अनिल पुरोहित // toc news
भोपाल। बिजली, पानी और सड़क के मुद्दे पर बनी भारतीय जनता पार्टी की सरकार में बिजली सुधार के नाम पर करोड़ों रुपये यूं तो पानी में बहा दिये गये तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश की जनता को चौबीस घंटे बिजली पहुंचने के नाम पर जो तमाम निजी बिजली कम्पनियों से बिजली खरीदी का सौदा कर जो खेल खेला गया, उस खेल में इन बिजली कम्पनियों को जो घाट हुआ अब उसका ठीकरा प्रदेश की जनता पर फोडऩे की तैयारी करने में लगी हुई है मजे की बात यह है कि इस बिजली खरीदी में घोटाले की बू आ रही है और यह सवाल खड़ा हो रहा है कि जब राज्य सरकार ने ६९ पैसे से लेकर एक रुपये ७४ पैसे तक निजी कम्पनियों से बिजली खरीदी का जो खेला और प्रदेश की जनता को सात रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली उपलब्ध कराई गई, उसमें हुए नुकसान की भरपाई करने को लेकर बिजली कंपनियों की सीनाजोरी सामने आई है।
अंधेरे का खौफ दिखाकर इन कंपनियों ने देश की ५५ उत्पादन इकाईयों से खरीद अनुबंध कर लिया। रजामंदी हुई कि बिना बिजली खरीदे हर साल तयशुदा रकम अदा करेंगे। फिलहाल जरूरत के हिसाब से दर्जन भर उत्पादन इकाईयों से बिजली खरीदी जाती है। गर्मी में डेढ़ दर्जन इकाईयों से खरीद होती है। यानी ४० इकाईयों को बगैर बिजली खरीदे ४.५ हजार करोड़ सालाना चुकाने पड़ रहे हैं। इसकी भरपाई के लिए उपभोक्ताओं की जेब काटने का इरादा बनाया है। कमाई व खर्च के गणित को सामने रखकर ५.३ पैसे प्रति यूनिट घाटे का टैरिफ बनाया गया है। इसी आधार पर ५.० पैसे से एक रुपए तक की बिजली महंगी करने का ताना-बाना बुना गया है। घर-घर बिजली पहुंचाने में सालाना ३० हजार करोड़ का खर्च आता है। चार हजार करोड़ रुपए तनख्वाह और रखरखाव में खर्च होते हैं। शेष रकम से बिजली खरीदी जाती है।
यहां एक गड़बड़झाला है। बिजली तो सिर्फ १५ हजार करोड़ रुपए की खरीदी जाती है। शेष रकम अनुबंध के तहत ५५ उत्पादन इकाईयों की फिक्स चार्ज के रूप में चुकानी पड़ती है। जबकि आंकड़े के अनुसार प्लाट निगरी में ०.६९ की खरीदी, एमपी पॉवर १.७७ की खरीदी, यूएमपीपी सासन १.१५ की खरीदी, विन्ध्याचल में १.७४ की खरीदी, कोरबा में १.०६ की खरीदी, सीपेट में १.३८ की खरीदी की गई। बिजली कम्पनियों का कुल कितना खर्च के हिसाब से सालाना ३० हजार करोड़ सालाना अनुमानित है, ३२०० करोड़ रुपए सालाना वेतन रखरखाव आदि में खर्च आता है, तो वहीं २५००० करोड़ रुपए का परचेस शेष कितने की खरीदी होती है, साथ ही १८०० करोड़ रुपए अन्य खर्च पर आता है, इसी के चलते ५५ बिजली कंपनियों से अनुबंध किया है।
भोपाल। बिजली, पानी और सड़क के मुद्दे पर बनी भारतीय जनता पार्टी की सरकार में बिजली सुधार के नाम पर करोड़ों रुपये यूं तो पानी में बहा दिये गये तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश की जनता को चौबीस घंटे बिजली पहुंचने के नाम पर जो तमाम निजी बिजली कम्पनियों से बिजली खरीदी का सौदा कर जो खेल खेला गया, उस खेल में इन बिजली कम्पनियों को जो घाट हुआ अब उसका ठीकरा प्रदेश की जनता पर फोडऩे की तैयारी करने में लगी हुई है मजे की बात यह है कि इस बिजली खरीदी में घोटाले की बू आ रही है और यह सवाल खड़ा हो रहा है कि जब राज्य सरकार ने ६९ पैसे से लेकर एक रुपये ७४ पैसे तक निजी कम्पनियों से बिजली खरीदी का जो खेला और प्रदेश की जनता को सात रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली उपलब्ध कराई गई, उसमें हुए नुकसान की भरपाई करने को लेकर बिजली कंपनियों की सीनाजोरी सामने आई है।
अंधेरे का खौफ दिखाकर इन कंपनियों ने देश की ५५ उत्पादन इकाईयों से खरीद अनुबंध कर लिया। रजामंदी हुई कि बिना बिजली खरीदे हर साल तयशुदा रकम अदा करेंगे। फिलहाल जरूरत के हिसाब से दर्जन भर उत्पादन इकाईयों से बिजली खरीदी जाती है। गर्मी में डेढ़ दर्जन इकाईयों से खरीद होती है। यानी ४० इकाईयों को बगैर बिजली खरीदे ४.५ हजार करोड़ सालाना चुकाने पड़ रहे हैं। इसकी भरपाई के लिए उपभोक्ताओं की जेब काटने का इरादा बनाया है। कमाई व खर्च के गणित को सामने रखकर ५.३ पैसे प्रति यूनिट घाटे का टैरिफ बनाया गया है। इसी आधार पर ५.० पैसे से एक रुपए तक की बिजली महंगी करने का ताना-बाना बुना गया है। घर-घर बिजली पहुंचाने में सालाना ३० हजार करोड़ का खर्च आता है। चार हजार करोड़ रुपए तनख्वाह और रखरखाव में खर्च होते हैं। शेष रकम से बिजली खरीदी जाती है।
यहां एक गड़बड़झाला है। बिजली तो सिर्फ १५ हजार करोड़ रुपए की खरीदी जाती है। शेष रकम अनुबंध के तहत ५५ उत्पादन इकाईयों की फिक्स चार्ज के रूप में चुकानी पड़ती है। जबकि आंकड़े के अनुसार प्लाट निगरी में ०.६९ की खरीदी, एमपी पॉवर १.७७ की खरीदी, यूएमपीपी सासन १.१५ की खरीदी, विन्ध्याचल में १.७४ की खरीदी, कोरबा में १.०६ की खरीदी, सीपेट में १.३८ की खरीदी की गई। बिजली कम्पनियों का कुल कितना खर्च के हिसाब से सालाना ३० हजार करोड़ सालाना अनुमानित है, ३२०० करोड़ रुपए सालाना वेतन रखरखाव आदि में खर्च आता है, तो वहीं २५००० करोड़ रुपए का परचेस शेष कितने की खरीदी होती है, साथ ही १८०० करोड़ रुपए अन्य खर्च पर आता है, इसी के चलते ५५ बिजली कंपनियों से अनुबंध किया है।
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