अवधेश पुरोहित @ toc news
भोपाल. शासनकाल के दौरान जहां राज्य के विभिन्न वर्गों के लिए तरह-तरह की हितकारी और जनकल्याणकारी योजनाएं चलाई गई लेकिन उसका लाभ आजतक सही व्यक्ति को नहीं मिल पाया और इन योजनाओं में जितना भ्रष्टाचार हुआ उसका भी शिवराज सरकार की अतिलोकप्रियता की तरह भी भ्रष्टाचार के तमाम रिकार्ड भी बनाए गए। इन रिकार्डों को देखते हुए मुझे २८ सितम्बर २००७ को तत्कालीन भारतीय जनशक्ति के राष्ट्रीय महामंत्री पूर्व सांसद व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का मुख्यमंत्री के नाम लिखा वह पत्र में लिखे शब्द आज भी याद आते हैं जिसमें उन्होंने लिखा था कि आपने मुझसे क्षमा मांगी और मैंने उस मर्यादा का पालन किया, लेकिन आप मेरे तथ्यात्मक पत्र का उत्तर देने का साहस नहीं जुटा सके, आपको श्रीमती साधना सिंह को पत्नी स्वीकार करने में दस दिन लग गये और क्षमा-वाणी पर कह रहे हैं कि वह आपकी मार्जन मनी से लिये गये ट्रक हैं? यदि आपके थे तो बेचे क्यों?
क्या बेचने का ब्यौरा आप सार्वजनिक करने की हिम्मत जुटा पाएंगे? नैतिक रूप से मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हुए व्यक्ति को इस लेनदेन को सार्वजनिक करना चाहिए? मान्यवर, मिथ्याभिमान से तो मैं जरूर अहत हूं क्योंकि पद पर बैठकर आप बहुरूपिये हो गये हैं? मैं तो मानता था कि आप स्वयं दागदार नहीं हैं, लेकिन आज के बाद मेरी धारणा बदल गई है? आप स्वयं भ्रष्टाचार के जनक हैं, आपकी कमजोरी, आपकी निर्णय न कर पाने की प्रवृत्ति और अब झूठ बोलना, आर्थिक अपराधों को खुला संरक्षण दे रहा है? आपका विकास का ढोल भूखों की भूख तो समाप्त भले ही नहीं कर पा रहा हो लेकिन भ्रष्टाचारियों को संरक्षण जरूर दे रहा है? वर्ष २००७ में लिखे गये प्रहलाद पटेल के इस पत्र का अक्षरश: आज भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर लागू होता है,
इसके पीछे के कारण राजनीतिक और भारतीय जनता पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं से जब चर्चा की गई तो उन सभी का एक ही जवाब था कि जब आप स्वयं भ्रष्टाचार को संरक्षण देंगे या भूल से भी आपने कभी कोई गलत काम कर लिया तो लोग अक्सर हावी हो जाते हैं और यही नियम मध्यप्रदेश की राजनीति पर शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल के दौरान पूरी तरह से लागू होकर प्रदेश की नौकरशाही शिवराज के कार्यकाल से हावी है और हावी ही रहेगी। इसके पीछे का कारण भाजपा के नेता बताते हुए कहते हैं कि नाफरमान नौकरशाही को बचाने के लिए पूरी सरकार महाभारत के शिखंडी की तरह इन भ्रष्ट नौकरशाह को बचाने के लिए आगे क्यों आ जाती है, इसके पीछे के कारण क्या है, यह शोध का विषय है क्योंकि जब भी चाहे सिंहस्थ का घोटाला हो या डीमेट का घोटाला हो या फिर सिंहस्थ के दौरान घटिया निर्माण व कुप्रबंधन का मामला हो ऐसे मामलों की एक लम्बी सूची है, जिनमें फंसे अधिकारियों को बचाने के लिए सरकार और उसके मुखिया हमेशा मैदान में क्यों उतर जाते हैं। इस सवाल का जवाब हर कोई ढूंढने में लगा हुआ है और वह यह मानकर चल रहा है
कि राज्य में जब भी नौकरशाही भ्रष्टाचार या कुप्रबंधन के घेरे में आई शिवराज सिंह उसे बचाने के लिये हमेशा मैदान में आये, यूं तो इस तरह का नौकरशाही के बचाने का सिलसिला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के प्रारंभ से ही श्रीगणेश हुआ है, जब तत्कालीन प्रमुख सचिव चौधरी पर तमाम आरोप लगे थे और वे आरोपों के होने के बावजूद भी उनकी केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के निर्देश हो गये थे लेकिन वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कारगुजारी के चलते आरोपी होने के बाद भी उन्हें रिलीव कर दिया गया था, पता नहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ऐसे मामलों में क्या रणनीति है यह तो वही जानें लेकिन जब इसी शिवराज सिंह के कार्यकाल के दौरान २४ सितम्बर २००७ को ईओडब्ल्यू द्वारा विशेष न्यायाधीश भावे की अदालत में मामला पेश करते समय सात सौ करोड़ इस प्रदेश के लूटने वाले कथित आरोपी आरएस मोहंती को कैसे छोड़ दिया गया,
