सुरेश गुप्ता
मौका होठों को गोल कर सीटी बजाने का है और ऐसा हो भी क्यों नहीं। आखिर शिवराजसिंह चौहान मध्यप्रदेश के राजनैतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने में कामयाब हुए हैं । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा किसी अन्य राजनैतिक दल के मुख्यमंत्री के रूप में निरंतर पांच साल की कालावधि पूरा करना सिर्फ इतना ही नहीं शिवराज सिंह चौहान अपने दल में भी यह गौरव हासिल करने वाले पहले व्यक्ति हैं । जहाँ तक बात होठों को गोलकर सीटी बजाने की है तो शिवराज सिंह चौहान का विकास के लिए संकल्प और लगन आम लोगों को विश्वास दिलाता है कि सुनहरा भविष्य प्रतीक्षा कर रहा है । उनकी मंजिल है स्वर्णिम मध्यप्रदेश । जो देश का अग्रणी प्रदेश हो । जहां हर हाथ को काम, हर खेत में पानी, हर घर में बिजली और हर बच्चे को शिक्षा मिले ।
असल में शिवराज सिंह चौहान को जानने वालों और नहीं जानने वालों को यह बिल्कुल स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि वे दिन गिनने वाले लोगों में से नहीं, काम करने वालों में है । यह वही कर पाता है जो पद के आने-जाने की चिंता से मुक्त हो । जिसका लक्ष्य पद पाना या उस पर बने रहना नहीं होता बल्कि पद के अनुरूप दायित्वों के निर्वहन में प्रयत्नों की पराकाष्ठा करना होता है । श्री सिंह महज पिछले पांच साल में मुख्यमंत्री के रूप में ही कर रहे हो ऐसा भी बिल्कुल नहीं है । अब तक का उनका जीवन क्रम बताता है कि आपातकाल के दौर में अपनी कच्ची उम्र में ही वे लोकतंत्र की रक्षा के उद्देश्य से कारावास जा चुके हैं । महज १३ वर्ष की उम्र में अपने गृह ग्राम जैत में मजदूरों को पूरी मजदूरी दिलाने के लिए गांव भर में जुलूस निकाल चुके हैं । इसके बाद विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनता युवा मोर्चा में विद्यार्थियों और युवाओं के लिए काम उन्हें अपरिमित राजनीतिक अनुभव देता है । सन् १९९० में अल्प समय के लिए विधायक और फिर विदिशा से लगातार पांच बार लोकसभा चुनाव जीतकर १४ वर्ष तक संसद सदस्यता ने उन्हें जो राजनैतिक परिपक्वता दी वह उन्हें कर्मठ जननेता और जनसेवी बना चुकी है ।
यह सब दोहराने का आशय यह है कि वे पद की चिंता किए बगैर अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए समर्पित रहे हैं । विकास कार्यो के लिए प्रतिबद्धता के चलते उन्हें लगातार महत्वपूर्ण दायित्व मिलते रहे । अन्यथा पद अगर जोड़-तोड़ से मिल भी जाए तो उसे धारण करने वाला जल्दी ही बियाबान में खो जाता है । श्री चौहान का यह स्पार्क ही उन्हें बिरला बनाता है। चाहे संगठन का काम हो या मुख्यमंत्री के रूप में प्रशासन का । वे अपने को प्रशासक नहीं जनता का विनम्र सेवक मानते हैं । उनकी अपरिमित ऊर्जा और कुछ करने की तड़प, धारा को विपरीत दिशा में मोड़ने का माद्दा और असंभव को संभव बनाने वाली जिद का सफर उदाहरण है उनका मुख्यमंत्री तक का सफर । पांव-पांव वाले भैया के लिए इस सफर में जैसा मैने पहले लिखा कुछ भी अनूठा नहीं है । वह तो लोकसेवा और राष्ट्र के पुनर्निर्माण के अविराम पथिक हैं । पथ कितना ही कांटों भरा हो, शिवराज जी के शब्दों में वे जनता के पांवों में कांटे नहीं जाने देंगे । खुद तो उन्हें चुनेंगे ही, लोगों को भी प्रेरित करेंगे, प्रदेश के विकास की बाधा रूपी कांटों को हटाने के लिए ।
