फिर से अन्ना का अनशन : कौन साथ? कौन खिलाफ?
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
अन्ना
जी ने फिर से हुंकार भरी है-भ्रष्टाचार के खिलाफ देश को एकजुट करके सरकार
से दो-दो हाथ करने के लिये वे राजधानी नयी दिल्ली में आ गये हैं और अन्तिम
सांस तक लड़ने का ऐलान कर चुके हैं| ये बात तो भविष्य के गर्भ में छिपी है
कि अन्ना को कितनी सफलता मिलेगी, लेकिन एक बात तय है कि इस समय देशभर में
भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सामूहिक जनान्दोलन जरूर खड़ा हो गया है| यद्यपि कुछ
लोगों ने निहित स्वार्थवश भ्रष्टाचार के विरुद्ध शुरू किये गये इस आन्दोलन
को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है| फिर भी अन्ना को अभी भी देशभर
से समर्थन मिल रहा है| जिससे लोगों की अन्ना के प्रति निष्ठा प्रमाणित होती
है|
हालांकि
यहॉं पर यह बात भी विचारणीय है कि वर्तमान में जो हालत दिख रहे हैं, ये
कोई एक दो साल या एक दो दशक का मामला नहीं है! ये आदिकाल से चला आ रहा
भ्रष्टाचार का विकराल रूप है, जो पहले कुछ लोगों तक ही सीमित था, लेकिन अब
लोकतंत्र की गंगा में हर कोई हाथ धोना चाहता है, जहॉं एक ओर कांग्रेस नीत
यूपीए की केंद्र सरकार पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगते और प्रमाणित होते
जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भय, भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त सरकार देने का
दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी का कर्नाटक में येदियुरप्पा ने मु:ह कर
दिया है!
उधर
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चौहान अपने पत्रकार साले
संजय सिंह को प्रथम श्रेणी का ठेकेदार बनवाकर, उसके मार्फ़त करोड़ों के
ठेके चला रहे हैं| मुख्यमन्त्री के साले संजय सिंह पर राज्य का सारा
प्रशासन मेहरबान है! हर अफसर संजय सिंह को खुश करके मुख्यमन्त्री का चहेता
बनना चाहता है| राज्य में जमीनों की खरीद-फरोख्त में खुलकर इतना भ्रष्टाचार
हो रहा है कि लोग यहॉं तक कहने लगे हैं कि चौहान मध्य प्रदेश को बेच रहे
हैं| चौहान की सरकार को अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार बताया जा रहा है|
दिल्ली
की मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित भी कटघरे में खड़ी हैं| जिन्हें कुर्सी से
अपदस्थ करने के लिये विपक्षी भाजपा पूरे प्रयास कर रही है| राजस्थान के
मुख्यमन्त्री के बेटे एवं बेटी को कुछ कम्पनियों की ओर से खुश करने के
समाचार सुर्खियों में बने रहते हैं| गुजरात की कथित विकासवादी सरकार और
नवोदित क्लीनमैन नीतीश कुमार की सरकार भी भ्रष्टाचार के मामले में किसी से
पीछे नहीं हैं| झारखण्ड के हालात सबको पता हैं| उड़ीसा में बीजू सरकार के
खिलाफ बोलने की किसी में हिम्मत नहीं है| तमिलनाडू तो भ्रष्टाचार का सबसे
बड़ा गढ बन गया लगता है? उत्तर प्रदेश और उत्तरा खण्ड में जो कुछ हो रहा
है, उससे बच्चा-बच्चा वाकिफ है|
जिधर देखो उधर ही घोटाले ही घोटाले हैं| ऐसा लगता है माने सबके सब वास्तव में ही नंगे हैं!
-कोई सैनिकों के कफ़न चोर हैं तो कोई कोई सैनिकों के भवन (मुंबई की आदर्श सोसायटी) चोर हैं!
-कोई धर्म निरपेक्षता के नाम पर ठग रहा है तो कोई धर्मोन्माद के नाम पर बर्बाद कर रहा है!
