बंगलूर// पी. व्यंकटेश
कर्नाटक के शहर बंगलूर के लमदा क्षेत्र के शीशाद्रीपुरम कॉलेज में राधा बी.कॉम फाइनल इयर की छात्रा थीं। वहीं संपत बी.एस.सी. फाइनल इयर का स्टूडेंट था।दोनों एक ही कॉलेज के स्टूडेंट थे। अत: अक्सर दोनों की मुलाकात हो जाया करती थी। धीरे-धीरे दोनों आपस में अच्छे दोस्त बन गए, फिर दोस्ती प्यार में बदल गई। दोनों ही साथ खाते-पीते, पढ़ते-लिखते और सोते-जागते एक-दूसरे के ख्यालों में रहते थे। यूं ही समय गुजरता रहा। धीरे-धीरे हवालों में उन दोनों के प्यार की खुशबू फैली और इस की महक राधा की मां तक पहुंची। एक रोज मां ने राधा से कहा, राधा, यह सब मैं क्या सुन रही हूं? तुम्हारे पापा को इस बात का पता चला तो वे तुम दोनों को मार डालेंगे।
राधा ने कुछ छुपाने के बजाय साफ-साफ कहा, मम्मी, मैं संपत से प्यार करती हूं। वो भी मुझे बहुत प्यार करता है। हम दोनों शादी करना चाहते हैं, लेकिन उस की जाति अलग हैं, बेटी यह तो तूने मुझे बहुत बड़े धर्म संकट में डाल दिया है। मां मैं उससे बहुत प्यार करती हूं। इतना कहने के साथ ही राधा ने रोते हुए मां के पैर पकड़ लिए, प्लीज मां, हमारी शादी करा दो। बेटी मैं तो मान जाऊंगी, लेकिन तेरे पिताजी नहीं मानेंगे। आप उन्हें मना लेंगी। प्लीज मां। ‘इस तरह हताश नहीं होते’ कहते हुए मां ने राधा को उठाया, पहले तू उसे मुझसे मिला। फिर मैं तेरी खुशी के लिए तेरे पिता जी से एक बार बात जरूर करूंगी। अपनी शादी के लिए मां को मना लेने की बात जब राधा ने संपत को बताई तो वह काफी खुश हुआ। फिर एक दिन राधा की मां ने शादी की बात राधा के पिता से की। सुनिये, मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं। हमारी राधा बिटिया किसी से प्यार करने लगी है। वह लडक़ा उसी के कॉलेज में पढ़ता है।
वह हमारी जाति बिरादरी का नहीं है। तो क्या हुआ। देखिये न, अब तो समय भी बदल रहा है। मुझे तो लगता है, राधा की शादी हमें उसी लडक़े के साथ कर देनी चाहिए। यह क्या बात कर रही हो तुम? तुमने सोच भी कैसे लिया कि मैं किसी गैर जाति के लडक़े से अपनी बेटी की शादी कर दूंगा। लेकिन हमारी बिटिया उस लडक़े से बहुत ज्यादा प्यार करती है और मैंने उसे जवान दे रखी है। यह रिश्ता हरगिज नहीं होगा। राधा की शादी वहीं होगी, जहां मैं चाहूंगा। तुम्हारे भाई के बैटे मूर्ति के साथ ही राधा की शादी होगी, यह समझ लो तुम।
फिर राधा के पिता ने राधा की शादी अपने साले के बेटे मूर्ति के साथ पक्की कर दी। राधा ने यह बात संपत को बताई तो वह उदास हो गया। शादी की तारीख तय होते ही राधा गुमसुम हो गई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करें? राधा के पिता ने राधा की शादी मूर्ति के साथ कर दी। दुल्हन बन कर राधा अपनी ससुराल आ गई। ससुराल में राधा का भव्य स्वागत किया गया। बहू के आने की खुशी में ससुराल वालों ने भव्य प्रीत भोज दिया। सबने खाना खाया पर राधा भूखी ही रही। सब के कहने के बावजूद भी उसने एक निवाला तक मुंह में नहीं डाला।