एक ऐसे देश और प्रदेश में जहां एक बार पर पर पहुंचने को ही जीवन भर की उपलब्धि मानकर जश्न बनाए जाते हों, वहां श्री चौहान की उपलब्धियां उल्लेखनीय ही कही जाएंगी । यह उपलब्धियां तब और विशिष्ट हो जाती हैं जब अपने नेतृत्व में, अपनी नीतियों के आधार पर जीतकर दोबारा सरकार बनायी गयी हो । सरकार बनाना भी उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना इस अरसे में प्रदेश के पुनर्निर्माण के कामों को निरंतरता और सफलता देना है । शिवराज सिंह चौहान ने जब प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला था तो वह एक तरह से कांटों का ताज था । एक तरफ भारी जनाकांक्षाओं का बोझ था, जिसके चलते दस वर्ष पुराने शासन को जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था दूसरी तरफ प्रशासनिक अनुभवहीनता का टैग था । तीसरी तरफ अपने ही दल के पूर्व मुख्यमंत्रियों की चुनौती और विधायक दल का सच्चे अर्थो में सर्वमान्य नेता बनकर उभरने की चुनौती थी तो चौथी तरफ पार्टी में बिखराव रोककर प्रदेश के विकास का अपना एजेण्डा लागू करना था । अभिमन्यु के समान विकट स्थिति थी । केवल चक्रव्यूह भेदना ही नहीं विजेता बनकर सुरक्षित भी निकलना था । इस राजनैतिक-प्रशासनिक महाभारत में श्री चौहान सभी तरह के चक्रव्यूहों को भेदकर पांच साल पूरा कर निरंतर और आगे बढ़कर ÷÷ पर्सन आफ द ईयर '' चुने जा रहे हैं ।
प्रदेश के इतिहास में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को पूरे पांच साल निर्विन चलाने और महज अपने तीन साल के कामकाज के आधार पर दोबारा जनादेश पाने वाले शिवराज मिथकों को तोड़ने के बाद भी सीटी नहीं बजाएंगे । अब अगर इसकी वजह जानना ही चाहते हैं तो वह यह है कि सत्ता उनका कभी लक्ष्य रहा ही नहीं है । उनका लक्ष्य सत्ता से बड़ा है । सत्ता उनके लिए अपने प्रेरणा-स्त्रोत पं० दीनदयाल उपाध्याय के आदर्शो के अनुरूप अंतिम पंक्ति के अंतिम आदमी के दुख-दर्द दूर करने का एक जरिया भर है । उनका लक्ष्य एक समरस विकसित प्रदेश के निर्माण के साथ राष्ट्र के पुनर्निर्माण का है । राजनीति को छल, फरेब, दुरभि-संधियों और जाति-धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठाकर विकासपरक बनाने का है । ÷÷ सर्व भवन्तु सुखिन '' की भारतीय संस्कृति की भावना के अनुरूप वे राजनैतिक दल बंदी, मत-मतान्तर, धर्म-जाति, वर्ग और समुदाय से परे सबके मंगल, कल्याण एवं निरोगी होने के कार्य के कठिन व्रत को पूरा करने में जुटे हैं ।
इस सबके बावजूद श्री चौहान को इस जन्मदिन पर तो होठों को गोलकर सीटी बजाना ही चाहिए । वंचितों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए समर्पित शिवराजसिंह जी के कोई भी वर्ग भूला-बिसरा नहीं रहा । उन्होंने प्रदेश में राजनीति की धारा इस अरसे में बदल दी । अब प्रदेश में राजनीति तुष्टीकरण की नहीं विकास की ही होगी । जो ऐसा नहीं करेगा वह हाशिये पर खड़ा होगा और सत्तारूपी कारवां जारी रहेगा । सरकार में जनता के विश्वास की वापसी के प्रयास में आज श्री चौहान ने वनवासी अंचल को नापा है । किसानों के दुख-दर्द को दूर करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं, सरकार और समाज को विकास के कामों में साथ ला रहे हैं । यह प्रक्रिया भविष्य में समृद्ध प्रशासनिक परंपरा बनेगी । अपनी कथनी-करनी का एकात्म कर आज प्रदेशवासियों की आशा और विश्वास के प्रतीक बने श्री चौहान को जन्मदिवस की बधाई के साथ
