देश से गद्दारी का कारण है भ्रष्टाचार
देश भर में कई आईएएस, आईपीएस, आयकर विभाग के उच्च अधिकारी, सीबीआई, सीआईडी, भ्रष्टाचार अन्वेषण ब्यूरो, सतर्कता टीम के छोटे बडे अधिकारी भ्रष्टाचार के मामले में फंस रहे हैं . भारतीय उच्चायोग की बी-ग्रेड अधिकारी माधुरी गुप्ता को देश की ख़ुफ़िया जानकारी पाकिस्तान को बेचने के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है। पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों द्वारा माओवादियों को कारतूस बेचने का मामला प्रकाश में आया है । सूत्रों के अनुसार , कई राज्यों की पुलिस नक्सलियों को हथियार एवं कारतूस बेचा करते हैं । मुस्लिम एवं आदिवासी विरोध के नाम पर राष्ट्रवाद की बात करने वाले अजमेर की दरगाह में विस्फोटों में शामिल पाये जाते हैं । इस सबके उलट जिन मासूम बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया जाता है, उन्हें चोरी के इल्जाम में जेल में बन्द कर दिया जाता है और बलात्कारियों से मोटी रकम लेकर, शेष कुवारी लडकियों की इज्जत लूटने के लिये छोड दिया जाता है। इन हालातों में इस देश में कौन सुरक्षित हो सकता है और इन हालातों में कोई कब तक जिन्दा रह सकता है? इस सवाल का जवाब इस देश की जनता इस देश के शासकों से चाहती है?
हाल ही में माधुरी गुप्ता को जासूसी के मामले में पकडे जाने के बाद सारे के सारे कथित ढोंगी राष्ट्रवादी न जाने कहाँ गायब हो गये। जबकि कल तक ये धोखेबाज और मुखौटे पहने राष्ट्रवाद की बात करने वाले और अपने आपको बुद्धिजीवी कहने वाले सारे देश के मुसलमानों को आतंकवादी और देश के सारे आदिवासियों को नक्सलवादी ठहराने में हजारों तर्क गिना रहे थे। माधुरी और अजमेर में पकडे देशभक्तों के मामले में इनमें से किसी ने भी आगे आकर इनको फांसी पर लटकाने की मांग करने की हिम्मत नहीं दिखाई। जबकि इसके विपरीत चिल्लाचोट करने के आदी कुछ उथली मानसिकता के लोगों ने अवश्य माधुरी के नाम को लेकर झूठा हल्ला मचाया हुआ है।
जबकि विचारणीय मुद्दा यह है कि माधुरी गुप्ता द्वारा जो कुछ किया गया है, वह तो एक नमूना है, क्योंकि देशभर में हर क्षेत्र में पैठ जमा चुकी हजारों माधुरियाँ अभी पकडी जानी बाकी हैं। ऐसी अनेकों माधुरी और भ्रंवर हर सरकारी ऑफिस में उपलब्ध हैं। आज हजारों स्त्री और पुरुष धन, सुविधा और पदोन्नति के बदले कुछ भी करने को तैयार हैं। असल मुद्दा माधुरी गुप्ता, केतन देसाई या अन्य ऐसे लोगों को का पर्दाफाश करके इन्हें प्रचारित करना नहीं है, ये सब निहायती उथली और बेवकूफी भरी बातें हैं। असल में हमारे लिये विचारणीय मुद्दा यह होना चाहिये कि आगे से कोई माधुरी या केतन देसाई पैदा नहीं हो, इसके लिये क्या किया जाना चाहिये?
