TOC NEWS // अवधेश पुरोहित
भोपाल । जिस प्रदेश की सत्ता की कमान संभालने के कुछ ही दिनों बाद सत्ता के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की धर्मपत्नी द्वारा अपनी पहचान छुपाकर डम्पर खरीदने की घटना से हुई हो उसी भाजपा के सत्ता के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान कितने घोटालों को अंजाम इस राज्य की नौकरशाही के द्वारा दिया गाय हो तो वहीं जिन प्रदेश के किसानों के हितैषी बनकर उनकी खेती-किसानी को लाभ का धंधा बनाने का ढिंढोरा पीटे जाने के बावजूद भी राज्य का अन्नदाता की खेती-किसानी लाभ का धंधा तो नहीं बन पाई, हाँ, यह जरूर है कि इस प्रदेश में सरकारी संरक्षण में खेत का नहीं बल्कि रेत का धंधा खूब फला-फूला और आज स्थिति यह है कि सरकार के लाख प्रयास के बावजूद भी इस रेत के खेल को यह सरकार रोकने में नकायाब नजर आ रही है
इसकी भनक मुख्यमंत्री के इस बयान से साफ झलकती है कि रेत चोरी के मामले में मुख्यमंत्री कहते हैं कि हर घाट पर अब बंदूकधारी तो तैनात नहीं किये जा सकते, मुख्यमंत्री का इस तरह के बयान के मायने तलाशने में हर कोई लगा हुआ है, कुल मिलाकर राज्य के राजनैतिक पंडित मुख्यमंत्री के इस बयान पर तरह-तरह की चर्चाएं करते नजर आ रहे हैं तो वहीं वह यह कहते भी नजर आ रहे हैं कि राज्य में कलेक्टर नाम का क्या कोई पद है।
क्योंकि शिवराज सरकार के कार्यकाल के दौरान यह कलेक्टर विकास अधिकारी बनकर रह गए तभी तो राज्य में राजस्व से जुड़े हजारों मामले लम्बित पड़े हुए हैं तो वहीं राज्य के प्रमुख सचिव राजस्व विभाग के अधिकारियों से लेकर पटवारी तक जमीन के रकबे के हिसाब से रिश्वत मांगने जैसी शिकायतों का भी अंबार लगा हुआ है, मजे की बात यह है कि जिस प्रदेश में प्रति मंगलवार को जनसुनवाई होता हो उस मध्यप्रदेश में ५२ हजार ७८४ मामलों का निराकरण वर्षों से नहीं हो पाया इन मामलों के अलावा नामांतरण, सीमांकन, बंटवारे, निजी भूमि पर अतिक्रमण सहित साढ़े तीन लाख मामले लंबित हैं
तो वहीं बंटवारे के ४३६९१, सीमांकन के ११५१५, निजी भूमि पर अतिक्रमण के १४३३८ मामले अटके पड़े हैं, इस संबंध में राज्य के अफसरों का कहना है कि पटवारी के नौ हजार पद खाली हैं इसी तरह तहसीलदार और नायब तहसीलदारों की कमी भी लगातार बनी हुई है इन सबसे अलग हटकर बात तो यह है कि जिन मुख्यमंत्री के मंत्रीमण्डल के साथी उमाशंकर गुप्ता पर राजस्व विभाग की कमान है, उनकी रुचि हमेशा दूसरों में खामियां निकालने और दूसरे के कामों में अड़ंगा डालने की रही है, वह जब भाजपा के विधायक हुआ करते थे तो उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती के कार्यकाल के दौरान उनके मंत्रीमण्डल के साथी परिवहन मंत्री ढालसिंह बिसेन के विभाग में उन्हें खामियां नजर आई थीं
तो उस समय उन्होंने विधानसभा में एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से तत्कालीन परिवहन मंत्री की कार्यशैली पर यह कहकर सवाल खड़े किये थे कि राज्य की सीमाओं पर तैनात परिवहन चौकियों पर बाहर के ट्रकों से २४०० रुपये और मध्यप्रदेश के ट्रकों से १२०० रुपये की विधिवत वसूली पूर्ववर्ती सरकार की तरह की जा रही है, यही नहीं जब वह इसी भाजपा शासनकाल के दौरान परिवहन मंत्री बने तो ऐसा कुछ उन्होंने इस विभाग में परिवर्तन नहीं लाया जिससे यह लगे कि उमा भारती के मंत्रीमण्डल के सदस्य तत्कालीन परिवहन मंत्री की कार्यप्रणाली पर उठाये गये सवालों से उन्होंने कोई राहत दिलाने का काम किया हो, मजे की बात यह है कि उनके स्वयं के कार्यकाल के दौरान परिवहन चौकियों पर किस तरह की वसूली का दौर चलता रहा यह उन्हें ही मालूम है