इस घोटाले का मुख्य सूत्रधार आज भी शिवराज सिंह के संरक्षण में मलाईदार और उच्च पद पर आसीन है और उन्हें मुख्य सचिव बनाने की पूरी-पूरी तैयारी करने में यह सरकार लगी हुई है। जहां तक भ्रष्ट नौकरशाही को बचाने का मामला है तो ऐसे एक नहीं अनेकों मामले हैं जिसमें शिवराज सिंह चौहान द्वारा प्रदेश की भ्रष्ट नौकरशाही को बचाने में पूरी-पूरी कोशिश की गई और की जा रही है, यह सबको देखकर तो यही नजर आता है कि जिस नौकरशाही को लेकर राज्य के जनप्रतिनिधि हमेशा इस बात का रोना रोते रहते हैं कि उनके साथ नौकरशाही ने अभद्र व्यवहार किया या फिर उनके पत्रों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं आदि-आदि और हर बार मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर सदन तक यही दावा करते हैं कि जनप्रतिनिधियों को तवज्जो देना चाहिए लेकिन उनकी यह कार्रवाई और घोषणा हमेशा नाकामयाब साबित हुई, इसके पीछे के भी क्या कारण है,
इसके बारे में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि जब आप अपने किसी अधीनस्थ व्यक्ति से कोई गलत काम कराएंगे तो वह हावी होगा ही, पता नहीं मध्य प्रदेश में सत्ताधीशों द्वारा प्रदेश की नौकरशाही से क्या-क्या गलत या गैर कानूनी काम कराए गए जिनकी वजह से आज राज्य के जनप्रतिनिधि तो प्रदेश की नौकरशाही से परेशान तो है ही तो वहीं शिवराज मंत्रीमण्डल के सदस्य भी अक्सर यही रोना रोते रहते हैं कि उनके प्रमुख सचिव से उनकी नहीं बन रही है फिर चाहे वह जुलानिया, मोहंती, अश्विनी राय, मोहम्मद सुलेमान या विवेक अग्रवाल सहित तमाम प्रमुख सचिवों और मंत्रिमण्डल सचिवों के विवाद को लेकर अक्सर समाचार सुर्खियों में रहते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी प्रदेश में नौकरशाही का दबदबा कम नहीं हो रहा है और यही वजह है कि राज्य में जल संसाधन विभाग के एएनसी चौबे जैसे भ्रष्ट अधिकारियों की पांचवीं बार संविदा नियुक्ति हो जाती है
इसके पीछे लोग जो कारण बताते हैं वह भी बड़ा अजीब है, लोगों का कहना है कि भ्रष्ट अधिकारियों को लगातार संविदा नियुक्ति दिये जाने के पीछे मामला भजकलदारम् के हिसाब-किताब का है, खैर यह मुख्यमंत्री जानें कि कहां किसको मलाईदार पद और किसकी संविदा नियुक्ति इस सरकार द्वारा किन कारणों से दी जाती है इसके पीछे के कारण खोजने में भी लोग लगे हुए हैं। कुल मिलाकर राज्य में नौकरशाही को लेकर जो अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है
और हर बार मुख्यमंत्री इस नौकरशाही को बचाव के लिए हमेशा मैदान में आ रहे हैं, इसके पीछे के कारणों की खोज ठीक उसी तरह से करने में लगे हुए हैं जैसा कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में सम्पन्न सिंहस्थ के विचारमंथन के समापन वाले दिन अपने भाषण के दौरान देश और प्रदेश के साथ-साथ दुनिया के लोगों को यह सलाह दी थी कि यदि इतने बड़े आयोजनों में मैनेजमेंट की व्यवस्था के बारे में सही जानकारी लेना है तो मध्यप्रदेश की सरकार से आकर ले, कि सिंहस्थ के दौरान आई आंधी और तूफान की वजह से दोपहर तक सबकुछ तहस नहस होने की खबरें आ रही थीं लेकिन मैनेजमेंट व्यवस्था के चलते शाम ढलते-ढलते सबकुछ सामान्य हो गया। यह व्यवस्था का ही कमाल है
शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने हमारे प्रदेश के सत्ता के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को अतिलोकप्रिय मुख्यमंत्री होने की संज्ञान कुछ यूं नहीं दे डाली थी, आखिर शिवराज और उनकी टीम के मैनेजमेंट से वह प्रभावित तो होंगे ही तभी उन्होंने अति लोकप्रिय मुख्यमंत्री की उपाधि से शिवराज को नवाजा?