लेखक सुरेश गुप्ता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मीडिया अधिकारी हैं
असल में शिवराज सिंह चौहान को जानने वालों और नहीं जानने वालों को यह बिल्कुल स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि वे दिन गिनने वाले लोगों में से नहीं, काम करने वालों में है । यह वही कर पाता है जो पद के आने-जाने की चिंता से मुक्त हो । जिसका लक्ष्य पद पाना या उस पर बने रहना नहीं होता बल्कि पद के अनुरूप दायित्वों के निर्वहन में प्रयत्नों की पराकाष्ठा करना होता है । श्री सिंह महज पिछले पांच साल में मुख्यमंत्री के रूप में ही कर रहे हो ऐसा भी बिल्कुल नहीं है । अब तक का उनका जीवन क्रम बताता है कि आपातकाल के दौर में अपनी कच्ची उम्र में ही वे लोकतंत्र की रक्षा के उद्देश्य से कारावास जा चुके हैं । महज १३ वर्ष की उम्र में अपने गृह ग्राम जैत में मजदूरों को पूरी मजदूरी दिलाने के लिए गांव भर में जुलूस निकाल चुके हैं । इसके बाद विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनता युवा मोर्चा में विद्यार्थियों और युवाओं के लिए काम उन्हें अपरिमित राजनीतिक अनुभव देता है । सन् १९९० में अल्प समय के लिए विधायक और फिर विदिशा से लगातार पांच बार लोकसभा चुनाव जीतकर १४ वर्ष तक संसद सदस्यता ने उन्हें जो राजनैतिक परिपक्वता दी वह उन्हें कर्मठ जननेता और जनसेवी बना चुकी है ।
यह सब दोहराने का आशय यह है कि वे पद की चिंता किए बगैर अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए समर्पित रहे हैं । विकास कार्यो के लिए प्रतिबद्धता के चलते उन्हें लगातार महत्वपूर्ण दायित्व मिलते रहे । अन्यथा पद अगर जोड़-तोड़ से मिल भी जाए तो उसे धारण करने वाला जल्दी ही बियाबान में खो जाता है । श्री चौहान का यह स्पार्क ही उन्हें बिरला बनाता है। चाहे संगठन का काम हो या मुख्यमंत्री के रूप में प्रशासन का । वे अपने को प्रशासक नहीं जनता का विनम्र सेवक मानते हैं । उनकी अपरिमित ऊर्जा और कुछ करने की तड़प, धारा को विपरीत दिशा में मोड़ने का माद्दा और असंभव को संभव बनाने वाली जिद का सफर उदाहरण है उनका मुख्यमंत्री तक का सफर । पांव-पांव वाले भैया के लिए इस सफर में जैसा मैने पहले लिखा कुछ भी अनूठा नहीं है । वह तो लोकसेवा और राष्ट्र के पुनर्निर्माण के अविराम पथिक हैं । पथ कितना ही कांटों भरा हो, शिवराज जी के शब्दों में वे जनता के पांवों में कांटे नहीं जाने देंगे । खुद तो उन्हें चुनेंगे ही, लोगों को भी प्रेरित करेंगे, प्रदेश के विकास की बाधा रूपी कांटों को हटाने के लिए ।
