ब्यूरो प्रमुख // संतोष प्रजापति (बैतूल// टाइम्स ऑफ क्राइम)
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बैतूल . जनता के बीच मनमोहक - मनभावन - लोकलुभावन नारो और भाषणो को देने वाले इस देश के तथाकथित कर्णधारो एवं देश की अवाम को तरह - तराह के सपनो को दिखाने वाले सपनो के सौदागरो से यदि कोई यह सवाल पुछे कि आखिर क्या व$जह है कि आजादी के 62 साल बीत जाने के बाद तथाकथित आजाद भारत के मध्यप्रदेश राज्य के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के 92 गांवो में आज भी मिटटी का तेल नसीब नहीं होने के बाद भी गांव के लोग किसी तरह लालटेन और चिमनी का दीया जला कर अपना गुजर बस करने को म$जबुर है। वीबीआईपी जोन में शामिल बैतूल जिले के 92 गांवो में आजादी के 63 साल पूर्ण हो जाने के बाद भी बिजली का आना - जाना तो दूर उसके दिव्य दर्शन तक नहीं हो सके है। सरकारी तथाकथित आकड़ो की बाजीगरी देखे तो पता चलता है कि वर्ष 2001 की जनसंख्या के अनुसार जिले में 1343 आबाद गांव है जिसमें से मात्र 1251 गांवो में ही लुका छिपी का खेल खेलने वाली बिजली के खम्बे पहँुच सके है।
सबसे अधिक 40 कालापानी कहे जाने वाले आदिवासी बाहुल्य गांव आदिवासी विधानसभा क्षेत्र भैसदेही के भीमपुर विकास खण्ड के है। चिचोली विकासखण्ड के 12 गांवो के अलावा बैतूल जिला मुख्यालय के बैतूल 4 तथा घोड़ाडोंगरी विकास खण्ड के 13 गांव शामिल है। शाहपुर विकासखण्ड के 7 आमला विकासखण्ड के 8 भैसदेही विकास खण्ड के 6 तथा आठनेर विकास खण्ड के 3 गांव है। इससे बड़ी शर्मसार बात और क्या होगी कि इस मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में राज्य का सबसे बड़ा सतपुड़ा ताप बिजली घर लगा है जिससे उत्पादीत बिजली दुसरे राज्यो को बेची जा रही है लकिन इस थर्मल प्लांट के समय ही इससे लगे कई गांवो में आज भी दिया तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ है। सारनी से लगे कई गांवो को पावर हाऊस की बिजली तो नहीं मिली अलबत्ता उन्हे पावर हाऊस की प्रदुषित जलरीली राख जरूर आसमान से और बहते पानी में पीने को मिल जाती है। सबसे आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि जिले के 1108 मजरे - टोलो में से मात्र 644 में बिजली पहँुच सकी है। इन सब से हट कर कोई प्रदेश के ऊर्जा मंत्री से सवाल करे तो उनके पास रटा - रटाया जवाब है कि वन ग्रामो में बिजली पहँुचाने के लिए वन विभाग की अनुमति चाहिए जो उन्हे नहीं मिल रही है। अब कोई ऊर्जा मंत्री से पलटवार कर सवाल करे के महाशय वन विभाग का अनुमति पाने वाला कार्यालय लंदन में या है वाशिंगटन में तो है नहीं ..? जहां से अनुमति मिलने में सात समुद्रो को पार करना पड़ रहा है.....? कई बार बैतूल जिले के बिजली विहीन गांवों की त्रासदी को राज्य विधान सभा एवं लोकसभा में उठाने प्रयास तो किया गया लेकिन उसकी सहीं ढंग से वकालत न होने से किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया और राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर संत्री तक आज भी वही अपना पुराना रटा - रटाया राग अलापते रहते है कि हमने प्रदेश की तकदीर और तस्वीर बदली है , अब थोड़ी - बहँुत कमी तो रही जाती है ......? सबका हमने ठेका थोड़े ले रखा है ...? हम तो अभी पाँच छै साल से आये है , कांग्रेस ने तो चालिस साल तक शासन में थी उसने क्या काम किया....? देश के जाने - माने अर्थशास्त्री डाँ मनमोहन सिंह ने अपने प्रधानमंत्री काल में 20 मार्च 2005 में सभी जिला कलैक्टरो से कहा था कि वर्ष 2009 तक देश के हर गांव तक बिजली पहँुचाने के प्रयास हो ताकि भारत का निमार्ण हो सके। कलैक्टरो ने प्रधानमंत्री की हिदायत इस कान से सुनी और दुसरे कान से निकाल दी क्योकि उन्हे भी मालूम है कि मनमोहन सिंह क्या स्वंय महामहिम राष्टï्रपति महोदया भी उन्हे एक ही जिले में वर्ष 2009 तक भारत के नवनिमार्ण करवाने के लिए स्थायी रूप से पदस्थ नहीं रख सकती।