भोपाल. शासनकाल के दौरान जहां राज्य के विभिन्न वर्गों के लिए तरह-तरह की हितकारी और जनकल्याणकारी योजनाएं चलाई गई लेकिन उसका लाभ आजतक सही व्यक्ति को नहीं मिल पाया और इन योजनाओं में जितना भ्रष्टाचार हुआ उसका भी शिवराज सरकार की अतिलोकप्रियता की तरह भी भ्रष्टाचार के तमाम रिकार्ड भी बनाए गए। इन रिकार्डों को देखते हुए मुझे २८ सितम्बर २००७ को तत्कालीन भारतीय जनशक्ति के राष्ट्रीय महामंत्री पूर्व सांसद व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का मुख्यमंत्री के नाम लिखा वह पत्र में लिखे शब्द आज भी याद आते हैं जिसमें उन्होंने लिखा था कि आपने मुझसे क्षमा मांगी और मैंने उस मर्यादा का पालन किया, लेकिन आप मेरे तथ्यात्मक पत्र का उत्तर देने का साहस नहीं जुटा सके, आपको श्रीमती साधना सिंह को पत्नी स्वीकार करने में दस दिन लग गये और क्षमा-वाणी पर कह रहे हैं कि वह आपकी मार्जन मनी से लिये गये ट्रक हैं? यदि आपके थे तो बेचे क्यों?
क्या बेचने का ब्यौरा आप सार्वजनिक करने की हिम्मत जुटा पाएंगे? नैतिक रूप से मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हुए व्यक्ति को इस लेनदेन को सार्वजनिक करना चाहिए? मान्यवर, मिथ्याभिमान से तो मैं जरूर अहत हूं क्योंकि पद पर बैठकर आप बहुरूपिये हो गये हैं? मैं तो मानता था कि आप स्वयं दागदार नहीं हैं, लेकिन आज के बाद मेरी धारणा बदल गई है? आप स्वयं भ्रष्टाचार के जनक हैं, आपकी कमजोरी, आपकी निर्णय न कर पाने की प्रवृत्ति और अब झूठ बोलना, आर्थिक अपराधों को खुला संरक्षण दे रहा है? आपका विकास का ढोल भूखों की भूख तो समाप्त भले ही नहीं कर पा रहा हो लेकिन भ्रष्टाचारियों को संरक्षण जरूर दे रहा है? वर्ष २००७ में लिखे गये प्रहलाद पटेल के इस पत्र का अक्षरश: आज भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर लागू होता है,
इसके पीछे के कारण राजनीतिक और भारतीय जनता पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं से जब चर्चा की गई तो उन सभी का एक ही जवाब था कि जब आप स्वयं भ्रष्टाचार को संरक्षण देंगे या भूल से भी आपने कभी कोई गलत काम कर लिया तो लोग अक्सर हावी हो जाते हैं और यही नियम मध्यप्रदेश की राजनीति पर शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल के दौरान पूरी तरह से लागू होकर प्रदेश की नौकरशाही शिवराज के कार्यकाल से हावी है और हावी ही रहेगी। इसके पीछे का कारण भाजपा के नेता बताते हुए कहते हैं कि नाफरमान नौकरशाही को बचाने के लिए पूरी सरकार महाभारत के शिखंडी की तरह इन भ्रष्ट नौकरशाह को बचाने के लिए आगे क्यों आ जाती है, इसके पीछे के कारण क्या है, यह शोध का विषय है क्योंकि जब भी चाहे सिंहस्थ का घोटाला हो या डीमेट का घोटाला हो या फिर सिंहस्थ के दौरान घटिया निर्माण व कुप्रबंधन का मामला हो ऐसे मामलों की एक लम्बी सूची है, जिनमें फंसे अधिकारियों को बचाने के लिए सरकार और उसके मुखिया हमेशा मैदान में क्यों उतर जाते हैं। इस सवाल का जवाब हर कोई ढूंढने में लगा हुआ है और वह यह मानकर चल रहा है
कि राज्य में जब भी नौकरशाही भ्रष्टाचार या कुप्रबंधन के घेरे में आई शिवराज सिंह उसे बचाने के लिये हमेशा मैदान में आये, यूं तो इस तरह का नौकरशाही के बचाने का सिलसिला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के प्रारंभ से ही श्रीगणेश हुआ है, जब तत्कालीन प्रमुख सचिव चौधरी पर तमाम आरोप लगे थे और वे आरोपों के होने के बावजूद भी उनकी केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के निर्देश हो गये थे लेकिन वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कारगुजारी के चलते आरोपी होने के बाद भी उन्हें रिलीव कर दिया गया था, पता नहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ऐसे मामलों में क्या रणनीति है यह तो वही जानें लेकिन जब इसी शिवराज सिंह के कार्यकाल के दौरान २४ सितम्बर २००७ को ईओडब्ल्यू द्वारा विशेष न्यायाधीश भावे की अदालत में मामला पेश करते समय सात सौ करोड़ इस प्रदेश के लूटने वाले कथित आरोपी आरएस मोहंती को कैसे छोड़ दिया गया,