इसे हमें इस प्रकार से समझना होगा कि रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार नहीं करके उसको जान से खत्म कर देने से समाज के शेष लोगों को बीमारी से मुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि जब तक वातावरण में रोग के जीवाणु तैरते रहेंगे, किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को वे अपनी चपेट में लेकर बीमार बना सकते हैं। रोग के कारण अर्थात् जीवाणुओं को पहचानने की सख्त जरूरत है। इसलिये सबसे पहले हमें इस बात को स्वीकारना होगा कि भ्रष्टाचार नामक रोग के जीवाणुओं को पनपने देने के लिये हम सब सुशिक्षित और तेजी से आगे बढने की चाह रखने वाले इण्डियन मानसिकता के भारतीय नागरिक जिम्मेदार हैं। हम अपने आसपास नजर दौडाकर देख सकते हैं कि किसी भी प्रकार से धन कमाने वालों को हम कितना सम्मान देते हैं? हम किसी भी तरह से अपना काम बिना बारी और बिना लाईन में लगे करवाने पर कितने फक्र का अनुभव करते हैं? धन के बल पर चुनाव जीतने वालों का हम जुलूस निकालते हैं? इन सब कार्यों से हम खुले तौर पर भ्रष्टाचार को बढावा ही नहीं देते हैं, बल्कि भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकृति एवं मान्यता भी प्रदान करते हैं।
ऐसा करते समय हम भूल जाते हैं कि जो व्यक्ति राशन कार्ड बनाने के लिये वेतन पाता है और फिर भी राशन बनाने के बदले में रिश्वत लेता है, वही व्यक्ति अवसर मिलने पर देश की खुफिया जानकारियाँ उपलब्ध करने के बदले में चीन या पाकिस्तान से धन क्यों नहीं ले सकता है? जो व्यक्ति नकली दवाईयों के सैम्पल पास करते हैं, जो व्यक्ति असली पुर्जे बेचकर नकली पुर्जे लगाकर सरकारी बसों को दुर्घटना होने के लिये छोड देते हैं! जो लोग पुलों ओर बडी-बडी इमारतों में निर्धारित मापदण्डों के अनुरूप सामग्री का इस्तमाल नहीं करते, ऐसे व्यक्तियों को हम देशद्रोही क्यों नहीं मानते हैं?
इन लोगों की अनदेखी तो हम करते ही हैं, साथ ही साथ हम भ्रष्टाचार एवं अन्ततः देशद्रोह को भी बढावा देते हैं। लेकिन सब चलता है! भ्रष्टाचार तो देश के विकास के लिये जरूरी है। भ्रष्टाचार तो अन्तर्राष्ट्रीय बीमारी है, इसे रोका नहीं जा सकता आदि बेतुकी बातों का अनेक लोग बिना विचारे समर्थन करते रहते हैं! ऐसा कहते समय हम भूल जाते हैं कि हम भ्रष्टाचार के साथ-साथ परोक्ष रूप से जासूसी, आतंकवाद, नक्लवाद जैसे देशद्रोह को जन्म देने वाले अपराधों को भी बढावा दे रहे हैं।
इसके अलावा हमारी अन्धी और मीडिया द्वारा नियन्त्रित सोच का मूर्खता का जीता जागता नमूना यह भी है कि जब मुम्बई में ताज होटल में आतंकी घुस जाते हैं तो इसे राष्ट्र पर हमला बताया जाता है। लेकिन मुझे आज तक यह बात समझ में नहीं आता कि बम्बई बम ब्लॉक, जयपुर बम ब्लॉस्ट, कानपुर बम ब्लॉस्ट, लाल किले पर हमला और देश के विभिन्न हिस्सों में हुए सैकडों हमले राष्ट्र पर हमला क्यों नहीं थे और केवल मुम्बई के ताज होटल में हुआ हमला ही राष्ट्र पर हमला क्यों है? यही नहीं इस कथित राष्ट्रीय हमले पर मीडिया की जुबानी सारा देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर खडा होने का नाटक करता हुआ दिखता है, लेकिन आतंकवादियों को चांदी के चन्द सिक्कों के बदले होटल तक आने का रास्ता दिखलाने वाले देशद्रोहियों के नाम न जाने कहाँ गुम हो जाते हैं? मुम्बई में ताज होटल पर हुअे हमले को सरकार ने इतनी गम्भीरता से लिया कि पाकिस्तान से चल रही वार्ता को हर स्तर पर स्थगित कर दिया और ताज होटल मामले में पकडे गये एक मात्र आतंकी कसाब को सजा मिलने से पूर्व ही भूटान यात्रा के दौरान दोनों देशों के प्रधानमन्त्री विदेश मन्त्री स्तर की वार्ता के लिये सहमत हो गये। समझ में यह नहीं आता कि गत डेढ वर्ष में ऐसा कौनसा बदलाव आ गया, जिससे पाकिस्तान और भारत में फिर से वार्ता जारी रखने का माहौल बन गया है?
