ध्वस्त सूचना तंत्र की कीमत कब तक चुकाएगी सरकार
भोपाल
(पीआईसी
) // आलोक सिंघई
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सीधी जिले के चुरहट विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कांग्रेस की ओर से भविष्य में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जाते हैं . अपने पिता स्व . अर्जुन सिंह की विरासत के कारण उन्हें एक जवाबदार राजनेता भी माना जाता है . मौजूदा सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाकर श्री सिंह अपनी शिखर यात्रा की नींव रख रहे हैं . उनके ये प्रयास कारगर होंगे इसकी उम्मीद बहुत कम है . इसका कारण है कि वे अभी कांग्रेस के कई भीतरी अंतर्विरोधों से घिरे हुए हैं . अलग अलग क्षत्रप अपनी ढपली अपना राग सुना रहे हैं और जिन्हें शिकस्त देना कम से कम अभी तो अजय सिंह के लिए संभव नजर नहीं आ रहा है . इसका सबसे बडा़ कारण है अजय सिंह की विनम्रता और चापलूसों से भरा दरबार . चिलम भरने वालों की वही फेरहिस्त जो कभी अर्जुनसिंह के कृपा पात्रों में गिनी जाती थी . एक राजनीतिक विरासत के जो फायदे हैं उसी के कुछ नुक्सान भी तो हैं ही . अब मौजूदा अविश्वास प्रस्ताव का मामला देखें तो लगेगा कि कैसे अजय सिंह अपने ही खिलाफ बुने गए षड़यंत्र के जाल में उलझ गए हैं .
उनके ही जिले सीधी के सेमरिया ब्लाक में फेल्सीफेरम मलेरिया फैलने की शिकायत सामने आई . आनन फानन में कथित तौर पर चालीस से अधिक मौतें हों गईं . ये सब इतनी खामोशी से हुआ कि सरकार के स्वास्थ्य महकमे को पता ही नहीं चला . पता तो तब चला जब अजय सिंह जिला मुख्यालय पर धरने पर बैठे . इस असंभव कहानी की नींव केवल प्रदेश के विंध्य क्षेत्र में ही रखी जा सकती है . प्रदेश के तमाम इलाकों में जब मलेरिया से निपटने वाला तंत्र ठीक काम कर रहा है और दवाईयां बांटी जा रहीं हैं कहीं मलेरिया से मौत की खबर नहीं है इसके बावजूद सेमरिया ब्लाक में मानों सरकारी तंत्र सो गया . जिस तरह से ये मामला सामने आया उसी तरह से सरकार ने निदान भी किया .
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तुरंत उड़न खटोले से सीधी पहुंचे . उनके स्वास्थ्य महकमे का अमला भी वहां पहुंचा , छानबीन की तो पता चला कि ये सीधी जिले में पदस्थ दिवाकर सिंह और द्वारका प्रसाद पांडेय नाम के लैब टैक्नीशियनों की लापरवाही का नतीजा है . जिन्होंने सेमरिया , चौपाल , पबई , पढ़री और सतनारा गांवों में न तो ब्लड के नमूने लिए और न ही दवा बांटी . वास्तव में ये अपनी ड्यूटी पर भी नहीं जा रहे थे . प्रशासन ने इनके खिलाफ भादंसं की धारा 304 ए के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कराया .
