क्राइम रिपोर्टर // वसीम बारी (रामानुजगंज //टाइम्स ऑफ क्राइम)
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रमजान से पहले एक ऐसा महीना आता है जो बहुत महत्वपूर्ण है। इसका नाम ‘शाबान’ है और यह इस्लामी कैलेंडर का आठवाँ महीना है। इसी ‘शाबान’ की 15 वीं रात को शबे-बराअत होती हैै। ‘शबे-बराअत’ का मतलब होता है छुटकारे वाली रात। इस रात को छुटकारे वाली रात यूँ कहा जाता है कि इसमें अल्लाह तआला की रहमत पूरे जोष पर होती है और बडी तादाद में गुनाहगारों को दोजख यानी नर्क से आजाद कर दिया जाता है। साथ ही इस माह और खास तौर से शबे-बराअत पर अगले साल का सारा हिसाब-किताब तय हो जाता है। यह तय हो जाता है कि इस साल किसे क्या मिलेगा। जिंदगी और मौत के फैसले इसी रात लिखे जाते हैं और इंसान के कर्मो का लेखा-जोखा अल्लाह के सामने पेश किया जाता है। ऐसे में जबकि सर्वशक्तिमान सत्ता के सामने इंसान के आमाल यानी कर्मो का गोशवारा पेश किया जा रहा हो तब यही बेहतर तरीका होता है कि बंदा उस रब की इबादत में डूबा रहे। यही हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे व सल्लम का तरीका भी था।
वे पूरे शाबान में खूब रोजे रखते, नफील यानी स्वैच्छिक नमाजें पढते, खुद के लिए और पूरी उम्मत यानी अपने समस्त अनुयायियों के लिए दुआएँ माँगते। हदीस की किताबों में आता है कि शबे-बराअत पर तो उन्होने खासतौर से कब्रिस्तान जाकर मुर्दो के लिए दुआएँ कीं। बताया जाता है कि रमजान के अलावा हजरत मुहम्मद सल्ल. सिर्फ शाबान में लगातार रोजें रखते जबकि शाबान के रोजे स्वैच्छिक है। इसीलिए वे बीच में रोजे छोड़ भी देते। आज भी बहुत से लोग शाबान में रोजे रखते है। खासतौर से शबे-बराअत के दिन तो बड़ी तादाद में लोग रोजा रखते है। दिन में रोजा रखने के बाद रात को षब बेदारी यानी जागरण किया जाता है।
इसमें स्वैच्छिक नमाजें व र्कुआन पढऩा, इस्तगफार करना यानी गुनाहों की माफी माँगना, अपने व तमाम लोगों के साथ मृत रिश्तेदारों के लिए विशेष दुआएँ करने का सिलसिला जारी रहता है। इस रात को हजरत मुहम्मद सल्ल. कब्रिस्तान गए थें। वहाँ जाकर उन्होने मुर्दो के लिए खास दुआएँ कीं। नबी (सल्ल.) के तरीकों पर चलने की कोशिश करने वाले इस रात खासतौर से कब्रिस्तान जाते हैं। और मुर्दो के लिए दुआएँ करते हैं। शबे-बराअत के 15 दिनों बाद रमजान शुरू होते है, सो इसे रमजान की आमद का ऐलान भी कहा जाता है। शबे-बराअत के बाद से ही लोग रमजान व ईद उल फित्र की तैयारियाँ शुरू कर देते है।
वे पूरे शाबान में खूब रोजे रखते, नफील यानी स्वैच्छिक नमाजें पढते, खुद के लिए और पूरी उम्मत यानी अपने समस्त अनुयायियों के लिए दुआएँ माँगते। हदीस की किताबों में आता है कि शबे-बराअत पर तो उन्होने खासतौर से कब्रिस्तान जाकर मुर्दो के लिए दुआएँ कीं। बताया जाता है कि रमजान के अलावा हजरत मुहम्मद सल्ल. सिर्फ शाबान में लगातार रोजें रखते जबकि शाबान के रोजे स्वैच्छिक है। इसीलिए वे बीच में रोजे छोड़ भी देते। आज भी बहुत से लोग शाबान में रोजे रखते है। खासतौर से शबे-बराअत के दिन तो बड़ी तादाद में लोग रोजा रखते है। दिन में रोजा रखने के बाद रात को षब बेदारी यानी जागरण किया जाता है।
इसमें स्वैच्छिक नमाजें व र्कुआन पढऩा, इस्तगफार करना यानी गुनाहों की माफी माँगना, अपने व तमाम लोगों के साथ मृत रिश्तेदारों के लिए विशेष दुआएँ करने का सिलसिला जारी रहता है। इस रात को हजरत मुहम्मद सल्ल. कब्रिस्तान गए थें। वहाँ जाकर उन्होने मुर्दो के लिए खास दुआएँ कीं। नबी (सल्ल.) के तरीकों पर चलने की कोशिश करने वाले इस रात खासतौर से कब्रिस्तान जाते हैं। और मुर्दो के लिए दुआएँ करते हैं। शबे-बराअत के 15 दिनों बाद रमजान शुरू होते है, सो इसे रमजान की आमद का ऐलान भी कहा जाता है। शबे-बराअत के बाद से ही लोग रमजान व ईद उल फित्र की तैयारियाँ शुरू कर देते है।
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