एक ऐसे देश और प्रदेश में जहां एक बार पर पर पहुंचने को ही जीवन भर की उपलब्धि मानकर जश्न बनाए जाते हों, वहां श्री चौहान की उपलब्धियां उल्लेखनीय ही कही जाएंगी । यह उपलब्धियां तब और विशिष्ट हो जाती हैं जब अपने नेतृत्व में, अपनी नीतियों के आधार पर जीतकर दोबारा सरकार बनायी गयी हो । सरकार बनाना भी उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना इस अरसे में प्रदेश के पुनर्निर्माण के कामों को निरंतरता और सफलता देना है । शिवराज सिंह चौहान ने जब प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला था तो वह एक तरह से कांटों का ताज था । एक तरफ भारी जनाकांक्षाओं का बोझ था, जिसके चलते दस वर्ष पुराने शासन को जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था दूसरी तरफ प्रशासनिक अनुभवहीनता का टैग था । तीसरी तरफ अपने ही दल के पूर्व मुख्यमंत्रियों की चुनौती और विधायक दल का सच्चे अर्थो में सर्वमान्य नेता बनकर उभरने की चुनौती थी तो चौथी तरफ पार्टी में बिखराव रोककर प्रदेश के विकास का अपना एजेण्डा लागू करना था । अभिमन्यु के समान विकट स्थिति थी । केवल चक्रव्यूह भेदना ही नहीं विजेता बनकर सुरक्षित भी निकलना था । इस राजनैतिक-प्रशासनिक महाभारत में श्री चौहान सभी तरह के चक्रव्यूहों को भेदकर पांच साल पूरा कर निरंतर और आगे बढ़कर ÷÷ पर्सन आफ द ईयर '' चुने जा रहे हैं ।
प्रदेश के इतिहास में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को पूरे पांच साल निर्विन चलाने और महज अपने तीन साल के कामकाज के आधार पर दोबारा जनादेश पाने वाले शिवराज मिथकों को तोड़ने के बाद भी सीटी नहीं बजाएंगे । अब अगर इसकी वजह जानना ही चाहते हैं तो वह यह है कि सत्ता उनका कभी लक्ष्य रहा ही नहीं है । उनका लक्ष्य सत्ता से बड़ा है । सत्ता उनके लिए अपने प्रेरणा-स्त्रोत पं० दीनदयाल उपाध्याय के आदर्शो के अनुरूप अंतिम पंक्ति के अंतिम आदमी के दुख-दर्द दूर करने का एक जरिया भर है । उनका लक्ष्य एक समरस विकसित प्रदेश के निर्माण के साथ राष्ट्र के पुनर्निर्माण का है । राजनीति को छल, फरेब, दुरभि-संधियों और जाति-धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठाकर विकासपरक बनाने का है । ÷÷ सर्व भवन्तु सुखिन '' की भारतीय संस्कृति की भावना के अनुरूप वे राजनैतिक दल बंदी, मत-मतान्तर, धर्म-जाति, वर्ग और समुदाय से परे सबके मंगल, कल्याण एवं निरोगी होने के कार्य के कठिन व्रत को पूरा करने में जुटे हैं ।
इस सबके बावजूद श्री चौहान को इस जन्मदिन पर तो होठों को गोलकर सीटी बजाना ही चाहिए । वंचितों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए समर्पित शिवराजसिंह जी के कोई भी वर्ग भूला-बिसरा नहीं रहा । उन्होंने प्रदेश में राजनीति की धारा इस अरसे में बदल दी । अब प्रदेश में राजनीति तुष्टीकरण की नहीं विकास की ही होगी । जो ऐसा नहीं करेगा वह हाशिये पर खड़ा होगा और सत्तारूपी कारवां जारी रहेगा । सरकार में जनता के विश्वास की वापसी के प्रयास में आज श्री चौहान ने वनवासी अंचल को नापा है । किसानों के दुख-दर्द को दूर करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं, सरकार और समाज को विकास के कामों में साथ ला रहे हैं । यह प्रक्रिया भविष्य में समृद्ध प्रशासनिक परंपरा बनेगी । अपनी कथनी-करनी का एकात्म कर आज प्रदेशवासियों की आशा और विश्वास के प्रतीक बने श्री चौहान को जन्मदिवस की बधाई के साथ
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