इस घोटाले का मुख्य सूत्रधार आज भी शिवराज सिंह के संरक्षण में मलाईदार और उच्च पद पर आसीन है और उन्हें मुख्य सचिव बनाने की पूरी-पूरी तैयारी करने में यह सरकार लगी हुई है। जहां तक भ्रष्ट नौकरशाही को बचाने का मामला है तो ऐसे एक नहीं अनेकों मामले हैं जिसमें शिवराज सिंह चौहान द्वारा प्रदेश की भ्रष्ट नौकरशाही को बचाने में पूरी-पूरी कोशिश की गई और की जा रही है, यह सबको देखकर तो यही नजर आता है कि जिस नौकरशाही को लेकर राज्य के जनप्रतिनिधि हमेशा इस बात का रोना रोते रहते हैं कि उनके साथ नौकरशाही ने अभद्र व्यवहार किया या फिर उनके पत्रों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं आदि-आदि और हर बार मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर सदन तक यही दावा करते हैं कि जनप्रतिनिधियों को तवज्जो देना चाहिए लेकिन उनकी यह कार्रवाई और घोषणा हमेशा नाकामयाब साबित हुई, इसके पीछे के भी क्या कारण है,
इसके बारे में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि जब आप अपने किसी अधीनस्थ व्यक्ति से कोई गलत काम कराएंगे तो वह हावी होगा ही, पता नहीं मध्य प्रदेश में सत्ताधीशों द्वारा प्रदेश की नौकरशाही से क्या-क्या गलत या गैर कानूनी काम कराए गए जिनकी वजह से आज राज्य के जनप्रतिनिधि तो प्रदेश की नौकरशाही से परेशान तो है ही तो वहीं शिवराज मंत्रीमण्डल के सदस्य भी अक्सर यही रोना रोते रहते हैं कि उनके प्रमुख सचिव से उनकी नहीं बन रही है फिर चाहे वह जुलानिया, मोहंती, अश्विनी राय, मोहम्मद सुलेमान या विवेक अग्रवाल सहित तमाम प्रमुख सचिवों और मंत्रिमण्डल सचिवों के विवाद को लेकर अक्सर समाचार सुर्खियों में रहते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी प्रदेश में नौकरशाही का दबदबा कम नहीं हो रहा है और यही वजह है कि राज्य में जल संसाधन विभाग के एएनसी चौबे जैसे भ्रष्ट अधिकारियों की पांचवीं बार संविदा नियुक्ति हो जाती है
इसके पीछे लोग जो कारण बताते हैं वह भी बड़ा अजीब है, लोगों का कहना है कि भ्रष्ट अधिकारियों को लगातार संविदा नियुक्ति दिये जाने के पीछे मामला भजकलदारम् के हिसाब-किताब का है, खैर यह मुख्यमंत्री जानें कि कहां किसको मलाईदार पद और किसकी संविदा नियुक्ति इस सरकार द्वारा किन कारणों से दी जाती है इसके पीछे के कारण खोजने में भी लोग लगे हुए हैं। कुल मिलाकर राज्य में नौकरशाही को लेकर जो अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है
और हर बार मुख्यमंत्री इस नौकरशाही को बचाव के लिए हमेशा मैदान में आ रहे हैं, इसके पीछे के कारणों की खोज ठीक उसी तरह से करने में लगे हुए हैं जैसा कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में सम्पन्न सिंहस्थ के विचारमंथन के समापन वाले दिन अपने भाषण के दौरान देश और प्रदेश के साथ-साथ दुनिया के लोगों को यह सलाह दी थी कि यदि इतने बड़े आयोजनों में मैनेजमेंट की व्यवस्था के बारे में सही जानकारी लेना है तो मध्यप्रदेश की सरकार से आकर ले, कि सिंहस्थ के दौरान आई आंधी और तूफान की वजह से दोपहर तक सबकुछ तहस नहस होने की खबरें आ रही थीं लेकिन मैनेजमेंट व्यवस्था के चलते शाम ढलते-ढलते सबकुछ सामान्य हो गया। यह व्यवस्था का ही कमाल है
शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने हमारे प्रदेश के सत्ता के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को अतिलोकप्रिय मुख्यमंत्री होने की संज्ञान कुछ यूं नहीं दे डाली थी, आखिर शिवराज और उनकी टीम के मैनेजमेंट से वह प्रभावित तो होंगे ही तभी उन्होंने अति लोकप्रिय मुख्यमंत्री की उपाधि से शिवराज को नवाजा?
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