यदि हम सच को स्वीकार सकें तो बहुत कडवी सच्चाई यह है कि जिस प्रकार से मीडिया ने ताज होटल हमले के दौरान सारे राष्ट्र को एकजुट दिखाने का सफल नाटक किया था, उसी प्रकारसे भारत और पाकिस्तान के शासक गत छह दशकों से सचिव एवं मन्त्री स्तर की तथा शिखर वार्ताओं पर अरबों रुपये खर्च करके वार्ताओं के जरिये समस्याओं के समाधान ढँूढने का सफलतापूर्व नाटक करते आ रहे हैं। असल में दोनों देशों के शासकों में से कोई भी नहीं चाहता कि शान्ति कायम हो, क्योंकि दोनों देशों में जनता को पडौसी मुल्क का खतरा दिखाकर वोट मांगने और धार्मिक उन्माद फैलाकर शासन करने का इससे बढिया कोई और रास्ता हो ही नहीं सकता। ऐसा नहीं है कि हमारे देश में ही ऐसा हो रहा है। विश्व के अनेक देशों के शासक ऐसा करते रहते हैं।
बात मुम्बई ताज होटल की हो रही थी, तो इसकी कडवी और नंगी सच्चाई यह है कि ताज होटल जैसे आश-ओ-आराम उपलब्ध करवाने वाले आधुनिक होटलों में सांसद, विधायक, आईएएस, आईपीएस, कार्पोरेट मीडिया के लोग, क्रिकेटर, ऐक्टर, सारे उोगपति, पंँूजीपति, सफेदपोश अपराधी आदि बडे-बडे लोग न मात्र रुकते ही हैं, बल्कि सभी प्रकार की काली-सफेद डील भी इन्हीं होटलों में होती हैं। इसलिये जब ताज होटल पर हमला हुआ तो मुम्बई की फिल्मी दुनिया के लोग, जो एसी से बाहर नहीं निकलते रोड पर आकर शान्ति मार्च करते दिखे, उनके साथ कन्धा मिला रहे थे-अम्बानी जैसे उोगपति और सारा इल्क्ट्रोनिक एवं प्रिण्ट मीडिया ताज होटल पर हुए हमले को राष्ट्र पर हमला करार दे रहा था। ताज होटल पर हुए हमले को सभी दलों ने एक स्वर में राष्ट्र पर हमला करार दिया। वामपंथियों ओर दक्षिणपंथियों में इस मामले में एक राय होना कितना आश्चर्यजनक है।
सचिन तेन्दुलकर ने भी इसकी भर्त्सना की, अमिताभ की नींद उड गयी थी। परन्तु कोई भी इस बात का जवाब नहीं दे रहा था कि केवल यही हमला क्यों राष्ट्र पर है? क्या जयपुर या दिल्ली या कानपुर या मेरठ या अजमेर दरगाह भारत में नहीं हैं? यदि भारत में हैं तो उन हमलों को राष्ट्र पर हमला क्यों नहीं माना जाता? कडवी सच्चाई यह है कि इस देश के असली मालिक वे लोग हैं, जो इण्डिया में बसते हैं और इण्डिया इन्हीं ताज होटलों की गिरफ्त में है। शेष जो भारत में बसते हैं वे तो ताज होटलों में एश-ओ-आराम करने वाले इण्डिया के राजाओं की प्रजा हैं। हम सभी जानते हैं और इतिहास गवाह है कि आदिकाल से प्रजा केवल मरने के लिये ही पैदा होती रही है। प्रजा पर होने वाले हमलों का न तो हिसाब रखा जाता है और हीं उन पर चर्चा होती है।