ये कैसे संभव हो सकता है कि दो लैब टैकनीशियन अपने क्षेत्र में न जाएं . न तो रक्त के नमूने लें , न रिपोर्ट बनाएं फिर भी औचक जांच की निगाह से बचते रहें . ब्लाक स्तर पर मलेरिया निगरानी सेल की करतूतों की जानकारी न तो जिला मलेरिया अधिकारी को हुई और न ही सीधी के सीएमओ को . कलेक्टर को तो पता ही नहीं चला कि उनके क्षेत्र में मलेरिया फैल गया है . सरकार के ब्लाक स्तर पर मौजूद अमले को भी नहीं पता चला कि उनके क्षेत्र में मलेरिया फैल चुका है . कलेक्टर के आंख कान कहे जाने वाले पटवारी भी सोते रहे . बच्चों को पढ़ाने जा रहे शिक्षकों को बच्चों की गैरहाजिरी ने जरा भी नहीं चौंकाया . महिला बाल विकास की आंगनबाड़ी में भी महिलाओं और बच्चों की अनुपस्थिती ने जरा भी सवाल नहीं खड़े किए कि गांव बीमार क्यों हो रहा है . इसी तरह अन्य विभागों के अधिकारियों ने भी शासन के किसी जिम्मेदार अधिकारी को सूचना देना उचित नहीं समझा कि फलां फलां गांव के लोग बीमार हो रहे हैं और उनका इलाज नहीं हो रहा है . हमारे देश के जागरूक मीडिया को भी पता नहीं चला कि मलेरिया का घातक हमला हो चुका है . घर घर वोट मांगने वाले राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता सोते रहे और मलेरिया अपने डैने पसारता रहा . नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी जमीन से जुड़े नेता माने जाते हैं . उनके कार्यकर्ता भी सोते रहे . मलेरिया फैलता रहा . स्वास्थ्य विभाग का अमला नदारद था . क्षेत्र के डाक्टर कंपाउंडर गायब थे इसके बावजूद किसी ने सरकार को खबर नहीं की. सरकार को चेतावनी दी तो वो भी नेता प्रतिपक्ष ने स्वयं सीधी जिले में धरने पर बैठकर.इसके बाद जाकर मीडिया की आंखें खुली और उसने सरकार को जगाया.कहा कि पूरे प्रदेश में मलेरिया फैल रहा है और सरकार सो रही है.
फेल्सी फेरम मलेरिया दो चरणों में फैलता है.जिसका एक चरण मादा एनाफिलीज मच्छर के शरीर में पूरा होता है और दूसरा चरण इंसान के शरीर में. इस पूरी प्रक्रिया में चौदह दिनों का वक्त लगता है. यदि इस बीच जब किसी व्यक्ति को मलेरिया के कारण बुखार आ रहा है और उसे दवा दे दी जाती है तो ये चक्र टूट जाता है. यानि जिस इलाके में लोगों को मलेरिया हो रहा है और उन्हें कहीं न कहीं से दवा दी जा रही है तो वहां मलेरिया महामारी के रूप में सामने आ ही नहीं सकता . इस लिहाज से समझा जाए तो पूरे मध्यप्रदेश में जब मलेरिया फैलने के कोई समाचार नहीं हैं . मौतों की बात तो दूर की है . तब केवल सेमरिया ब्लाक में एक साथ चालीस मौतें आखिर कैसे हो गईं . इसके बाद जब मुख्यमंत्री जी ने मृतकों के लिए मुआवजा देने की बात की तो और दावेदार कहां से पैदा हो गए . क्या ये सरकारी मुआवजा हड़पने का कोई बड़ा षड़यंत्र तो नहीं था .
