां काम करनेवाले पत्रकारों के वेतनमान में सुधार करें. लेकिन जब से ये सिफारिशें आयी हैं बड़े अखबारी घराने और मीडिया हाउस इन सिफारिशों के खिलाफ माहौल बना रहे हैं और लाबिंग कर रहे हैं कि इन सिफारिशों को लागू न किया जाए.
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