दिव्य शक्ति (हठ योग) द्वारा पानी पर चलने की कला।
यह एक छोटी सी लघुकथा है, जो
लोगों की नकारात्मक मानसिकता को रेखाँकित करती है। पर आपको यह लघुकथा पढ़वा
कर बेवकूफ बनाना हमारा उद्देश्य नहीं। हम सचमुच आपको ऐसी चमत्कारिक घटना
के बारे में बताते हैं। पढिये बी0 प्रमानन्द जी के शब्दों में सम्पूर्ण विवरण:-
चमत्कारों के इतिहास में यीशू
मसीह के बारे में प्रसिद्ध है कि वे बिना सहारे के पानी पर चल लेते थे।
1968 में हठ योगी एल0एस0 राव ने ब्लिट्ज वीकली से साँगगाँठ कर के जनता को
बेवकूफ बनाने की एक चाल खेली। हफ्तों तक आर0के0 करंजिया के लेख छपे, जिसमें
इस हठ योगी की अद्भुत शक्तियों का उल्लेख होता था। अंत में यह घोषित हुआ
कि वे पानी पर चलेंगे और उनके पैर तक गीले नहीं होंगे। यह खरबों रूपये के
यौगिक खेल के रूप में विज्ञापित की गई।
एक शाम बम्बई में होने वाले इस
प्रदर्शन के टिकट ब्लैक में बेचे गए और पचास विशेष विमान विश्व भर की कैमरा
टीमों को लेकर योगी की प्रदर्शनी की रिकार्डिंग के लिए पहुँचे। प्रदर्शनी
का उद्घाटन अखिल भारतीय साधु समाज के अध्यक्ष और इंदिरा गाँधी सरकार के गृह
मंत्री, गुलजारी लाल नंदा द्वारा सम्पन्न हुआ। हठयोगी ने कुछ खेल दिखाए,
जैसे नथुने में धागा डाल कर दूसरे नथुने से निकालना, काँच खाना, आग पर चलना
और तेजाब पीना।
एक बड़े से टैंक को खाली दिखाया
गया। उस पर तेज बत्तियाँ चमक रही थीं। उस को पानी से भर कर हठ योगी ने एक
गाँजा बीड़ी सुलगाई, टैंक की ओर बढ़े और पानी में एक पैर डाला। जैसे ही
उनका दूसरा पैर भी पानी में गया, वे पत्थर की तरह डूब गए। उनको बाहर निकाला
गया और उन्होंने दर्शकों को अपनी असफलता के विषय में बताया, 'पिछली रात
मैं बाथरूम में गिर गया था और मेरे पैर में मोच आ गई है। इसीलिए मैं पानी
पर नहीं चल पा रहा। अपने वैज्ञानिक तो चाँद पर जाने में हजारों बार असफल हो
चुके हैं, मैं तो एक बार ही असफल हुआ हूँ। जब मेरी मोच ठीक हो जाएगी, तब
मैं पानी पर चल सकूँगा।'
हुआ यह था कि इसके पहले उन्होंने
सत्य साईं बाबा को चुनौती दी थी कि वे उनके द्वारा लाया हुआ कोबरा सर्प का
विष पिएं, क्योंकि सत्य साईं बाबा ने दावा किया था कि वे शिव के अवतार हैं।
वे हठ योग में नहीं, बल्कि तस्करी में एक दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी थे।
प्रदर्शन के तीन दिन पहले, सत्य साईं बाबा ने अपने गुंडे भेज कर वह सीमेंट
का टैंक नष्ट करवा दिया था, जो हठ योगी ने बनवाया था। नया सीमेंट का टैंक
बनाने का वक्त नहीं था, इसलिए धातु के टैंक का आदेश दिया गया। पर हठयोगी
अपनी चाल कैसे प्रकट करते? उन्होंने तो निर्माताओं से लम्बाई में दो
समानान्तर पटरियाँ बनवाई थीं, जिससे टैंक मजबूत हो जाए। पर उन्होंने
आड़ी-तिरक्षी पटरियाँ लगा दी थीं। इसलिए जिस तल को पानी भर जाने पर उठ जाना
था, वह उठ नहीं पाया। अपनी प्रदर्शनी निरस्त करने के स्थान पर उन्होंने
पैर अंदर डाल दिया और नीचे चले गये। जनता क्रोधित हो कर अपनी टिकटों के
पैसे वापस लेने की माँग करने लगी। हठयोगी को बम्बई की अपनी सारी सम्पत्ति
बेच कर लोगों का पैसा चुकाना पड़ा।
प्रश्न यह है कि जो व्यक्ति पानी
पर चल सकता है, उसको विशेष टैंक के निर्माण की क्या आवश्यकता है? चौपाटी पर
समुद्र के किनारे वह नदी पर चल सकता था, या वह बम्बई के बैक वॉटर में या
इलाके की किसी भी नदी या टैंक में यह करतब दिखा सकता था।
कोई भी व्यक्ति तब तक पानी पर
नहीं चल सकता, जब तक उसको किसी पुल का सहारा नहीं मिलता। इसको चमत्कार रूप
देने के लिए पुल का अदृश्य होना आवश्यक है। 1949 में मैंने एक बाबा को गंगा
के जल के नीचे धातु की दो अदृश्य रस्सियों के ऊपर चलते देखा था। इसलिए
हठयोगी की योजना यह थी कि वह काँच की चादर पर चलेंगे, जो जल भरने पर पानी
की सतह पर आ जाएगी। पर साईं बाबा के गुर्गों ने इस टैंक को प्रदर्शनी के
तीन पहले ही नष्ट कर दिया था। ताजा सीमेंट का टैंक बनाने के लिए समय नहीं
बचा था, इसलिए एक फर्म द्वारा एक धातु का टैंक निर्मित करवाया गया, जो ऐसे
बना कि टैंक में जब पानी भर गया, तो वह काँच की चादर ऊपर उठ ही नहीं पाई,
जिसपर हठयोगी को चलना था।
-बी0 प्रेमानंद
साभार- विज्ञान बनाम चमत्कार
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