सरकार ने आनन फानन में एक आईएएस सुधीरंजन मोहंती को मोर्चे पर लगा दिया.मोहंती स्वयं स्वास्थ्य विभाग के संचालक रह चुके हैं. उन्हें दिग्विजय सिंह की भ्रष्ट सरकार के कार्यकाल में औद्योगिक विकास के नाम पर कर्ज लेकर कई संस्थानों को करोड़ों रुपए बांटे जाने के आरोप में फिलहाल बगैर किसी जिम्मेदारी के मंत्रालय में बिठा रखा गया था. रातों रात लिए गए इस फैसले से सारे अफसर और नेता अचंभित थे. ये कदम क्यों. जब पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग का अमला मौजूद है. मलेरिया से निपटने का ढांचा मौजूद है. स्वास्थ्य सचिव और 1982 बैच के आईएएस दिलीप सामंतरे के रहते हुए उनके की बैच के सुधी रंजन मोहंती को समानांतर सत्ता सौंपने का कारण किसी को भी नहीं समझ आया. मोहंती ने अदालती आदेशों के बल पर स्वास्थ्य विभाग में जमे बैठे भ्रष्ट अफसर अशोक शर्मा को अपने साथ ले लिया. शर्मा पर स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण विभागीय जांच चल रही है. आयकर विभाग ने इसके घर पर छापा मारकर करोड़ों रुपयों की आय से अधिक संपत्ति जब्त की थी. मोहंती और शर्मा की टीम ने प्रदेश में मलेरिया की रोकथाम के नाम पर दौरे शुरु कर दिए.मोहंती ने घोषणा कर डाली कि अब स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी घर घर जाकर मलेरिया रोगियों को दवाएं बांटेंगे.ये सारे कदम आनन फानन में उठाए गए किसी ने ये सोचने की कोशिश नहीं की कि मलेरिया आखिर कहां और कैसे फैला. जो नई रणनीति अपनाई जा रही है वह स्वास्थ्य विभाग के तयशुदा कार्यक्रम में किस तरह खलल डाल सकती है. जो अमला ठंड के सीजन में परिवार कल्याण कार्यक्रमों में जुटा रहता है वह इस अफरातफरी में किस तरह अपने उद्देश्यों से भटक जाएगा. ये सोचने की फिक्र अब सरकार नहीं कर रही थी क्योंकि मीडिया के माध्यम से उस पर आक्रमण जो किया जा रहा था. फिर विधानसभा का सत्र भी सिर पर आ बैठा था. जाहिर है एसे में सरकार को जो सलाह दी गई उसने उस पर अमल किया.यानि मोहंती की तैनाती करके कुछ करते दिखने की कवायद.
मलेरिया से निपटने के लिए तैनात अफसर सुधीरंजन मोहंती दिग्विजय सिंह के खासमखास रहे हैं . दिग्विजय सिंह अपनी रिश्तेदारी के बावजूद नहीं चाहते कि अजय सिंह उनके रहते हुए कभी भी सत्ता के केन्द्र बिंदु बन जाए . वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया को समर्थन देकर प्रदेश में अपना जनाधार बचाए रखने की जंग लड़ रहे हैं . राजनीति के इस दांवपेंच के बीच दिग्विजय समर्थक इन प्रयासों में जुट गए कि वे कैसे सदन मे लाए जा रहे अविश्वास प्रस्ताव की हवा निकालें . नतीजा ये हुआ कि अविश्वास प्रस्ताव का पहले से ही इतना हो हल्ला मचा दिया गया कि सरकार ने अपना पक्ष रखने की पूरी तैयारी पहले से कर ली . सदन के पहले ही दिन ये प्रस्ताव लाया जा रहा है .
पर राजनीतिक दांवपेंच की इस जंग की कीमत प्रदेश की जनता को चुकानी पड़ रही है . क्योंकि इस घटना के बाद सरकार घर घर जांच करा रही है . जिस पर काफी मंहगा खर्च आ रहा है . स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं सो अलग . यह बोझ सरकार के खजाने पर ही पड़ने वाला है . इसीलिए विधानसभा सत्र के दौरान लाया जाने वाला अविश्वास प्रस्ताव सरकार की सेहत पर कोई असर छोड़ेगा इसकी तो उम्मीद लगभग न के बराबर है पर ये तय है कि सरकारी सूचना तंत्र की नाकामी से उपजा ये राजनीतिक दांव जनता को करोड़ों रुपयों की चोट अवश्य देकर जाएगा . अजय सिंह राहुल भैया को घेरने के लिए दिग्विजय समर्थक मिलकर सुधीरंजन मोहंती के माध्यम से जो दांव खेल रहे हैं वह कांग्रेस की सधी चाल को भी डगमगाने में बड़ी भूमिका निभाएगा
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