लेकिन इसके बाद जब परिवहन विभाग की कमान जगदीश देवड़ा के पास आई तो राज्य के गृह मंत्री होने के नाते पुलिस विभाग से परिवहन विभाग में प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले आरक्षक से लेकर अधिकारियों तक के मामले में टांग अड़ाने का काम किया और आज जब उनके हाथों में राजस्व विभाग की कमान है और सभी जानते हैं कि किसानों का नाता जितना राजस्व विभाग से पड़ता है और यह किसान राजस्व विभाग के अधिकारियों से पीडि़त, शोषित और अपमानित हैं वैसे किसी शायद अन्य विभाग से नहीं होते लेकिन उनकी रुचि अपने विभाग के पटवारी से लेकर राजस्व विभाग के अधिकारियों को सुधारने की नहीं बल्कि अपनी आदत अनुसार वह राजधानी में स्थित स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत आने वाले चिकित्सालयों की व्यवस्था सुधारने में लगे हुए हैं। मुख्यमंत्री ने जहां कलेक्टरों को उल्टा टांगने का बयान तो दिया लेकिन क्या कभी अपने इस तरह के अपने विभाग की लापरवाही बरतने वाले मंत्रियों के खिलाफ भी कुछ कार्यवाही करने की पहल की है।
वैसे भी कहा जाता है कि पहले अपना घर देखो बाद में दूसरे को संदेश दो। लेकिन मुख्यमंत्री के कलेक्टरों को उल्टा टांगने के बयान से यह साफ जाहिर हो जाता है कि उनकी पकड़ अपने मंत्रिमण्डल के साथियों पर नहीं है तभी तो उमाशंकर गुप्ता जैसे मंत्री जिने पास राजस्व जैसा महत्वपूर्ण विभाग है वह राजस्व विभाग जिसके बारे में यह कहा जाता है कि यह सभी समस्याओं की जड़ है उस विभाग को सुधारने के प्रति नहीं बल्कि राजधानी के अस्पतालों की व्यवस्था के प्रति कुछ ज्यादा ही रुचि है, पता नहीं इन अस्पतालों की व्यवस्था सुधारने के प्रति उनकी क्या रुचि है, यह वही जानें? लेकिन मुख्यमंत्री द्वारा कलेक्टरों को उल्टा टांगने के बयान को लेकर जिस तरह की बहस इन दिनों प्रदेश की राजनीतिक हलकों में छिड़ी हुई है
उस बहस को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं और लोग यह कहते नजर आ रहे हैं कि पहले अपना घर तो सुधार लें फिर कलेक्टरों को उल्टा टांगें, इन सभी मुद्दों और मुख्यमंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान उनके जुमलों और धमकियों पर सिलसिलेवार ब्यौरा देते हुए राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार रघवेन्द्र सिंह ने दैनिक नया इंडिया में अपने नियमित कालम ‘न काहू से बैर में मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर जो सटीक टिप्पणी की है उनके अनुसार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले कुछ सालों से अपनी सरकार के साथ ही संघर्ष के मोर्चे पर हैं। राजनीतिक मामलों तो वे उस्ताद हैं। सो उन्होंने अपने सभी विरोधियों को हाशिए पर ला दिया है, लेकिन प्रशासन के मोर्चे पर उनकी लाचारी अब कुंठा क्षोभ गुस्से में बदलने लगी है। भाजपा कार्यसमिति की बैठक में उन्होंने कलेक्टरों की कलेक्टरी सिखा दूंगा और कलेक्टरों को उल्टा टांग दूंगा जैसी बात कहकर अपनी बेबसी को अपनो के बीच बयां किया है।
पहले उनकी इस तरह की बातों पर डंडा लेकर निकाला हूं, नौकरशाही को ठीक कर दूंगा जैसे जुमलों पर जनता उन्हें अपने हीरो के रूप में देखती थी और तालियां बजाती थी मगर हालात सुधरने के बजाए बिगड़ते जा रहे हैं। गुड गवर्नेंस देने और खेती को लाभ का धंधा बनाने का सपना दिखाने वाले मुख्यमंत्री की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। भरोसे का टूटना सत्ता संगठन, के साथ आम जनता के बीच एक सरकार के असफल होने का संदेश लेकर जा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रेत, चोरी, किसानों की आपदा जैसे मामलों में सरकार की असफलता ने मुख्यमंत्री धैर्य तोड़ दिया है। इन क्षेत्रों में अच्छे दिन आ नहीं रहे और सुधार की कोई सूरत नजर नहीं आती। मंदसौर किसान गोलीकांड से शिवराज सरकार और भाजपा दोनों ही लगातार बैकफुट पर हैं।
