डॉ. शशि तिवारी
मायावती ने सभी जाति के लोगों को साथ लेकर चलने की बात क्या कही कि राजनीति के अखाड़े के पुराने पहलवानों ने भविष्य में और दुर्गति को समझ लाल-पीले होना शुरू कर दिया है और जाति आधारित राजनीति की बात का इल्जाम लगाना शुरू कर दिया है। सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इल्जाम लगाते समय यह भूल गई इसका बीज भी उसी ने बोया था। आज यह एक सशक्त पेड़ के रूप में बड़ा हो चुका है। जब बबूल बोया तो कांटें ही तो हाथ लगेंगे?
एक समय था जब बसपा ने ही नारा दिया था
‘‘तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार’’ आज वही मायावती ज्ञान प्राप्त कर बदले रूप में सभी जातियों को लेकर चलने के लिए कह रही है। इस हुए हृदय परिवर्तन से आगे की राजनीति एवं भविष्य के लिए अच्छा संकेत है। मायावती ने 2007 में दलित एवं बाह्मण का सफल रहा गठजोड से उत्साहित हो अन्य सवर्णों को भी इसी पार्टी से जुड़ने की बात शासन में उचित प्रतिनिधित्व के साथ कह रही है।
यहाँ में मायावती की बेबाकी, निर्भिकता की तारीफ करना चाहूंगी कि कम से कम इनमें इतना साहस तो है कि वो खुलकर ब्राह्मण एवं अन्य सवर्ण जातियों के जुड़़ने की बात तो कह रही है। यही उनकी स्पष्टवादिता उन्हें 2012 में सफलता दिलाएगी। अन्य राजनीतिक दल अब सकपकाए हुए है वो स्पष्ट कह नहीं सकते और जातिवाद निभाते भी है। ऐसे दोहरे चरित्र के लोगों को जनता ही माकूल जवाब देगी। ऐसे लोग दबे-छिपे जातिवाद के आधार पर टिकटों का बटवारा एक लम्बे समय से करते आ रहे है। ये दमदारी तो मायावती ही दिखा सकती है कि 125 सीटे ब्राह्मणों के लिए आरक्षित कर दी है।
मायावती पूर्व में भी कई बार कह चुकी है कि ऊंची जाति के गरीबों को आर्थिक आधार पर आरक्षण मिलना चाहिए। मायावती तो पूरे देश में शिक्षा के क्षेत्र के साथ सरकारी नौकरियों में आर्थिक आरक्षण की हो रही मांग का भी भरपूर समर्थन पहले से ही देती आई है। इस संबंध में वे पूर्व में भी प्रधानमंत्री को पत्र लिख पार्टी की मंशा से अवगत करा चुकी है। ऊँची जातियों का बसपा की ओर बढ़ता रूझान से सभी विपक्षी घबराए हुए है। अभी तेल और तेल की धार भी देखना है कि मायावती भी कितना अपने वक्तव्यों पर टिकेगी ऐसा विपक्ष कह कोस रहा है।
पिछले चुनाव में बसपा ने नारा दिया था ‘‘ब्राह्मण शंख बजाएगा हाथी बढ़ता जायेगा।’’ धार्मिक पुराणों में भी ब्राह्मण, शंख और हाथी का अपना ही एक अलग स्थान है। ये तीनों सदमार्ग दिखा न्याय और धर्म का राज्य स्थापित करेंगे।
आज सभी राजनीतिक दल हिन्दू-मुसलमान, अगड़ा-पिछड़ा, जाति, क्षेत्रीयता, आरक्षण पर ही राजनीति कर रहे है। जो किसी से भी छिपा नहीं है। लेकिन स्पष्ट करने से सभी बचते, बगले झांकते ही नजर आते है। आज दलित सुप्रीमों मायावती ने स्पष्ट क्या कह दिया कि सभी अपने को धर्म-निरपेक्षता के बुरखे से खुद को ढंक रहे है। यूं तो बुरखा हमेशा असलियत से दूर करता है। इसलिए कोई भी राजनीतिक पार्टी आज जनता से आंख मिलाने की स्थिति में नहीं है। अब जनता भी नेताओं की मक्कारियों, चालबाजियों को भलीभांति समझने
लगी है। अब गाल बजाने से, भाषणबाजी से, आश्वासनों से काम चलने
वाला नहीं है। आज सिर्फ खरा और काम करने वाला ही चलेगा, जनता भी उसी को ताज पहनाएगी।
एक समय था जब दिल्ली की राजनीति उत्तर प्रदेश से ही चलती थी। आज कांग्रेस 22 साल से यहां सत्ता से बाहर है। ऐसा भी नहीं है इन 22 वर्षों में केन्द्र में कांग्रेस नहीं रही, आखिर क्या बात है कि कांग्रेस का दिन प्रति ग्राफ न केवल गिरा बल्कि आज तक अपने पेरों पर नहीं चल पाई? क्या यहाँ अब कोई लोकप्रिय सर्वमान्य नेता नहीं बचा? या कुशल नेतृत्व की कमी है?
विगत पांच-छ माह में कांग्रेस निर्णय लेने के मामले में काफी सुस्त रही फिर बात चाहे लोकपाल बिल की हो, महंगाई, पेट्रोल मूल्य वृद्धि की हो, राज्य के मुख्यमंत्री एवं मंत्रियों की
हो इससे ही पार्टी गंभीर डेमेज का शिकार हुई है।
साउथ में आन्ध्रा हिन्दी बेल्ट में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश की तरह कही राजस्थान भी इनके हाथों से न निकल जाए जिसकी पूरी-पूरी संभावना भी है। कहा भी जाता है कि निर्णय में देरी ही भ्रष्टाचार है।
(लेखिका सूचना मंत्र पत्रिका की संपादक हैं)
मो. 9425677352
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