जो लोग सत्तर के दशक में दिल्ली में मुनीरका के पास वाली पहाड़ियों में बनी यूनिवर्सिटी में रहे हैं,उन्होंने इमरजेंसी के आतंक को बहुत करीब से देखा है . उनको मालूम है कि हरमीत सिंह नाम का दरोगा जब प्रधानमंत्री के परिवार की किसी सदस्य के साथ आर के पुरम को पार करता था, तो वह क्या क्या कर सकता था. उन लोगों को मालूम है कि आततायी से पंगा लेना कितना आसान होता है . उन्हें बहुत सारी ऐसी बातें मालूम हैं जो देश की बहुत सारी यूनिवर्सिटियों में रहने वालों को मालूम है . बस एक बात ऐसी है जो वे लोग जानते हैं जिसे देश की किसी यूनिवर्सिटी के लोग नहीं जानते . सत्तर के दशक की उस पीढी ने सुहेल हाशमी जोक्स का आनंद लिया है जो जे एन यू के सत्तर के कैम्पस को तीन लोक से न्यारा कर देता है .
सुहेल हाशमी खांटी दिल्ली वाले हैं , उनके पिताजी ने आज़ादी के पहले
वाले हिन्दू कालेज से पढाई की थी और उनके ताऊ जी भी हिन्दू कालेज ही गए
थे. पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति , जनरल जिया उल हक भी दिल्ली
यूनिवर्सिटी में उनके समकालीन थे लेकिन वे हिन्दू में नहीं ,सड़क के उस पार
वाले कालेज में पढ़ते थे. सुहेल के सेन्स आफ ह्यूमर का सम्मान उन दिनों
भी था और आज भी है . इस इलाहाबाद वाले मार्कंडेय काटजू ने सुहेल हाशमी के
एक जोक की याद दिला दी है . मुझे लगता है कि अगर ठीक से मुक़दमा चले तो
मार्कंडेय काटजू को बीस साल और छः महीने की सज़ा होनी चाहिये.
१९७६ में सुहेल हाशमी ने एक जोक सुनाया था. हुआ यह कि १९५३ में जब
ख्रुश्चेव ने सोवियत रूस की सत्ता संभाली तो सब को मालूम था कि कैसे सत्ता
मिली थी. धीरे धीरे कॉमरेड ख्रुश्चेव वहुत ही ताक़तवर नेता हो गए. एक दिन
किसी सिरफिरे ने क्रेमलिन की दीवारों पर लिख दिया कि ” ख्रुश्चेव गधा है
“. बात
बहुत बड़ी थी और देश के सबसे ताक़तवर इंसान की शान में गुस्ताखी हुई थी.
खुफिया पुलिस ने दीवार पर लिखने वाले को पकड़ लिया . उस पर बाकायदा
मुक़दमा चला . उस आदमी पर दो केस चले और दोनों में सज़ा हुई . पहला केस तो
यह था कि उसने कॉमरेड ख्रुश्चेव की शान में गुस्ताखी की थी. इस अपराध के
लिए उसे छः महीने की सज़ा दी गयी . दूसरा अपराध बड़ा था . उसे स्टेट
सीक्रेट लीक करने का दोषी पाया गया और इस अपराध के लिए उसे बीस साल की
सज़ा हुई .
मुझे लगता है
मार्कंडेय काटजू ने भी डबल अपराध किया है . कुछ टी वी पत्रकारों की
शान में गुस्ताखी करने की सज़ा के तौर पर उन्हें छः महीने की सज़ा होनी
चाहिये जबकि टी वी पत्रकारिता के सबसे महत्वपूर्ण सीक्रेट को लीक करने के
लिये उन्हें कम से कम बीस साल की सज़ा होनी चाहिये.
शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार है. इतिहास के वैज्ञानिक विश्लेषण के एक्सपर्ट. सामाजिक मुद्दों के साथ राजनीति को जनोन्मुखी बनाने का प्रयास करते हैं. उन्हें पढ़ते हुए नए पत्रकार बहुत कुछ सीख सकते हैं.
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