प्रदेशप्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे ने अपना ध्यान राज्य से लगभग हटा लिया है। लंबे समय बाद वे प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में नजर तो आए मगर उपस्थिति बेअसर सी रही। इसी तरह संगठन महामंत्री सुहास भगत भी सरकार के साथ संगठन के कामों को लेकर उदासीन अखाड़े में बने हुए हैं। अकेले प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान मुख्यमंत्री आरएसएस को साधने के लिए शिक्षा विभाग की न केवल आलोचना करते हैं बल्कि यह तक कह देते हैं कि उनका वश चले तो संघ से जुड़े शिक्षा प्रकल्प को सौंप दें। इससे संघ भले ही खुश हो जाए मगर सरकार के मुखिया के नाते उनका ये बयान आलोचना का सबब बन गया है। इस तरह के बयानों का सिलसिला थम नहीं रहा है।
मुख्यमंत्री रेत चोरी के मामले में कहते हैं हर घाट पर अब बंदूकधारी तो तैनात नहीं किए जा सकते। इसका मतलब उन्होंने रेत चोरी के लिए सुरक्षित रास्ता दे दिया है। भ्रष्टाचार में जीरो टालरेंस पर भी सरकार और प्रशासन लगातार पिट रहा है। हाल ही में प्याज खरीदी को लेकर भी घोटाले समाने आने लगे हैं। करोड़ों रुपए की प्याज बिना किसी इंतजाम के खरीदी और सड़ा दी गई। व्यापमं के बाद कि सान गोलीकांड और प्याज घोटाले में सरकार की असफलता भाजपा से लेकर आमजनता में चर्चा का विषय है। सबसे खास बात ये है कि संतुलित और गंभीर मुद्दों पर चुप रहने वाले मुख्यमंत्री अब हलकी भाषा के इस्तेमाल पर उतर आए हैं।
राजनीतिक पीडि़त उनके व्यवहार में आए बदलाव के मायने निकाल रहे हैं। कुछ का अनुमान है पार्टी के भीतर ही उनके खिलाफ साजिश हो रही है। दिल्ली में उनकी छवि संगठन के कुछ नामचीन नेता योजना बनाकर खराब कर रहे हैं। मुख्यमंत्री का पक्ष अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं होने के कारण कमजोर हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को कमजोर प्रशासनिक पकड़ और रेत खनन तथा प्याज खरीदी जैसे मामलों में भ्रष्टाचार को लेकर लगातार रिपोर्टिंग की जा रही है। कांग्रेस की तुलना में मुख्यमंत्री और उनकी सरकार अपनों को टारगेट पर ज्यादा है। चिन्ता की असली वजह भी यही बताई जा रही है। अगस्त के महीने में कुछ बड़े फैसले आने की अफवाहें हैं।
कुल मिलाकर राज्य में इन दिनों जो कुछ चल रहा है वह इस शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के प्रारंभ में उनके सत्ता पर काबिज होते ही उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह ने अपनी पहचान छुपाकर डंपर खरीदकर जो इस प्रदेश की जनता, अधिकारियों, भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को जो संदेश देने काम किया था उनकी इस संदेश को जो लोग समझ गए आज वह करोड़ों में खेल रहे हैं और उनके इस संदेश में छुपे इस अर्थशास्त्र को जिन लोगों ने समझा आज वह चाहे अधिकारी हों या भाजपा के वह नेता और कार्यकर्ता जिनके पास कभी टूटी साइकिलें तक नहीं थीं आज वह इस शिवराज सरकार में बह रही भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगाकर आलीशान भवनों और लग्जरी कारों में फर्राटे लेते नजर आ रहे हैं शिवराज सरकार के इस अर्थशास्त्र को इस प्रदेश की जनता या भाजपा के नेता भले ही न समझे हों लेकिन जो समझ गये वह आज चैन में हैं।
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