अन्यथा क्या कारण है कि बांग्लादेश जैसे पिद्दी से देश के सुरक्षा गार्डों द्वारा कुछ वर्षों पर हमारे देश के सैनिकों के यौनांगों को काट डाला गया? उनके आँख, कान, नाक आदि काट दिये गये और लाश को हमारी सीमा में यह दिखाने के लिये पहुँचाया गया कि देख लो हम बांग्लादेशी कितने ताकतवर हैं? इस मामले में इण्डिया की सरकार ने कुछ भी नहीं किया, क्योंकि हमला इण्डिया पर नहीं, बल्कि भारत के लोगों पर हुआ था। सडकों पर मरने वाले भारतीय होते हैं ओर ताज होटलों में मरने वाले इण्डियन! इसलिये ताज होटल का हमला राष्ट्र पर हमला कहकर प्रचारित किया गया। यही फर्क है इस देश में भारतीय और इण्डियन होने का!
मुम्बई के ताज होटल में प्रवेश करने वालों को बेशक राष्ट्र का दुश्मन बतलाया गया हो और आगे से ऐसी घटनाएँ न हों इसके लिये बेशक कितने भी प्रयास किये गये हों, लेकिन जब तक माधुरी गुप्ता, केतन देसाई जैसे लोग इस देश में हैं न तो भारतीय सुरक्षित हैं और न हीं इण्डियन! यदि हम चाहते हैं कि यह देश नक्सलवाद, आतंकवाद, उग्रवाद, साम्प्रदायिकता आदि बीमारियों से मुक्त हो तो सबसे पहले इस देश को भ्रष्टाचार एवं भ्रष्टाचारियों से से मुक्त रखना होगा। इस देश की संसद को निर्णय लेना होगा कि भ्रष्टाचार की सजा कम से कम उम्र कैद और अधिकतम फांसी हो। इसके साथ-साथ आईएएस लॉबी की प्रशासनिक मनमानी पर रोक लगानी होगी, बल्कि तत्काल आईएएस प्रणाली को समाप्त करना होगा और विभागीय जाँच के नाटक बन्द करने होंगे। अन्यथा इस देश की सम्प्रभुता की सुरक्षा मुश्किल ही नहीं, असम्भव है।
लेकिन अभी तक के आजाद भारत के इतिहास की ओर नजर डालें तो पायेंगे कि हम कुछ भी नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हम सारी मुसीबतों के लिये दूसरों को जिम्मेदार ठहराने की प्रवृत्ति को छोडने को और स्वयं को तनिक भी दोषी मानने को तैयार हो ही नहीं सकते। हमें तो हमारे धर्मगुरुओं और शंकराचार्यों द्वारा सिखाया गया है कि हम तो गलत हो ही नहीं सकते! सारा का सारा दोष तो बाहरी संस्कृति का है। हमें बताया गया है कि रोग के जीवाणू तो बाहर से फैलाये जाते हैं। हमारी संस्कृति तो इतनी पवित्र है कि हमारे यहाँ किसी प्रकार की बुराई पैदा हो ही नहीं सकती। परिणाम सामने हैं!
