प्रतिनिधि // संतोष कुमार गुप्ता (शहडोल // टाइम्स ऑफ क्राइम)
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शहडोल. शहर में इन दिनों चोरी की वारदात बढ़ रही है जिसमें 80 प्रतिशत बच्चे शामिल है। जो घरों के छत से चढक़र पीछे उतरते है और जो भी सामान पाते है उसे कबाड़ी को बेच देते है चाहे वह मंहगा सामान ही क्यों न हो। घरौला मोहल्ला निवासी गौतम के यहां दो नाबालिक लडक़े बगल से छत में चढ़े फिर नीचे उतरे पीछे रखे कूलर एवं कुछ सामान दीवाल से पीछे फेंक रहे थे। कि अचानक गौतम अपनी दुकान से वापस घर पहुंचे पीछे आवाज सुनकर छत में चढक़र देखे तो दो लडक़े जिनकी उम्र लगभग 9-10 वर्ष की थी वे सामन पीछे फेंक रहे थे। गौतम द्वारा नीचे उतर कर दोनों को पकड़ कर पूछताछ करना प्रारंभ कर दिया जिसमें उन दोनों कबाडिय़ों को सामान बेचने के लिए कबूला।
शासन की योजना हुई फ्लाफ
इन बच्चों का भविष्य क्या होगा इनके हौसले बुलंद होते जायेंगे और कल ये डकैती करेंगे। इनके लिए हमारा प्रदेश कितने योजनायें लागू किया गया परंतु क्या शिक्षक या जिला प्रशासन इस ओर कड़ी कार्यवाही करते हुए शत प्रतिशत बच्चों को शाला में प्रवेश दिलाने में सफल हुए या फिर अपनी नौकरी पूरी कर पेमेंट ले रहे हैं। अगर शहर में यह हाल है तो दूर दराज ग्रामीणों में सिर्फ नाम दर्ज कर कालम पूर्ति कर रहे होंगे। क्या इसी लिए मुख्यमंत्री द्वारा गरीब बच्चों के लिए पूरी व्यवस्था किए हैं। जिससे बच्चे चोरी करते हुए पकड़ाये जायें इसमें अभिभावक के साथ-साथ शिक्षक उतने दोषी है जितने ये बालक। अगर शिक्षक सर्वे कर प्रवेश दिलाये तो ये बच्चे चोरी में नही बल्कि पढ़ाई में ज्यादा ध्यान देंगे। जिला प्रशासन को चाहिए कि हर स्कूल को आदेशित करें कि उनके क्षेत्र में आने वाले टोले मोहल्ले में अगर एक भी बच्चा अप्रवेशी पाया जाता है तो उन शिक्षकों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जायेगी। तभी शायद इन बच्चों में सुधार आ सकता है अन्यथा ये एक दिन जिले का नाम ऐसा रोशन करेंगे कि लोग यही कहेंगे कि कैसे है जिलेवासी क्या यही थी प्रदेश सरकार की योजना।माता पिता की है लापरवाही
बच्चों के प्रति माता पिता का ध्यान न देना यह दर्शाता है कि वे स्वयं चाहते है कि हमारे बच्चे चोरी जैसे वारदात करें। अगर थोड़ा भी ध्यान दे तो क्या ये बच्चे बस्ते की बजाय कबाड़ अपने कंधों में उठाये हुए घूमते। शर्म आनी चाहिए उन्हें जो अपने आप को मां व पिता कहलाते है।पुलिस नहीं दे रही ध्यान
जहां एक ओर कबाडिय़ों के बढ़ते हुए ठीहे बच्चों से मंहगा सामान लेकर कम दाम देते है जिससे उनके हौसले और बुलंद होते है और वे चोरी करने पर उतारू होते है। अगर इन कबाड़ी ठीहों को बंद करा दिए जाए तो छोटे-छोटे बच्चे स्कूल जाना शुरू कर सकते है। या फिर इन कबाडिय़ों को पुलिस प्रशासन द्वारा ऐसा कोई ठोस आदेश जारी करना चाहिए जिसमे वे स्वयं शपथ पत्र देकर शासन को यह विश्वास दिलाए कि वे नाबालिग बच्चों से ऐसा कोई कार्य नहीं कराएंगे जिसमें उनका भविष्य अंधकार की ओर जाए।
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