आज 2012 लगभग बीत चुका है लेकिन गांव का अंधकार आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है। ऐसे में सरकारी योजनाये भाषणो और नारो तक सीमट कर रह गई है। देश का पहला गैसी फायर से बिजली उत्पादित करने वाले बैतूल जिले के उस आदिवासी बाहुल्य गांव कसई का गैसी फायर युनिट तक आज बंद पड़ा है। भारत सरकार के अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय (एम.एम.ई.एस) द्घारा शुरू की गई थी अब इस अभिनव योजना को किसी बैरी की न$जर लग गई। जिले के इस गांव पर आनन - फानन में बिजली पहँुचाने वाले दुबारा उस चौपाल पर नहीं पहँुचे। सौर ऊर्जा से बिजली जलाने वाले कई गांवो के सौर ऊर्जा उपकरण देख - रेख के अभाव में बंद हो गये। इतना ही नहीं इस जिले में पड़ौसी राज्य महाराष्ट्र से आने वाली तेज हवाओं से उत्पादित पवन ऊर्जा सयंत्र से बिजली का कथित उत्पादन भी हवा के साथ आखो से ओझल होता दिखाई दे रहा है। देश - प्रदेश का ब्रिट्रीस हुकुमत के जमाने से बना बहुचर्चित लोकप्रिय पवन ऊर्जा उत्पादन केन्द्र कुकरू खामला को राज्य सरकार अपने पर्यटक स्थलों में तक शामिल नहीं करवा सकी है। यहाँ आज भी मिटट्ी के तेल का दिया कभी - कभी टिमटिमाता दिखाई पड़ जाता है। बैतूल जिले के जिन गांवो में बिजली का झटका नहीं लगता उनकी सूचि काफी लम्बी है। प्रमुख गांवों में भीमपुर विकास खण्ड का कोल्हू ढ़ाना , कल्याणपुर , चीवल , रोहणी , केकड्या , कलां , झाकस , रहतिया , बाटला कंला , हरडाडाडू , पाली , हिड़ली , उमर घाट , मेलोर , बीरपुर , बेहड़ा , बाटला खुर्द , डेसली , धावड़ा रैयत , केकड्यिा $खुर्द , कीडिंग रैयत , राबड़ा रैयत , डेगना , पाढऱ , घोड़पढ़ रैयत , बेहड़ा , तकझीरी, पालंगा , हर्रा, झमली डोह , डुलिया, जोगली , पालंगा , पोटला , दाबिदा रैयत , खैरा , उत्तरी , डोडा जाम , बिजोरी , टिगरिया , कारिदा , चिचोली विकास खण्ड का जाम नगरी , टोकरा , पंक्षी , कनारी , देवठान , मोहनपुरा , बरखेड़ा , बाला डोंगरी , खोकरा खेड़ा ,गवांसेन , दारियागंज , जिला मुख्यालय बैतूल विकास खण्ड का गुवाड़ी , धाराखोह , पहावाड़ी , साजपुर , घोड़ाडोंगरी विकासखण्ड का ब्राहमणवाड़ा , फोपस , निशाना , डगडगा, सीतल खेड़ा , सुयाघुड़ी , रोझड़ा , भतौड़ी , रामपुर , झंमलीखेड़ा , बीजादेही, जुआंझर, अर्जूनगोंदी , शाहपुर विकासखण्ड का कांजी तालाब , खपरावाड़ी , माटीगढ़ , पाट , सांवरिदा , बोड़ , मेड़ाखेड़ा , आमला विकास खण्ड का सरण्डई , सावरियां , चिचारा , बुण्डाला , खैरी गयावानी रैयत , कुण्डारा , टूटामा , भालदेही ,भैसदेही विकास खण्ड का कसई , जामूखेड़ा , लोकलदरी , भोण्डयाकुंड , घोगल , बुराहनपुर , आठनेर विकासखण्ड का ताकी , भुसकुंम , माटका का नाम प्रमुख है।
कुछ गांवो तक बिजली के तार और कुछ तक खम्बे पहुंचने जा रहे है लेकिन आज भी गांव में मिटट्ी का तेल न मिलने पर लोग खाने का तेल तक जला कर रोशनी की तलाश में है।
कुछ गांवो तक बिजली के तार और कुछ तक खम्बे पहुंचने जा रहे है लेकिन आज भी गांव में मिटट्ी का तेल न मिलने पर लोग खाने का तेल तक जला कर रोशनी की तलाश में है।
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