-कोई कमजोर वर्गों को लुटने का डर दिखा रहा है तो कोई दूसरा उन्हें लूटकर डरा रहा है|
-कोई आरक्षण देकर लूट रहा है तो कोई आरक्षण छीन लेने का भय दिखाकर लूट रहा है|
-कहीं आर्थिक भ्रष्टाचार है, कहीं सामाजिक भ्रष्टाचार है तो कहीं धार्मिक भ्रष्टाचार|
इसलिए कोई भी राजनैतिक दल खुलकर अन्ना के जन लोकपाल बिल के समर्थन के लिए आगे नहीं आने वाला| प्रतिपक्षी भाजपा भी नहीं, क्योंकि
(1) अन्ना राजनैतिक दलों और अफसरशाही की ऑक्सीजन भ्रष्टाचार को मिटाने की बात कर रहे हैं! जिसे कोई भी दल मिटाना नहीं चाहता|
(2) अन्ना सरकार नहीं व्यवस्था बदलने की बात कर रहे हैं, जिसमें भाजपा को क्यों रुची होने लगी?
जबकि
इसके विपरीत बाबा रामदेव सरकार बदलने के लिए उस काले धन की बात कर रहे
हैं, जिसे कभी लाया जा सकेगा! इस बात का आम लोगों को तनिक भी विश्वास नहीं
है| इसके उपरान्त भी बाबा को भाजपा का खुला समर्थन है, क्योंकि-
(1) सरकार बदलने पर बाबा रामदेव हिंदुत्व के नाम पर भाजपा को समर्थन देने को पहले से ही सहमत हैं!
(2) काला धन वापस देश में लाने के लिए वैसे ही प्रयास करने का नाटक करते रहने में किसको आपत्ती है, जैसे बोफोर्स मामले में वी पी सिंह, चन्द्र शेखर, देवेगौडा, गुजराल और अटल सरकार ने किये थे!
(यहॉं
इन प्रयासों में कांग्रेस की सरकार को भी शामिल किया जा सकता है, लेकिन उस
पर तो इस मामले को दबाने का आरोप उन लोगों ने लगाया, जिनकी सरकार एक दशक
से अधिक समय तक सत्ता में रही| फिर भी किसी ने कुछ नहीं किया या मामले में
कुछ था ही नहीं केवल वोट बटोरने के लिए जनता को सबने मिलकर बेवकूफ बनाया!)
अन्य
दलों के हालत भी कमोबेस ऐसे ही हैं| सबके सब एक थैली के चट्टे बट्टे हैं,
जो अपना वेतन बढ़ाते समय तो एकमत हो जाते हैं और पांच साल तक जनता को
गुमराह करने के लिए संसद में झगड़ते रहते रहने का नाटक करते रहते हैं!
इसलिए
राजनैतिक दलों से किसी प्रकार की ईमानदारी की आशा करना बेमानी है! हालात
जो बतला रहे हैं, उसके मुताबिक कांग्रेस तो हर कीमत पर अन्ना आन्दोलन को
दबाकर अपना कार्यकाल पूर्ण करना चाहती है, जो हर राजनैतिक दल की इच्छा होती
है , जबकि भाजपा सत्ता में आना चाहती है, जो हर विपक्षी पार्टी की इच्छा
होती है! इसके अलावा कोई भी दल नहीं चाहता कि इस देश के लोगों को
भ्रष्टाचार, गैर बराबरी, शोषण और भेदभाव से निजात दिलायी जावे| अन्ना की
टीम भी एनजीओ, कार्पोरेट घरानों और मीडिया के भ्रष्टाचार को लेकर एकदम चुप
है, क्योंकि अन्ना टीम के लिए इन सबकी सख्त जरूरत है!
इन
हालातों में भी अन्ना जन लोकपाल को लागू करवाने के लिये कमर कस चुके हैं,
लोगों में जोश है| अन्ना के साथ देश के हर कौने में से समर्थन मिलने की
सम्भावना है| जिसे कॉंग्रेस के अलावा भी कुछ ताकतें, असफल करने में जुटी
हुई हैं| ये ताकतें नहीं चाहती कि अन्ना को इस बात का श्रेय मिले और अन्ना
केवल व्यवस्था बदलने की बात करते रहें तथा सरकार बनी रहे| ऐसी ताकतें सत्ता
के लिये अपने कथित सिद्धान्तों की बली देने के लिये योजनाएँ बना रही हैं|
अन्यथा क्या कारण है कि अन्ना के साथ वे शक्तियॉं न मात्र सड़क पर, बल्कि
प्रिण्ट, इलेक्ट्रोनिक और वेब मीडिया पर भी दूरी बनाकर चल रही हैं| यह
अत्यधिक निन्दनीय और शर्मनाक है|
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