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एससी-एसटी एक्ट में हुए बदलावों के खिलाफ केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले पर किसी भी प्रकार से रोक लगाने से मना कर दिया है। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अदालत ने अपने फैसले पर रोक लगाने से इनकार किया लेकिन कहा कि वह केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर विस्तार से विचार करेगी।
कोर्ट ने कहा कि जो लोग आंदोलन कर रहे हैं वे सही तरीके से फैसले नहीं पढ़ पाए हैं और निहित स्वार्थों से गुमराह हुए हैं। कोर्ट ने कहा, "हमने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के किसी भी प्रावधान को कमजोर नहीं किया है।"
कोर्ट का कहना है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग निर्दोषों को आतंकित करने के लिए नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस मामले में सभी पार्टियों से अगले दो दिनों में विस्तृत जवाब देने को कहा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिन बाद होगी।
बता दें कि एससी-एसटी एक्ट को कमजोर करने के विरोध में देशभर में दलित समुदाय के लोग गुस्से में है। सोमवार को हुए हिंसक प्रदर्शन के बीच केन्द्र सरकार ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इस मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताई थी। जिसके बाद जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिस पर मचा है बवाल
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में बदलाव किया था जिसके बाद दलित संगठनों ने इसका विरोध शुरु कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस एक्ट के तहत कानून का दुरुपयोग हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया। इसके अलावा इसके तहत दर्ज होने वाले मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को सात दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे एक्शन लेना चाहिए। अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी है तो उसकी गिरफ्तारी के लिए उसे नियुक्त करने वाले अधिकारी की सहमति जरूरी होगी। उन्हें यह लिख कर देना होगा कि उनकी गिरफ्तारी क्यों हो रही है। अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी नहीं है तो गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की सहमति जरूरी होगी। दरअसल, इससे पहले ऐसे मामले में सीधे गिरफ्तारी हो जाती थी।
केन्द्र ने क्या कहा था?
अपनी पुनर्विचार याचिका में केंद्र ने कहा था कि तत्काल गिरफ्तारी न होने से कानून कमजोर होगा और अत्याचारी को बल मिलेगा। पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए सरकार पर भाजपा ही नहीं बल्कि सहयोगी दलों का भी दबाव था। कांग्रेस समेत ज्यादातर विपक्षी दल भी सरकार की ओर से पुनर्विचार याचिका के लिए राष्ट्रपति से मिल चुके हैं।पिछले हफ्ते सत्ता पक्ष के सांसद लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत के नेतृत्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे। उन्होंने शीर्ष अदालत के फैसले से देश में अनुसूचित जाति/जनजाति पर उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ने की आशंका जताई थी। हाल के वर्षों में हुई घटनाओं के आंकड़े भी सामने रखे थे।
क्या है एससी/एसटी अधिनियम?
बता दें कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता है जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता है। इसे 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। इस अधिनियम में 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं। यह कानून अनुसूचित जातियों और जनजातियों में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों को दंडित करता है। यह पीड़ितों को विशेष सुरक्षा और अधिकार देता है।
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कोर्ट ने कहा कि जो लोग आंदोलन कर रहे हैं वे सही तरीके से फैसले नहीं पढ़ पाए हैं और निहित स्वार्थों से गुमराह हुए हैं। कोर्ट ने कहा, "हमने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के किसी भी प्रावधान को कमजोर नहीं किया है।"
कोर्ट का कहना है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग निर्दोषों को आतंकित करने के लिए नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस मामले में सभी पार्टियों से अगले दो दिनों में विस्तृत जवाब देने को कहा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिन बाद होगी।
बता दें कि एससी-एसटी एक्ट को कमजोर करने के विरोध में देशभर में दलित समुदाय के लोग गुस्से में है। सोमवार को हुए हिंसक प्रदर्शन के बीच केन्द्र सरकार ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इस मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताई थी। जिसके बाद जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिस पर मचा है बवाल
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में बदलाव किया था जिसके बाद दलित संगठनों ने इसका विरोध शुरु कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस एक्ट के तहत कानून का दुरुपयोग हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया। इसके अलावा इसके तहत दर्ज होने वाले मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को सात दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे एक्शन लेना चाहिए। अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी है तो उसकी गिरफ्तारी के लिए उसे नियुक्त करने वाले अधिकारी की सहमति जरूरी होगी। उन्हें यह लिख कर देना होगा कि उनकी गिरफ्तारी क्यों हो रही है। अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी नहीं है तो गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की सहमति जरूरी होगी। दरअसल, इससे पहले ऐसे मामले में सीधे गिरफ्तारी हो जाती थी।
केन्द्र ने क्या कहा था?
अपनी पुनर्विचार याचिका में केंद्र ने कहा था कि तत्काल गिरफ्तारी न होने से कानून कमजोर होगा और अत्याचारी को बल मिलेगा। पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए सरकार पर भाजपा ही नहीं बल्कि सहयोगी दलों का भी दबाव था। कांग्रेस समेत ज्यादातर विपक्षी दल भी सरकार की ओर से पुनर्विचार याचिका के लिए राष्ट्रपति से मिल चुके हैं।पिछले हफ्ते सत्ता पक्ष के सांसद लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत के नेतृत्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे। उन्होंने शीर्ष अदालत के फैसले से देश में अनुसूचित जाति/जनजाति पर उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ने की आशंका जताई थी। हाल के वर्षों में हुई घटनाओं के आंकड़े भी सामने रखे थे।
क्या है एससी/एसटी अधिनियम?
बता दें कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता है जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता है। इसे 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। इस अधिनियम में 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं। यह कानून अनुसूचित जातियों और जनजातियों में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों को दंडित करता है। यह पीड़ितों को विशेष सुरक्षा और अधिकार देता है।
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