क्या हम इस बात को स्वीकार करना पसन्द करेंगे कि इस देश में आईएएस नाम का जीव भ्रष्टाचार, अत्याचार, आतंकवाद, नक्सलवाद, उग्रवाद, साम्प्रदायिकता जैसी देश को खोखला एवं पथभ्रष्ट कर देने वाली सभी बुराईयों की असली जड है। जिसे अंग्रेजों ने इन्हीं सब कामों को पैदा करने के लिये जन्म दिया था, लेकिन यह जीव आजादी के बाद भी ज्यों का त्यों कुर्सी पर बिराजमान है, बल्कि और ताकतवर हो गया है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले गौरा अंग्रेज था, अब काला अंग्रेज बैठ गया है। यदि किसी को विश्वास नहीं हो तो जाँच करवाकर देख लो यूपीएएससी से भर्ती होने के बाद १० वर्ष की सेवा करते-करते ८० प्रतिशत से अधिक आईएएस कम से कम ५० करोड से अधिक की सम्पत्ती के स्वामी बन जाते हैं!
बेरोकटोक धन कमाने के लिये आजाद ऐसे लोगों को धन के संग्रह के साथ-साथ, आसानी से उपलब्ध गरम गोश्त की भी जरूरत होती है। ऐसे में उन्हें अविवाहित माधुरियाँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। फिर माधुरियों के लिये पाकिस्तान तक पहुँचना मुश्किल नहीं रह जाता? केतन देसाई जैसे भ्रष्ट लोग क्या देश द्रोही नहीं हैं? क्या केतन देसाई या ललित मोदी अकेले इतने बडे कारनामों को अंजाम दे सकते हैं? कभी नहीं, हर एक माधुरी गुप्ता, हर एक ललित मोदी, हर एक केतन देसाई जैसों को इस देश के नीति-नियन्ता आईएएस और राजनेताओं का बरदहस्त प्राप्त होता है। जिन्हें हम सब आम लोग जमकर सम्मान देते हैं। जब तक भ्रष्टाचार करने वालों को आजादी मिली रहेगी और हम इन भ्रष्टाचारियों को सम्मान तथा पुरस्कार देते रहेंगे, तब तक देशद्रोह, आतंकवाद और नक्सलवाद चलता ही रहेगा, कोई कुछ नहीं कर सकता।
यदि हम दुनिया को बदलना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें स्वयं को बदलना होगा। जो बदलाव हम दूसरों में देखना चाहते हैं, सबसे पहले वे सभी बदलाव हमें अपने-आप में करने होंगे और जो कुछ हम दूसरों से पालन करने को कहते हैं, उन सभी बातों को हमें अपने आचरण से प्रमाणित करना होगा। हमें शहीद भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस जैसे सर्वकालिक सच्चे राष्ट्रीयवीरों के दिलों में धधकती ज्वाला, अपने-आपके अन्दर जलानी होगी, लेकिन सावधान भगत सिंह जैसी गलती कभी नहीं करें! आक्रोश की आग में भगत सिंह की भांति स्वयं को नहीं जलायें, क्योंकि सारा देश जानता है कि यदि भगत सिंह और उनके जैसे देशभक्त जिन्दा रहे होते तो मोहन दास कर्मचन्द गाँधी देश के टुकडे करने के लिये आजाद नहीं होता। आजादी के बाद शासक तुष्टिकरण की कुनीतियों के जरिये समाज को विभाजित नहीं कर पाते। हमें भगत सिंह, चन्द्र शेखर, सुभाष चन्द्र बोस, ऊधम सिंह, असफाकउल्ला जैसे अमर शहीद देश भक्तों के संघर्ष को अपने दिलों में संजोकर, इस देश और मानवता को बचाने के लिये अपने आसपास के वातानुकूलित कक्षों में बिराजे देशद्रोहियों और गद्दारों से लडना होगा। तब ही हम विदेशी ताकतों से लडने में सक्षम हो सकते हैं।
अन्त में एक बात और, शुक्र है कि पकडी गयी महिला मुसलमान नहीं है, अन्यथा आरएएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, दुर्गावाहिनी, श्री राम सेना, शिव सेना और बीजेपी के अन्य सहयोगी संगठन देश में सडकों पर उतर आते और उत्पात मचाना शुरू कर देते।
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