Wednesday, July 13, 2011

एमजीएम स्कूल प्रबंधन कर रहा अभिभावकों का शोषण

प्रतिनिधि // संतोष कुमार गुप्ता (शहडोल // टाइम्स ऑफ क्राइम)
प्रतिनिधि से सम्पर्क : 94243 30959
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धनपुरी रेलवे कालोनी स्थित एमजीएम स्कूल में अभिभावकों से हो रही मनमानी फीस वसूली
बाजार से कई गुना दामों में स्कूल प्रबंधन द्वारा स्वयं बेचा जा रहा डे्रस मटेरियल
एमजीएम स्कूल की किताबे हैं सबसे मंहगी


शहडोल . वर्तमान शिक्षा सत्र में जिस तरह इंग्लिश मीडियम स्कूलों में खासकर एमजीएम स्कूल प्रबंधन द्वारा शिक्षा के मंदिर में बच्चों के डे्रस एवं पाठ्य सामग्री का व्यवसाय किया जा रहा है। कहीं न कहीं ये शिक्षा के स्तर को दूषित कर रहा है। जरूरत है प्रशासन ऐसे स्कूल संचालकों के ऊपर नकेल कसने की परंतु आश्चर्य है शहडोल जिले में बैठे शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों अपनी जिम्मेदारी को भूलकर ऐसे स्कूल संचालकों के ऊपर कार्यवाही करने की बजाय स्कूलों के लाभ में साझेदारी कर रहे है।
शहडोल। एक तरफ जहां राज्य शासन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नित नई योजनाएं लागू कर बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित कर रहा है। जिसमें गरीब बच्चों को 25 प्रतिशत प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश से लेकर मुफ्त में पाठ््य सामग्री वितरण की जा रही है। वही दूसरी तरफ जिले में स्थित इंग्लिश मीडियम स्कूलों द्वारा शिक्षा के माध्यम से खुलकर व्यवसाय किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार रेलवे कालोनी धनपुरी स्थित एमजीएम स्कूल के प्राचार्य द्वारा चोरी छिपे छात्र छात्राओं के डे्रस बाजार से मंहगे दामों में बेचा जा रहा है। अभिभावकों द्वारा कई बार इस बात का विरोध किया गया लेकिन प्रबंधन ने अभिभावकों की कोई बात नहीं सुनी।
स्कूल प्रबंधन द्वारा फीस से लेकर डे्रस बेचने तक अभिभावकों का जिस तरह शोषण किया जा रहा है। ऐसा लगता है एमजीएम स्कूल के प्रबंधन को शासन के दिशा निर्देशों से कोई मतलब नहीं है। इस संबंध में जब एमजेएम स्कूल के प्रिंसिपल से बात की गई तो उन्होंने इस बात से इनकार किया कि हमारे यहंा डे्रस बेचे जा रहे है। कुछ एक डे्रस बेचने की बात प्रिंसिपल द्वारा मानी गई उनके द्वारा बताया गया कि बच्चों के उम्र के अनुसार हम इस डे्रसों का मूल्य रखा है। जबकि अधिकांश अभिभावकों का कहना है कि स्कूल के प्रिंसिपल द्वारा 200 रुपए से लेकर 650 रुपए मूल्य तक के डे्रस प्रबंधन द्वारा बेचे जा रहे है।
मंहगी किताबे है एमजीएम स्कूल की
स्कूल प्रबंधन द्वारा अपने यहां पढऩे वाले छात्र छात्राओं के लिए ऐसी पाठ्य सामग्री अभिभावकों से खरीदने को कहा जाता है जो किताबे सबसे ज्यादा मंहगी होती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि ये किताबे किसी निश्चित ही दुकान पर ही मिलती है। जिसकी वजह से अभिभावकों को मजबूरन इन दुकानों से मंहगी किताबे खरीदनी पड़ती है। सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार मंहगी किताबों के पीछे कमीशन का खेल है। स्कूल प्रबंधन द्वारा इन किताबों के एवज में 30 से 40 प्रतिशत कमीशन खाया जाता है।
- नहीं है योग्य टीचर -
एमजीएम स्कूल प्रबंधन द्वारा जिस स्तर की फीस अभिभावकों से ली जा रही है उस स्तर के शिक्षक स्कूल में मौजूद नहीं है। नियमानुसार ऐसी स्कूलों में बीएड एवं एमएड के योग्यता वाले टीचर अनिवार्य है। इसके बावजूद प्रबंधन द्वारा बिल्कुल इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। अभिभावकों द्वारा कई बार ऐसी शिकायतें की गई है कि प्रबंधन बीच-बीच में अनाप-शनाप फीस भी वसूलता है। जो कभी फंड की सहायता या दान के रूप में लिया जाता है।
- नहीं दिया गया गरीब बच्चों को 25 प्रतिशत एडमीशन -
राज्य शासन के निर्देश के बावजूद एमजीएम स्कूल प्रबंधन द्वारा 25 प्रतिशत गरीब बच्चों को एडमीशन नहीं दिया गया। इस संबंध में जब स्कूल के प्रिंसिपल से जानकारी मांगी गई तो उनके द्वारा ये जानकारी नही बताई गई। इनके द्वारा ये कहा गया कि हमने जानकारी शिक्षा विभाग को दे दी है। जबकि वर्तमान में राज्य शासन के सख्त निर्देश है कि ऐसे प्राइवेट स्कूल जो नियमानुसार गरीब बच्चों को स्कूल में प्रवेश नहीं दे रहे है उन स्कूलों की मान्यता रद्द करने की कार्यवाही की जाय।
- कमिश्रर के आदेश का हो रहा उल्लंघन -
विगत कुछ सप्ताह पूर्व शहडोल संभाग के कमिश्नर ने शिक्षा विभाग को यह स्पष्ट रूप से निर्देशित किया था कि गरीब बच्चों के प्रवेश के संबंध में प्रत्येक प्राइवेट स्कूलों की जांच की जाय इसके बावजूद भी शिक्षा विभाग के अधिकारी प्राइवेट स्कूल की जांच करना जरूरी नहीं समझ रहे है।
- शिक्षा मंत्री ने प्राइवेट स्कूल की जांच के लिए स्पष्ट रूप से दिया है निर्देश -
विगत दिवस प्राइवेट स्कूलों के संबंध में लगातार मिल रही शिकायतों के आधार पर शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनीश ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं जो प्राइवेट स्कूल 25 प्रतिशत गरीब बच्चों को प्रवेश को लेकर आनाकानी या मनमानी कर रहे है उन स्कूलों की जांच कर उन पर सख्त कार्यवाही की जाय एवं उनके द्वारा शिक्षा विभाग को यह भी निर्देश दिया गया कि प्राइवेट स्कूलों में हो रही शिक्षा की गुणवत्ता की भी जांच की जाय।

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