वह तो बस संपत के ख्यालों में ही गुम थी। इसी तरह पांच दिन बीत गये। राधा के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया। क्षुब्ध होकर मूर्ति ने अपने घर में सब को साफ-साफ बता दिया। बात संगीन थी, अत: उन्होंने फोन करके राधा के पापा को बुला लिया। सारी बात सुन कर वह भी चिंतित हो गए। सोचा, यह लडक़ी हमारी नाक कटवा देगी। राधा के पापा ने राधा को समझाया, देखो बेटी, अब कभी किसी को शिकायत का मौका मत देना। आखिर यहां किस बात की कमी है। हंसी-खुशी से रहो। अब मैं चलता हूं। नहीं पापा, मुझे यहां छोडक़र मत जाइये। मुझे अपने साथ ले चलिए। नहीं तो मैं घुट-घुट कर मर जाऊंगी। गिड़गिड़ाते हुए राधा ने कहा, तो वह भडक़ उठे। नादान लडक़ी, शादी के बाद लडक़ी का असली घर ससुराल होता है। तेरा अब यही घर है।
फिर क्यों मेरे साथ चलने की जिद कर रही है। इस पर राधा के ससुराल वालों ने नरमी से कहा, बच्ची है, जिद कर रही है तो इस कुछ दिन के लिए ले जाइये। वहां जाने के बाद राधा ठीक हो जाएगी। राधा के पापा उसे अपने साथ घर ले आये। कुछ दिनों बाद मूर्ति राधा, को लेने आया तो फिर वही कहानी शुरू हो गई। राधा ने साफ कह दिया कि वह ससुराल नहीं जाएगी। राधा की बातें सुनकर मूर्ति को दुख पहुंचा। उसने सोचा था कि अब तक राधा में बदलाव आ गया होगा।
वह उसे देख कर खुश होगी। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। बहरहाल, राधा की किसी ने एक न सुनी और मूर्ति के साथ उसे बिदा कर दिया गया। ससुराल आते ही राधा फिर से खाती-पीती नहीं घर के लोगों से बातें करती। थोड़ी-थोड़ी देर में सिसकती रहती। हकीकत तो यह थी राधा संपत को भुला ही नहीं पा रही थी। वह उसी की यादों में खोकर रोती रहती थी। राधा के जेहन में हमेशा संपत से पहले मिलन की घटना घूमती रहती थी। उस दिन जोरों से सर्दी थी। मौसम आशिकाना था, अत: राधा संपत से मिलने क लिए बचैन हो उठी। वह सोचने लगी, कैसे संपत के पास पहुंचे और उसकी बाहों में समा जाए। संपत का घर राधा के घर से कुछ ही फासले पर था। राधा ने खिड़ी से बाहर देखा। ज्यादा सर्दी की वजह से उस वक्त बाहर कोई भी नहीं था। सन्नाटा देखकर राधा के मन की मुराद पूरी हो गई। उसने अपने सिर पर साड़ी का पल्लू डाला और तेजी से दौड़ती हुई संपत के घर पहुंच गई। संपत अपने घर में अकेला बैठा हुआ टी.वी. देख रहा था। राधा को देख कर वह चौंका, तुम यहां...? संपत, अब मैं एक पल के लिए भी मूर्ति के साथ नहीं रह सकती। मुझे यहां से कहीं दूर ले चलो।
संपत, कुछ करो प्लीज, हमारे लिए कुछ करो। राधा तुम चिंता मत करो। मैं जरूर कुछ करूंगा। 29 जनवरी को प्रात: राधा ने मूर्ति से मंदिर चलने की जिद की। चूंकि राधा ने पहली बार मूर्ति से प्रेमपूर्वक जिद की थी। इसलिए वह राधा को साथ लेकर मंदिर गया। मंदिर में राधा और मूर्ति ने पूजा-अर्चना की, फिर दोनों बाहर निकल ही रहे थे कि मंदिर से बाहर आते वक्त संपत अपने कुछ साथियों के साथ मूर्ति से भिड़ गया। बहुत कुछ हो सकता है। मूर्ति तुम्हारे जीते जी तो यह नहीं होगा। हां, तुम्हारे मरने के बाद राधा मेरी जरूर हो जाएगी। तभी संपत के साथियों ने अचानक मूर्ति पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया। मूर्ति पर अचानक हुए हमले की खबर सुनकर सब हैरान रह गए। मूर्ति का चचेरा भाई हरीश मूर्ति को अस्पताल लेकर पहुंचा।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। राधा ने एसएमएस के जरिये संपत को हर एक पल की जानकारी दी थी, जब मूर्ति मंदिर से बाहर निकल रहा था, तभी हमलावरों ने मूर्ति पर हमला कर दिया था। राधा और संपत अब जेल में चक्की पीस रहे हैं।
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